भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने अक्साई चिन के विवाद को सुलझाने के लिए सितंबर 1958 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई को पत्र लिखकर मैक्महोन रेखा का सम्मान करने के लिए कहा था। चाऊ एन लाई ने 23 जनवरी 1959 को इसके जवाब में एक पत्र लिखा कि ‘भारत और चीन के बीच कभी भी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ और आप जिस तथाकथित सीमा की बात कह रहे हैं वो चीन के खिलाफ हुए साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम है।’ नेहरू हिन्दी चीनी भाई भाई के झांसे में आ गये और चीन के साथ लगी सीमाओं पर कभी भी सही संख्या में सैनिकों की तैनाती नहीं की गयी।
जब भारत पर चीन ने 1962 में हमला बोला था तो मेरी उम्र 10 साल की थी। उसके बाद 58 वर्षों तक मैंने कभी नहीं सुना कि चीन किसी भी मामले में कभी पीछे हटा हो। 1962 में एक ‘लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल’ (वास्तविक नियंत्रण रेखा) तय की गयी। मगर उस युद्ध के दौरान चीन ने भारत का 38 हज़ार स्कवायर किलोमीटर इलाक़ा हथिया लिया था। याद रहे कि बेल्जियम जैसे देश का कुल क्षेत्रफल केवल 30 हज़ार स्कवायर किलोमीटर है। यानि कि एक पूरा देश चीन ने अपने साथ जोड़ लिया था।
दरअसल भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने अक्साई चिन के विवाद को सुलझाने के लिए सितंबर 1958 में चीन के तत्कालीन प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई को पत्र लिखकर मैक्महोन रेखा का सम्मान करने के लिए कहा था। चाऊ एन लाई ने 23 जनवरी 1959 को इसके जवाब में एक पत्र लिखा कि ‘भारत और चीन के बीच कभी भी सीमाओं का निर्धारण नहीं हुआ और आप जिस तथाकथित सीमा की बात कह रहे हैं वो चीन के खिलाफ हुए साम्राज्यवादी षड्यंत्र का परिणाम है।‘ नेहरू हिन्दी चीनी भाई भाई के झांसे में आ गये और चीन के साथ लगी सीमाओं पर कभी भी सही संख्या में सैनिकों की तैनाती नहीं की गयी।
चीन ने ना सिर्फ़ भारत की ज़मीन पर अवैध कब्ज़ा कर लिया बल्कि आज भी वो कभी अरुणाचल प्रदेश में, कभी सिक्किम में, कभी उत्तराखंड में तो कभी लद्दाख़ में भारत की ज़मीन हथियाने की साज़िश रचता रहता है। यानि कि चीन को मिली ज़मीन और हमें मिले देश-प्रेम के गीत।
अब यदि देखा जाए तो कश्मीर के 78,000 स्कवायर किलोमीटर पर 1948 से पाकिस्तान ने कब्ज़ा कर रखा है। यानि कि भारत की 1,16,000 स्कवायर किलोमीटर की ज़मीन दो पड़ोसी दुश्मनों ने हथिया रखी है। उस समय के विपक्ष (जनसंघ) और आज के सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने सरदार पटेल को पाकिस्तान के साथ हो रहे संघर्ष से बाहर रखने के लिये तत्कालीन प्रधानमन्त्री पण्डित नेहरू और काँग्रेस पार्टी की तीव्र भर्तसना की है।
अब क्योंकि चीनी प्रधानमन्त्री चाउ-एन-लाई ने साफ़ कह दिया था कि वे भारत के साथ किसी भी सीमा रेखा को मान्यता नहीं देते इसलिये ज़ाहिर है कि चीन का फैलाववाद अपने पंजे भारत की ज़मीन पर समय समय पर गाड़ने का प्रयास करता रहता है।
भारत की पिछली सरकारों का रुख़ चीन के प्रति कुछ नरम रहा करता था। शायद इसीलिये चीन को यह आदत सी हो गयी थी कि वह जब चाहे भारत को घुड़की दे सकता है। फिर उसकी पाकिस्तान के साथ दोस्ती भारत को दोनों मोर्चों पर सजग रहने के लिये मजबूर करती रहती है।
नरेन्द्र मोदी के भारत के प्रधानमन्त्री बनने के बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के दौरे पर आए और ऐसा महसूस होने लगा कि दोनों नेताओं में एक निजी स्तर की समझ पैदा हो रही है। कहीं ऐसी तसल्ली भी बंधती महसूस हो रही थी कि अब भारत और चीन के बीच विवाद वाली स्थिति शायद दोबारा पैदा न हो। गुजरात में झूला झूलते शी जिनपिंग कब सख़्त हो गये कुछ पता ही नहीं चला।
पहला झटका भारत को लगा जब सिक्किम की सीमा पर चीनी सैनिकों ने हलचल दिखाई। मगर पहली बार चीन को झटका लगा जब भाजपा सरकार ने भारतीय सेना को खुली छूट दे दी कि स्थिति से हालात के अनुसार निपटा जाए। और चीन को पहली बार अपनी सेना को वापिस बुलाना पड़ा।
पिछले साल मई में यानि कि मई 2020 जब चीन के साथ हमारी मुठभेड़ हुई थी, तब टकराव पांच क्षेत्रों में हुआ था। दोनों देशों के बीच की जो वास्तविक नियंत्रण रेखा है, उसके आस-पास के वो चार इलाके हैं – 1. गोगरा पोस्ट का पेट्रोलिंग पांइट 17 ए; 2. पीपी के पास हॉट स्प्रिंग; 3. गलवान घाटी; 4. देपसांग प्ले। इन पर अभी समझौता होना बाक़ी है। इन इलाक़ों में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ कर ली थी।
एक लम्बे अर्से बाद दोनों देशों की सेनाओं में बिना गोली चलाए हाथापाई हुई। और इस संघर्ष में 20 भारतीय सैनिक शहीद हुए। ऐसे समाचार मिले हैं कि चीन के क़रीब पचास सैनिक मारे गये।
भारतीय संसद में विपक्ष के नेता राहुल गान्धी ने आरोप लगाया कि चीन ने भारतीय धरती को हथिया लिया है। जिस पर प्रधान मन्त्री नरेन्द मोदी ने वक्तव्य दिया कि चीन ने भारत की एक इंच ज़मीन पर भी कब्ज़ा नहीं किया है। मगर संसद में रक्षा मन्त्री राजनाथ सिंह ने कन्फ़्यूज़न पैदा कर दिया जब उन्होंने कहा – चीन ने भारतीय ज़मीन ख़ाली करना शुरु कर दिया है। यदि राजनाथ सिंह की यह बात ठीक है तो मानना पड़ेगा कि नरेंद्र मोदी का यह बयान ठीक नहीं था कि चीन के फ़ौजियों ने हमारी एक इंच ज़मीन पर भी कब्ज़ा नहीं किया है।
शायद सही स्थिति यह है कि चीन ने ‘नौ मैन्स लैण्ड’ से सेना और टैंक वापिस लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल के अपनी तरफ़ चलना शुरू कर दिया है। अभी चीनी वापिस चले नहीं गये हैं। बस यह तय हो गया है कि दोनों देशों की सेना अपने अपने इलाक़े में वापिस चली जाएगी। सच्ची बात तो यह है कि ‘वास्तविक नियंत्रण रेखा’ (एल.ए.सी.) पूरी तरह से अवास्तविक है।
चीन सरकार पर दोतरफ़ा दबाव बढ़ रहा है। चीनी कंपनियां जिनका भारत में व्यापार चौपट हो रहा है, अपनी सरकार पर दबाव बना रहे हैं। वहीं अमरीका के बाइडन प्रशासन का भी दबाव चीन पर है। हम सब भाग्यशाली हैं कि हम चीन को अपने टैंक और सेना वापिस ले जाते हुए स्वयं देख रहे हैं।
विपक्षी दलों से बस एक ही गुज़ारिश है। आप मोदी विरोध में ऐसी ग़लती न करें कि भारतीय सेना की आलोचना करनी शुरू कर दें। बालाकोट के समय भी विपक्ष ने ऐसा ही किया था। और आज भी वैसा ही कर रहे हैं।
सम्पादकीय में चीन के इरादों कोस्पष्ट करते हुए भारत की वर्तमान राजनैतिकविचार धाराओं पर चिंतन किया गया है।
नीतिगत विचारों पर बेहतरीन व्यख्या है ।
प्रभा
चीन और पाक के नापाक इरादों व करतूतों के बारे में बहुत सटीक विश्लेषण किया है। भारत की रणनीतिगत विचारधारा को स्पष्ट किया गया है। हार्दिक साधुवाद।