एक ठहरी हुई सी आवाज से नितिन के बढ़ते हुए कदम ठिठक कर रुक गए। उसने चौंक पर चारों ओर देखा पर कहीं कोई नहीं था। नितिन सिर झटककर फिर आगे बढ़ा। तभी फिर से वही ठहरी सी गूंजती हुई आवाज सुनाई दी।
“सुनो!”
अब तो कोई संशय बचा ही नहीं था। चारों ओर सन्नाटा था। एक ओर जलकुंभी से भरा हुआ तालाब और दूसरी ओर स्कूल के पीछे की चहारदीवारी। सड़क के दोनों ओर अमलतास और गुलमोहर के घने पेड़। दूर-दूर तक किसी आदमी की कोई झलक नहीं दिखाई दे रही थी। फिर यह आवाज कहाँ से आई? नितिन भौचक्का सा चारों ओर देख रहा था।
वैसे तो नितिन बहादुर लड़का था। स्कूल का प्रतिभाशाली छात्र। हमेशा कक्षा में प्रथम आने वाला और हर कार्यक्रम में भाग लेने वाला, शिक्षकों का प्रिय छात्र। आत्मविश्वास की भी उसमें कोई कमी नहीं थी। बचपन से जूडो-कराटे सीखा था उसने। परंतु इस सुनसान में इस अदृश्य आवाज ने उसके मन में थोड़ा डर पैदा कर दिया था।
डर को छिपाते हुए नितिन ने पूछा, “कौन हैं आप? क्या चाहते हैं?”
आवाज फिर से गूंज उठी। “मुझे तुमसे ही बात करनी है।”
चारों ओर नज़र घुमाते हुए नितिन ने पूछा, “आप मुझे दिखाई क्यों नहीं दे रहे हैं?”
“अरे, तुम्हारे सामने तालाब के किनारे वाले पेड़ पर ही तो हूँ।”
“फिर मुझे दिखाई क्यों नहीं दे रहे?”
वही आवाज फिर से सन्नाटे को चीरती हुई गूंज उठी। “अरे भाई मैं पेड़ की डाल पर ही तो बैठा हूँ। रुको मैं उड़ कर सामने आ जाता हूँ।”
आश्चर्य के साथ नितिन बोला, “तोता, आप तोता हैं? लेकिन आप कैसे इंसानों की भाषा इतने अच्छे से बोल रहे हैं?”
“हाँ, यह सही कहा तुमने। मैं एक खास प्रजाति का तोता हूँ। इंसानी भाषा बोल लेता हूँ। तुम्हें डराना नहीं चाहता था। लेकिन क्या करूँ? तुम समझदार लड़के हो। इसलिए तुमसे ही बात करना चाहता था। सच कहूँ तो मदद मांगना चाहता था।”
असमंजस में सिर हिलाते हुए नितिन बोला, “मुझे आपकी बात समझ में नहीं आ रही। आप स्पष्ट बताइए आपको मुझसे क्या मदद चाहिए?”
“पहले यह बताओ 15 अगस्त आने वाला है। तुम और तुम्हारे दोस्त 15 अगस्त पर यानी स्वतंत्रता दिवस पर अपने देश के लिए क्या विशेष कर रहे हो?”
हल्की हँसी के साथ नितिन बोला, “देश के लिए अभी क्या करेंगे हम? अभी तो हम छोटे हैं। फिलहाल हम लोग स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम करने वाले हैं। उसी की आज मीटिंग है। जिसमें मैं जा रहा था।”
“फिर तो मैंने तुम्हें सही समय पर रोका है।”
“जी बताइए।” नितिन सुनने के लिए खड़ा हो गया।
“सबसे पहले तो तुम बताओ देश के लिए कुछ करने का क्या कोई खास समय होता है? या कोई खास उमर होती है?” अब उस आवाज में नरमी थी।
नितिन दृढ़ स्वर में बोला, “तोता जी, मैंने कभी इस तरह से नहीं सोचा। हाँ, देश के लिए कुछ करना जरूर चाहता हूँ। इसीलिए मैं और मेरे दो दोस्तों ने निर्णय लिया है कि हम एनडीए की परीक्षा देकर देश की सेना का हिस्सा बनेंगे। और अपने देश की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान के लिए भी सदैव तैयार रहेंगे।”
“मैं तुम्हारी भावना की इज्जत करता हूँ। लेकिन बेटा, जब हमारा देश आजादी की लड़ाई लड़ रहा था तब छोटे-छोटे बच्चे, तुम्हारी उम्र के भी और तुमसे छोटे भी उस लड़ाई का हिस्सा बने थे। क्योंकि वे अपने देश के लिए कुछ करना चाहते थे। तो तुम कुछ क्यों नहीं कर सकते हो?”
नितिन ने अनुरोध किया, “मैं समझा नहीं आप अपनी बात खुलकर कहिए।”
“मैं सिर्फ यह कहना चाह रहा हूँ कि देश के लिए कुछ करने का तात्पर, कुछ विषय विशेष या कार्य विशेष नहीं होता। देश के हित में जो भी हो, जब भी हो, उसे करने के लिए तत्पर होना ही सच्ची देशभक्ति है।”
नितिन अभी भी पूरी बात नहीं समझ पाया था। सोचते हुए उसने पूछा, “मतलब?”
“मतलब यह की हर काल और समय में देश की आवश्यकता अलग-अलग होती है। और जिस समय जिस चीज की आवश्यकता हो वही किया जाना चाहिए। तुम लोग जो यह सांस्कृतिक कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आदि करते हो, इनका अपना महत्व है। इससे जागरूकता आती है। लेकिन आज आवश्यकता है कुछ ऐसी चीजों को करने की जो जमीनी धरातल पर हों। मैं इसी ओर तुम्हारा ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।” तोते ने अपनी गर्दन हिलाने के साथ-साथ पंख भी फड़फड़ाए।
“आपकी बात मुझे समझ में आ रही है। अच्छा हुआ आपने इस ओर मेरा ध्यान आकर्षित करा। अब कृपया यह भी बताएं कि इस समय हम अपने देश के लिए क्या-क्या कर सकते हैं?” विनम्रता से नितिन ने पूछा।
“काम एक दिन का तो नहीं है बेटा। पर आरंभ करोगे तो तुम और तुम्हारे दोस्त मिलकर पूरा जरूर कर लोगे। इतना मैं जानता हूँ।”
“कृपया कर आप बिना किसी संकोच के हमें बताएं।” नितिन के स्वर में आग्रह था।
“एक काम तो तुम्हारे सामने ही है।”
“मेरे सामने?” आश्चर्य से नितिन ने दोहराया।
तोता गर्दन घुमा कर तालाब की ओर देखते हुए बोला, “हाँ, यह तालाब जो इस जलकुंभी से भर गया है। जिसके कारण थोड़े समय में यह नष्ट हो जाएगा। तुम लोग थोड़ा श्रमदान करोगे तो इस तालाब को नया जीवन मिल जाएगा।”
“धन्यवाद तोता जी। यह बात आपने बहुत सही बताई। हम हर जगह पढ़ते रहते हैं ‘जल ही जीवन है’। फिर हम इस तालाब को सूखने कैसे दे सकते हैं? हम इसे नया जीवन देने के लिए कुछ भी करेंगे।” नितिन के स्वर में जोश था।
“एक बात और बेटा जिस जल को तुम जीवन कह रहे हो, इसकी बर्बादी को रोको। जहाँ भी जल को बर्बाद होता देखो, जल रक्षा के सिपाही बनकर खड़े हो जाओ।”
“ऐसा ही होगा तोता जी। आपने हमें बहुत अच्छी राह दिखाई है।”
“बेटा, एक बात तुम्हें और बताना चाहता हूँ। मैं उड़ सकता हूँ न इसलिए बहुत सारी जगह पर जाता हूँ। देखता हूँ कि हमारे देश में हम अपने घरों को तो साफ रखते हैं पर अपने घर के आसपास, पार्क, चौराहा, दर्शनीय स्थल, धार्मिक स्थल, सब जगह हम कूड़ा कचरा फैला देते हैं। विदेश से आने वाले सैलानी इसे देखकर हमारे बारे में अच्छा नहीं सोचते हैं। इसके बारे में भी सोचना जरूर। मेरा मन करता है जो भी हमारे देश आए, हमारे देश का गुणगान करे।”
“………..” बिना कुछ बोले नितिन ने सहमति में गर्दन हिलाई। फिर आँखें झुका कर बोला, “यह गलती तो हम सब जरूर करते हैं पर अब ऐसा नहीं होगा।”
“तोता जी, मैं अब चलता हूँ। मेरे साथी मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे। लेकिन आपसे वादा करता हूँ, मैं अपने साथियों के साथ यहाँ आऊँगा जरूर। आप मुझे यहाँ मिलेंगे न?” नितिन के स्वर में निर्णय की गहराई थी।
“हाँ, जरूर। मुझे भी तुम्हारी प्रतीक्षा रहेगी।” आशा भरी नजरों से नितिन को देखते हुए तोता बोला।
तोते से वादा कर नितिन दृढ़ चाल से चलता हुआ अपने स्कूल की ओर चल दिया। देश के लिए कुछ करने का भाव उसके मन में हिलोरे ले रहा था। अब तो उसके मन में और भी बहुत सारे भाव आ रहे थे। जो वह अपने देश के लिए कर सकता था। जिसमें उसकी उम्र बाधा नहीं थी।
अपने साथियों के पास पहुँचकर जब नितिन ने पूरी बात उनके साथ साझा करी तो सारे बच्चों के अंदर देश प्रेम की ज्वाला दहक उठी। और सब ने मिलकर प्रतिज्ञा करी कि वे सब मिलकर हर वह काम करेंगे जो देश के हित में होगा। चाहे वह कितना ही बड़ा हो अथवा कितना ही छोटा। आज का दिन इस बाल टोली के जीवन का एक महत्वपूर्ण और यादगार दिन बन गया। क्योंकि यह देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा दे गया था।
नीलम राकेश
610/60, केशव नगर कॉलोनी, सीतापुर रोड, निकट सेंट्रल बैंक, लखनऊ-226020
अच्छी और प्रेरणास्पद बाल -कहानी है नीलम जी आपकी! जलकुंभी वाकई परेशानी का सबब है. अभी कुछ वर्षों पूर्व नर्मदा जी में भी इसका प्रकोप नजर आया था। स्नान पर प्रतिबंध लगाकर उसकी सफाई की गई।
जल की बर्बादी को रोका जाना भी बहुत जरूरी है। और धार्मिक स्थलों पर पड़े हुए कचरे की ओर ध्यान आकर्षित करके भी अपने महत्वपूर्ण काम किया हैं।
तीनों ही महत्वपूर्ण बिंदु है जिसमें सभी का सहयोग अपेक्षित है।
फिर भी बाल कहानी की दृष्टि से ऐसा महसूस हुआ कि इसका विस्तार थोड़ा सा घटना चाहिए था। कहानी अच्छी है। बहुत-बहुत बधाइयां आपको।
अच्छी और प्रेरणास्पद बाल -कहानी है नीलम जी आपकी! जलकुंभी वाकई परेशानी का सबब है. अभी कुछ वर्षों पूर्व नर्मदा जी में भी इसका प्रकोप नजर आया था। स्नान पर प्रतिबंध लगाकर उसकी सफाई की गई।
जल की बर्बादी को रोका जाना भी बहुत जरूरी है। और धार्मिक स्थलों पर पड़े हुए कचरे की ओर ध्यान आकर्षित करके भी अपने महत्वपूर्ण काम किया हैं।
तीनों ही महत्वपूर्ण बिंदु है जिसमें सभी का सहयोग अपेक्षित है।
फिर भी बाल कहानी की दृष्टि से ऐसा महसूस हुआ कि इसका विस्तार थोड़ा सा घटना चाहिए था। कहानी अच्छी है। बहुत-बहुत बधाइयां आपको।
आपका इन प्रेरक शब्दों के लिए आपका आभार नीलिमा जी।