इस सप्ताह से हम पुरवाई पर ‘पाठकों का पन्ना’ नाम से एक स्तम्भ आरम्भ कर रहे हैं। इस पन्ने पर हमें ईमेल व संदेश के माध्यम से प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाओं को जगह दी जाएगी। इस सप्ताह पुरवाई के संपादकीय आलेख ‘भगवान सोनू सूद की जय’ को लेकर प्राप्त पाठकीय प्रतिक्रियाओं को साझा कर रहे हैं।
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डॉ तारा सिंह अंशुल
बेहतरीन संपादकीय…
प्रतिष्ठित पत्रिका पुरवाई के संपादक महोदय तेजेंद्र जी द्वारा लिखा गया संपादकीय अभी कुछ देर पूर्व पढ़ा जो मुझे अंदर तक अभिभूत कर गया। सच्चे अर्थों में सोनू सूद के कार्य का आभार प्रकट करने का यह बहुत अच्छा तरीका है।
मैं समझती हूं कि यह किसी मसीहा का नहीं अपितु एक नेक दिल परोपकारी इंसान के प्रति दिल से आभार प्रकट करना, पाठक पाठक के मुफ़लिसी के प्रति मानवीय संवेदना में थोड़ी हलचल पैदा करता है।
यह आलेख मेरे दिल को भी अति सुकूनदायक तसल्ली दे रहा है।
मेरा तो मानना है कि सोनू सूद बेहतर अभिनेता होते हुए भी एक ऐसे रहम दिल इंसान हैं, जो कोरोना वायरस के संक्रमण से फैली भयावह वैश्विक महामारी के समय में हमारे देश के, तत्समय दर-बदर भटकते , असहाय मजदूरों को वक्त पर वाज़िब सहायता मुहैया करा कर वास्तविक रुप से सर्वश्रेष्ठ हीरो बन गये।
अशक्त, असहाय लोगों की सेवा कार्य से बढ़कर दुनियां में कोई उम्दा कार्य नहीं हो सकता है।
सोनू सूद जी ने मनुष्यता की तरफ कदम बढ़ाया , असहाय लोगों की वक्त पर मदद किया , सच्चे अर्थों में मानव धर्म का अनुपालन किया और हम सभी मनुष्यों के समक्ष बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत किया।
गरीबों की नि:स्वार्थ सेवा, अंतिम पायदान पर खड़े लोगों की मदद के नेक कार्य के द्वारा उन्होंने मानव समाज के लिए प्रेरणा प्रतीक बनकर उच्च आदर्श प्रस्तुत किया है। इससे हमें भी वंचितों एवं असहाय गरीबों की भलाई करने की अंत:प्रेरणा प्राप्त होती है।
इसके लिए संपादक महोदय तेजेंद्र शर्मा जी को हार्दिक धन्यवाद एवं असीम शुभकामनाएं।
जय हिंद जय भारत वंदे मातरम!
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डॉ. सच्चिदानंद
यहाँ के लोगों को हमेशा एक भगवान चाहिए। वे मनुष्य की उत्कृष्ट संभावना में विश्वास नही कर सकते। इसीलिए हर युग में सत्ता/ सरकारें/ शासकवर्ग इन्हे भगवान भरोसे छोड़ते आये हैं।
इसी प्रकरण में अगर सोनूसूद के प्रति एक मनुष्य के रुप में “आदमी हो तो ऐसा” का भाव प्रचारित किया गया होता तो सम्भव है बड़े बड़े तंग हृदय वाले माननीय अपने को बेहतर मनुष्य साबित करने के लिए अपनी उदारता का कोठार आम आदमी के लिए खोलने पर विचार करते। किन्तु यहाँ कोई नेक काम कर दे तो उसे भगवान ही सिद्ध किया जाने लगता है। इसका एक अर्थ तो यह भी है कि इस युग में मनुष्यता का स्तर इतना नीचे गिर चुका है कि जनता किसी मनुष्य से अब उत्तम आचरण और निस्वार्थ-परमार्थ व्यवहार, बिना लाभ लोकोपकारी कर्मों की उम्मीद समाप्त कर चुकी है। और जब कोई इस क्षेत्र में अपनी प्रेरणा से निर्लोभ भाव से आता दिखाई देता है तो उन्हे भ्रम होता है कि ‘हो न हो’ यह कोई अवतारी पुरुष ही होगा।
लेकिन इस प्रतिक्रिया में जनता का नुकसान यह है कि इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश के लिए जल्दी जल्दी भगवान बनना कोई नही चाहेगा।
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उषा साहू (चेम्सफोर्ड, यूके)