हँसना ज़रूरी है। मन-मस्तिष्क के लिए और स्वस्थ तन के लिए खुश रहना सबसे अधिक ज़रूरी है। अब सवाल उठता है कि आख़िर खुशी हासिल कैसे होती है? क्या इसका कोई तय पैमाना है? क्या इसका कोई विशेष नियम है? और क्या खुश होने/रहने का कोई निश्चित समय होता है? इन सभी सवालों का एक ही जवाब है – “नहीं।“
असल में खुशी एक भाव है जो अनजान लोगों के बीच भी पहचान का अदृष्य तार जोड़ देती है। खुश रहना हमारी ज़रूरत है। परिवार के साथ हँसना, खुश रहना सबसे ज्यादा ज़रूरी है मगर परिवार हर समय एक साथ नहीं रहता। घर से बाहर काम-नौकरी की एक अलग दुनिया है। सामाजिक जीवन जीते हुए जब घरों से दूर रहना होता है, उस जीवन को आसान बनाने के लिए हम सब दोस्त बनाते हैं। दोस्तों का संग-साथ बेफिक्री देता है। उनके साथ जी-खोल कर हंसी-मजाक किया जा सकता है। हमारी भारतीय परंपरा में होली का पर्व तो हँसी ठिठोली के लिए प्रसिद्ध भी है।
तनाव में रहने वाले और जिम्मेदारियों के बोझ से दबे रहने वाले लोगों के लिए भी हंसी-मजाक के कुछ पल ज़रूरी होते हैं। यही कारण है कि प्राचीन काल में राजा-रजवाड़े अपने दरबारों में हँसाने के लिए ‘विदूषक’ नियुक्त किया करते थे। गंभीर जीवन शैली से कुछ समय की मुक्ति के लिए ‘मसखरी’ करने वालों की नियुक्ति होती थी। समाज की सबसे छोटी मगर सबसे महत्वपूर्ण कड़ी घर-परिवार होता है। इस कड़ी का चहेता वही सदस्य होता है जो अपनी बातों से, हरकतों से, सबको हँसने-गुदगुदाने को मजबूर कर देता है। आज के दौर में जिस गति से ‘कॉमेडियन’ प्रसिद्ध हो रहे हैं या ‘लाफ्टर शो’ की टिकटें बुक होती हैं, वह इस बात की गवाह हैं कि असल में हम सब खुश रहना चाहते हैं।
दरअसल खुशी एक भाव है जो जीवन के लिए आवश्यक है। इस भाव से पशु-पक्षी भी अछूते नहीं हैं। वे भी चुहल करते हुए, शरारतें करते हुए दिख जाते हैं। आप भी आज से ही जीवन के इस सबसे ज़रूरी मंत्र को ताबीज की तरह बाँध लें। किसी भी स्थिति को अपने उपर हावी मत होने दें। मन हल्का रखें। खिलखिला कर हँसें। जी-भर कर जीएं, और हमेशा खुश रहें।
ज़िंदगी में सुख–दुःख तो होते ही रहते हैं, लेकिन जो अंदर बचपना, लड़कपन पल रहा है उसको कभी मरने नहीं देना चाहिए क्योंकि वही है जो आपको हार्ट–अटैक जैसी जानलेवा बीमारी से बचा सकता है……
सहमत, हमें सदैव हँसने के बहाने ढ़ूँढ़ ही लेने चाहिए! सुन्दर और प्रेरक लेख!
धन्यवाद रंजना जी।
Such a beautiful piece!
Thanks Shivani.
ज़िंदगी में सुख–दुःख तो होते ही रहते हैं, लेकिन जो अंदर बचपना, लड़कपन पल रहा है उसको कभी मरने नहीं देना चाहिए क्योंकि वही है जो आपको हार्ट–अटैक जैसी जानलेवा बीमारी से बचा सकता है……
सार्थक जवाब के लिए धन्यवाद डॉ अकरम।