Sunday, May 19, 2024
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महाराष्ट्र विश्व मैत्रीय मंच का समारोह संपन्न

अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच की मुंबई इकाई, “महाराष्ट्र मैत्री मंच” द्वारा 23 दिसंबर 2023 को, पवई स्थित उषा साहू के आवास पर, ख़ूबसूरत गोष्ठी का आयोजन पर किया गया 
गोष्ठी में मुंबईठाणे और औरंगाबाद से पधारी हुई कवयित्रियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराई । कार्यक्रम अध्यक्ष थीं आ. मनवीन कौर पाहवा (औरंगाबाद), ।  वरिष्ठ साहित्यकार आ.कमलेश बक्शी और वरिष्ठ पत्रकार आ.दिव्या जैन ने अति विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होकर कार्यक्रम की शोभा वढाई ।
कार्यक्रम का आरम्भ इमरोज़ को श्रद्धांजली देते हुए अनीता रवि ने अमृता प्रीतम की ही रचना “… मैं तुझे फिर मिलूंगीकहाँ कैसे पता नहीं, शायद तेरे कल्पनाओं की प्रेरणा बन कर तेरे कैनवास पर उतरूँगी” सुनाई 
इमरोज़ और अमृता प्रीतम के रूहानी इश्क को याद करके प्रभा शर्मा सागर ने अपनी कविता “रूह में उसका इश्क लिए, मर तो गया वो उसी दिन” के द्वारा उनके प्रेम के उद्दात रूप को चित्रित किया।
तत्पश्चात उषा साहू ने अपनी कविता ” …याद है वो थी पूनम की रात, ताज के सामने उनसे हुई थी मुलाकात”,  सुना कर माहौल की रूमानियत को और बढ़ा दिया ।
विशेष रूप से आमंत्रित कामिनी अग्रवाल ने “जब भी उनको याद किया, वक्त अपना बर्बाद किया और मेरा दिल है मसालदानी” अपनी इन दो कविताओं के द्वारा हास्य – व्यंग्य का तड़का लगाया, ।
मनवीन कौर पाहवा ने “अनमोल रिश्ते” शीर्षक के तहत ,” मोतियों की लड़ियों से यह अनमोल रिश्ते, जन्नत की वादियों से उतरे ख़ूबसूरत फ़रिश्ते”  कविता द्वारा रिश्तों की महिमा और गरिमा का सुन्दर चित्रण किया।
सत्यवती मौर्य ने पुल” “… शीर्षक से दो गांवों को जोड़ता है पुल, दो प्रदेशों को जोड़ता है पुल…”के माध्यम से पुल के जोड़ने के भाव को और उसी पुल के ढहने पर भ्रष्टाचार की व्याप्ति की बात उठाई।
महाराष्ट्र मैत्री मंच की अध्यक्ष मृदुला मिश्रा ने सामयिक विषय पर, ” क्या शेष होना चाहता है सृष्टि का क्रम, हर जगह चल रही है युद्ध की विभीषिका….”, कविता के द्वारा युद्धरत देश और उसके पड़ने वाले प्रभावों को रेखांकित किया।
रानी मोटवानी जी ज़िंदगी की बिसात पर भी चली जाती है चालें, कभी आड़ी कभी तिरछी…” अपनी इस कविता के माध्यम से घर बाहर और जीवन में शतरंज के पासों और चालों से होने वाले शह – मात के खेल को बहुत अच्छी तरह से समझाया 
आ.कमलेश बक्शी के अनुरोध पर उनकी ही एक कविता “ज्ञानी बूंदों विषकन्या बन जाओ” का पाठ रानी मोटवानी ने किया । इसमें वर्तमान ही नहीं, हर दौर के समाज में फैली अराजकता के प्रति अपनी चिन्ता जताई गई है ।
शिल्पा सोनटक्के, शर्मिला बक्शी (कमलेश बक्शी की सुपुत्री) और निर्भय पाहवा ( मनवीन कौर पाहवा के सुपुत्र ) ने उपस्थित होकर, युवा वर्ग का प्रतिनिधित्व  किया ।    
 
अंत में उषा साहू ने सभी का आभार व्यक्त करते हुए, कार्यक्रम का समापन किया।
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