प्रेम, इश्क़ या मोहब्बत ऐसे अहसासात हैं जिनका हाल-ए-बयाँ बड़े-बड़े नहीं कर सके| अगर कभी कोशिश भी की तो ज़रा सा कमी हमेशा ही रह गई| इंसानी ज़िन्दगी का एक अहम् हिस्सा होने के बावजूद इंसान के द्वारा ही मुकम्मल तौर पर कभी भी बतलाया नही जा सका हालांकि इसके लिए पुरजोर कोशिशे हुई| पर एक बात ख़ास तौर पर समझी जा सकती है कि जब भी किसी भी कलाकार या सर्जक या रचनाकार ने इस विषय पर अपनी अभिव्यंजनायें व्यक्त कीं हैं, वे बिना किसी भी प्रकार के आग्रह के ही प्रस्तुत हुई हैं| किसी भी प्रकार का राजनैतिक, धार्मिक, सामाजिक  या सांस्कृतिक कारण प्रेम के भाव की अभिव्यक्ति में आड़े नहीं आया| इससे यह साबित होता है कि मोहब्बत इंसान के वज़ूद का एक ख़ास हिस्सा है और जब से वह इस दुनिया में आया तब से उसे इसकी ज़रूरत रही है चाहे वह इसे समझे, माने या न माने| प्रेम ही ऐसा तत्त्व है है जिससे दुनिया क़ायम है| इसकी बानगी को कवियों और शायरों ने विभिन्न समय और परिस्थितियों में अपनी वाणी दी है| ऊपर से स्थितियां चाहे जैसी भी हों पर एक कलाकार या रचनाकार का अंतर्मन एक अलग ही दुनिया को संजोये रहता है| ऐसा नहीं कि वह अपने वातावरण से प्रभावित नहीं होता लेकिन जब वह बात इश्क़ और प्रेम की करता है तो उसमें तमाम बंधनों से परे की अनुभूति को ही व्यक्त करता है क्योंकि यह तो इस विषय की शर्त है| दूसरे, वह दुनिया के किसी भी भाग का हो, उसकी अनुभूतियों का सम्बन्ध सभी को अनायास ही हो जाता है क्योंकि इंसान होने के नाते उसकी मूलभूत संवेदनाएं समान ही होती हैं| आप ही बताएं कि दुनिया की किस जगह में इश्क़िया अनुभूति और अभिव्यक्ति नहीं होती| प्रेम के अलग-अलग रंगों का प्रत्यक्षीकरण विभिन्न माध्यमों के द्वारा तो हमें होता ही रहता है और अगर एक कवि या शायर उसको कहे तो बात और भी खूबसूरत हो जाती है| इसी सिलसिले में उर्दू ज़बान की बात कुछ ख़ास ही है| विभिन्न शायरों ने अपने मुख्तलिफ़ अंदाज़ में अपने जज्बातों को बहुत ही उम्दा तरीके से प्रस्तुत किया है| उनकी लिखी ग़ज़लों और नज़्मों में सभी रंग हैं| समाज के हर दौर के पुख्ता सरोकारों के साथ-साथ ये ग़ज़लें इश्क़ की बात और अहसास को ज़ाहिर करने के लिए अधिक पसंद की जाती हैं| इसी सन्दर्भ में पाकिस्तान के शायरों की बात कुछ ख़ास है| इन शायरों का अपना एक ख़ास मुकाम है और इनकी लिखी ग़ज़लों और नज़्मों की भी खासी पहचान है| जितने लोकप्रिय ये पाकिस्तान में हैं उतने ही भारत में और दुनिया में भी हैं| उर्दू ज़बान भारतीय महाउपद्वीप की सांझा संस्कृति और परम्परा की उपज है| यह वह भाषा है जो राजनैतिक सीमाओं को लांघकर दो विभिन्न देशो को एक सूत्र में बांधती है| ग़ज़ल एक ऎसी विधा है जिसने इश्क़ को अपना मुख्य विषय बनाया है लेकिन इसके इतने रंग हैं कि रूमानियत से रूहानियत तक अपना फ़लक तैयार कर लेतें हैं| पाकिस्तान के शायर अपने लेखन में प्यार और मोहब्बत की बहुत ही प्रभावशाली अभिव्यंजना करते हैं| प्रेम के त्यौहार वेलेंटाइन्स-डे पर याद करतें हैं कुछ ऎसी ग़ज़लें और नज्में जिनमें इस भाव के बहुत ही पुर-खुलूस चित्रण हुए हैं या यूं कहें कि मोहब्बत पर आधारित जितना यहाँ की शायरी में कहा गया है, वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है:- “हमने सब शेर में सँवारे थे, हमसे जितने सुख़न तुम्हारे थे”…
ज़िंदगी की सबसे ज़रूरी चीज़ साथ और साथ भी उस वक़्त जब उसकी सही मायनों में ज़रूरत हो| मुश्किल घड़ियाँ सभी के साथ आती हैं पर अगर उस वक़्त सभी साथ छोड़ जाते हैं तब शायर अपने जज़्बात को कुछ इस तरह से व्यक्त करता है:-
‘‘जब कोई बात बनाए न बने 
जब न कोई, बात चले 
जिस घड़ी मातमी सुनसान सियाह रात चले 
तुम मिरे पास रहो, मिरे कातिल, मिरे दिलदार, मिरे पास रहो’’ (फैज़ अहमद फैज़)
लेकिन इस संग की गुजारिश उससे है जिससे उसे तकलीफ मिलती है लेकिन दिल है कि उसी की मोहब्बत में डूबा हुआ है| इससे मिलती जुलती बात कहते हुए मिर्ज़ा ग़ालिब ने भी क्या खूब फरमाया है:- “उसी को देख कर जीतें हैं कि जिस कातिल को देखकर दम निकले”
अगर इश्क़ का जज़्बा पूरा हो तो अपने लिए किसी भी नए रास्ते को बनाना मुश्किल नही होता| अक्सर बदलाव से लोग डरतें हैं या परम्परा की आड़ में नयेपन से एतराज़ करतें हैं लेकिन यदि बदलाव ज़रूरी है तो उसके लिए नई ज़मीन और आसमान की ज़रूरत हमेशा ही रहती है| इसके लिए वही तत्पर होते हैं जिनके दिल में नई उमंगों और हौसलों के साथ इश्क़ का होना बहुत ज़रुरी है| अल्लामा इक़बाल ने अपनी इस ग़ज़ल में भी कुछ ऐसे ही भाव प्रस्तुत किये हैं:-
“दयार-ए-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर 
नया ज़माना, नये सुबह-शाम पैदा कर
ख़ुदा अगर दिल-ए-फितरत शनास दे तुझको 
सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल से कमाल पैदा कर”
एक और उम्दा शायर इब्न-ए-इंशा हैं जो हमेशा ऐसी दुनिया की खोज करते रहे जहाँ सबकुछ सुन्दर, चमकीला और लुभावना हो| उन्होंने ऐसे विश्व की कल्पना की जहा चरों और हर्ष और उत्साह का माहौल हो| धर्म और किसी भी वाद से वे सदा मुक्ति चाहते थे| इसके लिए वे बेबाकी से अपनी बात ग़ज़लों और नज्मों में कहते हैं:-
“मुझको नफरत से नहीं, प्यार से मसलूब करो 
मैं तो शामिल हूँ मुहब्बत के गुनाहगारों में”
उनके जज़्बातों के उन्वाँ कभी नए वक़्त के तौर तरीकों को समझते हुए तो कभी गैरज़रूरी बातों के लिए अपनी नाराजगी ज़ाहिर करते हुए दिखाई पड़ता है| इश्क़ की गहराइयाँ हों या हल्का-फुल्का अंदाज़, वे अपनी बात को बहुत ही पुख्ता तौर पर रखते हैं:-
“कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समंदर में उतर जाऊँगा”
“हैं लाखों रोग ज़माने में, क्यूँ इश्क़ है रुसवा बेचारा 
हैं और भी वजहें वहशत की, इंसान को रखती दुखियारा”
इन पंक्तियों में सच को सच की तरह ही प्रस्तुत किया गया है| प्रेम जीवन का सबसे हसीं सच है| प्रेम और इश्क़ की ज़रूरत हरेक को होती है लेकिन जब भी कोई इश्क़ में पड़ता है तो उसे सबसे ज्यादा मुसीबत का सामना करना पडा है| यहाँ बड़ी ही संवेदनशीलता से ज़िंदगी की परेशानियों की असली वजहों को जानने की बात कही गयी है| 
अदा जाफरी की गिनती पाकिस्तान की विद्रोही शायरा के रूप में होती है| ज़िंदगी की मुश्किलें और उनका अनुभव उनकी ग़ज़लों और शेरों में उतरा है| उनके रूप में एक स्वतंत्र नारी-चेतना की शुरुआत होती है जो आगे चलकर और भी मुखरित होती है| अपने भावों को बहुत ही मुख्तलिफ़ अंदाज़ में पेश करतीं हैं|
“सुलग उठी तो अंधेरों का रख लिया है भरम
जो रौशनी हूँ तो क्यों चश्म-ए-नौहागर में रहूँ”
कठिन परिस्थिति में भी अपने अन्दर सकारात्मकता को बनाएं रखने का जज़्बा उनकी रचनाओं को और भी ख़ास बना देता है|
पाकिस्तानी शायरों की बात चले तो अहमद फ़राज़ साहब का नाम खुद-ब-खुद चला आता है| वक़्त की चल में केवल वर्तमान ही है जो कुछ कुछ हमारे साथ होता है वो भी चलते हुए| ऐसा नहीं कि संघर्ष केवल भूत या भविष्य की बात है पर यह जद्दोजहद हमेशा साथ रहती है| उर्दू शायरी में होने वाले नये बदलाव को भी उन्होंने स्वीकार किया तो जो बातें परम्परा के साथ अच्छी आई वे भी उनकी शायरी का हिस्सा है| जैसे:-
“पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्मे-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ”
तो इस शेर में व्यावहारिकता को दर्शाते हुए इश्क़ को वे बिलकुल ज़मीनी हकीक़त में देखते हैं:-
“तु ख़ुदा है न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसा 
दोनों इंसान हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिले”
मोहब्बत के सहारे मुश्किल रास्तों पर चलना बहुत आसां हो जाता है या यूं कहें कि किसी किसी हमदर्द की तलाश ही तब शुरू होती है जब रास्ते कठिन हो जातें हैं:-
“कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो 
बहुत कड़ा है सफ़र थोड़ी दूर साथ चलो”
इश्क़ और प्रेम की बात को अपने अंतर्मन में जाकर महसूस करना हो तो नासिर काज़मी की शायरी को समझने की ज़रूरत है| इनकी समस्त रचनाओं में प्रेम का उजाला है| ज़िन्दगी को अपने सम्पूर्ण स्वरुप के साथ देखना और समझना और फिर अपनी शायरी में उतारना, इनकी विशेषता है| चाहे सीमा में रह कर बात कहनी हो या उन्हें तोड़ने की, इनकी ग़ज़लों में ये सभी विशेषताएं मिलती हैं| इन्होंने बंटवारे का दर्द भी सहा और अपनी ज़मीन से बिछड़ने की पीड़ा रचनाओं में प्रस्तुत करते रहे| 
“दिल में इक लहर-सी उठी है अभी 
कोई ताज़ा हवा चली है अभी”
नारी-स्वतन्त्रता की प्रबल समर्थक के रूप में परवीन शाकिर ने ज़िन्दगी को शायरी से जोड़ कर उसे स्त्री की मुक्ति के स्वर दिए| एक स्त्री के मन को बेबाकी से पेश करने वाली यह शायरा उसे कही भी बेबस नहीं बल्कि एक सशक्त व्यक्तित्व से नवाज़तीं हैं| मोहब्बत की खुश्बू को उनकी रचनाओं में सहजता से पहचाना जा सकता है| रोमानियत और गहरी ऐन्द्रियता इनकी ग़ज़लों की विशेषता है| 
“अक्स-ए-खुश्बू हूँ, बिखरने से न रोके कोई 
और बिखर जाऊं तो मुझको न समेटे कोई”
“शोख़ हो जाती है अब भी तेरी आँखों की चमक 
गाहे-गाहे, तेरे दिलचस्प जवाबों की तरह”
चाहे आँखों की चमक हो या दिल के धड़कने का सबब, इन शायरों ने इश्क़ की रवानगी को बहुत ही खूबसूरती से अपनी शायरी में उकेरा है| इश्क़ के कई नाम और परिभाषाएं हैं और उनसे जुड़े हुए अंदाज़, लेकिन जहाँ तक उर्दू शायरी की बात है उसमें संजीदगी और लियाकत के साथ इंसानी जज़्बात को पेश करने का अंदाज़ दिल के गहरे में उतर जाता है| बस ज़रूरत है इसे किसी पूर्वाग्रह के बगैर पढ़ा और लुत्फ़ उठाया जाए| उम्मीद है कि इस प्रेम के त्यौहार के अवसर पर दुनिया में भर में मोहब्बत और शांति का अधिक से अधिक प्रसार हो|

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.