बात उन दिनों की है जब सिन्ध का बादशाह मिर्ख राजमद में अन्धा होकर हिन्दुओं पर अत्याचार ढा रहा था. उसने हिन्दुओं को चेतावनी देते हुए राज्य में घोषणा करवा दी कि सारे हिन्दू मुसलमान बन जाएं, यदि वे ऎसा नहीं करते हैं तो सभी को मौत के घाट उतार दिया जाएगा.. त्राहि-त्राहि सी मच उठी थी पूरे सिन्ध में.
उसके अत्याचार से त्राण पाने के लिए उस क्षेत्र की जनता वरुणदेवता के पास जाकर अपनी दर्दभरी कहानी सुनाने लगी. तभी आकाशवाणी हुई कि “थने” जिले के नसरपुर गाँव में ठाकुर रतनराव एवं माता देवकी के घर शीघ्र ही वे जन्म लेंगे और उस अत्याचारी से मुक्ति दिलाएंगे.
संवत 1007 में सिन्धु नदी के किनारे बसे नसरपुर गाँव में उदेरोलाल ने जन्म लिया. जन्म लेने के बाद जब माँ ने दूध पिलाने के लिए उसका मुँह खोलने लगी तो मुँह ही नहीं खुल पा रहा था. काफ़ी प्रयास के बाद जब मुँह खुला तो माँ देखती है कि बच्चे के मुँह में सिन्धु नदी बह रही है और एक श्वेतवस्त्रधारी व्यक्ति उस नदी की धारा का पान कर रहा है. ऎसा होने पर शीघ्र ही सिन्धु नदी से जल मँगवाकर बालक के मुँह में डाला गया. तत्काल ही बालक माता का दुग्धपान करने लगा. कुछ बडा होने पर उसने अपना स्थान “दरयाह शाह” में बनाया.
वह बालक बचपन से ही बडा तेजस्वी और चमत्कारी था. उसने एक सेना का संगठन किया और बादशाह हो चेतावनी देते हुए संदेशा भिजवाया कि वह सही मार्ग पर आ जाए तथा अत्याचार को तिलांजलि देकर हिन्दू-मुसलमान सबको एक नजर से देखे लेकिन मदान्ध बादशाह चेतावनी देने के बावजूद अपनी मनमानी करता रहा. एक दिन उदेरोलाल ने बादशाह के महल में जाकर ऎसी चमत्कारी लडाई लडी कि वह परास्त हो गया. कहा जाता है कि अपनी हार के बाद उसने उदेरोलाल से अपनी जान बचाने के लिए दया की भीख माँगने लगा. उदार उदेरोलाल ने उसे तुरन्त क्षमा कर दिया. यही कारण है कि मानवीय एवं उदार दृष्टिकोण के कारण उदेरोलाल की कीर्ति-पताका चारों तरफ़ फ़हराने लगी. उनकी यह जीत नृशंसता पर मानवता की, दानवी शक्ति पर मानवी शक्ति की, अभारतीयता पर भारतीय संस्कृति की जीत थी. देखते ही देखते उनकी स्मृति में जगह-जगह मन्दिर स्थापित होने लगे और पूजा होने लगी.
इस महापुरुष ने विशेषकर सिन्धी समाज को संगठित कर मिर्ख बादशाह की धर्मान्धता से जनमानस की रक्षा की और समाज में आध्यात्मिक धारा प्रवाहित कर अपना नाम अमर कर दिया. यही कारण है कि सिन्धी समाज आज भी झूलेलाल(उदरोलाल) की गणना अवतारों में करते हैं और प्रतिवर्ष नववर्ष के प्रारम्भ (चैत्र शुक्लपक्ष प्रथम दिवस)पर उनकी जयन्ती सारे भारत के सिन्धी हिन्दुओं द्वारा उदेरोलाल, अमरलाल, चेटी चाँद, सिन्धी दिवस के रुप में बहुत ही धूमधाम से मनायी जाती है.
कहा जाता है कि उदेरोलाल ने मिर्ख की बादशाहत पर अपनी ओजस्वी सेना से इतना जबरदस्त आतंक जमा लिया कि मिर्ख बादशाह को वे बार-बार इस रुप दे दिखायी देने लगे थे, जैसे कि उदेरोलाल उनके महल में प्रवेश करके उसकी दाढी पकडकर तख्त से नीचे खींचकर मार रहे हैं
ऎसा विश्वास किया जाता है कि उदेरोलाल दरिया (नदी) में लोप हो गए, फ़िर भी, जब सिन्ध में संकट की घड़ी आयी, लोग श्री उदेरोलाल को विशेष याद करते रहे और वे उनकी मनोकामनाएं पूरी करते रहे.
आज भी सिन्धी समाज श्री झूलेलाल( उदेरोलाल) को वरुणदेवता के रुप में मानता है. भारत में स्थान-स्थान पर झूलेलालालजी की झाँकी और शोभायात्रा निकाली जाती है. लोग बहराना निकालते हैं और छॆज( विशेष नृत्य) तथा डोकला( डंडॆ बजाते हुए नृत्य) और नारे लगाने के साथ-साथ झूलेलाल की याद में नाचते-झूमते उत्सव का आनन्द लेते हैं.
(नारा)
“बढो जवानों झूलेलाल, लडॊ जवानॊ झूलेलाल आगे बढॊ झूलेलाल, दुश्मन पछाडॊ झूलेलाल
भारत के हर वीर सिपाही झूलेलाल
जिस विषम परिस्थिति में श्री झूलेलालजी द्वारा साम्प्रदायिक सद्भाव की स्थापना करते हुए भारतीय संस्कृति की रक्षा की गयी थी, आज उनके संदेशों पर चलकर यदि भारत का हर वीर सिपाही उनके आदर्शों को जीवन में उतारे तो सम्पूर्ण समाज का कल्याण सम्भव है.
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया गोवर्धन जी आज पहली बार झूलेलाल जी की कहानी पता चली। सच कहें तो हमने उन्हें
जानने की कोशिश ही नहीं की। जबकि होशंगाबाद में साधु वासवानी स्कूल की नींव गुरुद्वारे में जब रखी गई तो वहाँ पहले टीचर हम ही थे। स्कूल को संभालने वाले भी, पढ़ाने वाले भी। सब पाकिस्तान से आए हुए थे और उन्होंने अपनी एक कॉलोनी बना ली थी। हमारे लिए चैलेंज यह था कि एक भी बच्चा बिल्कुल भी हिंदी नहीं जानता था।न ही बोलना न ही समझना। 3 महीने पढ़ाना बड़ा मुश्किल रहा उन्हें पहले हिंदी बोलना ही सिखाया गया।
वह स्कूल हमारे लिए सर दर्द की तरह रहा क्योंकि मैनेजमेंट में ही कोई ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। फिर 3 साल बाद हमने छोड़ दिया।
पर लोग बहुत ही प्रेमिल नेचर के थे सम्मान भी बहुत करते थे।
आज आपके माध्यम से पहली बार झूलेलाल जी की वास्तविकता से परिचित हुए। आश्चर्यजनक कहानी है।
एक बार पुन: अपनी संस्कृति की महत्वपूर्ण और सच्ची कहानी से जाग्रत करवाने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया गोवर्धन जी आज पहली बार झूलेलाल जी की कहानी पता चली। सच कहें तो हमने उन्हें
जानने की कोशिश ही नहीं की। जबकि होशंगाबाद में साधु वासवानी स्कूल की नींव गुरुद्वारे में जब रखी गई तो वहाँ पहले टीचर हम ही थे। स्कूल को संभालने वाले भी, पढ़ाने वाले भी। सब पाकिस्तान से आए हुए थे और उन्होंने अपनी एक कॉलोनी बना ली थी। हमारे लिए चैलेंज यह था कि एक भी बच्चा बिल्कुल भी हिंदी नहीं जानता था।न ही बोलना न ही समझना। 3 महीने पढ़ाना बड़ा मुश्किल रहा उन्हें पहले हिंदी बोलना ही सिखाया गया।
वह स्कूल हमारे लिए सर दर्द की तरह रहा क्योंकि मैनेजमेंट में ही कोई ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। फिर 3 साल बाद हमने छोड़ दिया।
पर लोग बहुत ही प्रेमिल नेचर के थे सम्मान भी बहुत करते थे।
आज आपके माध्यम से पहली बार झूलेलाल जी की वास्तविकता से परिचित हुए। आश्चर्यजनक कहानी है।
एक बार पुन: अपनी संस्कृति की महत्वपूर्ण और सच्ची कहानी से जाग्रत करवाने के लिए आपका तहेदिल से शुक्रिया।