हाल ही में दो ऐसी घटनाएं हुई हैं जिसमें इन्सान ने जंगली जानवरों से भी बदतर व्यवहार किया है। एक घटना अमरीका में हुई जहां एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने एक अश्वेत 46 वर्षीय पुरुष की गर्दन को अपने घुटने तले तब तक दबोचे रखा जबतक उसकी मृत्यु नहीं हो गयी। और दूसरी घटना भारत के केरल राज्य के मल्लापुरम में हुई जब किसी बेरहम शैतान ने एक गर्भवती हथिनी को बारूद से भरा अन्नानास खिला दिया। और एक दिन बाद हथिनी और गर्भस्थ शिशु की मृत्यु हो गयी। पहले…
इक जानवर की जान…
फ़िल्म ‘हाथी मेरे साथी’ के एक गीत में गीतकार आनन्द बक्षी ने लिखा है – “जब जानवर कोई इन्सान को मारे / कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे / एक जानवर की जान आज इंसानों ने ली है / चुप क्यों है संसार।”
मल्लापुरम में किसी तथाकथित इन्सान ने एक गर्भवती हथिनी को बारूद से भरा अन्नानास खिला दिया जो कि उसके मुँह में ही फट गया। हथिनी के साथ ही साथ उसके गर्भस्थ बच्चे की भी मौत हो गयी। कोई इन्सान इतनी गिरी हुई हरक़त कैसे कर सकता है, समझ नहीं आता। यह किस प्रकार का खेल है? ज़ाहिर है कि यह कृत्य करते समय वह व्यक्ति अकेला नहीं रहा होगा। उसके साथ उसके शरारती मित्र भी रहे होंगे। इन लोगों को किस नाम से पुकारा जाए, पाठक ही तय करें।
गर्भवती हथिनी की मौत को लेकर पूर्व मन्त्री एवं भाजपा सांसद श्रीमती मेनका गांधी ने कहा कि यह हत्या है, केरल का मल्लपुरम ऐसी घटनाओं के लिए कुख्यात है। उन्होंने नाराज़ होते हुए वक्तव्य दिया, “केरल देश का सबसे हिंसक राज्य है, यहां लोग सड़कों पर ज़हर फेंक देते हैं, जिससे एक साथ 300 से 400 पक्षी और कुत्ते मर जाएं। केरल में हर तीसरे दिन एक हाथी को मारा जाता है।”
मेनका गान्धी के इस बयान के आधार पर केरल पुलिस ने उनके खिलाफ आई.पी.सी. की धारा 153 के अंतर्गत मामला दर्ज किया है। उन पर भड़काऊ बयान देने का आरोप है। यह केस जलील नाम के एक शख्स की शिकायत पर दर्ज किया गया है। इसी मुद्दे पर विरोध जताने के लिए कुछ हैकरों ने मेनका गांधी के एनजीओ की साइट भी हैक कर ली थी।
पुरवाई परिवार इस हिंसा की भर्त्सना करता है। इस हत्या को किसी भी अदालत द्वारा माफ़ नहीं किया जाना चाहिये। इस पर दफ़ा 302 की कठोरतम सज़ा सुनाई जानी चाहिये।
जॉर्ज फ़्लॉयड की हत्या
25 मई, 2020 को मिनेएपोलिस (मिनेसोटा – अमरीका) में चार श्वेत पुलिसकर्मियों ने एक 46 वर्षीय अश्वेत युवक जॉर्ज फ़्लॉयड की सड़क पर खुले आम हत्या कर दी। उस अश्वेत युवक पर आरोप था कि उसने बीस डॉलर का एक नकली नोट किसी दुकान पर चलाने का प्रयास किया। दुकानदार ने पुलिस को फ़ोन करते हुए यह भी कहा कि जॉर्ज उनका नियमित ग्राहक है और बातचीत करने में शालीन है।
दुःख इस बात का है कि नकली करेंसी का जुर्म कोई ऐसा जुर्म नहीं है कि मुलज़िम को अपनी सफ़ाई में कुछ कहने का मौक़ा तक ना मिले और पुलिस अपने ही स्तर पर घुटनों तले उसकी गर्दन को तब तक दबाए रखे जब तक कि उसकी साँसें ना रुक जाएं।
पूरे नौ मिनट तक जॉर्ज की गर्दन पर पुलिस अधिकारी ने अपने घुटने का दबाव बनाए रखा। वह चिल्लाता रहा कि मुझे साँस नहीं आ रहा। 46 वर्ष का वह पुरुष अपनी माँ को पुकारता रहा, मगर पुलिस ने उसकी एक नहीं सुनी और वह पुलिस की बेरहमी का शिकार बन गया।
पूरा अमरीका इस हत्या के विरुद्ध सड़कों पर उतर आया है। वैसे भी एक लाख से अधिक अमरीकी कोरोना वायरस के शिकार हो चुके हैं। इन हिंसक प्रदर्शनों के बाद कोरोना क्या कहर बरपाएगा कोई कह नहीं सकता।
पुलिस डिपार्टमेण्ट ने चारों पुलिस अधिकारियों को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया है। उन्हें गिरफ़्तार किया गया है और उन पर मुकद्दमा भी दर्ज किया गया है। उन्हें दस लाख डॉलर की ज़मानत पर ही रिहा किया जा सकता है।
हमें ऐसी हिंसा की निन्दा करनी ही होगी। अमरीका के हालात इस समय बहुत ख़राब हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प के लिये इस मामले से निपट पाना आसान नहीं होगा।
माननीय संपादक महोदय,
आपने वक्त की गंभीरता को देखते हुए जिन दो घटनाओं के विषय में कहा है एकदम सही बात है।आज मनुष्य जीवन के साथ इस कदर मज़ाक करने पर तुल गया है कि वह आगे पीछे कुछ सोचना ही नहीं चाहता! मानव की संवेदना ही उसे मानव का दर्जा दिलाती है किन्तु कहना गलत ना होगा कि आज वह स्वयं को इतना नीचे अपने कृत्यों से किए जा रहा है कि कब कौन सी घिनौनी हरकत वह किसके साथ कर बैठेगा कहना कठिन हो गया है।शर्म आती है यह सोचकर कि कुछ लोगों की नापाक हरकतों से समस्त मानवजाति का अपमान होता है!
डॉ.सविता सिंह
पुणे
मनुष्य की संवेदनशीलता कैसे, कहाँ, कब और क्यूँ खो गयी ?
जब तक हम ही नहीं जागेंगे, तब तक ये प्रश्न अनुत्तरित ही रहेंगे।
कभी जानवरों को हिंसक कहा जाता था, अब इंसान ही जानवर से बदतर हो गये हैं।
माननीय संपादक महोदय,
आपने वक्त की गंभीरता को देखते हुए जिन दो घटनाओं के विषय में कहा है एकदम सही बात है।आज मनुष्य जीवन के साथ इस कदर मज़ाक करने पर तुल गया है कि वह आगे पीछे कुछ सोचना ही नहीं चाहता! मानव की संवेदना ही उसे मानव का दर्जा दिलाती है किन्तु कहना गलत ना होगा कि आज वह स्वयं को इतना नीचे अपने कृत्यों से किए जा रहा है कि कब कौन सी घिनौनी हरकत वह किसके साथ कर बैठेगा कहना कठिन हो गया है।शर्म आती है यह सोचकर कि कुछ लोगों की नापाक हरकतों से समस्त मानवजाति का अपमान होता है!
डॉ.सविता सिंह
पुणे
बहुत बढ़िया लेख