बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि सामना में छपे लेख से प्रतीत होता है कि कंगना द्वारा मुंबई को पी.ओ.के. जैसा बताने के बाद यह कार्रवाई हुई है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कंगना को धमकाने लिए बाहुबल का इस्तेमाल किया गया। बी.एम.सी. द्वारा की गई कार्रवाई गलत नीयत से की गई प्रतीत होती है।

महाराष्ट्र सरकार को इन दिनों बार-बार भारतीय न्यायपालिका से डांट पड़ रही है। पहले अर्णव गोस्वामी के मामले में सुप्रीम कोर्ट से खरी खोटी सुननी पड़ी और अब कंगना रनौत के बंगले पर तोड़-फोड़ की कार्यवाही को मुंबई हाईकोर्ट ने ग़ैरकानूनी क़रार दिया है। हाईकोर्ट का मानना है कि कंगना रनौत के मामले में उद्धव सरकार द्वारा की गयी कार्यवाही द्वेष से की गयी है और ग़ैर कानूनी है। 
हाईकोर्ट ने अपनी जजमेण्ट में कहा कि किसी भी सरकार को किसी नागरिक के विरुद्ध अपनी मस्सल पॉवर इस्तेमाल करने का हक़ नहीं है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा कि इस बात के प्रमाण हैं कि स्ट्रक्चर पहले से मौजूद था. बीएमसी की कार्रवाई गलत इरादे से की गई थी. उच्च न्यायालय ने बीएमसी के डिमॉलीशन के  आदेश को निरस्त कर दिया है। कंगना को हुए नुकसान के आकलन के लिए मूल्यांकन-कर्ता को नियुक्त करने की बात कही ताकि मुआवजा राशि निर्धारित की जा सके।
मुंबई महानगर पालिका ने 9 सितम्बर 2020 को मनमाने ढंग से कंगना रनौत के ऑफ़िस को बुलडोज़ कर डाला था। कंगना उस समय मुंबई में नहीं थी और बी.एम.सी. ने मॉनसून और कोरोना काल की परवाह किये बग़ैर बस कंगना को सबक सिखाने के लिये अपनी ‘मसल पॉवर’ का प्रदर्शन कर दिया। 
कंगना को हरामख़ोर यानि कि नॉटी कहने वाले संजय राऊत ने शिवसेना के समाचारपत्र में अपने संपादकीय में हेडलाईन दी थी – “उखाड़ दिया!” 
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसा लगता है कि तोड़फोड़ की कार्रवाई फ़िल्म कलाकार कंगना रनौत के सोशल मीडिया पर की गयीं टिप्पणियों को लेकर उन्हें निशाना बनाने के इरादे से की गई है।
कंगना रनौत ने बी.एम.सी. से दो करोड़ रुपए का हर्जाना मांगा है। इस पर हाईकोर्ट ने नुक़सान का सही अंदाज़ लगाने के लिए सर्वेयर नियुक्त किया है। सर्वेयर को मार्च 2021 तक रिपोर्ट सौंपनी है। 
कंगना रनौत ने अंग्रेज़ी में ट्वीट करते हुए लिखा, “जब कोई व्यक्ति सरकार के विरुद्ध खड़ा होता है और जीत जाता है तो यह केवल उस व्यक्ति की जीत नहीं होती, बल्कि पूरे लोकतन्त्र की होती है। जिस जिस व्यक्ति ने मेरा हौसला बढ़ाया उन सबको धन्यवाद। औऱ जिन लोगों ने मेरे सपनों के टूटने पर मेरी हंसी उड़ाई, उन सबका भी शुक्रिया। क्योंकि आपने विलेन का किरदार निभाया, बस इसीलिये संभव हो पाया कि मैं हीरो बन गयी।”
मुंबई हाईकोर्ट ने कंगना रनौत को भी सलाह दी कि वे सार्वजनिक मंचों पर अपने विचार रखने में सयंम बरतें। हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि किसी नागरिक द्वारा की गयी ग़ैर-ज़िम्मेदाराना टिप्पणियों के जवाब में सरकार ऐसी ग़ैरज़िम्मेदाराना व्यवहार नहीं कर सकती।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने यह भी कहा है कि सामना में छपे लेख से प्रतीत होता है कि कंगना द्वारा मुंबई को पी.ओ.के. जैसा बताने के बाद यह कार्रवाई हुई है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कंगना को धमकाने लिए बाहुबल का इस्तेमाल किया गया। बी.एम.सी. द्वारा की गई कार्रवाई गलत नीयत से की गई प्रतीत होती है। 
शायद मुंबई सरकार के लिये हाई कोर्ट की फटकार काफ़ी नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने भी महाराष्ट्र सरकार को समझा दिया है कि अर्णव गोस्वामी पर धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिये उकसाने का कोई मामला नहीं बनता। 
मगर कहते हैं न कि हम नहीं सुधरेंगे। हाई कोर्ट से फटकार सुनने के बाद भी मुंबई महानगर पालिका की मेयर किशोरी पेडनेकर ने अपनी ज़बान को खुला छोड़ दिया और कंगना रनौत के बारे में अपशब्द भरी टिप्पणी की, “सभी लोग चकित हैं कि एक एक्ट्रेस जो कि हिमाचल में रहती है, यहां आती है और हमारे मुंबई को पी.ओ.के. कहती है। ऐसे दो टके के लोग अदालत को राजनीति का अखाड़ा बनाना चाहते हैं। यह ग़लत है।”
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

  1. बहुत स्पष्ट और विचारणीय लेख। यह लोकतंत्र, सरकार के दमनात्मक रुख़, नागरिक आचरण, नौकरशाही के रवैये पर की गई न्यायिक टिप्पणियों का एक ज़रूरी दस्तावेज़ भी है।

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