मकान, कपड़ा और भोजन ये तीनों मानव की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। मनुष्य अपने जन्म के साथ ही उक्त तीनों मूलभूत आवश्यकताएं महसूस करता आया हैं। मनुष्य अपने स्थाई निवास व सुरक्षा के लिए मकान की आवश्यकता महसूस करता है, साथ ही समाज में रहने के लिए कपड़ों की जरूरत भी समझता है तथा अपने जीवन की तीसरी और महत्वपूर्ण मूलभूत आवश्यकता भोजन के महत्त्व को भी जानता है। भोजन के बिना मनुष्य अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता है। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि भोजन का अभिप्राय अनाज, जल और वह सब कुछ जो खाने योग्य है। भोजन मनुष्य की वह प्राथमिकता है जिससे कि वह सभी जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अपने स्वास्थ्य के लिए आवश्यक भी समझता है।
मौजूदा कोविड-19 संक्रमण के इस दौर में बेकारी, भूखमरी और गरीबी में बेतहाशा वृद्धि दर्ज की गई है। मौजूदा वक्त में कोरोना के कहर के चलते लोगों के रोजगार छिन चुके हैं, परिणामस्वरूप बेकारी बढ़ी है। वहीं, विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण अवस्था संबंधी रिपोर्ट के आंकड़े बेहद चौंकाने वाले हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत, दुनिया में सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश बनकर उभरा है। यह रिपोर्ट खाद्य और कृषि संगठन तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से जारी की गई है। इस रिपोर्ट के अनुमानित आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2014 से 2019 तक खाद्य असुरक्षित आबादी में 3.8 फिसदी वृद्धि हुई है यानी वर्ष 2014 के मुकाबले वर्ष 2019 तक 6.2 करोड़ अन्य लोग खाद्य असुरक्षित आबादी में शामिल हो गए हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2014-16 में भारत की 27.8 प्रतिशत आबादी मध्यम और गंभीर खाद्य असुरक्षा की चपेट में थी, जबकि वर्ष 2017-19 में यह अनुपात बढ़कर 31.6 प्रतिशत हो गया है। यदि हम खाद्य असुरक्षित आबादी की संख्या की बात करें तो वर्ष 2014-16 में 42.65 करोड़ थी, जबकि अब बढ़कर वर्ष 2017-19 में 48.86 करोड़ हो गई हैं। यहां आबादी के मध्यम या गंभीर खाद्य असुरक्षा की बात कही गई है। जहां मध्यम स्तरीय खाद्य असुरक्षा से अभिप्राय लोगों की खाद्य तक अनियमित पहुंच से है, जबकि गंभीर स्तरीय खाद्य असुरक्षा से अभिप्राय पर्याप्त मात्रा में भोजन की उपलब्धता न होने या उससे वंचित होने से है। इसी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की लगभग 14.8 प्रतिशत आबादी कुपोषित है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2019 में सर्वाधिक कुपोषित लोग भारत में मौजूद थे।
खाद्य सुरक्षा का अर्थ है मनुष्य की भोजन संबंधी आवश्यकताएं, जो घरेलू मांगों की पूर्ति करती हो साथ ही सस्ती दरों में उपलब्ध भी हो। यदि हम खाद्य सुरक्षा के उन तीन महत्त्वपूर्ण आयामों के बारे में बात करें तो इसमें भोजन की उपलब्धता, भोजन की पहुंच और भोजन का उपयोग को शामिल किया जा सकता हैं। हमारे यहां भोजन की उपलब्धता और पहुंच को सुनिश्चित करने के पीछे कई सारी दुश्वारियां हैं। जैसे कि हर साल देश के किसी न किसी क्षेत्र में बाढ़ का मुंह बाए खड़े मिलना, इसके अलावा सूखे और अकाल की समस्या भी भोजन की उपलब्धता में दिक्कतें पैदा करती हैं। इसके साथ-साथ लोगों की कमजोर आर्थिक स्थिति भी उनकी खाद्यान्न तक पहुंच के बीच में गहरी खाई का कार्य करती है।
मौजूदा कोविड-19 संक्रमण के इस दौर में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने आगाह किया है कि विश्व की 7 अरब 80 करोड़ आबादी का पेट भरने के लिए दुनिया में भोजन उपलब्ध है। लेकिन इसके बावजूद 82 करोड़ से अधिक लोग भुखमरी का शिकार है। इस बीच ऐसी आशंका जताई जा रही है कि इस वर्ष कोविड-19 संकट के कारण 4 करोड़ 90 लाख अतिरिक्त लोग अत्यधिक गरीबी का शिकार हो सकते हैं।
यदि हम भारत के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो आजादी के बाद से ही भारत पर खाद्य-संकट मंडराया हुआ था। भारत में 1960 दशक के अंत तक आते-आते खाद्य संकट अपना विकराल रूप धारण करने लगा। ऐसे में एक ऐसी क्रांति की आवश्यकता महसूस हुई, जो देश को खाद्य संकट से उबार सके। देश में खाद्य उत्पादन में सुधार के लिए हरित क्रांति का सूत्रपात हुआ। इस क्रांति ने भारत को न केवल खाद्य संकट से उबारा बल्कि देश को गेहूं व चावल के निर्यात की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया।
आज देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात की जा रही है। यदि देश को खाद्यान्न के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है, तो जरूरी है कि कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन किए जाए। इसके बिना आत्मनिर्भरता संभव नहीं है। सरकार ने सभी वर्गों तक भोजन की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए 1995 में, स्कूली बच्चों के लिए ‘मिड डे मील-योजना’ 2000 में, गरीबों के लिए ‘अंत्योदय योजना’ और 2013 में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे कई प्रयास किये। जो वाकई सराहनीय है। लेकिन ऐसे लगातार प्रयासों की सख्त दरकार हैं।