होम पुस्तक एक अनोखा लड़का: ईमानदार और रोचक आत्मकथा पुस्तक एक अनोखा लड़का: ईमानदार और रोचक आत्मकथा द्वारा पीयूष द्विवेदी - April 18, 2019 651 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet पीयूष द्विवेदी बॉलीवुड के सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता–निर्देशक करण जौहर की आत्मकथा ‘एक अनोखा लड़का’, जो उनकी मूल अंग्रेजी पुस्तक ‘एन अनसूटेबल बॉय’ का हिंदी अनुवाद है, पढ़ते हुए हम करण के व्यक्तिगत जीवन से तो रूबरू होते ही हैं, हिंदी सिनेमा के हालिया दो दशकों की एक यात्रा से भी गुजरते जाते हैं। करण के साथ फिल्म पत्रकार पूनम सक्सेना ने इसका सहलेखन किया है। किसी भी आत्मकथा का मूल्यांकन मुख्यतः दो बातों के आधार पर होता है। पहली कि आत्मकथा में लेखक ने अपने जीवन की घटनाओं के वर्णन में कितनी ईमानदारी रखी है। यानी कि जीवन के अच्छे–बुरे दोनों पक्षों का वर्णन कितनी निष्पक्षता से हुआ है। दूसरी बात कि आत्मकथा की प्रस्तुति कितनी रोचक है। इन दोनों ही बिन्दुओं पर करण जौहर की यह पुस्तक खरी साबित होती है। पुस्तक के कुल पंद्रह अध्यायों में करण ने अपने बचपन, स्कूल–कॉलेज, सिनेमा के क्षेत्र में प्रवेश, फिल्म निर्माण की शुरुआत, मित्र–संबंधों सहित अपनी लैंगिकता पर भी बेबाकी से बात की है। इस दौरान कहीं नहीं लगता कि वो पाठक को किसी विषय में धोखे में रखने की कोशिश कर रहे हैं। जो जानकारी उन्हें नहीं देनी है, उसके बारे में उन्होंने स्पष्ट रूप से लिख दिया है कि अमुक कारण से यह बात मैं नहीं बता सकता। यह तथ्य आश्चर्यजनक है कि आज सिनेमा जगत के बड़े–बड़े कार्यक्रमों का सञ्चालन करने वाले करण बचपन में बेहद दब्बू थे। करण ने लिखा है कि कैसे दाखिले के लिए जब विद्यालयों में उनका साक्षात्कार हुआ तो वे कहीं भी कोई जवाब नहीं दे पाए और दाखिला नहीं मिला जिसके बाद उनके पिता ने हिंदूजा परिवार से अपने परिचय का इस्तेमाल करते हुए उनका दाखिला ग्रीन लांस विद्यालय में करवाया था। पिता यश जौहर के फिल्म निर्माण पर करण ने माना है कि उनके पिता ने जो भी फ़िल्में बनाईं उनमें से उनकी पहली फिल्म ‘दोस्ताना’ को छोड़कर व्यावसायिक रूप से सब असफल रहीं। अग्निपथ की असफलता के बाद की स्थिति पर करण लिखते हैं, “..उनकी (पिता की) चार या पांच फ़िल्में फ्लॉप हो गयी थीं। मेरे कॉलेज के दौरान उन्होंने अग्निपथ बनाई जो हिट की शेखी बघारने के बावजूद बड़ी फ्लॉप साबित हुई। उसी बीच मेरी नानी का देहांत हो गया और हमें अपने नुकसान को पूरा करने के लिए उनका घर बेचना पड़ा।” यश जौहर फिल्म निर्माता के साथ–साथ निर्यात का कारोबार भी करते थे। फिल्मों के नुकसान की पूर्ति इसी कारोबार से होती थी। आज फिल्म जगत का चमकता सितारा बन चुके करण जौहर पढ़ाई पूरी करने के बाद लंदन में पिता के इसी कारोबार को चलाने के लिए बसने वाले थे। लेकिन जाने से तीन दिन पूर्व आदित्य चोपड़ा ने उन्हें अपनी फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ में सहायक निर्देशक के रूप में काम करने को कहा, विचार–विमर्श के बाद करण रुक गए, फिल्म बनी, प्रसारित हुई और इसके बाद जो हुआ, वो इतिहास है। आदित्य चोपड़ा, शाहरुख़ खान से अपनी मित्रता की करण ने खूब चर्चा की है। शाहरुख़ पर तो पूरा एक अध्याय ही इस पुस्तक में शामिल है। एक जगह तो करण ने शाहरुख़ को अपने पिता जैसा बताया है। ‘दोस्त और अनबन’ नामक अध्याय में उन्होंने ‘ऐ दिल है मुश्किल’ विवाद के दौरान काजोल के साथ अपनी पच्चीस साल पुरानी दोस्ती के ख़त्म हो जाने का भी जिक्र करते हैं। अध्याय की शुरुआत ही इस पंक्ति से होती है, ‘मेरा अब काजोल से कोई रिश्ता नहीं है। हमारी अनबन हो गयी है।’ हालांकि इस बारे में उन्होंने ऐसा कुछ खुलकर नहीं लिखा है जिससे पाठक को सम्बंधित विवाद के विषय में कोई नयी बात पता चले। एक तरह से इस प्रकरण के सम्बन्ध में सार्वजनिक रूप से मौजूद चर्चाओं की ही ये अध्याय पुष्टि करता है। ‘कुछ कुछ होता है’ से फिल्म निर्देशन की चुनौतीपूर्ण किन्तु सफल शुरुआत, फिर लगातार सफलताएं प्राप्त करना, पिता की मृत्यु, कंपनी का सुदृढ़ीकरण, विवाहेतर संबंध जैसे बोल्ड विषय पर फिल्म बनाना और आलोचनाएं झेलना आदि तमाम बातों का विस्तृत और रोचक वर्णन करण ने किया है। करण जौहर के व्यक्तित्व की जिस एक बात को लेकर सर्वाधिक चर्चा होती है, वो है उनकी लैंगिकता। इसपर ‘प्रेम और सेक्स’ नाम से एक पूरा अध्याय इस पुस्तक मिलता है। अपनी लैंगिकता के विषय में वे लिखते हैं, “मेरी सेक्सुअल मनोवृत्ति के बार में सब लोग जानते हैं। मुझे इसे चिल्ला–चिल्लाकर बताने की आवश्यकता नहीं है। मैं इस पुस्तक के माध्यम से कहना चाहता हूँ – हर कोई जानता है, मैं कैसा हूँ।” जाहिर है, कुछ छुपाने का उनका कोई इरादा नहीं है। इस आत्मकथा की सबसे बड़ी खूबी इसमें निहित रोचकता का तत्व है। करण ने सिनेमा के संसार में सक्रियतापूर्वक एक अरसा गुजार लिया है, इसलिए उनके पास इससे सम्बंधित भरपूर किस्से हैं, जिनका जहां–तहां जिक्र करके वे इस किताब की रोचकता बनाए रखते हैं। हालांकि इसका हिंदी अनुवाद बहुत प्रभावी नहीं लगता। अंग्रेजी वाक्यों को हिंदी के अनुरूप ढाल पाने में अनुवादक को पूरी सफलता नहीं मिली है। जहां–तहां अंग्रेजी के अनेक शब्दों का हिंदी विकल्प गढ़ने की बेढब कोशिश भी खटकती है। लेकिन बावजूद इसके सिनेमा में रुची लेने वालों के लिए यह किताब बेहद पठनीय है। पुस्तक – एक अनोखा लड़का (आत्मकथा) लेखक – करण जौहर और पूनम सक्सेना प्रकाशक – प्रभात प्रकाशन, दिल्ली मूल्य – 262 रूपये संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं सौम्या पाण्डेय ‘पूर्ति’ की कलम से ‘फुंगियो पर धूप’ की समीक्षा सार्थक सिनेमा के शैदाईयों के लिए ‘बातों बातों में’ बासु चटर्जी की जीवनी प्रो. सर्वेश सिंह की कलम से – कल्पना के सनातन शिल्प में कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! 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