याद रहे भारत के 16,500 वैज्ञानिकों ने मिल कर चन्द्रयान-2 पर काम किया था। पुरवाई परिवार उन्हें सलाम करता है और शुभकामनाएं देता है कि उनका अगला मिशन सम्पूर्ण रूप से कामयाब रहे। हम भारत के प्रधानमंत्री को भी धन्यवाद कहना चाहेंगे कि उन्होंने घर के एक बड़े की तरह इसरो प्रमुख के. सिवन को गले से लगा कर उसके ज़रिये पूरे इसरो को बता दिया कि भारत का प्रधानमन्त्री, भारत की सरकार और भारत की जनता इसरो परिवार के साथ है।

कल रात जब भारत में रात के 02.30 बजे थे, मेरी पुत्री आर्या का फ़ोन आया। वह लगभग सुबक रही थी, “क्या पापा, चन्द्रयान-2 बेचारा फ़्लॉप हो गया!” मैंने उसे प्यार से समझाया कि इसे हम असफलता नहीं कहेंगे। मगर मेरी पुत्री के फ़ोन से मुझे यह महसूस हो गया कि हर वो भारतीय जो सच में राष्ट्र की प्रगति से जुड़ा है, उसे ठीक ऐसा ही महसूस हो रहा होगा। 

इस विषय में मुझे भारत के टीवी चैनलों के प्रमुख एंकरों से भी कुछ कहना है। उन्होंने इस चन्द्र-अभियान को जिस बेहूदगी और अंसवेदनशील तरीके से टीवी पर प्रस्तुत किया उससे साफ़ पता चलता है कि आजतक, रिपब्लिक, न्यूज़ 18, एबीपी आदि चैनलों के एंकरों को अभी सीखना है कि किसी भी कार्यक्रम को पेश करने का सही तरीका क्या है। 

“चाँद पर भारत”, “पाकिस्तान के झण्डे में चाँद है और चाँद पर भारत का झण्डा है”, “भारत विश्व में चौथा देश जो चाँद पर सॉफ़्ट लैण्डिंग करेगा”, “हमारा पड़ोसी देश सोच सोच कर परेशान है”, – जैसे फ़िज़ूल के वाक्य उछाले जा रहे थे। लग रहा था जैसे कोई हॉकी मैच चल रहा है जिसकी कमेंट्री जसदेव सिंह दे रहे हैं। भाई एक गंभीर मिशन पर काम हो रहा है, उसे चलने दें।

मैं निजी तौर पर नज़र लगने जैसी बात में विश्वास नहीं करता। मगर न जाने क्यों मन चाह रहा था कि ये लोग अब चुप हो जाएं, कहीं कोई गड़बड़ न करवा बैठें। 

आप शायद यकीन ना मानें, मगर बीबीसी रेडियो के पूर्व पत्रकार विजय राणा ने अपनी फ़ेसबुक पोस्ट पर लिखा है, “मैं अपनी अमेज़न फ़ायर स्टिक को धन्यवाद देता हूं कि मैं लंदन में बैठा डीडी न्यूज़ पर चन्द्रयान का चांद पर उतरना देख पा रहा हूं। यहां कोई कानफाड़ू संगीत नहीं, स्क्रीन बेकार की चीज़ों से भरी नहीं हुई, और अज्ञानी व ऊंची आवाज़ में कोरी बक़वास करने वाले प्रस्तुतकर्ता नहीं। हो सकता है कि आपको आजके युग में डीडी प्रस्तुतकर्ता शायद अतिरिक्त सतर्क और कुछ उबाऊ भी लगें, मगर अन्य टीवी एंकरों के विपरीत वे उच्च-स्तर की भाषा के साथ अंग्रेज़ी और हिन्दी दोनों भाषाओं में समझदारी की बातें कर रहे हैं।” 

फिर मिशन के पूरी तरह सफल न होने पर एन.डी.टी.वी. के पल्लव बागला का व्यवहार तो सबको हैरान कर गया। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी से नफ़रत तो समझ में आ सकती है, मगर आप इतने असंवेदनशील कैसे हो सकते हैं? अब जब कभी भी पल्लव बागला को स्क्रीन पर देखूंगा टीवी बन्द कर दूंगा या चैनल बदल दूंगा। 

पल्लव जैसे पत्रकारों को समझना होगा कि पाकिस्तान के चैनल उन जैसे ग़ैर-ज़िम्मेदार लोगों की टिप्पणियों का इस्तेमाल करके भारत की तकनीकी उपलब्धियों का मज़ाक उड़ाते हैं। 

फ़ेसबुक पर हमारे वैज्ञानिकों, ख़ास तौर पर इसरो के प्रमुख के. सिवन का भावुक हो जाना पूरी तरह समझ में आता है। एक अरब से अधिक लोग जिस मिशन से आस लगाए बैठे थे, उसके सर्वेसर्वा का भावुक होना एक सहज प्रक्रिया है। हिन्दी का एक लेखक जो अपनी घटिया सी रचना से भी मोह पाले बैठा होता है, आज फ़ेसबुक पर भारत के वैज्ञानिकों की आलोचना कर रहा है। आप कहना क्या चाहते हैं। 

आपको समझना होगा कि मोदी विरोध नरेन्द्र मोदी तक ही सीमित रहे। उसे देश-विरोध न बनने दें। एक बहुत ही बचकाना पोस्ट पढ़ने को मिली, “नये नये वस्त्रों में फ़ोटो खिंचवाने का शौकीन ले डूबा चंद्र मिशन को।” यह कैसी भाषा है। जिन लोगों के इसरो के काम के बारे में कोई जानकारी नहीं, जिन्हें चन्द्रयान के मिशन के बारे में कुछ पता नहीं, वे विशेषज्ञ की तरह फ़ेसबुक पोस्ट डाल रहे हैं। 

याद रहे भारत के 16,500 वैज्ञानिकों ने मिल कर चन्द्रयान-2 पर काम किया था। पुरवाई परिवार उन्हें सलाम करता है और शुभकामनाएं देता है कि उनका अगला मिशन सम्पूर्ण रूप से कामयाब रहे। हम भारत के प्रधानमंत्री को भी धन्यवाद कहना चाहेंगे कि उन्होंने घर के एक बड़े की तरह इसरो प्रमुख के. सिवन को गले से लगा कर उसके ज़रिये पूरे इसरो को बता दिया कि भारत का प्रधानमन्त्री, भारत की सरकार और भारत की जनता इसरो परिवार के साथ है।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

2 टिप्पणी

  1. बहुत बढ़िया संपादकीय ..हार्दिक बधाई तेजेन्द्र जी। साहित्यकार होने के नाते कुछ ऐसी ही संवेदनाओं की अपेक्षा की जाती है।देश की प्रगति से जुड़ा इतना बड़ा अभियान हम सभी के लिए गुरूर था। बग़ैर किसी राजनीति के हम सभी को इस अभियान के असफल होने के दर्द को महसूस करना चाहिए।

  2. बहुत बढ़िया संपादकीय ..हार्दिक बधाई तेजेन्द्र जी। साहित्यकार होने के नाते कुछ ऐसी ही संवेदनाओं की अपेक्षा की जाती है।देश की प्रगति से जुड़ा इतना बड़ा अभियान हम सभी के लिए गुरूर था। बग़ैर किसी राजनीति के हम सभी को इस अभियान के असफल होने के दर्द को महसूस करना चाहिए।

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