यह तो साफ़ हो गया है कि मुंबई पुलिस एक बहुत ही ख़राब दौर से गुज़र रही है और इसका कारण उनके राजनीतिक आक़ा हैं। उन्होंने पुलिस का इतना दुरुपयोग किया है कि आम जनता पुलिस को वर्दी वाला गुण्डा समझने लगी है। उम्मीद है कि एन.आई.ए. जल्दी से जल्दी इस मामले की तह तक पहुंच जाएगी। मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र की जनता के लिये भी ज़रूरी है कि एक बार फिर एक स्वच्छ सरकार एक प्रोफ़ेशलन पुलिस के साथ शहर की बागडोर संभाले। अनिल देशमुख पर लगे आरोप के बाद महराष्ट्र सरकार के दिन अब बहुत ज़्यादा नहीं लगते।

महाराष्ट्र में कोरोना बुरी तरह से बेकाबू होता जा रहा है। एक दिन में सबसे ज्यादा 25,833 नए मरीज़ पिछले 24 घंटे में मिले। मुंबई में भी कोरोना संक्रमित मिलने का आंकड़ा अपने ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गया। यहां पिछले 24 घंटे में 2877 संक्रमित मिले। मुंबई के अलावा पुणे, ठाणे, नासिक, औरंगाबाद, जलगांव, नांदेड़, अमरावती और लातूर में भी हालात बेकाबू होने लगे हैं। सरकार ने इन नौ ज़िलों में नाइट कर्फ़्यू लागू कर दिया है जबकि नागपुर में 15 से 21 मार्च तक टोटल लॉकडाउन घोषित कर दिया गया है।
मगर महाराष्ट्र सरकार को शायद कोरोना से कहीं अधिक समस्या दे रहे हैं सचिन वझे (मराठी में ‘ज़’ को ‘झ’ लिखा जाता है) एवं परमबीर सिंह। क्योंकि शिवसेना का मुखपत्र सामना इसी बात से जूझ रहा है कि मुकेश अंबानी के घर के बाहर खड़ी कार में मिली 20 जिलेटिन की छड़ों के मामले में एन.आई.ए. को सौंपने के पीछे केन्द्र सरकार की मंशा है महाराष्ट्र सरकार को बदनाम करना। 
महाराष्ट्र के मुख्य मन्त्री उद्धव ठाकरे और पाकिस्तान के प्रधान मन्त्री इमरान ख़ान में एक बात समान है। दोनों को इस पद पर बैठने से पहले किसी प्रकार की नौकरी या काम का कोई अनुभव नहीं था। इमरान क्रिकेट खेलते रहे और अपनी माँ के नाम पर खोले गये हस्पताल के लिये चन्दा इकट्ठा करते रहे। वहीं उद्धव ठाकरे अपने पिता को राजनीति खेलते देखते रहे और विरासत में शिवसेना के मुखिया बन कर महाराष्ट्र के मुख्य मन्त्री बन बैठे। इसलिये जो हाल इमरान पाकिस्तान का कर रहे हैं, शायद वैसा ही कुछ हाल महाराष्ट्र का भी हो रहा है हालांकि महाराष्ट्र में तीन इंजिन वाली सरकार चल रही है।
सचिन वझे के इतिहास से पूरा देश अब परिचित है कि किस तरह उन्हें हत्या के केस में पुलिस से निकाल दिया गया था। उसके बाद उसने शिवसेना में एंट्री ले ली और प्रवक्ता पद तक पहुंच गये और फिर शिवसेना की सरकार ने उसे वापिस पुलिस में सहायक इंस्पेक्टर के पद पर बहाल कर दिया। पूर्व मुख्य मन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस ने उद्धव ठाकरे पर आरोप लगाया है कि उनके कार्यकाल में उद्धव ने सचिन वझे को बहाल करने के लिये ख़ासा दबाव बनाया था मगर फड़नवीस ने उनकी बात मानने से इन्कार कर दिया। 
हैरान करने वाली बात यह है कि सहायक इन्स्पेक्टर जैसे छोटे पद पर कार्यरत सचिन वझे सीधे पुलिस कमिश्नर को  रिपोर्ट करते थे। और परमबीर सिंह को या तो सचिन के कारनामों की जानकारी नहीं थी (यानि कि परमबीर सिंह एक योग्य प्रशासक नहीं थे) या फिर उनका पूरा सहयोग सचिन वझे के साथ था (यानि कि वे पूरी तरह से भ्रष्ट पुलिस अफ़सर थे)। सचिन वझे की गिरफ़्तारी और परमबीर का तबादला इस बात का सुबूत हैं कि मुंबई पुलिस में सब ठीकठाक नहीं है।
यह सोच कर ज़रा भी हैरानी नहीं होती है कि यही अधिकारी अर्णव गोस्वामी के टी.आर.पी केस और सुशान्त सिंह राजपूत और दिशा सालियान की मौत की तहक़ीकात भी कर रहे थे, और कंगना रनावत पर कहर भी ढा रहे थे। इन अधिकारियों पर विश्वास कर पाना कैसे संभव है?
सच तो यह है कि मुंबई की ए.टी.एस. तक की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लग चुके हैं। मुंबई पुलिस की विश्वसनीयता की कमाल तो यह है कि जो अपराधी है उसी के हाथ में जांच की बागडोर थमा दी गयी थी। 
एन.आई.ए. ने मौक़ा-ए-वारदात पर सचिन वझे को लेजाकर उसे कुर्ता पहना कर ठीक वैसे ही चलने को कहा जैसा कि सीसी टीवी में वह चलता हुआ दिखाई दिया है। यह बात तो पूरी तरह से साबित हो गयी कि सीसी टीवी में जो शख़्स दिखाई दे रहा है वह सचिन वझे ही है। याद रहे कि जिलेटिन से भरी स्कॉर्पियो में एक धमकी भरा खत भी मिला है। इस खत में लिखा है, ‘मुकेश भैया एंड नीता भाभी ये तो ट्रेलर था, पूरी पिक्चर अभी बाकी है हमारी तैयारी पूरी हो चुकी है’। यह धमकी भरा पत्र टूटी-फूटी अंग्रेजी में लिखा हुआ था। इसमें ग्रामर की कई गलतियां थीं। कार में एक बैग भी मिला है, जिस पर मुंबई इंडियंस लिखा हुआ था।
एक ध्यान देने लायक बात यह भी है कि एंटीलिया के बाहर विस्फोटक रखने की ज़िम्मेदारी पहले तो एक आतंकी संगठन जैश-उल-हिंद ने ली मगर बाद में एक पोस्टर जारी कर के कहा कि इसमें उनका कुछ लेना देना नहीं है।  
कमाल की बात यह है कि एक सहायक इंस्पेक्टर के पास पाँच पाँच लग़्ज़री कारें हो सकती हैं। महाराष्ट्र की सरकार तो पूरी तरह से धृतराष्ट्र की तरह व्यवहार कर रही है। सचिन वझे तो जैसे हर कानून से ऊपर था।
शनिवार को दो महत्वपूर्ण ख़बरें सामने आईं। पहली ख़बर यह है कि अब एन.आई.ए. ही मनसुख हिरेन की हत्या के मामले की खोजबीन भी करेगी। याद रहे कि इससे पहले यह काम मुंबई पुलिस की ए.टी.एस. यानि कि आतंकवाद निरोधी दस्ता इस हत्या की छानबीन करेगा। इस मामले में ए.टी.एस. ने सचिन वझे से पूछताछ की इच्छा ज़ाहिर की थी। मगर एन.आई.ए. को सचिन की जान का ख़तरा लगा तो उन्होंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। मनसुख हिरेन की आटोपसी को लेकर भी तरह तरह के प्रश्न उठ रहे हैं। इस मामले में भी हत्या का आरोप सचिन वझे पर ही लग रहा है।
दूसरी और बेहद सनसनीखेज ख़बर यह है कि कुछ ही दिन पहले मुंबई के पुलिस कमिश्‍नर पद से हटाए गए परमबीर सिंह ने महाराष्‍ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। शनिवार को मुख्‍यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिखे एक पत्र में परमबीर सिंह का कहना है कि इस मामले में सस्‍पेंड किए गए एनकाउंटर स्‍पेशलिस्‍ट सचिन वझे को महाराष्ट्र के गृहमन्त्री अनिल देशमुख ने हर महीने 100 करोड़ रुपये कलेक्‍ट करने के लिए कहा था। परमबीर सिंह के इन आरोपों के बाद महाराष्ट्र में एक सियासी तूफ़ान सा आ गया है। ज़ाहिर है कि अनिल देशमुख की कुर्सी भी ख़तरे में है।
यह तो साफ़ हो गया है कि मुंबई पुलिस एक बहुत ही ख़राब दौर से गुज़र रही है और इसका कारण उनके राजनीतिक आक़ा हैं। उन्होंने पुलिस का इतना दुरुपयोग किया है कि आम जनता पुलिस को वर्दी वाला गुण्डा समझने लगी है। उम्मीद है कि एन.आई.ए. जल्दी से जल्दी इस मामले की तह तक पहुंच जाएगी। मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र की जनता के लिये भी ज़रूरी है कि एक बार फिर एक स्वच्छ सरकार एक प्रोफ़ेशलन पुलिस के साथ शहर की बागडोर संभाले। अनिल देशमुख पर लगे आरोप के बाद महराष्ट्र सरकार के दिन अब बहुत ज़्यादा नहीं लगते।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

  1. महाराष्ट्र के हालातों को बयां करती सम्पादकीय सटीक है।
    वर्तमान आपदा को नजरअंदाज कर राजनीतिक दांव पेंच में
    व्यवस्था उलझी हुई है, सामाजिक न्याय और शांति का अतापता ही नहीं है आपने तीन इंजिन वाली सरकार ठीक कहा ।
    प्रभा

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