रो पड़ी धरती गगन रोया
कि नदियां ताल रोए
रो रहे खलिहान ओसारे
उदासी से भरे हैं ।
कौन सी आंधी चली
छीने कि जिसने स्वप्न सारे
बाग जोहे बाट, बच्चों की
किलक फिर कब सुनेंगे
कब बजेगी घंटियां स्कूल की,
कब मंदिरों की ।
कौन जाने नाव कब
फिर से तिरेंगी सागरों में ।
चिट्टियां है बंद थैलों में
लिए संदेश ढेरों,
घाट की सीढ़ी पड़ी चुपचाप
सबकी राह तकती ।
किंतु सूरज उग रहा हर रोज,
चंदा रोज आता है
बताता रात बीतेगी
सुबह होगी हमेशा की तरह ही,
कर रहे कोशिश
उदासी दूर हो जाए धरा की
इसलिए पुरजोर ताकत से
सभी तारे चमकते ।
कर रही चिड़िया चुहल हैं
बांटती सब की उदासी
जानती हैं कैद हम
अपने घरोंदो में हुए हैं
और तलैया की लहर
लहरा रही कुछ मुस्कुराती
दूर तक आकाश नीला
भर रहा आशा हृदय में
हवा ताजी सांस में भर लो
कि जितना भर सको तुम।
पेड़ हरियाए कि कोयल कूकती है
और टिकोरे कह रहे
हम हो बड़े देंगे नया रस जिंदगी को।
तुम उदासी छोड़
बस वादा करो हम भी यहां है
जिंदगी फिर चल पड़ेगी
साथ में हम सब चलेंगे।