आदरणीय चंद्र मोहन जी! आपकी कविताओं को पढ़कर याद आया कि काफी पहले भी आपकी कविताओं को हमने इसी समूह में पढ़ा है!भले ही कविताएंँ याद नहीं है लेकिन उसका प्रभाव अभी तक है। अच्छी रचनाएँ पहली बार में ही रचनाकार को पाठक की स्मृति में बाँध लेती हैं।
आज पुन: आपको पढ़ना कुछ ऐसा ही प्रभाव दे गया।
आपकी पहली कविता ब्रह्मपुत्र में ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में ही बताया गया। इस नदी का राजनैतिक महत्व तो है ही क्योंकि असम और अरुणाचल की यह नदी कई देशों में पहुँचती है। जिनका कविता में ज़िक्र है बाढ़ से बहुत विनाश होता है।अब तो चीन सबसे बड़ा बाँध ब्रह्मपुत्र पर बनाने वाला है जो भारत की सीमा से ज्यादा दूर नहीं इसके काफी पर्यावरणीय नुकसान हैं ,उससे कुछ अलग भी। कवि-मन यह भी बताना चाहता है कि वास्तव में ब्रह्मपुत्र क्या है? क्या आप उससे परिचित हैं ?
बुलबुल कविता पर्यावरण का नुकसान प्रकृति से जोड़ती है और हमारे पक्षी प्रकृति से ही जुड़े हैं। यहाँ कवि -मन की आकुलता पक्षियों के प्रति हैं। इस वक्त बुलबुल तो दिखती ही नहीं है ज्यादा, लेकिन गौरैया भी लुप्त होने की कगार पर है। कवि लुप्त होते हुए पक्षियों के लिए मुद्दा नहीं बनना चाहते हैं बल्कि वे उन्हें साथी बनाना चाहते हैं।
इसलिए कवि-मन बुलबुल को आमंत्रित करता हैं अपने खेतके गन्ने के रस का गुड़ खाने के लिए ।गोरैया को बुलाते हैं अपने खेत में धूल उड़ाने के लिए।
कवि का किसान हृदय धरती के प्रति समर्पित है।खेती करते हुए धरती पर उसने जितनी चोट की है उसका उसको आभास है ,इसीलिए वह धरती से अपने लिए मुक्ति की कामना करता है मृत्यु की नहीं।
संभवत: इसके पीछे कवि का यह भाव है कि मृत्यु के बाद पुन: जन्म होगा तो फिर खेती करके उसे धरती पर कुदाल चलाना होगा लेकिन अगर उसकी मुक्ति हो जाएगी तो उसका पुनर्जन्म नहीं होगा और फिर वह धरती पर कुदाल चलाने से बच जाएगा।
तीनों ही कविताएँ कवि की प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय चिंताओं से युक्त सह्रदयता की परिचायक हैं।
बेहतरीन कविताओं के लिए आपको बहुत- बहुत बधाइयाँ चंद्र मोहन जी!
कुरवाई का आभार तो बनता है प्रस्तुति के लिए।
आदरणीय चंद्र मोहन जी! आपकी कविताओं को पढ़कर याद आया कि काफी पहले भी आपकी कविताओं को हमने इसी समूह में पढ़ा है!भले ही कविताएंँ याद नहीं है लेकिन उसका प्रभाव अभी तक है। अच्छी रचनाएँ पहली बार में ही रचनाकार को पाठक की स्मृति में बाँध लेती हैं।
आज पुन: आपको पढ़ना कुछ ऐसा ही प्रभाव दे गया।
आपकी पहली कविता ब्रह्मपुत्र में ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में ही बताया गया। इस नदी का राजनैतिक महत्व तो है ही क्योंकि असम और अरुणाचल की यह नदी कई देशों में पहुँचती है। जिनका कविता में ज़िक्र है बाढ़ से बहुत विनाश होता है।अब तो चीन सबसे बड़ा बाँध ब्रह्मपुत्र पर बनाने वाला है जो भारत की सीमा से ज्यादा दूर नहीं इसके काफी पर्यावरणीय नुकसान हैं ,उससे कुछ अलग भी। कवि-मन यह भी बताना चाहता है कि वास्तव में ब्रह्मपुत्र क्या है? क्या आप उससे परिचित हैं ?
बुलबुल कविता पर्यावरण का नुकसान प्रकृति से जोड़ती है और हमारे पक्षी प्रकृति से ही जुड़े हैं। यहाँ कवि -मन की आकुलता पक्षियों के प्रति हैं। इस वक्त बुलबुल तो दिखती ही नहीं है ज्यादा, लेकिन गौरैया भी लुप्त होने की कगार पर है। कवि लुप्त होते हुए पक्षियों के लिए मुद्दा नहीं बनना चाहते हैं बल्कि वे उन्हें साथी बनाना चाहते हैं।
इसलिए कवि-मन बुलबुल को आमंत्रित करता हैं अपने खेतके गन्ने के रस का गुड़ खाने के लिए ।गोरैया को बुलाते हैं अपने खेत में धूल उड़ाने के लिए।
कवि का किसान हृदय धरती के प्रति समर्पित है।खेती करते हुए धरती पर उसने जितनी चोट की है उसका उसको आभास है ,इसीलिए वह धरती से अपने लिए मुक्ति की कामना करता है मृत्यु की नहीं।
संभवत: इसके पीछे कवि का यह भाव है कि मृत्यु के बाद पुन: जन्म होगा तो फिर खेती करके उसे धरती पर कुदाल चलाना होगा लेकिन अगर उसकी मुक्ति हो जाएगी तो उसका पुनर्जन्म नहीं होगा और फिर वह धरती पर कुदाल चलाने से बच जाएगा।
तीनों ही कविताएँ कवि की प्राकृतिक एवं पर्यावरणीय चिंताओं से युक्त सह्रदयता की परिचायक हैं।
बेहतरीन कविताओं के लिए आपको बहुत- बहुत बधाइयाँ चंद्र मोहन जी!
कुरवाई का आभार तो बनता है प्रस्तुति के लिए।
तीनों कविताएँ उत्तम.
बधाई