रोड़ी बाबा, शेयर बाजार के एक बड़े खिलाड़ी हैं। हालाँकि, बाबा वाली उम्र नहीं थी उनकी, लेकिन काम बाबा को मात देने वाले थे। उनके अनुभव को देखते हुए कुछ लोग उन्हें भीष्म पितामह भी कहते हैं। उनका असली नाम क्या है, किसी को पता नहीं था, क्योंकि वे एक छोटे से गाँव से मायानगरी पधारे थे। लोग कहते हैं कि जिस दिन सेंसेक्स सत्तर हजार अंक पहुंचा था, उस दिन करोड़ी बाबा को करोड़ों रुपए का मुनाफा हुआ था। जैसे ही यह खबर गाँव में आग की तरह फैली, उनका नाम करोड़ी बाबा पड़ गया। आनन-फानन में उनकी एक बड़ी फैन फॉलोइंग बन गई। दोस्त तो दोस्त, रिश्तेदार भी उनके सामने दुम हिलाने लगे और दुश्मन भी गलबहियाँ के फिराक में रहने लगे। 
वे दोस्तों के दोस्त थे और दुश्मनों के दुश्मन। कई हम-निवाला, हम-प्याला और हम-जोली दोस्तों का वारा-न्यारा वे करवा चुके थे, वहीं, कई दुश्मनों की लुटिया भी डूबो चुके थे। “बाप बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया” यह जुमला करोड़ी बाबा पर पूरी तरह से ठीक बैठता था। पैसा दिखते ही वे दुम हिलाने लगते थे।  
दुश्मनों को धोबिया पछाड़ देने के लिए करोड़ी बाबा डूबती कंपनियों के शेयरों को आले दर्ज का बताकर बाजार में भ्रम का एक ऐसा मायाजाल गढ़ते थे, जिसमें दुश्मनों के साथ-साथ  बेकसूर भी फंस जाते थे, लेकिन करोड़ी बाबा इसे गलत नहीं मानते थे। उनका मानना था कि गेहूं के साथ-साथ घुन का पिसना प्रकृति का नियम है।   
सपनों के इस बाज़ार में सुबह से ही मेले जैसा माहौल बन जाता है, जिसमें चवन्नी की औकात वाले लोगों से लेकर बड़े-बड़े खिलाड़ी दाँव आजमाते हैं। इस मायावी बाजार में कोई हजार रुपया लगाता है तो कोई लाख रुपया तो कोई करोड़ रुपया। सुबह से शाम तक सबकी आँखें चील की तरह सेंसेक्स और निफ्टी के उतार-चढ़ाव पर गड़ी रहती हैं। 
संतोष का कटोरा जिनका ज्यादा भरा रहता है वे बिकवाली के भंवर में नहीं फँसते हैं और कुछ सौ की कमाई के बाद बल्ले-बल्ले के बड़े अलाप के साथ भांगड़ा करना शुरू कर देते हैं, लेकिन ऐसे लोगों को करोड़ी बाबा टाइप के लोग डरपोक, फटटू या फिर चिरकुट की उपाधि से नवाजते रहते हैं, जिसके कारण कभी-कभार कमजोर दिमाग वाले लालच के सागर में छलांग लगाकर खाकपति बन जाते हैं।  
बिकवाली की सुनामी के गिरफ्त में आए हुए लोगों का दिल भक से फ्यूज हो जाता है। इन्हें होश में आने का कतई मौका नहीं मिलता। सदमे का पावर इतना ज्यादा होता है कि वे रियल टाइम में खुदा के प्यारे हो जाते हैं। 
कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो पिछले घाटे की भरपाई होने की खुशी में सुकून की साँसे लेते हुए ऑनलाइन जुआ से तौबा करने की कसमें खाते हुए दिखाई देते हैं तो कुछ मधुशाला में रात रंगीन करते हुए देखे जाते हैं। 
लोग करें तो भी क्या करें, सभी के लिए करोड़ी बाबा बनना आसान नहीं होता है। धूर्तता, मक्कारी और काइयाँपन उनमें जन्म से ही थी। उनकी अम्मा हर्षद मेहता की हार्डकोर फैन थीं और जब बाबा पैदा होने वाले थे तो अम्मा शेयर बाजार के उठा-पटक की खबरें बड़े चाव से गाँव के वाचनालय में बाँचा करती थी।  
सपनों के इस बाजार में सुसाइड करने के लिए पैसे खर्च नहीं करने पड़ते हैं। यहाँ मौत स्वाभाविक रूप से मिलती है। सीने की बाईं तरफ जरा सा दर्द हुआ और काम तमाम हो गया। हालांकि, अगर आप करोड़ी बाबा बनने में कामयाब हो गए तो आपकी पांचों उँगलियाँ घी में होगी और सिर कड़ाही में। 
जय हो करोड़ी बाबा की…..

1 टिप्पणी

  1. बेहद डरावना और खतरनाक लगा आपका व्यंग सतीश जी!पर है तो सच। पैसे की चमक बहुत बुरी होती है लेकिन उससे भी ज्यादा तकलीफ देह है इंसान की लालची प्रवृत्ति।99 के फेर में पड़ने की फितरत।बिना परिश्रम पैसा प्राप्त करने का जुनून।
    बाजार लुभा रहा है और उसकी चमक में इंसान की आँखें चुंधिया रही हैं। घर के मुखिया की मृत्यु एक व्यक्ति की मृत्यु नहीं होती।उसके साथ न जाने कितनी मौतें होती हैं अनेक रूपों में।
    अंत बहुत मार्मिक बन पड़ा।काश लोग समझ पाएँ।
    बहुत-बहुत बधाई आपको एक अच्छे व्यंग्य के लिये।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.