मैं सेना में नये भर्ती हुए सिपाहियों की टे्रनिंग के लिये कश्मीर आया था ।        मैंने नये भर्ती सिपाहियों के नामों की सूची पर दृष्टि डाली, मेरे लिये यह सुखद आश्चर्य था कि कई नाम कश्मीर की धरती के थे। हमारी सेना की  महत्वपूर्ण उपलब्धि थी कि इतने वर्षों के बाद कश्मीर की स्थिति में और वहाँ के लोगों की सोच में बदलाव आ रहा था जो कई युवा सेना में भर्ती होने के लिये आने लगे थे। जो युवा शत्रु देश के षडयंत्रों  के चलते आतंकवदियों को अपना तथा हिन्दुस्तान को अपना शत्रु समझती थी और भारत की सेना पर पत्थर बरसाती थी अब भारत की रक्षा के लिये सेना में  अपनी सेवा देने को तत्पर थी।
मैं एक-एक सिपाही से मिल कर उनका परिचय प्राप्त कर रहा था तभी एक युवा सिपाही को देख कर मैं ठिठक गया। उसका चेहरा बहुत जाना पहचाना सा लगा।
मैंने उससे पूछा, ‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’
‘‘ जी आदिल ।’’
‘‘कहाँ से हो?’’
‘‘कश्मीर के पुंज इलाके से।’’
‘‘मैं चैांक पड़ा, मुझे याद आया पुंज से ही तो थी वह, तो क्या यह उसी का बेटा है? बिन्कुल उसी जैसी सुतवाँ नाक, दूध सा उज्जवल रंग और नीली आँखें।’’
      मैंने अपने विचारों को झटका, ‘अरे कश्मीर के सभी लोग मिलते हुए लगते हैं।’ बात आयी-गयी हो गयी पर नहीं, यह तो मेरा भ्रम था, सच तो यह था कि न जाने क्यों वह जब भी मिलता मेरे मन पर एक दस्तक होती, मुझे वह याद आती, मुझे मेहुल याद आता। मन होता कि उससे उसकी माँ का नाम पूछूँ। पर सद्यः परिचित से बिना किसी प्रसंग के उसकी माँ का नाम पूछना अशिष्टता लगती, अतः चुप रह जाता।
     वह जो भी रहा हो पर उसने मेरे मन की पर्ताें में दबी लगभग बीस वर्ष पुरानी उस दुखद त्रासदी का स्मरण अवश्य करा दिया जिसने मुझे न जाने कितनी रातों तक व्यग्र किया था और मेरे मन की मंजूषा में सदा के लिये बन्द, आज भी विराजमान थी।
    
      मेरी कश्मीर पोस्टिंग हुई थी और वहाँ पर सी बी एस की ट्रेनिंग होनी थी। हम लगभग 4000 सिपाही थे टे्रनिंग के लिये। सभी नवयुवकों में ऊर्जा और देश के लिये कुछ भी करने का जज़्बा छलका पड़ रहा था। वहीं पर मेरा परिचय हुआ था मेहुल कपूर से। उस छः फुट लम्बे, श्वेत फुर्तीले नौजवान में कुछ ऐसा था कि मैं उसकी ओर अनायास ही आकर्षित हो गया। संभवतः हम सभी प्रक्षिुओं में, वह सबसे कम आयु का था, पर उसका उत्साह, स्फूर्ति सबसे बड़ा था। उसकी भाव-भंगिमा, उसकी भुजाए,ँ कुछ करने को फड़कती लगती थीं। शनैः-शनैः उसने अपने सहकर्मियों एवं वरिष्ठ अधिकारियों के मध्य अपना विशेष स्थान स्थपित कर लिया था। 
      चाहे हम खेल के मैदान में हों या घुड़सवारी कर रहे हों, उसकी बराबरी नहीं थी। हम दोनों ही एक दूसरे की संगति में अपेक्षाकृत अधिक सहज एवं आत्मीय अनुभव करते थे। मित्रों के मध्य कोई चर्चा हो हम दोनों अन्जाने ही एक दूसरे का समर्थन करते।   शायद इसी समानता ने पहले-पहल हमको मित्रता के सूत्र में बांधा था पर बाद में उसकी विशेषताओं ने मुझे उसका परम आत्मीय बना दिया। मेहुल ने बताया कि वह कैवेलरी रेजीमेन्ट में सवार था और दो वर्ष की ट्रेनिंग के बाद ही उसे गनर बना दिया गया था। मैंने कहा,‘‘ इतने कम समय में ही तुमको गनर बना दिया गया, कमाल है।’’
    उसने अपने चिरपरिचित बिन्दास अन्दाज़ में हँस कर कहा था, ‘‘अरे तेरा यार को मामूली बंदा नहीं है, पंजाब की माटी का पुत्तर है ’’ उसके कथन में तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं थी। 
    हमारा प्रशिक्षण प्रारंभ हो गया। सी बी एस की टे्रनिंग कितनी कठिन है यह तो जब ओखली में सिर देने के बाद ही समझ में आया। कठिन होती भी क्यों न, यह ट्रेनिंग आतंकवदियों से एनकाउन्टर के लिये थी और इसीलिये इस महत्वपूर्ण आपरेशन में सबसे योग्य सैनिक ही चुने गये थे। इस टंे्रनिंग में आतंकवादी हमले और उसके आपरेशन का जीवंत रिहर्सल होता था। मेहुल सबसे आगे होता। आशा के अनुसार मेहुल को हमारे चार हजांर सिपाहयों में सर्वश्रेष्ठ छात्र चुना गया।
    चुनौती का सामना करने में उसे आनदं मिलता था इसीलिये तो मेहुल ने ट्रेनिंग के बाद अपनी इच्छा से कश्मीर की पोस्टिंग चुनी और यह संयोग था कि मुझे भी उसके साथ ही कश्मीर मिशन पर भेजा गया। सो हम दोनों की तैनाती कश्मीर की कम्पनी आपरेटिंग बेस की यूनिट में हो गयी। यह हमारा सबसे कठिन दौर था। एक दिन मैं मेहुल से बोला, ‘‘ यार मैं तो अभी से थकने लगा हूँ। ’’
  ‘‘हम लोग सो तक नहीं पाते, आखिर कब तक  4-5 घंटे सो कर रहेंगे?’’
मेहुल बोला, ‘‘ दोस्त आराम ही करना था तो सिविलयन बनते, अरे हम हिन्द के सैनिक हैं ।’’ 
     मैं उसका जोश देखता रह जाता और सोचता आखिर यह किस मिट्टी का बना है। जितना कठोर मन है उतना ही भावुक मन है इसका। हम लोगों ने साथ-साथ कितने आपरेशन किये, कितने आतंकवादियों को सफाया किया। एक दिन उसने बताया कि उसकी तैनाती इन्टेलिजेंस सेल में हो गयी है।
     अब उसका काम था वहाँ के क्षेत्रीय लोगों से परिचय बढ़ाना और उनके बीच से शत्रुओं की सूचना प्राप्त करना। मुझे आज तक याद है, उन दिनों मेहुल का व्यवहार कुछ बदल सा गया था। वह कभी-कभी कहीं खो जाता, कभी गीत गुनगनाता। मैंने एक दिन मिलने पर उसे ऐसे ही छेड़ दिया, ‘‘ किसकी याद में आज कल गाने-शाने गाये जा रहे हैं।’’
    उसके गोरे गालों पर लाली आ गयी। मैं चैंक पड़ा, मैं उसका नया रूप देख रहा था वर्ना अभी तक तो उसे एक जाँबाज सैनिक के रूप में ही देखा था जो सामने आये दुश्मन के परखच्चे उड़ा देता था, भूखे शेर सा टूट पड़ता था शत्रु की टुकड़ी पर।
मैंने अविश्वास से पूछा,‘‘ क्या सच में कोई दिल का मामला है?’’ 
उसने मेरी अपेक्षा के विपरीत ,मुस्करा कर कहा,‘‘ हाँ यार वह है ही ऐसी कि किसी का भी दिल बेकाबू हो जाये।’’
‘‘कौन? कहाँ? कब मिली?  ’’मैंने कई प्रश्न एक साथ पूछ डाले।
          तब उसने जो कहानी बतायी वह कुछ इस प्रकार थी। उस दिन मेहुल को सूचना मिली कि पुंज के एक इलाके में आतंकवादी छिपे हैं। वह उस इलाके में गया और घर-घर पूछताछ करने लगा। एक घर में उसने दरवाज़ा खटखटाया। अन्दर से एक खा़तून निकलीं ।
उसने कहा, ‘‘ हमें खबर मिली है कि यहाँ किसी घर में जबरदस्ती कुछ आतंकवादी डरा-धमका कर रह रहे हैं।’’
उस खा़तुन ने कुछ बेरुखी से कहा, ‘‘ हमारे घर में केवल मैं और मेरी बेटी रहते है।’’
मेहुल ने समझाते हुए कहा ,‘‘ देखिये हम आपको परेशान नहीं करना चाहते, पर हमें खबर मिली है कि एक आतंकवादी इसी इलाके में कहीं छिपा है। यदि आपको ख़बर मिले तो प्लीज छिपाइयेगा नहीं, आपको डरने की ज़रूरत नहीं है, आपकी रक्षा की जिम्मेदारी हमारी है।’’
उन खा़तून ने, ‘‘ कहा ठीक है।’’
मेहुल वापस मुड़ा तो सामने एक युवती खड़ी थी। वह युवती थी या स्वर्ग से अवतरित कोई अप्सरा मेहुल समझ नहीं पा रहा था। सौन्दर्य की इस पराकाष्ठा की उसने कल्पना भी नहीं की थी। कुछ क्षण को वह उसके सौन्दर्य के सागर में इतना डूब गया कि उसे सुध ही न रही कि वह एक सिपाही है और इस प्रकार किसी युवती को अपलक निहारना अशिष्टता श्रेणी में आता है।  
       उस सुदर्शन सिपाही को देख कर वह युवती भी विमूढ़ सी हो गयी थी। दोनांे ए कदूसरे को देखते ही रह गये थे। तभी अम्मी ने कठोर आवाज में कहा था, ‘‘ हिना अन्दर चलो।’’
हिना ने सकपका कर सामने खड़े मेहुल से कहा,‘‘ रास्ते से हटिये ’’ मेहुल के कानों में अनेक घँुघरू झंकृत हो उठे थे।
     मेहलु मानों नींद से जागा, ‘‘क्षमा करियेगा’’ कहते हुए उसकी राह से हट कर चला गया था। वह युवती जिसका नाम हिना था अन्दर चली गयी थी। मेहुल की मन में उसके रकित्म हो आये कपोलों और लज्जा से बोझिल नेत्रों की छवि ने अधिकार कर लिया था।  
        हिना की मदमाती नीली आँखें उसके दिल में ऐसी बसीं कि मेहुल का स्वयं पर वश न रहा। उसके काले फिरन में लिपटा, गुलाबी रंगत लिये कपोल,नीली आँखे चेहरे पर गिरती घुंघराली लट और कानों शहद घोलती मधुर वाणी मेहुल की सुध बुध बिसराने के लिये पर्याप्त थे।
     अगले दिन से, किसी न किसी बहाने से उसी इलाके में वह गश्त लगाने लगा। शनैः-शनैः उसे आभास हुआ कि जब भी वह मिलती है तिरछी नजरों से उसे देखती है और उसके चेहरे पर अस्त होते सूर्य की लालिमा उतर आती है।
 जब भी कभी संयोग से वह दिख जाती तो मेहुल और वह दोनों एक दूसरे को देखते और ऐसे नजरें फेर लेते मानो गलती से मिल गयी हों । मेहुल का दिल धड़क उठता। उसका मस्तिष्क उसे बार-बार चेता रहा था कि वह जिस राह पर बढ़ रहा है उसका अंजाम खाई ही है। उस इलाके के लोग हिन्दुस्तानी सेना से कितना चिढ़ते हैं, उसे पता था, पर क्या करे अपने मन का, जो यह सब जान कर भी कुछ न सुनने की ठान बैठा था। 
      एक दिन वह मोटर सायकिल से जा रहा था कि  उसने देखा कि वह पैदल पीठ पर फूलों की डलिया लिये अकेले कहीं जा रही है। उसके पैर स्वतः ही बे्रक पर चले गय।े इससे पहले कि वह उससे कुछ बोलने का साहस करता, उसने देखा कि अचानक पेड़ पहाड़ी से गिर रहा है और ठीक नीचे ही हिना जा रही है।वह मा ेटरसायकिल छोड़ कर कूद पड़ा और फुर्ती से उसे घसीट लिया। कुछ क्षण को वह उसे अपनी बाहों में थामे रहा । यह सब इतनी जल्दी हुआ कि वह समझ ही न पाया कि क्या हुआ। कुछ क्षणों बाद जब उसे समझ में आया, तब वह हड़बड़ा कर अलग हुआ। 
    हिना भी घबरायी सी अवाक् खड़ी थी, संभवतः इतने करीब से छू कर निकल गयी मृत्यु की आहट ने उसे निःशब्द कऱ दिया था। आज यदि मेहुल न होता तो निश्चय ही हिना की उस भारी-भरकम पेड़ के नीचे कब्र बन गयी होती। 
    हिना उसे देख कर घबरा गयी और वह जल्दी-जल्दी आगे बढ़ने लगी।उसे जाते देख कर मेहुल ने चैंक कर कहा, ‘‘सुनिये ।’’
    वह नहीं रुकी, तब उसने आगे बढ़ कर, उसके सामने आ कर कहा, ‘‘ रुकिये तो मैं आपसे कुछ कहना चाहता हूँ।’’ 
    संभवतः पाँवों के साथ-साथ हिना की धड़कन भी रुक गयी थी, तभी तो वह मुर्तिवत खड़ी रह गयी।।मेहुल ने कहा,‘‘ आप लोग मुझसे डरते क्यों हैं, मैं तो आपकी रक्षा के लिये यहा पर तैनात हूँ।’’
‘‘ पर हमारे यहाँ के लोग तो कहते हैं कि आप हिन्दुस्तानी हैं और हम पर कब्जा करने आये हैं।’’
मेहुल ने कहा, ‘‘ हिन्दुस्तानी तो आप भी हैं और जब हम दोनों एक हैं तो कब्जा किस बात का?’’
‘‘नहीं-नहीं हम तो कश्मीरी हैं।’’
‘‘ हाँ पर कश्मीर भी तो हिन्दुस्तान का ही हिस्सा है न?’’
   हिना ने असमंजस में भोलेपन से कहा,‘‘ हमारे लोग तो हिन्दुस्तानी सेना को अपना दुश्मन कहते हैं। ’’
   शायद वह समझ नहीं पा रही थी कि उसके इलाके के लोग सही हैं या मेहुल।  उसे सोचता देख उस मेहुल ने कहा ‘‘ आइये मैं आपको घर छोड़ हूँ।’’
    ‘‘नहीं-नहीं आपके साथ मुझे देख कर हमारे इलाके वाले आपको भी मारेंगे और मेरा तो निकलना ही बंद हो जाएगा।’’
  मेहुल ने कहा, ‘‘अंधेरा होने वाला है, आपका अकेले जाना सुरक्षित नहीं है, बैठिये मैं आपको भगा नहीं ले जाऊँगा।’’
    हिना झिझकती हुई मोटरसायकिल पर बैठ गयी। अपने बस्तीे से कुछ दूर पर हिना ने घबरा कर कहा, ‘‘ अरे रुकिये रुकिये।’’
मेहुल ने मोटर सायकिल झटके से रोक दी, उसने पूछा, ‘‘क्या हुआ?
हिना ने कहा, ‘‘ मेरी बस्ती आ गयी है, किसी ने देख लिया तो गजब हो जाएगा।’’
मेहुल ने कहा, ‘‘ आप तो इतनी जोर से चीखीं कि मैं घबरा ही गया।’’
‘‘ अरे बात ही घबराने की है, आप नहीं जानते हमारे इलाके वाले आप लोगों को अपना पक्का दुश्मन मानते हैं ।’’
    हिना बुरी तरह हाँफ रही थी। हिना आगे जाने को बढ़ी तो  मेहुल ने कहा, ‘‘ अरे इस नाचीज को शुक्रिया तो दे देतीं ।’’
   हिना को स्वयं पर शर्मिंदगी हुई,  उसने कहा, ‘‘ओह मुआफ़ करियेगा, शुक्रिया पर आप मुझसे किसी के सामने बात मत करियेगा।’’
‘‘ मतलब अकेले में कर लूँ?’’ मेहुल ने शरारत से कहा था।
हिना हँस पड़ी थी, तब मेहुल ने साहस करके पूछा, ‘‘ आपसे फिर मिल सकते हैं?’’
‘‘ सोचियेगा भी नहीं’’ हिना आगे बढ़ गयी। मेहुल ने पीछे से पुकार कर कहा, ‘‘ वैसे मेरा नाम मेहुल है ।’’ हिना ने पीछे मुड़ कर देखा और शोखी से मुस्कराते हुए आगे बढ़ गयी। मेहुल को स्वीकृति मिल गयी थी, मेहुल का दिल तो बल्लियों उछलने लगा। 
तभी सामने से आ रही हिना की दोस्त ने कहा, ‘‘ अरे हिना तुम कहाँ चली गयी थी तुम्हारी अम्मी कितनी परेशान थीं। ’’
हिना ने घबरा कर पीछे देखा कि कहीं मेहुल को रजिया देख न ले, पर मेहुल पता नहीं कहाँ गायब हो गया था। रजिया ने पूछा, ‘‘ क्या देख रही है?’’
   रजिया ने चैन की साँस लेते हुए कहा, ‘‘कुछ नहीं,  वह अपने में मगन आगे बढ़ गयी। रजिया को समझ न आया कि यह हिना इतनी खुश क्यों है।
  उस दिन हिना कहाँ समझ पायी थी कि जिस मेहुल को उसके इलाके के लोग दुश्मन समझते हैं वह सच में दुश्मन ही निकला। उसने हिना के दिन-रात का चैन जो छीन लिया था।
    दोषी केवल मेहुल नहीं था, यह कुसूर तो उससे भी हुआ था, तभी तो अब मेहुल आये दिन उसके घर के सामने से गश्त लगाता दिखने लगा था और हिना भी किसी न किसी बहाने से बाहर आ जाती थी।
    कब हिना और मेहुल के मन बगावत कर बैठे और कब उनका अपने पर से वश समाप्त हो गया दोनांे को पता नहीं चला।
       मेेहुल की पूरी कहानी सुन कर मुझे अपने मित्र के लिये चिन्ता हो गयी । कश्मीरी वैसे ही हिन्दुस्तानी सेना को पसंद नहीं करते, उस पर से उनकी लड़की से गैर कश्मीरी की मित्रता तो अक्षम्य अपराध था। मैंने मेहुल को सावधान करते हुए कहा,‘‘ तुम जानते बुझते आग में क्यों कूद रहे हो, तुम पंजाबी, वह कश्मीरी, तुम हिन्दू, वह मुस्लिम, क्या तुम जानते नहीं कि जब यह बात खुलेगी तो इसका अंजाम क्या होगा?’’
   मेहुल ने गंभीर स्वर में कहा,‘‘ अब तो मैं कूद चुका हँूं अंजाम से कौन डरता है?’’
मेरा मन अपने प्यारे होनहार पर दुस्साहसी मित्र के लिये आतंकित हो गया था।
जब भी मेहुल अपनी ड्यूटी से खाली होता हिना और वह कश्मीर की हँसी वादियों में खो जाते। मेहुल उसे बताता कि किस तरह बचपन से ही वह सेना में जाने को बेचैन था। 
   मेहुल एक जोश और देश प्रेम के जज्बे से भरा नौजवान था, उसकी बहादुरी के किस्से सुन कर हिना मंत्रमुग्ध हो जाती। जब वह बताता कि  देश की हिफाज़त के लिये वह जाने देने में भी नहीं डरेगा तो वह ताज्जुब करती, क्या किसी को अपने देश से इतना प्यार हो सकता है कि वह अपनी जान भी देने को तैयार हो जाये।
     कहते ही हैं कि इश्क और मुश्क छिपाये नहीं छिपते, वह भी इस छोटे से इलाके में। उनके प्रेम का पर्दाफ़ाश होना ही था। पर जिस तरह से यह राज़ खुला, उसका जो अंजाम हुआ वह बहुत ही दर्दनाक था।
     मेरी पोस्टिंग दूसरे इलाके में हो गयी थी,  अतः मैं और मेहुल बहुत कम मिलते थे।   पर जब भी वह मिलता तो मैं पूछ बैठता, ‘‘ तुम्हारी हीर के क्या हाल हैं?’’
वह हँस कर कहता, ‘‘ सच यार तू भी किसी से दिल लगा ले, तब जानेगा कि इसके नशे के आगे सारे नशे बेकार हैं।’’
      म्ुाझे आज भी याद है वह अशुभ दिन, मुझे अचनक ज्ञात हुआ कि पुंज के इलाको में बगावत फैल गयी है, स्थानीय लोग सेना के विरुद्ध एकजुट हो कर बवाल कर रहे हैं। पता चला कि किसी सैनिक ने उनकी लड़की से जबरदस्ती की और फिर एक आदमी को मार दिया। अंत में उग्र भीड़ ने उसे पकड़ लिया और मार कर चैक के बीच उसके शरीर को घसीट कर फेंक दिया है और उस पर पत्थ्र मार रहे हैं। किसी प्रकार सेना उग्र भीड़ के बीच से सैनिक का पार्थिव शरीर लायी।
मैं अज्ञात आशंका से हिल गया। मेरी आशंका सही निकली वह मेहुल ही था । मैं संज्ञा- शून्य हो गया। मेरा इतना शूरवीर होनहार साथी, देश पर मर मिटने की आकांक्षा रखने वाला बहादुर सैनिक, उसका यह अंजाम? मेरा मन मानने को तैयार नहीं था कि मेहुल किसी लड़की से वह भी उसकी प्राणप्रिया से जबरदस्ती कर सकता है। पर मीडिया और स्थानीय लोग तो यही कह रहे थे। मैं सच जानना चाहता था जो केवल हिना ही बता सकती थी पर हिना से मिलना असंभव था।
    नियमानुसार इस दुर्धटना की जांच के लिये कमेटी बनी। मुझे नहीं पता था कि कमेटी क्या निष्कर्ष निकालेगी पर मेरे सामने बार-बार मेहुल का चेहरा आ रहा था। मैंने एक दो बार प्रयास किया हिना तक पहुँचने का, पर अब तो वह सात तालों में कैद थी। 
    एक दिन मैं बाजार में घूम रहा था कि मैंने देखा कि हिना एक दुकान पर सामान ले रही थी। उसने मेरी ओर निरछी नज़रों से देखा और तेज कदमों से चली गयी।
    मैंने उसका पीछा किया और एकान्त पा कर उससे बात करना चाहा। उसने कहा,‘‘ खुदा के वास्ते मुझसे बात मत करिये, मेरी और आपकी दोनों की जान को खतरा है।’’
‘‘ मैं बस एक बार सच जानना चाहता हूँ।’’ मेरे बहुत कहने पर वह मान गयी। उसने सेब के बागान में मिलने का समय नियत किया।
    इस हादसे के बाद हिना से मिलना अपनी जान और नौकरी दोनों को खतरे में डालना था पर जब मेहुल का चेहरा याद किया तो मैं सब भूल कर सच जानने को नियत जगह पर पहुँच गया। किसी प्रकार छिपते हुए हिना वहाँ आयी, वह जिस प्रकार घबरायी थी, उससे समझ में आ रहा था कि वह कितनी कठिनाइयों से आयी है।
     उसने जो बताया उसके अनुसार   कुछ लोगों को उनके संबंध की खबर हो गयी थी। अतः उस पर निगरानी रखी जाने लगी थी, परिणाम स्वरूप उन दोनों का मिलना कठिन हो गया था। इसी बीच मेहुल की पोस्टिंग कहीं और हो गयी थी। वह जाने से पहले हिना से मिलना चाहता था। संयोग से एक दिन उसने हिना की अम्मी को कहीं जाते देखा तो यह सोच कर कि हिना घर पर अकेली होगी, उसके घर पहुँच गया। हिना ने बताया कि वह उससे विवाह करना चाहता था और इसी के लिये उससे पूछने आया था कि क्या वह उससे विवाह करेगी। पर दोनों मिले तो एक दूसरे से बातों में ऐसे खोए कि समय का पता ही नहीं चला। उनकी अम्मी लौट आयीं। मेहुल को अपने घर में हिना के साथ अकेले देख कर वह आपे से बाहर हो गयीं। हिना की अम्मी ने शोर मचा दिया कि इस सिपाही ने उसके घर में जबरदस्ती घुस कर उसकी बेटी की इज्जत पर हाथ डाला। हिना ने इस बात का विरोध करना चाहा पर उसे वहाँ से जबरदस्ती हटा के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया गया। उनकी आवाज सुन कर आस-पास के लोग आ गये और सबने मेहुल को बन्दी बनाना चाहा, वह उस पर पत्थर बरसाने लगे। चारों ओर शोर मच गया । मेहुल ने आत्मरक्षा में बन्दूक निकाल ली, कुछ लोगों ने उससे बन्दूक छीननी चाही जिसमें हाथापाई में एक आदमी को गोली लग गयी और वह मर गया। कुछ क्षण को तो लोग रुके पर थेड़ी ही देर में और लोग आ गये और उसे घेर लिया। मेहुल फँस गया था, वह चाहता तो लोगों पर गोली चला कर भाग सकता था पर शायद इतने निहत्थे, निर्दोष लोगों को मारना एक सैनिक की नीति के विरुद्ध था।इससे बेहतर उसने स्वयं मरना समझा, इसीलिये उसने स्वयं को ही मार लिया। 
    यह कहानी सुना कर उसने बताया कि उसका विवाह हो रहा है।अतः अब उससे मैं संपर्क न करूँ। 
      मेहुल ने उसके साथ कोई जबरदस्ती नहीं की, वह तो उससे शादी की बात करने गया था, यह सोच कर मेरे मन पर रखा बहुत बड़ा पत्थर हट गया।
     हिना तो चली गयी पर मैं सोच रहा था कि मेहुल एक सच्चा सिपाही था, वह चाहता तो उन पर गोली चला कर भाग सकता था पर उसने उन नागरिकों को जिनकी रक्षा उसका दायित्व था स्वयं की जान देने का निर्णय लिया। मैंने अपने साथी के लिये सैल्यूट में हाथ स्वतः ही उठ गये। विशेषकर अब जब उसका विवाह कहीं और हो रहा था। मेरा मन आक्रोशित हो उठा था यह जान कर कि जिस हिना के लिये मेहुल ने अपनी जान दे दी वह कितनी जल्दी उसे भूल कर विवाह करने जा रही है।
    मैं प्रायः ही मेहुल को छेड़ने के लिये कहता था, ‘‘ तुम जिस हिना के लिये इतने दीवाने हो वह पता नहीं तुम्हारा साथ देगी भी कि तुमको भूल कर किसी कश्मीरी से शादी कर लेगी। हम फौजियों के साथ निभाना सबके बस का नहीं होता।’’
 मेहुल आत्मविश्वास से कहता, ‘‘मेरी हिना ऐसी नहीं है।’’
‘‘ सर ’’ मैं आवाज सुन कर चैंक कर वर्तमान में आ गया। मैंने देखा, मेरे सामने आदिल खड़ा था। उसने कहा, ‘‘ सर आपने मुझे बुलाया?’’
मैंने पूछा,‘‘ तुम पुंज से हो?’’
‘‘जी सर क्यों आपने उस दिन भी पूछा था?’’
‘‘ हाँ असल में सालों पहले मेरी वहाँ पोस्टिंग रही है इसलिये पूछा ।’’
‘‘ सर तब तो बहुत अलग माहौल था, अब हमारी पीढ़ी की सोच बदल गयी है। हम अपने को हिन्दुस्तान का हिस्सा मानते हैं, इसीलिये देश की रक्षा के लिये सेना में आये हैं।’’ 
मैं चाह कर भी वह नहीं पूछ पा रहा था जो पूछना चाहता था।
मैंने आदिल के लिये चाय मंगवायी। आदिल थोड़ा बातूनी था, बोला ‘‘ सर मेरी अम्मी को फौजी बहुत पसंद हैं। उन्होंने बचपन से ही मेरे मन में यह बात पैदा कर दी थी कि मुझे सेना में जाना है।उन्होंने ही मुझे सेना में जाने के लिये जोश दिलाया।’’
 मैंने बातों का सूत्र थामते हुए कहा, ‘‘अच्छा तब तो तुम्हारी अम्मी देश की सच्ची नागरिक हैं, जब कभी उधर आना हुआ तो मैं तुम्हारी अम्मी से मिलना चाहूँगा।’’
 आदिल उत्साहित हो गया, ‘‘ जी सर, मैं इस बार अम्मी से बात करूँगा तो उनको आपके बारे में बताऊँगा। आप मेरे घर ज़रूर आइयेगा।’’
मुझे अपना संशय सही लगने लगा, मैंने धड़कते दिल से कहा, ‘‘मैं जब वहाँ था तो कई परिवारों से मेरा आना जाना था। क्या नाम है तुम्हारी अम्मी का, हो सकता है, मैं जानता रहा होऊँ।’’
‘‘ जी हिना खान।’’
    मेरे सामने मेहुल का चेहरा आ गया। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानों वह कह रहा हो ‘‘देखा मैं कहता था न, मेरी हिना मुझे भूल नहीं सकती।’’
विभिन्न विधाओं की 31 पुस्तकें।(कहानी संग्रह-9,उपन्यास-3,समालोचना-3,बाल साहित्य-15, काव्य संग्रह-1)। लगभग 23 संकलनों का सह सम्पादन। दो छात्रों द्वारा कृतियों पर शोध किया। ‘‘स्वयं के घेरे ’’कहानी संग्रह ‘‘विद्यावती कोकिल’’ सर्जना पुरस्कार से हिन्दी संस्थान उत्तर प्रदेश द्वारा पुरस्कृत (वर्ष2013)। उ0 प्र0 हिन्दी संस्थान द्वारा ‘‘जगपति चतुर्वेदी बाल विज्ञान लेखन सम्मान’’। संपर्क - pandeyalka@rediffmail.com

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