Sunday, May 19, 2024
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रेखा श्रीवास्तव की दो लघुकथाएँ

1 – मैं हूँ न!
नीलाभ ने शुचि को बताया कि उसके मित्र का संदेश आया है , माँ की तबियत बहुत खराब है और उसे फौरन बुलाया है ।
“मुझे ? आपको गलतफहमी हुई है ।”
“नहीं, जल्दी चलो ।” शुचि जल्दी से कुछ सामान उठा कर गाड़ी में जा बैठी । पर उसका मन संशय में पड़ गया – कहीं माँ …। नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा ।
शुचि के घर के दरवाजे पर पहुँच कर नीलाभ के कदम ठिठक गये क्योंकि घर के बाहर कुर्सियों पर लोग बैठे थे । वह शुचि के साथ अंदर गया तो माँ का पार्थिव शरीर देखा । शुचि तो चीख पड़ी और माँ के ऊपर गिर कर जोर जोर रोने लगी । रिश्तेदारों ने उसे सँभाला ।
तभी यूएस से शुचि के भाई शरद का फोन आया – ” मैं इतनी जल्दी नहीं आ पाऊँगा । आप लोग मेरा इंतजार न करके अंतिम संस्कार कर दें ।”
बात शुचि के पापा वर्मा जी को बताई गई । उनकी क्षीण काया एक बार को काँप गई , अब क्या होगा ? उनके सगे तो नहीं, हाँ सौतेले भाइयों के परिवार इकट्ठे थे । बेटे के फोन आने के बाद सरगर्मी बढ़ने लगी । कौन सामान लायेगा ? धीरे धीरे लोगों ने खिसकना शुरू कर दिया कि अभी तो व्यवस्था में समय लगेगा , थोड़ी देर में आते हैं । शुचि को सभाँलने वाली उसके आस पास वाली माँ की सहेलियाँ थीं।
नीलाभ वर्मा जी के सामने नहीं आना चाहता था क्योंकि शुचि की किसी विजातीय लड़के से करना उन्हें पसंद नहीं था । बेटी को अपने लिए मरा घोषित करके समाज में अपने सम्मान को बचाये रखा था।
“कैसा बेटा माँ के न रहने पर भी नहीं आया।” जितने मुँह उतनी बातें।
“एक बेटा वह भी पीठ दिखा दिहिस।”
“अब इनका क्या होगा?”
“इसी दिन के लिए बेटे की आशा करता है आदमी ।”
नीलाभ ने अपने घर वालों को खबर कर दी थी और उन्हें अंतिम संस्कार की सामान भी लाने को कहा। वर्मा जी इस हालात में न थे कि उठकर खड़े रह पाते, तो कौन काम करेगा ? नीलाभ ने हाथ लगाया तो मुहल्ले वालों ने मना किया – “दामाद हाथ नहीं लगाते ।”
नीलाभ ने पूरी शक्ति से वर्मा जी को उठाया तो और लोग भी आ गये । उनके हाथ से नाममात्र का संस्कार करवा कर काम पूरा किया । वर्मा जी आखों में आँसू भरे उसके सामने निरीहता से देख रहे थे कि अब मैं कहाँ जाऊँगा …..?
ये प्रश्न सबके मन में तैर रहा था कि इनका क्या होगा ?
नीलाभ ने वर्मा जी के कंधे पर हाथ रखकर सांत्वना दी – “मैं हूँ न !”
2 – पुराना घर
सुमित ने पापा से कहा कि कोई बड़ा-सा फार्म हाउस देख लें । जहाँ खुशनुमा और शांत वातावरण में अपना घर बनाकर, वहीं से कुछ काम शुरू कर सके।
पापा ने 30000 स्क्वेयर फीट का फार्म हाउस उसके लिए ले लिया और आज वह दिखाने लाए हैं।
“अहा!” ताजी हवा से उसका मन प्रफुल्लित हो गया।
“पापा, ये चिड़ियों का कलरव तो मानो संगीत का सृजन कर रहा है।”
“हाँ बेटा, यही सब तो मेरे मन को भाया था।”
बीचों-बीच पीपल का पेड़ देखकर वह ठिठककर बोला -“कुछ भी बनेगा तो क्या ये पेड़ यहीं रहेगा और फिर इसकी जड़ें …! कट तो जायेगा ना … ?”
“अरे मूर्ख! ये पक्षियों का कलरव और ताजी हवा इसी की बदलौत ही तो है और फिर ये जमीन तो तूने आज खरीदी है, जबकि इस पेड़ का घर सौ साल से यहीं है और फिर सैकड़ों पक्षियों के आशियाने भी तो होंगे। अपना घर बसाने के लिए तू इन पक्षियों को आशियाना कैसे उजाड़ सकता है?”
वह निरुत्तर था।
रेखा श्रीवास्तव
रेखा श्रीवास्तव
संपर्क - rekhasriva@gmail.com
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