Sunday, May 19, 2024
होमपुस्तकरमेश कुमार रिपु की कलम से - संवेदनशील बनाने वाली कहानियां

रमेश कुमार रिपु की कलम से – संवेदनशील बनाने वाली कहानियां

पुस्तक – जंगलगाथा लेखक – लोकबाबू कीमत – 285 रुपए प्रकाशक – राजपाल
समीक्षक
रमेश कुमार रिपु
प्रगतिशील लेखक संघ से जुडे लोकबाबू का कहानी संग्रह जंगलगाथा पाठक को संवेदनशील बनाती है। जीवन के यथार्थ और उसके चरित्र के साथ ही मानवीय सरोेकार से जोड़ती हैं। साथ ही कहानियों में घटनाओं के कई मोड़ हैं। इन कहानियों में रचनाकार का निजी अनुभव भी दिखता है। कहानियों में गहरे मर्म की पुकार है। कहानियों की अंतिम पंक्तियां ऐसी हैं, जिनसे पता चलता है, कि कहानियों की आत्मा यहां पर है। यह आत्मा ही कहानी की पूरी देह को कथ्य के एक सूत्र में बांध देती है। जंगलगाथा में जंगल है, पर जंगलीपन नही है। मानसिक रूप से कमजोर केशव बकरी चराया करता है। नागाओं का पीछा करता है। उसके साथ कई अप्रत्यशित घटनाएं घटती हैं। गांव वाले उसे चमत्कारिक बाबा बना देते हैं। एक घटना में वह दिगम्बर हो जाता है। साल के घने वृक्षों ने उसके भय और उसकी नग्नता को अपनी ओट में छिपा लेते हैं।
जंगलगाथा में बारह कहानियां है। सभी कहानियों में जीवन के अनुभव हैं। अधिकांश कहानियों में जीवन के मूल्यों का संदेश है। सभी कहानियों की बनावट मूलतः समसामयिक यथार्थ के सभी महत्वपूर्ण पहलुओं को रेखांकित करने के साथ ही कुछ नया रचने की चेष्टा भी मौजूद है। कहनियों में अलग- अलग चरित्र हैं। ग्राम समाज के हाशिये पर सिमटते समाज की पीड़ा,आदिवासी जीवन हो या फिर गरीबी की चादर में लिपटे लोग और दूसरे की मदद के लिए हाथ बढ़ाने वाले हाथ, आम आदमी की जिजीविषा और जीवन की वास्तविक चिंताओं की एक नए तरीके से शिनाख्त है जंगलगाथा।
लोकबाबू की कहानी का रचना संसार आस- पास से बनता है। मुजरिम कहानी गरीबी में टूट गए पिता की बेबसी की कहानी है। वह अपने बच्चों को मौत दे देता है। ताकि उन्हें गरीबी की जिन्दगी न जीना पड़े। दरअसल लोकबाबू समाज की विसंगतियों पर बहुत चुपके से बड़ी ईमाानदारी के साथ उसे कागज में उतार देते हैं। दुश्मन,जश्न, स्कूटर और होशियार आदमी ऐसी कहानियां हैं, जिसमें लोकबाबू बोलते नहीं हैं,बल्कि जो कहना है,उनकी कहानियां कहती हैं। होशियार आदमी कहानी का नायक संवदेनशील है। वह हर परिस्थितियों को भांप लेता है। कोरोना ने देश दुनिया और समाज में एक नई कहानी को जन्म दिया है। लोगों की रोजी रोटी छिन गयी। बेबस हो गए। कहानी का नायक चालीस रुपए का सिंघाड़ा गांव के लड़के महेश से खरीदता है। लेकिन फुटकर पैसा नहीं होने पर वह नहीं दे पाता। नायक को उधारी पसंद नहीं है। कई दिनों बाद भी महेश नहीं मिलता है। नायक उसके गांव जाता है। वहां वह कोरोना से उपजी विभिषिका को आंखों से देखता है। और वह चालीस की बजाय दो सौ चालीस रुपए दे आता है।
मुखबिर मोहल्ले की प्रेम कहानी में बस्तर के आदिवासियों के जीवन के उस सच को रेखांकित किया गया है,जिसे छिपाया जाता है।बस्तर में आदिवासी की जान दोनों तरफ से जाती है। नक्सलियों का मुखबिर कहकर पुलिस मार देती है और पुलिस का मुखबिर है कहकर, नक्सली मार देते हैं। बस्तर के नक्सलवाद में प्यार,मुहब्बत और शादी की मनाही है। बावजूद इसके सुकारो और कोसा एक दूसरे से प्यार कर बैठते हैं। मगर दोनों की शादी न नक्सली कमांडर करता है और न ही पुलिस अफसर। दोनों बेमौत मारे जाते हैं नक्सली और पुलिस मुठभेड़ के नाम पर।
एक दिन का कारोबार और मेेमना यात्रा वृतांत कथा है। जंगल में ट्रेन कई घंटे रुक जाती है। यात्रियों की परेशानी और उनकी दुर्दशा का चित्रण है। भूखे प्यासे लोगों के लिए गांव वाले पानी लाते हैं,व्यापारी उनसे पानी का सौदा कर महंगे दाम में पानी बेचते हैं। विषम परिस्थितियों में कैसे अजनबी लोग दोस्त बनते हैं, उस मर्म को रेखांकित करती है एक दिन का कारोबार कहानी। मेमना कहानी बताती है,कि शांत स्वभाव वाले आदमी का मजाक उढ़ाना हितकर नहीं होता।
हम अपने देश और समाज को पहचान सकते हैं चोर अंकल और दद्दू का बेटा की कहानी से। यह दोनों कहानियां मानवीय सरोकार की हैं। ऐसी कहानियां पाठक को झप्पकी दे सकती है,मगर उसकी नींदें नहीं उड़ाती। चोर अंकल को एक मासूम लड़की जिस सामान को तर्क के साथ छोड़ देने को कहती है,चोरों का सरदार उन सभी सामानों को छोड़ने का आदेश देता है। बाद में पुलिस उस बच्ची को चोरों की शिनाख्ती के लिए बुलाती हैं। उस समय का दृश्य मन को मोह लेता है। जानते हुए भी बच्ची कहती है, इसमें से कोई भी चोर अंकल नहीं है, पुलिस अंकल।
बच्चों को यदि किसी से अपनापन मिल जाए तो वो यह नहीं देखते कि सामने वाला उसका क्या लगता है। दद्दू का बेटा गरीब बच्चे के स्नेह और प्रेम की कहानी है। दीना को होटल मालिक डराता है ठीक से काम नहीं किया तो निकाल दूंगा। ड्राइवर दद्दू को उस पर दया आ जाता है। और वह उसे शहर में रखने और पढ़ाने का वायदा करता है। लेकिन एक एक्सीडेंट में वह अपना पैर गवां देता है। वह लौट कर दीना के पास नहीं आ सकता। दीना कई परेशानियों से जूझता हुआ आखिर दद्दू के पास पहुंच जाता है।
लोकबाबू में कहानी बुनने का हुनर परिपक्व है। वे बहुत तफ्सील सेे कहानी की विषय वस्तु के धागे को खोलते हैं। व्हाइट कैप कहानी बच्चों की है। मगर पाठक के मन मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ती है। गांव के बच्चे को शहरी बच्चे, कोई खास तवज्जो नहीं देते है। लेकिन एक हादसे के बाद सभी बच्चे उसे ढेर सारा प्यार और क्रिकेट का सामान देकर उसे विदा करते हैं। कहानी बताती है,कि बच्चों का दूसरे बच्चे के प्रति प्रेम बनावटी नहीं होता।
लोकबाबू की कहानी की भाषा सहज और प्रवहमान है। शैली सीधे कहन की है। जैसे कोई कथा सुनता हो। इनकी कहानियों की पठनीयता अद्भुत है। एक बड़़े पाठक समुदाय को आकर्षित करने में सक्षम है।

रमेश कुमार रिपु
समीक्षक
संपर्क – rameshripu@gmail.com
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest

Latest