घर के बाहर कोने में अक्सर एक अधेढ़ उम्र औरत फूल लेकर बेचने बैठ जाया करती थी। मैंने शलभ से कहा  “मना करो इसे कि कहीं और जाकर बेचा करे ये फूल!”
शलभ कहने लगे, “जाने दो न शुभ्रा, रहने दो पास में मंदिर है बेच लेने दो किसी की रोजी क्यूँ छीनती हो? “
सच कहूँ तो मुझे वो एक आँख नहीं भाती थी।श्रेयश को भी घूर घूर कर देखती रहती थी। वक्त बीतता गया ,मेरा लाडला बेटा श्रेयश भी उसके साथ बतियाता रहता ,पार्क आते जाते वो उससे बातें करने लगती थी और वो भी उसे फूलवाली माई माई कहकर खूब बाते करता, कभी कभी वो गुलाब का फूल देती तो कभी उसके लिए मंदिर का प्रसाद संभालकर रखती और उसके आने पर उसे खिलाती और खुद भी खाती। खूब अच्छी दोस्ती हो गयी थी दोंनों की। मैं गुस्सा होती और  शलभ से कहती कि कहीं ये बुढ़िया मेरे लाडले को कुछ मिलाकर खिला न दे, कोई टोना टोटका न कर दे? तो शलभ हँसकर टाल देते। किसी से हमें पता चला कि वो शास्त्री नगर वाली झोपड़पट्टी में अकेली रहती है। न पति है और न ही कोई आस-औलाद। मैं डर गयी और पति से कहा “देखो जी, श्रेयश को उसके पास ज्यादा न जाने दिया करो आप ,मेरे बच्चे को कुछ कर दिया तो? मेरी तो आप सुनते ही नहीं। ” मैं भुनभुनाकर रसोईघर में चली गयी। अचानक बाहर शोर सुनाई दिया शलभ चीख रहे थे “शुभ्रा शुभ्रा जल्दी आओ!!” मैं बाहर आई तो कुछ लोग श्रेयश को गोद में लिए खडे़ थे। शलभ और मैं रोने लगे। श्रेयश बेहोश था तुरंत अस्पताल लेकर भागे। डॉक्टर्स ने मरहम पट्टी तो कर दी साथ ही एक बुरी खबर भी दी कि आँख में तेजी से बाॅल लग जाने के कारण मेरे बेटे की आँख की रोशनी चली गयी है। मन हाहाकार कर उठा,मेरा नन्हा सा बच्चा। काफी इलाज हुआ पर रोशनी वापिस न आ पाई।
 इलाज के बाद श्रेयश को घर लेकर लौटे तो उसी बूढ़ी अम्मा ने रास्ते में रोककर पूछा “बाबू कैसा है?” मैं उस पर झल्लाई और बरस पड़ी  “डायन, तेरी ही नज़र लग गयी मेरे बच्चे को ,,,तेरी बुरी नियत थी मेरे बच्चे पर,,तेरी नज़र खा गयी उसे।खबरदार जो आज के ” बाद मेरे बेटे की तरफ आँख भी उठा कर देखा या लाड़ लड़ाया तो तेरी ख़ैर नहीं।” वो आँखों में आँसू लिए चली गयी। दो तीन महीने हो गये न वो फूल बेचने आई और न ही कहीं दिखाई दी,,एक दिन अस्पताल से फोन आया कि श्रेयश के आॅपरेशन के लिए आँख मिल गयी है। हम भागे भागे पहुँचे। आॅपरेशन सफल हुआ , हमारे पूछने पर कि आँख कहाँ से मिली? कौन था डोनर? तो डाॅ. सलोनी ने बताया कि कोई मंदिर के करीब ही फूल बेचने वाली बूढी़ माई थी जो कैंसर के आखिरी पढा़व पर कुछ ही दिनों की मेहमान थी ,उसने श्रेयश का नाम लेकर हमसे बहुत आजिजी की थी कि मेरे मरने के बाद मेरी आँख उसे यानि कि मेरे बेटे श्रेयश को दे दी जाए और एक पर्चा शलभ के हाथ में थमा दिया उस पर्चे में टूटा फूटा लिखा था –
“छोटे बाबू को माई का तोहफा, मेरे बाबू को किसी की नज़र ना लगे,बस मेरी नज़र लगे।”
  ~तुम्हारी फूलवाली माई

1 टिप्पणी

  1. कोई जवाब नहीं.. अद्भुत.. ममता, ईर्ष्या, डर की अनोखी प्रेम कथा.. जिसे ममता ने सींचा..

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