बॉस्टनमेंसुबहकेपाँचबजचुकेथे।बैंगलुरूकेटिकटकीपूछताछकरनेसेपहलेबॉस्टनमेंबहनकोफोनकिया। पूजा केपतिसप्ताहकेपाँचदिनन्यूयॉर्कमेंकामकरकेसप्ताहांतमेंपरिवारकेसाथबिताते हैं।वेसुबहकेसमयतैयारहोकरन्यूयॉर्ककेलिएनिकलनेवालेथे। पंकज काफ़ोनमिलतेही पूजा भीबैंगलुरूजानेकोतत्परहोगई।न्यूयॉर्कजानास्थगितकरउसकेबदले पति पूजा कोलोगनएयरर्पोर्टलेजानेकीतैयारीकरनेलगे।एकअटैचीमेंकुछकपड़ेऔरज़रूरीदवाएँपैककरदोनोंबच्चोंको पति केपासछोड़कर पूजा पहलीफ्लाइटसेबैंगलुरूकेलिएरवानाहुई।
पंकज साराटोवासेटैक्सीलेकरसैनफ्रांसिस्कोऔरवहाँसेदिल्लीकीफ्लाइटमेंबैठाथा।रातकोमाँसेफ़ोनपरबातकरनेकेबादसेअभीतकयंत्रवतयात्राकाइंतज़ामकरनेकेबादजबप्लेननेउड़ानभरी तब उसको वास्तविकताका भान हुआ। पूजा कोफ़ोनकरनेऔरअपनेएककमरेकेफ्लैटकीचाभीअपनेदोस्तकोसौंपकररवानाहोनेमेंइसकदरव्यस्तथाकिपापाकीतबीयतकाख़यालदिमागसेस्थगितकरपायाथा।
जबइंजीनियरिंगकाकोर्सपूराकरनेकेबीचहीउसकोटाटाकंपनीसेसिलिकोनवैलीमेंट्रेनिंगकाकॉंट्रैक्टमिलगयातोइसबारमाँकीआँखोंमेंगर्वकेआँसूथे।अमेरिकामेंअठारहमहीनोंकीट्रेनिंगपूरीकरनेपरकंपनीनेउसकोवहींपरजॉबऑफरकिया।जॉबशुरूकरनेसेपहलेअपनेबचाएहुएपैसोंसेमाँ,केलिएवीडियोरेकॉर्डर, पापाकेलिएकैमराऔरबहनकेलिएसीकोघड़ीलेकरजबवहघरजारहाथाउसकेपैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे औरमाँ, पापाऔर पूजा केलिएतोउसकेलौटनेकीप्रतीक्षाकासमयजैसीएकजगहआकररुकगयाथा।
अख़बारकेविज्ञापनकेजवाबमेंकईलड़कियोंमेंसेउन्हेंपानीपतकीआईटीग्रैजुएटऔरउसकेपरिवारकाबैकग्राउण्डअच्छालगा।बसउसकेलौटनेभरकीदेरथी. तीनसप्ताहकेभीतर कविता सेशादीकरकेउसकोअपनेसाथसाराटोवालेजानाएकसपनाहीलगताहै। कविता कोअपनेसाथलेकरलौटतेसमयपापाकीअमेरिकाघूमनेकीतमन्नाकोमनहीमनयहसोचकरतसल्लीदीकिएकबार कविता केसाथठीकसेसैटिलहोकरहीपापाऔरमाँकोअपनेपासबुलालेगा।
सेनफ्रांसिसकोएयरपोर्टपरउसकेस्वागतकेलिएआएरविऔरउसकीपत्नीकेपासएकअजनबीकोदेखकरवहसमझाकिवहकिसीऔरकोलेनेआयाहोगाऔरइत्तिफाकसेउनकेपासखड़ाहै।परजबवह कविता सेलगभगगलेमिलनेकेलिएउसकीओरबढ़ातो कविता ने ‘यहअजयहै, मेराकॉलेजकादोस्त’ कहकरउसकापरिचयदिया।
बैंगलुरुमेंशादीकेबादकेबिताएदिनसबसेमिलने-मिलानेमेंबीतगएथे।शादीकेबादतो कविता उसकेसाथहीजारहीहैइसलिएजबउसनेजानेसेपहलेकेदिनअपनीमाँकेपासबितानेकीइच्छाज़ाहिरकीतो पंकज कोइसमेंकोईअस्वाभाविकतानहींलगी।पर, साराटोवालौटनेकेबादभी उसकाअनमनापन, उसकेपासआनेकेहरप्रयत्नकोकिसीनकिसीकारणसेटालदेनाउसकीसहनशीलताऔरसमझसेपरेहोनेलगा।साथहीयह एहसासकिजल्दीबाजीमेंशादीकरनाएकभूलतोनहींथी।
कविता काअनमनापन, अलगाव और उसकोजाननेकीकोशिशतकनकरनादेखकरउसेलगनेलगाकिशादीकरनेकेपीछेपति-पत्नीकेमकसद कहीं अलग–अलग तो नहीं थे। पंकज केमनमेंशादीएकसुखीघरबनानेकीख़्वाहिशथीपर कविता के लिएपानीपतकीचारदीवारीसेनिकलकरअमेरिकापहुँचनेकेपासपोर्टसेअधिककुछनहींथी।उसकेअपनेसपनेथे।वहहरवहचीजकरनाचाहतीथीजोपानीपतमेंपरम्परावादीमाँऔरसाधारणनौकरीपेशापापाउसकेलिएनहींउपलब्धकरासके।एमबीएमेंदाख़िलालेना, तैरनाऔरटेनिसखेलनासीखनाबाहरघूमना, रेस्त्रॉजानाइनसबकेबीचउसने पंकज क्याचाहताहैयहजाननेकीकभीकोशिशतकनहींकी।पारिवारिकसुखकेउसकेसपनोंकेलिएउसकेव्यस्तजीवनमेंकोईजगहनहींथी।
ऐसेमेंवहमाँऔरपापाकोयहाँबुलाकरउनकादिलकैसेदुखाए? वेलोगतोदूरबैठेसंतुष्टहैंकिबेटेकाघरबसगयाहै।अबकामसेलौटनेपरउसकेलिए कविता खानाबनाकरप्रतीक्षाकरतीमिलतीहोगी।वहउन्हेंकैसेबताएकिवहअभीभीघरआकरखालीघरका ताला खोलता है। रात को बाहर से खापीकर लौटने पर बिस्तर के दूसरी तरफ़ मुँह करके सोते समय कविता कोउससेबातकरनेतकमेंकोईरुचिनहींहोतीहै।जबएकदिनहररोज़कीतरहऑफिससेलौटनेपरउसनेदरवाज़ेकातालाखोलातोडोरमैटपरएकलिफाफामिला।लिफाफेकेभीतरएकसंक्षिप्तनोटथा, ‘अबबसऔरनहींजीसकतीमैयहदोहरीजिंदगी, जारहीहूँउसकेपासजिसकेलिएमैयहाँआईथी।’ पंकज पतानहींकितनीदेरतकहाथमेंख़ालीलिफाफापकड़ेहुएस्तब्धखड़ारहा।
एयरहॉस्टेसकीट्रॉलीकीआवाज़नेउसकाध्यानभंगकिया।चायऔरकॉफीकेसाथप्री–पैकब्रैडरोलखानेमेंउसकोकतईरुचिनहींथी।परयादोंकेतारटूटचुकेथे।एकझटकेसेवहवर्तमानमेंपहुँचगयाथा।पतानहींपापाकोहोशआयाहैयानहीं! डॉक्टरऑपरेशनकरनेवालेथे, शायदअबतकऑपरेशनहोगयाहोगायाहोरहाहोगा।मनहीमनभगवानसेप्रार्थनाकीवेपापाकोठीककरदें। प्लेनअबचेन्नई एयरपोर्ट उतरनेकीतैयारीकररहाथा।वहाँपहुँचकरवहमाँकोफोनकरसकेगा।तबतककासमयकाटनामुश्किलहोरहा था।वहाँसेरेलकासातघंटोंकारास्ताभीहै।पतानहीं पूजा अभीकहाँतकपहुँचीहोगी।
पापाकेजानेके बारह दिन बाद उसको वापस अमेरिका तो लौटना ही था। जाने से पहले पंडितजीनेजबअस्थिविसर्जनकेलिएहरिद्वारयाप्रयागजानेकीबातकीतोजैसेवहएकाएककिसीसपनेसेबाहर आ खड़ा हुआहो, “पंडितजी,पापाहमेशाअमेरिका घूमने जानाचाहतेथे, यहकलशमैंअपनेसाथअमेरिकालेजाऊँगा।”
यह कहानी नहीं बल्कि अनेक प्रवासी भारतीयों की आपबीती लगती है। दिल को झँझोड़ दिया आपने। बहुत अच्छी लघुकथा तो है ही साथ मार्मिक भी है। आपकी अगली कहानी का इंतजार रहेगा।
बहुत संवेदनशील कहानी
देश में परिवार छोड़ कर गए लोगों के दुःखों का अच्छा चित्रण.
सुन्दर और संवेदनशील कहानी, अरुणा जी, बहुत बहुत बधाई, दिव्या
सभी प्रवासी भारतीयों के स्तिथियों को दर्शाती हुई कहानी।
यह कहानी नहीं बल्कि अनेक प्रवासी भारतीयों की आपबीती लगती है। दिल को झँझोड़ दिया आपने। बहुत अच्छी लघुकथा तो है ही साथ मार्मिक भी है। आपकी अगली कहानी का इंतजार रहेगा।