यह सच है कि किसी अमरीकी राष्ट्रपति में इतना दम नहीं कि वह अपने बलबूते पर पचास हज़ार से अधिक श्रोता अपनी किसी मीटिंग के लिये जुटा ले। इसके लिये उसे किसी एल्विस प्रेस्ले की आवश्यक्ता महसूस होगी ही। और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प को इतनी बड़ी भीड़ जुटा कर दिखा दिया कि वे किसी रॉक-स्टार से कम नहीं हैं।

पिछले दिनों अमरीका में भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के प्रधानमन्त्री लगभग पांच पांच दिन तक अमरीका में रहे। मगर दोनों प्रधानमंत्रियों का एजेण्डा किसी हद तक एक होते हुए भी एक दूसरे से बहुत अलग था। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी पर अक्सर यह इल्ज़ाम लगाया जाता है कि वे जब भी माइक के सामने आते हैं इलेक्शन मोड में चले जाते हैं। ह्यूस्टन के अपने गाला-शो हाउडी-मोदी  में तो उन्होंने वही तेवर और अन्दाज़ बनाए रखे। 

यह सच है कि किसी अमरीकी राष्ट्रपति में इतना दम नहीं कि वह अपने बलबूते पर पचास हज़ार से अधिक श्रोता अपनी किसी मीटिंग के लिये जुटा ले। इसके लिये उसे किसी एल्विस प्रेस्ले की आवश्यक्ता महसूस होगी ही। और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प को इतनी बड़ी भीड़ जुटा कर दिखा दिया कि वे किसी रॉक-स्टार से कम नहीं हैं। 

डॉनल्ड ट्रम्प के चेहरे पर अविश्वास साफ़ झलक रहा था कि विश्व का कोई भी नेता भला इतना लोकप्रिय कैसे हो सकता है। वे प्रधानमन्त्री मोदी की लोकप्रियता के संगीत में बहते चले गये और वही बोलते चले गये जो सुनने वालों को मीठा संगीत लगे। 

नरेन्द्र मोदी ने भी पचास हज़ार की भीड़ को एक संदेश दे डाला, ‘अबकी बार, ट्रम्प-सरकार’। यानि कि नरेन्द्र मोदी ने अपनी लोकप्रियता जैसे भाड़े पर डॉनल्ड ट्रम्प के हवाले कर दी। 

इस कार्यक्रम में शायद पहली बार किसी विश्व नेता ने सीधे सीधे ‘इस्लामिक टेरर’ के विरुद्ध साझा लड़ाई की शंखनाद बजा दिया। ज़ाहिर है कि पाकिस्तान और इमरान ख़ान को इससे काफ़ी परेशानी हुई होगी। उनके विदेश मन्त्री और अन्य नेताओं के चेहरे भी बुझ गये होंगे। 

नरेन्द्र मोदी ने इस विशाल कार्यक्रम की सफलता के बाद अमरीका के चालीस बड़े बिज़नस सीईओ से मुलाक़ात की और कुछ महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर भी किये।  इनमें से सबसे बड़ा समझौता एल.पी.जी. को लेकर था। 

रामायण के चरित्र राजा बाली की तरह हर कार्यक्रम के बाद नरेन्द्र मोदी का क़द दोगुना बड़ा हो जाता रहा। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग में भी भारत ने पाकिस्तान को 16 देशों का समर्थन भी नहीं जुटाने दिया। मोदी नीति यहां भी सफल रही। 

वहीं संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेम्बली में अचानक नरेन्द्र मोदी बहुत सोबर हो गये और बिल्कुल एक स्टेट्समैन की तरह का भाषण दिया जो तयशुदा पंद्रह मिनट के आसापास ही लंबा था।

इस भाषण में नरेन्द्र मोदी ने एक विश्व नेता की तरह आजकल दुनियां की महत्वपूर्ण समस्याओं को लेकर भारत की उपलब्धियों को विश्व के सामने रखा। उन्होंने 3000 साल पुराने तमिल कवि की पंक्तियों का अपने भाषण में इस्तेमाल किया। उनका मुख्य वाक्य रहा कि भारत विश्व को युद्ध नहीं बुद्ध देता है।

और भाषण की समाप्ति में उन्होंने स्वामी विवेकानंद के ऐतिहासिक भाषण का जिक्र करते हुए कहा कि 150 साल पहले, महान आध्यात्मिक गुरु, स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में धर्म संसद के दौरान शांति एवं सौहार्द का संदेश दिया था, मतभेद का नहीं। मोदी ने आगे कहा कि,‘‘विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आज भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए शांति और सौहार्द ही, एकमात्र संदेश है।

दूसरी तरफ़ पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान ख़ान पिछले 5 अगस्त से एक ही भाषण दे रहे हैं। उनके पास एक ही मुद्दा है – कश्मीर और न्यूक्लियर बम्ब की धमकी। उनका जनरल असेम्बली का भाषण अधिक से अधिक नफ़रत फैलाने वाला भाषण कहा जा सकता है। उनके भाषण में नरसंहार, रक्तपात, नस्लीय श्रेष्ठता, बंदूक उठाएंगे और अंत तक लड़ेंगे जैसे शब्दों का जी भर कर इस्तेमाल किया गया। 

इमरान ख़ान ने निर्धारित 15 मिनट के स्थान पर 50 मिनट भाषण दिया और उस सम्मानजनक मंच का खुल कर दुरुपयोग किया। अगले ही दिन भारत की प्रथम सचिव विदिशा मैत्रा ने पाकिस्तान के सामने पांच सवाल रखे – 

  • क्या पाकिस्तान इसकी पुष्टि कर सकता है कि उसके यहां संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल 130 आतंकवादी और 25 आतंकी संगठन मौजूद हैं?
  • क्या पाकिस्तान ये मानेगा कि पूरी दुनिया में सिर्फ़ उसकी सरकार ऐसी है जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिंबधित अल क़ायदा से ताल्लुक रखने वाले व्यक्तियों को पेंशन देती है?
  • क्या पाकिस्तान ये समझा सकता है कि यहां न्यूयॉर्क में उसे अपने प्रतिष्ठित हबीब बैंक को क्यों बंद करना पड़ा? क्या इसलिए क्योंकि वो आतंकी गतिविधयों के लिए लाखों डॉलर का लेनदेन कर रहा था?
  • क्या पाकिस्तान ये नकार सकता है कि ‘फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स’ ने 27 में 20 से अधिक मानकों के उल्लंघन के लिए इसे नोटिस दिया था?
  • और अंत में, क्या प्रधानमंत्री इमरान ख़ान इस न्यूयॉर्क शहर के सामने इन्कार कर सकेंगे कि वो ओसामा बिन लादेन का खुले तौर पर समर्थन करते रहे हैं?

भारतीय उपमहाद्वीप में स्थिति को सुधारने के लिये भाषा को संयमित करना आवश्यक है। इमरान ख़ान को चाहिये कि पाकिस्तान को अपने भाषणों से विश्व मंच पर मज़ाक का विषय ना बनने दे।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

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