पृथ्वी की आकृति जैसा ही,
शंख का होता आकार।
सागर की गहराई में रहता,
इसका अनोखा परिवार।
शंख बजाना सनातन धर्म में,
होता है बड़ा जरूरी।
विज्ञान की आंखों से देखें तो,
होता ऊर्जा की धूरी।
जीवाणु का नाश कर शंख सदा,
भरे है नया उत्सर्जन।
कैल्शियम का स्त्रोत सदियों से,
करे है उत्साहवर्धन।
कुम्भक,रेचक, प्राणायाम का
सिखलाता है योग सभी।
शंख बजाने से नियमित रहते,
दूर अनेको रोग सभी।
सुन के इसकी ध्वनि कर्णप्रिय-सी,
होता ना हृदयाघात।
रक्तचाप रहे सदा नियंत्रित,
होता ना दमा का पात।
चौदह रत्नों में मिला अनोखा,
हुआ कभी समुद्र मंथन।
हम इसकी की वैज्ञानिकता पर,
कर ले मिल के कुछ चिंतन।
गोबिंद जी की बाल कविता किशोर और युवा वर्ग तक पहुँचने वाली रचना है। उत्कृष्ट ।