Friday, October 11, 2024
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संपादकीय – महाराष्ट्र में राजनीति और कोरोनागति

जहां कोरोना फ़्रण्ट पर महाराष्ट्र सरकार पूरी तरह से अव्यवस्थित दिखाई दे रही है, वहीं सचिन वाज़े और वसूलीगेट मामले में भी सरकार बुरी तरह से फंसी हुई दिखाई दे रही है। पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र के बाद अब सचिन वाज़े के पत्र ने महाराष्ट्र सरकार के लिये मुश्किलों का अंबार खड़ा कर दिया है। 

महाराष्ट्र की स्थिति 2021 में बहुत अजब गजब हो चुकी है। यहां वसूलीगेट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल देशमुख, कपिल सिब्बल और सिंघवी को झटका दिया है तो कोरोना ने पूरे तंत्र को हिला कर रख दिया है। दोनों ही मामलों में राजनीति गर्म है।
कांग्रेस नेता नाना पटोले ने कहा, “आज हमारा देश पाकिस्तान को मुफ़्त वैक्सीन पहुंचा रहा है, लेकिन महाराष्ट्र के लिए वे इस मामले पर राजनीति कर रहे हैं।” उन्होंने बीजेपी नेताओं पर आरोप लगाते हुए कहा, “राज्य और केंद्र के बीजेपी नेता महाराष्ट्र को निशाना बना रहे है। यह तय है कि उन्हें इसके अंजाम भुगतने होंगे।” याद रहे भारत ने दुनिया के कई देशों को मुफ़्त वैक्सीन पहुंचाई है।
एन.सी.पी. के प्रदेश प्रवक्ता महेश तपासे ने बृहस्पतिवार को कहा, “केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन को याद दिलाना होगा कि महाराष्ट्र टीकाकरण अभियान के लिहाज़ से देश में नंबर एक पर है और यह पूरी तरह महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे और उनकी टीम के प्रयासों के चलते है।”
शुक्रवार 09 अप्रैल भारत समय दोपहर के 13.30 बजे तक को आंकड़े बताते हैं कि भारत में एक करोड़ तीस लाख इकसठ हज़ार कोरोना के मामले हैं; उनमें से एक करोड़ उन्नीस लाख चौदह हज़ार मरीज़ ठीक हो चुके हैं। भारत में मृतकों की अब तक की संख्या है 1,67,642… देश के 73% सक्रिय मामले सिर्फ 5 राज्यों से हैं। ये 5 राज्य हैं – महाराष्ट्र, छ्त्तीसगढ़, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश और केरल। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 53.84% सक्रिय मामले हैं।
एक तरफ़ तो भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने वैक्सीन उत्सव मनाने की बात की तो  कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने ट्वीट कर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। राहुल गान्धी का कहना है कि, बढ़ते कोरोना संकट में वैक्सीन की कमी एक अति गंभीर समस्या है, ‘उत्सव’ नहीं- अपने देशवासियों को ख़तरे में डालकर वैक्सीन एक्सपोर्ट क्या सही है? केंद्र सरकार सभी राज्यों को बिना पक्षपात के मदद करे। हम सबको मिलकर इस महामारी को हराना होगा।
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि कोरोना वायरस की वैक्सीन की खरीद और बँटवारे में राज्यों की भूमिका को बढ़ाया जाए और वैक्सीन निर्यात पर तुरंत रोक लगाई जाए। उन्होंने अपने पत्र में यह आरोप भी लगाया कि केंद्र सरकार की ओर से सही तरीके से क्रियान्वयन न किए जाने और उसमें ‘लापरवाही’ के कारण वेक्सीनेशन का प्रयास कमजोर पड़ता दिख रहा है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मन्त्री डॉ. हर्षवर्धन ने महाराष्ट्र सरकार के उन दावों को ख़ारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि राज्य में टीके की केवल 14 लाख ख़ुराकें ही बची हुई हैं जो तीन दिन ही चल पाएंगी। डॉ हर्षवर्धन ने कहा, “ऐसा कुछ नहीं है; बल्कि वैश्विक महामारी के प्रसार को रोकने की महाराष्ट्र सरकार की बार-बार की विफलताओं से ध्यान भटकाने की कोशिश है।”
उन्होंने कहा, “महाराष्ट्र सरकार द्वारा ज़िम्मेदारी से कार्य न करना समझ से परे है। लोगों में दहशत फैलाना मूर्खता है। वैक्सीन आपूर्ति की निगरानी लगातार की जा रही है और राज्य सरकारों को इसके बारे में नियमित रूप से अवगत कराया जा रहा है।”
जहां कोरोना फ़्रण्ट पर महाराष्ट्र सरकार पूरी तरह से अव्यवस्थित दिखाई दे रही है, वहीं सचिन वाज़े और वसूलीगेट मामले में भी सरकार बुरी तरह से फंसी हुई दिखाई दे रही है। पूर्व कमिश्नर परमबीर सिंह के पत्र के बाद अब सचिन वाज़े के पत्र ने महाराष्ट्र सरकार के लिये मुश्किलों का अंबार खड़ा कर दिया है। 
महाराष्ट्र के मन्त्री अनिल परब अब प्रेस कॉन्फ़्रेंस करते दिखाई दे रहे हैं और अपनी बेटियों की कसमें खा रहे हैं कि वे बेक़सूर हैं। वे नार्कों टेस्ट करवाने को भी तैयार हैं। मगर अनिल देशमुख, अजित पवार और अनिल परब की मुश्किलें कम होती दिखाई नहीं दे रहीं हैं। 
एन.आई.ए. ने कह दिया है कि उन्हें सचिन वाज़े से फ़िलहाल कुछ नयी जानकारी नहीं हासिल करनी इसलिये उन्हें कस्टडी नहीं चाहिये। मगर अब बारी है सी.बी.आई. की। सचिन वाज़े के लिये बहार का समय बहुत कम रहा और पतझड़ बहुत जल्दी आ गयी है।
लगता है कि सुशान्त सिंह राजपूत की आत्मा दूर खड़ी न केवल पूरे घटनाक्रम को देख रही है, लगता है कि उसकी आत्मा हालात पर से ग़र्द की परतें भी साफ़ करती जा रही है ताकि जो सुबूत छिपाए गये थे, उन्हें जनता के सामने लाया जा सके।
तेजेन्द्र शर्मा
तेजेन्द्र शर्मा
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.
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