1
ख़ुदआराई किसकी खातिर,
यह रानाई किसकी खातिर।
क्यूं रस्मों को तोड़ रहे हो,
यह रुसवाई किसकी खातिर।
चाक़ दिलोजां ही अच्छे थे,
यह तुरपाई किसकी खातिर।
पहलू में जो दिल रक्खा है,
यह शैदाई किसकी खातिर।
शब भर क्यूं जगते रहते हो,
यह तन्हाई किसकी खातिर।
अब आंखों का क्या करना है,
यह बीनाई किसकी खातिर।
“ग़ैर”बसा परदेश फ़ज़ाओं,
यह पुरवाई किसकी खातिर।


2

चाहते हो गर विजय साकार करना,
सीखना मत कौरवों से वार करना।
घाव जब रिसने लगा नासूर बनकर,
याद आया तब उन्हें उपचार करना।
यह पिता की सीख गठरी में बंधी है,
गांव आ बेटा सभी त्यौहार करना।
मुझसे जब पापी बड़े तर जायें सब ही,
हे प्रभू! तब मेरा भी उद्धार करना।
आई है परदेश से बिटवा की चिट्ठी,
बापू जब गुज़रें तो माई तार करना।
इक टका भी जब तलक है पर्स में तुम,
मत फ़क़ीरों को कभी इन्कार करना।
“ग़ैर”का दिल जिसने भी तोड़ा, दुआ है,
रब मेरे उस शख़्स को बेज़ार करना।
3
वो जब मुझसे बिछड़ा होगा,
दर-दर कितना भटका होगा।
गठरी लोग टटोले  होंगे,
जब परदेशी लौटा होगा।
आज किसी पथ पर अबला ने,
फिर से पत्थर तोड़ा होगा।
आईने में झांक रहा जो,
चिहरा जाने किसका होगा!
सूरज सर पे आ जाने दो,
क़द तेरा भी बौना होगा।
खेत तेरे भी ये निगलेगा,
जब रस्ता कल चौड़ा होगा।
ताड़ रहे हैं तुझको ताजिर,
“ग़ैर” तेरा भी सौदा होगा।

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