1
जो आया है उस को एक दिन जाना है
दुनिया मेरे यार मुसाफ़िर खाना है
जो हासिल है उसकी कोई कद्र नहीं
जो ना है किस्मत में उसको पाना है
इंसानों में फर्क़ नहीं करता है वो
दैरो हरम से बेहतर ये मयखाना है
मुझको सस्ते नगमें लिखने पड़ते है
आख़िर मुझको भी तो घर बनवाना है
मैं अब उसको बिल्कुल याद नहीं करता
उसको जा कर बस इतना बतलाना है
2.
किया सब्र काफी अब उजलत है मुझको
तुम्हारे बदन की ज़रुरत है मुझको
मैं दुश्वारियों को बहुत चाहता हूँ
ये आसानियां बस मुसीबत है मुझको
ना देरौ हरम में ना गिरजे में कोई
बस इंसानियत में अकीदत है मुझको
नहीं चैन आता मुझे झूठ कह कर
और सच बोलने की ना हिम्मत है मुझको
जिसे ज़ेहन बख्शा उसे दिल भी देता
बस इतनी ख़ुदा से शिकायत है मुझको
3.
यूँ तो नाकाम रहा तूफ़ान को हराने में
पसीने छूट गए हवा के दिया बुझाने में
दिलों की बात न शामिल करो हिसाबों में
सब एहसासों को नापोगे क्या पैमाने में
अच्छी सूरत पे तेरी यार हम भी मर बैठे
गलतियाँ होती है इंसानों से अनजाने में
ख़ुदा को याद ना करते है बैठ मस्जिद में
और मैं कर लेता हूँ इबादत मयख़ाने में
ऐसी बातों से पशोपेश में पड़ जाता हूँ मैं
ख़ुद ही जो समझा नही औरो को समझाने में
डॉ. दिलावर हुसैन टोंकवाला
नवीं मुंबई
मोबाइल – 9920538787

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