होम कविता अंकुर सचदेव की कविता – मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है! कविता अंकुर सचदेव की कविता – मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है! द्वारा Editor - March 28, 2019 309 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet अंकुर सचदेव मौत को दो पल और टाल दो, मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है। मुझे बेगाने शहर के इस अंजाने कमरे में, मां के स्नेहिल हाथ से एक गिलास दूध और पीना है। मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है। बीच में पड़ी चारपाई थोड़ी खिसका दो, मुझे पिताजी की गेंद पर एक रन और बनाना है। सब को बता दो गली का राजा आ रहा है, क्योंकि मुझे परेशान करने वालों को मारने मेरा बड़ा भाई आ रहा है। धोनी के चौके छक्के पर दोस्तों के साथ सीटी बजाना है मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है। कड़वाहट के दौर में मिठास उस खोए हुए मिठास को पाना है दादा जी की पीठ पर लद कर एक बार फिर चीनी की बोरी बनना है। भैया की डांट दादी की झिड़की का शरबत पीना है मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है। इस अँधेरे उदास कमरे में यूँ ही घुट घुट के जब मरना है लेकिन पहले मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है। गली छूटी शहर छूटा बस यादों का खिलौना है मुझे मेरा बचपन दोबारा जीना है। मौत को दो पल और टाल दो, मुझे मेरा बचपन एक बार और जीना है। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. हर्षा त्रिवेदी की तीन कविताएँ प्रेमा झा की कविता – माँ रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – सपने कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.