होम कविता ज़हीर अली सिद्दीकी की कविता – ख़ुदा को मार रहा हूँ कविता ज़हीर अली सिद्दीकी की कविता – ख़ुदा को मार रहा हूँ द्वारा ज़हीर अली सिद्दीकी - June 27, 2021 128 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet अस्तित्व बचाने को धुंध निहार रहा हूँ ख़ुद को नही ख़ुदा को मार रहा हूँ ऊँचाई की चाह में सीढ़ी बना रहा हूँ गिरने के डर से बिन दर्द कराह रहा हूँ… माला की चाह में मोती जुटा रहा हूँ डूबने के डर से नौका चला रहा हूँ… पानी की चाह में कुआँ खोद रहा हूँ प्यासे की राह से पानी हटा रहा हूँ… कर्मों को तौलने तराजू टटोल रहा हूँ गुनाहों का मोलकर सस्ते में बेच रहा हूँ… नाव में छेद से पानी को रोक रहा हूँ डूबने से बचने नदी में ही कूद रहा हूँ… लहरों से लड़ने हुंकार भरता हूँ इसकी विकरालता से मन को मोड़ता हूँ… संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं लता तेजेश्वर ‘रेणुका’ की कविता – समुद्री उफान अमित ‘अनहद’ की कविताएँ हरदीप सबरवाल की कविताएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.