होम कविता मनीष श्रीवास्तव ‘बादल’ के दोहे कविता मनीष श्रीवास्तव ‘बादल’ के दोहे द्वारा मनीष श्रीवास्तव बादल - October 18, 2020 182 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet भाव रहें ज़िंदा सदा, देते पानी खाद। भावों का हम कर रहे, शब्दों में अनुवाद।। जहां पनपता है नहीं, शक़ का छुआ-छूत। रिश्तों की होतीं वहीं, बुनियादें मजबूत।। अक्सर मारा वो गया, करता सच की बात। विष का प्याला आज भी, पीता है सुकरात।। नयनों में ही झांकिये, जब पढ़ना हो मौन। नयन सदा सच बोलते, इनसे सच्चा कौन।। तू-तू मैं-मैं हो गयी, “मैं” जब आया बीच। “हम” से होती है सुलह, “हम” का पौधा सींच।। पूनम की है चांदनी, कभी अमावस रात। इससे ज़्यादा कुछ नहीं, जीवन की औक़ात।। आनन से पढ़ लीजिये, उसके मन को आप। खुल के यूँ कहता नहीं, वो अपने संताप।। अरुणोदय की रश्मियाँ, निशा न पाई रोक। अतुल अरुण आभा करे, सकल जगत आलोक।। समय-समय पर कीजिये, समय-समय की बात। समय-समय की सीख से, समय सुधारें तात।। सोच-समझ कर बोलिये, रहे न कोई खेद। नाव डुबोने के लिये, एक बहुत है छेद।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं कृष्ण कांत पण्ड्या की कविता रश्मि पाण्डेय की कविता – अधूरे सपने तोषी अमृता के निश्छल, शर्मीले, भोले मुक्तक Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.