जीव विज्ञान के प्रतिष्ठित जर्नल ‘सेल’ में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार वैज्ञानिकों ने इस नए एंटीबायोटिक को ‘हेलिसिन’ नाम दिया है। इसका परीक्षण क्लॉस्ट्रिडीयम डिफ़िसिल, एसीनेटोबैक्टर बॉमनी, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस, स्यूडोमोनस एरुगिनोसा जैसे जीवाणुओं पर किया गया है। प्रयोगिक परीक्षण में आश्चर्यजनक रूप से यह पाया गया कि हेलिसिन इन सभी जीवाणुओं को मारने में पूर्णतः सफल है। एसीनेटोबैक्टर बॉमनी एक ऐसा जीवाणु है जिसपर ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो जाती हैं लेकिन हैलीसीन 24 घंटो में इस जीवाणु के संक्रमण को कम कर देता है।
साल 1928 में ब्रिटिश वैज्ञानिक अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने पेन्सिलीन नामक पहले एंटीबायोटिक की खोज करके संक्रामक रोगों से लड़ने और उन पर काबू पाने का रास्ता दिखाया था। आगे चल कर एंटीबायोटिक दवाएं संक्रामक रोगों के उपचार में रामबाण साबित हुईं।
हालांकि अब एक नई वास्तविकता यह सामने आ रही है कि ये जीवनरक्षक दवाएं अब बेअसर हो रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे ‘एंटी-माक्रोबियल रेजिस्टेंस’ का नाम दिया है। इसे आम बोलचाल की भाषा में ‘सुपरबग’ भी कहा जाता है। डबल्यूएचओ के मुताबिक, पिछले एक दशक के दौरान इसका इतना दुरुपयोग और बेजा इस्तेमाल हुआ है कि अब यह वरदान से श्राप में तब्दील होता जा रहा है।
एंटीबायोटिक दवाओं का बैक्टीरिया पर घटते असर को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिक एआई (आर्टिफिशल इंटेलिजेंस) की मदद से ऐसे प्लेटफॉर्म तैयार करने की कोशिश रहे हैं जिससे नए किस्म की दवाओं की खोज की जा सके और एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया का खात्मा किया जा सके।
हाल ही में वैज्ञानिक समुदाय को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। अमेरिका के मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस (एआई) के मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम की मदद से पहली बार एक नया और बेहद शक्तिशाली एंटीबायोटिक तैयार किया है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि इस एंटीबायोटिक से तमाम घातक बीमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को भी मारा जा सकता है। इसको लेकर दावे इस हद तक किए जा रहें हैं कि इस एंटीबायोटिक से उन सभी बैक्टीरिया का खात्मा किया जा सकता है जो सभी ज्ञात एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता (रेजिस्टेंस) हासिल कर चुके हैं।
जीव विज्ञान के प्रतिष्ठित जर्नल ‘सेल’ में प्रकाशित शोध पत्र के अनुसार वैज्ञानिकों ने इस नए एंटीबायोटिक को ‘हेलिसिन’ नाम दिया है। इसका परीक्षण क्लॉस्ट्रिडीयम डिफ़िसिल, एसीनेटोबैक्टर बॉमनी, माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस, स्यूडोमोनस एरुगिनोसा जैसे जीवाणुओं पर किया गया है। प्रयोगिक परीक्षण में आश्चर्यजनक रूप से यह पाया गया कि हेलिसिन इन सभी जीवाणुओं को मारने में पूर्णतः सफल है। एसीनेटोबैक्टर बॉमनी एक ऐसा जीवाणु है जिसपर ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाएं बेअसर साबित हो जाती हैं लेकिन हैलीसीन 24 घंटो में इस जीवाणु के संक्रमण को कम कर देता है।
पिछले अनुसंधानों में यह देखा गया है कि बैक्टीरिया ‘इशचेरिचिया कोलाई’ जिसे आम बोलचाल की भाषा में ‘ई-कोली’ भी कहा जाता है, ने एक से तीन दिनों के भीतर ही प्रचलित एंटीबायोटिक सिप्रोफ्लोक्सासिन के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करना शुरू कर दिया था और 30 दिनों के बाद सिप्रोफ्लोक्सासिन को बिल्कुल बेअसर कर दिया था। हेलिसिन ऐसा एंटीबायोटिक है जो ई-कोली जैसे बैक्टिरिया को भी आसानी से खत्म कर सकता है। बायोइंजीनियर और एमआईटी की रिसर्च टीम के जेम्स कॉलिन का कहना है कि फिलहाल चूहों पर हेलिसिन का इस्तेमाल किया गया है। जल्दी ही इंसानों पर भी इसका ट्रायल किया जाएगा।
बायोइंजीनियर और एमआईटी की रिसर्च टीम के जेम्स कॉलिन का कहना है कि एंटीबायोटिक का बैक्टीरिया पर असर घट रहा है। ऐसे में हम एआई की मदद से ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार कर रहे हैं जिससे नए किस्म की दवा की खोज की जाए। शोधकर्ताओं का कहना है कि इंसान के मुकाबले एआई की मदद से काम कम समय में और बेहतर किया जा सकता है। इससे चंद दिनों में 10 करोड़ से ज्यादा ऐसे रसायनों की जांच हो सकती है जो बैक्टीरिया खत्म कर सकते हैं।
एल्गोरिदम की मदद से नए एंटीबायोटिक कंपाउंड को पहचानना आसान हो जाता है। यह 30 दिन तक रेसिस्टेंस डेवलप नहीं होने देता है। वैज्ञानिक एआई का इस्तेमाल करके दवाओं की कीमत को कम करने के साथ ऐसा मार्केट भी तैयार कर रहे जहां से जटिल बीमारियों का इलाज भी मुमकिन हो सके।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस यौगिक को हमने डायबिटीज के इलाज के लिए विकसित किया था। हमने इसके जरिए कई तरह के संक्रमण का इलाज किया है। एमआईटी के वैज्ञानिकों ने एआई की मदद से 800 प्राकृतिक उत्पादों का एक सेट बनाया है। इसके अलावा उन्होंने 2500 अणुओं पर इसे प्रशिक्षित किया है। उन्होंने 6,000 कंपाउंडस् के बीच इसका परीक्षण किया। अंतत: एक ऐसे अणु की पहचान करने में कामयाबी मिली जो एंटीबायोटिक दवाओं से अलग एक रासायनिक संरचना थी : हेलिसिन!
पिछले कुछ दशकों में बहुत कम नए एंटीबायोटिक्स विकसित किए गए हैं और ये नए स्वीकृत एंटीबायोटिक्स में से अधिकतर मौजूदा दवाओं से थोड़े ही अलग हैं। इसके विपरीत जीवाणु कही तेजी से एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता को विकसित करने में कामयाब रहें हैं। ऐसे में हेलिसिन एक नई उम्मीद जगाता है। बहरहाल, वैज्ञानिक हेलिसिन नामक इस नए एंटीबायोटिक कंपाउंड के जरिए बेहतर एंटीबायोटिक्स दवाओं को विकसित करने में दिन-रात जुटे हुए हैं, साथ ही वे इस बात का भी ध्यान रख रहें हैं कि रोगी के पाचन तंत्र में मौजूद लाभकारी बैक्टीरिया को इन एंटीबायोटिक्स से कोई नुकसान न पहुंचे।