होम लघुकथा सपना चंद्रा की लघुकथा – कथनी-करनी लघुकथा सपना चंद्रा की लघुकथा – कथनी-करनी द्वारा सपना चंद्रा - March 20, 2022 51 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet “भाई मंजर!..ये देखो ,..कैसी कैसी खबर आ रही है.” “देखो अखबार में….कहते हुए उसने गजेन्द्र की ओर बढ़ा दी.” “हाँ यार!..ये भी बड़ी अजब बात हो रही है…..अब तो अखबार पढ़ने को ही जी नही चाहता.” “रोज-रोज कुछ न कुछ नया बखेड़ा खड़ा हो जाता है.” “हम एक घर चलाते -चलाते इतने परेशान है सभी की अलग अलग सोंच और फरमाईस ,तो सोंचों देश को अस्थिरता देने वाली बातों से किसका नुकसान है..?” छोड़ो रहने दो …कितना सोंच -सोंंचकर दिमाग खराब करें…हमारी दोस्ती तो दाँत कटी रोटी की तरह है. बस…..इसी तरह प्रेम बना रहना चाहिए. उन दोनों की बात को गौर से सुन रहा एक बच्चा दौड़ता हुआ उनके पास आया और एक टॉफी देते हुए कहा…. “अंकल…आपलोग सच में बहुत अच्छे हो जो दोस्त बनकर प्रेम से आपलोग रहते हो.” “ये लो टॉफी…मंजर की ओर देकर कहा…और इसमें से आधी खाकर आप इस अंकल को दे देना.” अब मंजर और गजेन्द्र दोनों एक -दूसरे को देखने लगे… क्या हुआ अंकल ….आप की दोस्ती और पक्की हो जाएगी. अरे नहीं बेटा…ऐसा नहीं होता है….एक का झूठा दूसरा नहीं खाता….इस बार गजेन्द्र ने उस बच्चे से कहा. मैं सब समझ गया अंकल….बात सिर्फ़ कहने के लिए है…तभी तो !! “कल मैं अपने दोस्त की टिफिन खा लिया और भूल से रख ली थी बैग में तो माँ ने बहुत डाँटा मुझे.” “हमेशा कहती है…सबसे प्रेम के साथ रहना चाहिए…. हमारी दादी तो कहती है…..रामजी ने जूठा खाया था वो भी एक छोटी जात की.प्रेम इतना प्रबल होता है.” “मुझे तो कहीं प्रेम नहीं दिखता….उल्टा मेरे प्रेम निभाने पर डाँट ही पड़ती है.” “तो क्या कहने की ही बात है सिर्फ़..? “ संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं प्रो. पुनीत बिसारिया की लघुकथाएँ डॉ. पद्मावती की लघुकथा – रेट जिज्ञासा सिंह की तीन लघुकथाएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.