1 – घर
डॉक्टर रमेश भान और उसका परिवार आज हवंन की तैयारी  में व्यस्त हैं । विस्थापन के तीस वर्षों के पश्चात उन्होंने सोसाइटी के नए फ्लैट में गृह-प्रवेश की पूजा रखी है । मेहमानों और दोस्तों का आना जारी है । 
“डॉक्टर भान बहुत बहुत बधाई “- उनके मित्र डॉक्टर संदीप पांडे सपरिवार वहाँ चहक रहे हैं । 
“थैंक यू संदीप जी , आपका स्वागत है “- डॉक्टर भान ने गले लग कर मित्र का अभिवादन किया । 
“भान साहब मैं खुश हूँ, आज आप अपने घर में प्रवेश कर रहे हैं – डॉक्टर संदीप फिर चहके । 
“संदीप जी मेरे लिए यह घर नहीं सिर्फ मकान है । घर छोड़े तो मुझे तीस वर्ष हो गए हैं लेकिन हमारा घर अभी भी कश्मीर में ही है और असली गृह-प्रवेश तो तभी होगा, जब हम फिर से उसे घर में जा बसेंगे “ – डॉक्टर भान ने भरी हुई आँखों से भावुक होते हुए अपने दिल की बात दोस्त से कही । 
“आमीन “ – डॉक्टर संदीप के मुँह से बरबस यह शब्द निकाल आया और सभी ने ताली बजा  कर उनकी मंशा का अनुमोदन किया । 
2 – प्रकृति और लेखक
नदी पर लिखो और पहाड़ पर लिखो, सागर पर लिखो और वृक्षों पर भी लिखो। लिखो कविता, कहानी या लेख लिखो।  लिखो और बस प्रकृति प्रेम पर लिखते जाओ । 
फिर तुम वृक्ष काटो, नदी में कूड़ा फेंको, पहाड़ों से पत्थर निकालो और प्रकृति को दूषित करो क्योंकि वह कुछ कह नहीं सकती । 
लेखक ने महसूस किया कि प्रकृति ने चीख कर उससे कहा –  “तुम लिखो, नदी पर गीत लिखो, जंगल पर कहानी लिखो और सागर पर उपन्यास” ।  
“ हाँ मैंने तुम पर असंख्य कविताएं , कहानियाँ , उपन्यास और लेख लिखे इसलिए अब तुम मेरी ऋणी हो “ – लेखक ने गर्वित हो कर कहा । 
“ मैं तुम्हारी ऋणी हो जाऊँगी लेखक, यदि तुम सिर्फ लिखोगे नहीं, मुझे महसूस करोगे , मेरी आहें सुनोगे और मुझे कलुषित न करने का प्रण भी लोगे “ – प्रकृति ने भीगे नयनों से अपने मन का दुख बयान किया “।


आशमा कौल
संपर्क – kaulashma@gmail.com

4 टिप्पणी

  1. दोनों ही लघु कथाएं अच्छी हैं। विस्थापन तकलीफ देता है। दुनिया के किसी भी कोने में बस, जो अपनी जड़ होती है वह भुलाए नहीं भूलती।
    प्रकृति के प्रति सचेत रहना बहुत जरूरी है।सिर्फ लिखने से काम नहीं चलेगा, जागरूक होना होगा।

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