मार्च का महीना है। परीक्षाओं की गहमागहमी से युक्त यह महीना क्लोजिंग का भी होता है।आम-जन की जिन्दगी भागम-भाग से युक्त होने से सुबह-सुबह की शीतल बयार की मीठी सिहरन को वे महसूस नहीं कर पाते हैं ।क्षितिज तक पंक्षियों के कलरव से आच्छादित मनोहारी सुबह फिर भी कुछ पल बैठने की किसे फुर्सत ।ऐसे ही भागम-भाग वाली जिन्दगी में शोभना भी शामिल है।उसका छोटा खुशी परिवार है वो उसका पति ,उसकी बडी बेटी पीहू(12 वर्ष) और 6वर्ष का बेटा शुभ।शोभना एक महाविद्यालय में प्रवक्ता पद पर शोभायमान है।
एक दिन कॉलेज पहुंचने पर उसे पता चला कि किसी दूसरे  महाविद्यालय की समस्त परीक्षाओं को सुचारू रूप से कराने हेतु महाविद्यालय द्वारा ‘केंद्राध्यक्ष’ नियुक्त किया गया है। पत्र पढ़कर तो बहुत खुश हुई पर बच्चों और घर की जिम्मेदारियों को सोचते ही बहुत परेशान भी हो गयी।दोनों जिम्मेदारियों को वह एक साथ कैसे निभा पायेगी  क्योंकि सुबह प्रथम पाली की परीक्षा 7:30 से 10:30 बजे और द्वितीय पाली की परीक्षा दो से पांच तक होती है। जाहिर सी बात है कि  सुबह जल्दी निकलना पड़ेगा और शाम देर शाम आना पड़ेगा। वह दुविधा में पड़ गई ‘केंद्राअध्यक्ष’ की नियुक्ति पत्र को स्वीकारे या लौटा दे? वह घर आई और पतिदेव से सभी बाते बतायी ।
बड़ी पशोपेश में पड़ गई थी वह। अंततः उसने पतिदेव के राय- मशवरा से इस जिम्मेदारी को स्वीकार  कर लिया। उसने कुछ समय पहले से ही अपने   पहचान वालों से एक मेड के लिए  कह रखा था जो उसकी अनुपस्थिति में उसका घर,  बच्चों का अच्छी तरह से ख्याल रख सके पर अभी तक व्यवस्था नहीं हो पाई थी ।
आखिर परीक्षा का वह दिन भी आ गया जब उसे सुबह सुबह कालेज पहुंच जाना था। एक बड़ी जिम्मेदारी निभाने के लिए। जल्दी -जल्दी भोजन बना, कुछ रुखा- सूखा खाकर 6:30 बजते -बजते व कालेज पहुंच गई ।सभी ने उसका खूब स्वागत किया। सब कुछ देख समझकर कक्षाओं की निगरानी की। सीसीटीवी के समक्ष बैठकर वह कक्षाओं की  निगरानी करने लगी। शोभना को बच्चों की चिंता भी सता रही थी।
समय पर परीक्षा समाप्त हुई तो उसने घर पर फोन किया। पीहू बिटिया ने ही फोन उठाया। उसने बताया कि बगल वाली दादी जी  किसी को लेकर आयीं  थीं  पर आप नहीं थीं  तो शाम को आने को बोल कर चली गई हैं ।इतना सुनते ही शोभना को मानो कोई खजाना मिल गया। वह बहुत खुश हुई। उसने रुद्र को फोन पर सारी बातें बता दी। रूद्र ने उससे कहा कि वह नौकरानी जितना भी पैसा मांगे रख लेना। शोभना भी  इस समय यही सोच रही थी।
दोनों पारियों की परीक्षाओं की समाप्ति पर  कापियों का बंडल जमा करवा शोभना घर पहुंची तो दोनों बच्चे दौड़कर उसके गले लग गए। बेटा तो ढेर सारी मिट्ठी (चुम्बन) देकर दिन भर की सारी बातें अपने आप ही बता डाला। पीहू चाय बना कर ले आई। तब तक बगल वाली आंटी जी एक काम वाली बाई को अपने साथ लेकर पहुंचीं। शोभना ने आन्टी को प्रणाम किया और सबको बैठने के लिए बोली।आन्टी तो सोफे पर बैठ गयी पर वह दाई अभी भी खडी ही थी। देखने से किसी अच्छी जाति की लग रही थी।
नाक-नक्स से  सुंदर, लंबी, गौर वर्ण की। कुल मिलाकर आकर्षक। उम्र यही कोई 70 के लगभग थी।  शोभना एक बेंत की कुर्सी की तरफ  उसे बैठने का इशारा की पर वह नहीं बैठी।उसके इस रवैये से शोभना आन्टी की तरफ देखी तो वह भी इशारे से शोभना को मना करने लगी कि उसे कुर्सी पर बैठने को मत कहो।तब तक वह दाई नीचे जमीन पर बैठ चुकी थी।उसका इस तरह फर्श पर बैठना शोभना को अच्छा नहीं लगा।
शोभना-“आप उस कुर्सी पर बैठ सकती हैं ।मुझे अच्छा लगेगा।उठिये और कुर्सी पर …. (बीच में ही रोकते हुये)
दाई-“नाही दीदी,हम भला आप लोगन के बराबर कइसे बइठ सकी ला ।पाप न लग जाई।”
(शोभना कुछ कहना चाही तभी आन्टी जी उसका हाथ दबाते हुये बोलीं )
आन्टी जी-“हां ,और नहीं तो क्या?जिसका जो स्थान है उसको वही शोभा  देता है।यही युगों-युगों से चला आ रहा है ।”
(शोभना कुछ बोल नहीं पायी पर दाई का नीचे बैठना उसे अच्छा नहीं लगा।इसलिए उठकर रसोईघर में जलपान लेने चली गयी। आन्टी के विचारों से अवगत शोभना दाई के लिए अलग बरतन में चाय-पानी खुद ले आई और पीहू  आन्टी जी का चाय-पानी ले आई।)
आन्टी जी-“(धीरे से)इसका बरतन अलग है न?”
शोभना -“जी…”(जबकि उसके यहां इस तरह का अलग बरतन नहीं था।)
आन्टी जी-“अब यह काम ठीक की तुम।आगे से याद रखना ।ऐसे लोगों को सिर पर बैठाओगी तो बाद में पछताओगी ।अब काम की बात कर लो ।क्या काम करवाना है और कितना मेहनताना देना है??मेरी जिम्मेदारी थी इसे यहां लाना तो मैं ले आई।बाकी तुम जानों ।”
दाई को देखकर शोभना का मन न जाने क्यों द्रवित हो रहा था ?मन तो गवाही नहीं दे रहा था कि उससे काम करवाये पर उसकी मजबूरी कि ना भी नहीं कर सकती हैं ।उससे बोली शोभना-“क्या नाम है आपका?आप कहां रहती हो और क्या काम कर सकती हैं?”
(बार-बार पूछने पर जब वह अपना नाम नहीं बताई तो शोभना को कुछ अजीब लगा ।)
शोभना-“मैं  आपसे बार-बार नाम पूछ रही हूं और आप बता नहीं रही हैं  तो फिर कैसे बात आगे बढेगी?”नाम, पता सब बतायें तभी हम आपको काम पर रख पायेंगे वर्ना नहीं …”
दाई-“नमवा में का रक्खल बा दीदी? का करिहैं जान के?”
आन्टी जी-“नाम,गांव सब बता दो और बात जल्दी खतम करो ।मेरे पास बहुत काम है ,समझी ।फालतु क बहस कर रही है।”
दाई-“(दुखी होकर)बहुत जरूरी बा का ?”
शोभना-“हां, बिल्कुल जरूरी है।नहीं बतायेगीं तो हम काम पर नहीं रख पायेंगे ।बस।”
दाई-“अरे नाही दीदी !अइसन गजब ना करिहैं ।नउवा हमार तनी अइसन बा कि आप ना समझ पावल जाई।पूछत बाडी त बतावत हई ।असल नमवा”कोरमा”बा माई-बाऊ क रखल पर आप न हमे ‘गामा’ बुलावा जाइ। सब गामा ही जानत हउवै।
कोरमा केहू ना जानत।एग्गो बिनती बा दीदी कि कोरमा नउवा केहू के ना बतावल जाई और(हाथ जोड लेती है)”
(उसका इस तरह नाम बताना बडा ही गूढ लगा शोभना को ।उसकी उत्सुकता और बढ गयी दाई के विषय में जानने की।इस समय  पूछना उचित नहीं लगा।)
शोभना-“आप क्या काम जानती हो घर-गृहस्थी का?”
दाई-“सब जानत हई ।झाडू- पोछा,बरतन,कपडा-लत्ता क सफाई अउर खाना में दाल-रोटी भात-तरकारी सब बना लेइला दीदी। (हसकर)इहो पूछै वाली बात बा ? कउनो कमी ना रखब सेवा में …”
(शोभना को सुनकर तसल्ली हुई।)
शोभना-“पैसा कितना लेंगी?बतायें ।”
दाई-“जवन दे दीहल जाई ।”
शोभना-“तब भी आप बतायें कुछ।” (वह आन्टी जी को देखने लगी।)
आन्टी जी-“हमको मत देखो।मैं कुछ नहीं जानती ।तुम्हें पैसा चाहिए और वहू को तुम।”
शोभना दाई से वर्तमान समय की अपनी समस्त परेशानी बता देती है।
शोभना-“इसीलिए मैं आपको रखना चाहती हूं ।घर की समस्त जिम्मेदारियों के साथ-साथ बच्चों का भी खयाल रखना जरूरी है ।”
दाई-“हां, हां काहे ना दीदी आप आराम से जाईल जाई हम बचवन के भी बढियां से देख लेब।”
शोभना-“….तो आप कितना पैसा लेंगी?”
गामा-“पइसा क त बहुत जरूरत बा दीदी पर आप दस हजार दे दीहल जाई ।”
(सुनते ही शोभना अवाक )
शोभना-“इतना ज्यादा??कुछ कम बताइये।”
आन्टी जी-“ऐसा है वहू!न तुम्हारा और न गामा का ।मेरी राय से आठ हजार ठीक ही रही।वैसे तुम जो ठीक समझो….”
बात पक्की हो गयी ।आन्टी जी चली गयीं ।गामा को अपने घर की सारा काम समझाकर सुबह जल्दी आने को कह शोभना आराम करने लगी।गामा चली गयी।शोभना के सर से मानो कोई बडा बोझ उतर गया ।पीहू को बुलाकर घर और दाई की निगरानी रखने को बोल शोभना बाथरूम में चली गयी।बिटिया पीहू काफी समझदार है ।उसे भोजन बनाना भी आता है ।रूद्र और शोभना आधुनिक विचारों के  हैं ।उनकी पहली प्राथमिकता पीहू को पढा-लिखाकर जाॅब कराना है ,शादी बाद की बात।आज की सारी बात रूद्र को बता सबने भोजन किया और सो गये ।
दूसरे दिन शोभना बिना भोजन बनाये सिर्फ चाय पीकर ही कॉलेज चली गयी।जाने से पहले पीहू को फिर अच्छे से सजग कर के गयी। प्रथम पाली की परीक्षा समाप्ति के बाद उसने घर पर फोन मिलाया।फोन पीहू ही उठायी …
पीहू-“हैलो मम्मी “
शोभना-“हैलो बेटू! गामा आई थी?”
पीहू-“जी मम्मी आयीं तो थीं पर उन्हें खाना बनाना नहीं आता ।”
शोभना-“(हंसते हुये) तो आप बताओ उन्हें ।दूसरे के घर में जल्दी  समझ नहीं आता ।शुरूआत में बताना और समझाना ही पड़ता  है। मेरी बिटिया तो खूब बढियां से समझा सकती है ।अच्छा अब फोन रखती हूं, बाबू का भी ख्याल रखना।”
(उस दिन बडी परीक्षा थी। कापियों का बंडल सील करवाने और जमा करवाने में बहुत लेट हो गया ।रात्रि 08:30 बजे शोभना घर पहुंचीं ।रूद्र को देख उसे अच्छा लगा।आते ही धम्म् से बेड पर गिर पडी ।बातों बातों में पता चला की पीहू बिना भोजन बनवाये ही गामा को वापस भेज दी यह कहकर कि हम लोग ठण्डा भोजन नहीं करते ।सुनते ही शोभना उठकर बैठ गयी  और पीहू से क्रोधित होकर)
शोभना-“( क्रोध से तेज स्वर में,अमूमन ऐसा होता है नहीं)क्यों लौटाया तुमने??तुम खाना बनाओगी तो पढोगी कब???तुम्ही लोगों के लिए उसे रखा गया था और तुम लौटा दी बिना काम करवाए ।मैंने समझाया था ना कि उसे समझा दो फिर सब आ जाएगा।
पीहू-(रूआसा होकर)मम्मी उन्हें कुछ भी नहीं आता बनाने।मुझसे ही हर बार पूछ रही थी तो मैं जितना बताऊंगी उससे अच्छा बना लूंगी।
(शोभना उठकर वॉशरूम चली गयी।लौटी तो सबका भोजन लग चुका था।पनीर की भुजिया सब्जी और रोटी देख शोभना सब समझ गयी कि किसने क्या-क्या बनाया है?उसके आंसू निकलने को हुये ।रूद्र पनीर की टेस्टी भुजिया सब्ज़ी बना लेते हैं और पीहू रोटी ।
शोभना-(पीहू को गले लगाकर)बेटा तुम ही लोगों के लिए गामा को रखा गया है ।तुम कुछ करो मत बस उसे समझाओ ।वह एक दो दिन में समझ जाएगी।ठीक ।(माथा चूम लेती हैं प्यार से)।
रोज की तरह सभी ने भोजन समाप्त किया।सुबह अलार्म घड़ी ने शोभना और रूद्र को जगा दिया।आज शोभना नाश्ता बनाकर गयी ।रोज की भांति देर शाम शोभना घर लौटी।बच्चों ने लाड-लडाया।उसने भी सबको प्यार किया।चाय पीकर पीहू से गामा के विषय में पूछी तो पीहू ने बताया,,,)
पीहू–“मम्मी गामा आन्टी  आई थी।उन्हें सच में कुछ बनाने नहीं आता।अजीब सी मोटी रोटी बनाई थी।एक खालों तो पेट फुल।वह भी आधी पकी-आधी कच्ची। सब्जी जल गई और तेल भी बहुत था।मम्मा इनको कुछ भी बनाने नहीं आता।ऐसा खाने से हम लोग बीमार पड जाएंगे।इससे अच्छा तो मैं ही बना लूंगी।आप चिंता मत करिए। पैसा भी दीजिये और खाना भी अच्छा ना बने तो क्या फायदा???
(रसोईघर से लाकर सब दिखा दिया ।देखकर कुछ नहीं बोली शोभना ।रूद्र नहीं आये थे अभी ।थकान की वजह से लेट गयी शोभना।लेटते ही ऑख लग गयी।अचानक पैरों में गर्माहट महसूस हुई तो झट से उठ गयी।देखा तो गामा तेल गर्म कर उसके पैरों के तलवे में  लगा रही थी।झटके से पैर मोड ली और बोली,,, )
शोभना—अरेरेरेरे क्या कर रहीं हैं आप??आप बड़ी हैं हमसे।हम किसी से अपना पैर नहीं छुआते हैं,,,
(बार-बार मना करने पर भी गामा मानी नहीं और उसके पैरों की अच्छी मॉलिश की। मालिश से शोभना कि थकानदूर हो गयी थी।उसके पैरों में दर्द बहुत था ।पीहू भी कभी- कभार जबर्दस्ती मालिश करती थी।)
गामा–दीदी! बहिनी कहनी कि हम लोग गरम खाना खाइला।हमके  बनावे ना दिहनी है।एही लिए अब अइली है हम।का बनी बतावल जाय???
शोभना–रोटी-सब्जी बना लीजिये।
(खाना बनाकर )
गामा–दीदी!खाना बन गवा।सबके खिला देई?
शोभना-“ठीक है ।आप खा लीजिए,  हम लोग बाद में खा लेंगे ।
गामा बिना भोजन किये ही चली गयी।बाद में शोभना रसोई में गयी तो खाना देखकर उसकी भूख मिट गयी।फिर भी सबकी थाली लगाई ।रोटी हाथ में उठाकर रूद्र को मानों रोना आ गया।पापा को देखकर पीहू मम्मी से बोली
पीहू-“(हाथ में अधपकी मोटी रोटी उठाकर )देख लीजिए मम्मी!पापा भी उदास हो गये हैं ऐसी रोटी देखकर।आप दोनों थक कर घर आइये और भोजन भी ढंग का न मिल पाये तो क्या फायदा?इससे अच्छा तो मैं ही बना लूंगी ।आप उनकों मना कर दीजिए ।”
पीहू की बात सुनकर दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। अनमने मन से आधा अधूरा खाकर बाकी बचा खाना सब ने रख दिया। दूसरे दिन रविवार था। सभी देर तक सोए। गामा का इंतजार करती शोभना चाय पी रही थी। गामा आई तो उसे भी चाय दी। उसके साथ लगकर शोभना ने  घर की अच्छे से साफ सफाई करवाई। जब गामा बर्तन धुलने लगी तो वह भी नहाने चली गई। आने पर गामा के साथ मिलकर और उसे सब कुछ समझाते हुए भोजन बनवाई। आज नाश्ता और भोजन अच्छा बना।  सारा काम  निपटा कर गामा शोभना के साथ बैठक में हमेशा की तरह  नीचे फर्श पर ही बैठी।उसके हाव-भाव से लग रहा था कि वह  कुछ बात करना चाह रही है।शोभना  भी  आज सब कुछ स्पष्ट कर लेना चाहती थी क्योंकि उसे खाना बनाने नहीं आता यह जान चुकी थी। शोभना ने सोचा कि उससे  घर के सारे काम करवा लेगी और वो खुद खाना बनाकर कालेज  जाएगी ।थोड़ी बहुत साधारण सी बातें ही हुईं । शाम को जल्दी आने को कह  गामा चली गई। शाम को वह जल्दी आई ।शोभना के  पास बैठी।पीहू  मसालेदार  चाय बनाकर दे गयी ।चाय  पीते-पीते  शोभना ने बात शुरू की
शोभना-“आपको तो खाना बनाने आता ही नहीं। घर की साफ सफाई तो ठीक है। अतः आप घर और कपड़ों तथा बर्तन कि सफाई कर दिया कीजिए ।खाना हम बना लेंगे।”
(शोभना को लगा था कि वह यह सुनकर घबराएगी पर ऐसा नहीं हुआ।वह  शांत भाव से बैठी चाय पी और बोली)
गामा-” बात इ हव  दीदी! कि बिटिया ,पतोहू वाली रहली हम। यहीं से 20 साल होइ गया रोटी पकउले।
अदतियै  छूट गयल मोर।बिपतियै अइसन परल कि अब सब करे के परत बा।  कुछ पैसा खातिर अउर पेट भरे खातिर दूसरे के घरे काम करें के पड़त बा  हमका। बतावल जाइ त हम सब सीख लेब  और नीक- नीक बनाइब।”
(शोभना शान्त सुनती रही ।जिज्ञासा बस इस बात की थी कि आखिर क्या परेशानी है गामा को? सही मायने में दुखी लोगों की हर सम्भव मदद करती रहती है शोभना ।इसीलिए वह इसकी भी परेशानी जानना चाहती है।)
शोभना-“क्या परेशानी है आपको? मेरे पास इतना समय नहीं कि मैं आपको सीखाऊं ।ऐसा करिये कि घर का सारा काम आप देख लीजिए और मैं खाना बना लूंगी ।”
गामा-“(लगभग रोते हुये)नाही दीदी!हमका निकाली मत।हमका पइसा क बड जरूरत बा ।हम,हम हरदम सब बना लेइब।तीन ठो छोट गो लइका हऊवैं हमारा भरोसे ।उनही के खातिर इ उमरिया में  खटत हई दीदी ।”
शोभना-“मैं आपको हटा नहीं रही हूं  बस खाना मैं बना लूंगी ।बाकी काम आप देख लीजियेगा ।आपको ऐतराज न हो तो हमें विस्तार से सब कुछ बताइये।शायद हम कुछ मदद कर सकें ।”
गामा-“(अचरा से ऑसू पोछते हुये)बडी दुख भरी जीनगी बा मोर।मोर दुगो वियाह भवा रहा पर दुनो साथ छोड सरगे गइनै अउर हम नरक भोगत बाटी। “
शोभना-(आश्चर्य से)”दो विवाह हुआ और दोनों नहीं रहे???क्या हुआ था??”
गामा-“पहिला मरद के कुछ ना भयल रहल दीदी।निबटान खातिर खेते गयल रहनै ।लउटनै त लोटा फेक के खटिया पे धडाम से गिर गइनै ।अउर जोर जोर से चिल्लाये लगनै।जब ले कछू समझ में आवत परान पखेरू उड गयल।वियहवा कइके माई बाप त भूला गइनै ।ससुर रहनै हमार।उहै हमार दूसर वियाह हमरे मर्जी के खिलाफ  कर दीहनैं ।हम दूसरे घरे आपन दुगो लरिका लेई के चल गइनी ।उनहू के एगो लरिका रहल ।वियहवा समझौता पर भयल रहल कि कुल लइकन क एक्कै साथे पालल जाइ।  राजी खुशी सब चलत रहल।हमार फूटल किस्मत कब तक अच्छा दिन दिखाई? लाला के खेते में हमार रमवा  गेंहू क बोझा बान्है खातिर रसरी बनावत रहनै। रसरी बनावत के तनी जोर से झटका लगवनै त रसरिया टूट गयल अउर उ धडाम से भूंइयां गिर गइनै। अउर जोर जोर से चिल्लाये लगनै ।हम सब हंसै लगली।उ उठ ना पउनै त सब उठा-पठा के हसपताले ले गयल ।डगटर बाबू कुछ दवाई देई के लौटा दीहनै ।इनके तब्बो आराम ना मिलल।तडपतै रहनै ।हमसे कहनै कि कउनो हड्डी टूट गयल बा ।हमका दूसरे डगडर के दिखावा नाही त हम ना बचब।केहू उनकर बतिया ना मनलस ये दीदी।होत भिनुसहरा परान पखेरू उड गयल।हमरे रमवा क त कब्भो कपरो ना पिरायल ये दीदी।पर गिरनै अइसन कि सथवै छूट गयल। दुइगो लरिका अ एग्गो लइकी के बडी परेशानी से बडा कइली हम।थोड गो जमीन रहल अ ठीक-ठीक घर रहल हमार।ससुर बूढ रहनै।हम तनी सुघर रहली ।इहै सुघरपन हमार दुश्मनों रहल।ससुर कब्भो मुंह ना ढके देहनै ।मेहरारू-मरद दुनो जन क काम  हम करै लगली।आपन इजतियै खातिर मुहफट बन गइली हो दीदी।मरद वाली गरियौ देवे लगली।तबै से ससुर हमार ‘गामा ‘कहें लगनै त गांव-जवारके लोग भी हमके गामा बुलावै लगनै ।दउवो के हमार खुशी ढेर दिन बरदास्त ना भइल।बचवन बड हो गइनै ।परानी-बच्चन वाला हो गइनै ।एक दिन लरिका कुल काम पे जात रहनै।गाडी से एक्सीडेंट हो गयल।केहू ना बचल।(हिचकी बंध गयी उसे।आंसू पोछ फिर बोली) आपके बहिनी जइसन पोती बा अउर बाबू जइसन पोता बा।लइकिया अपने घर खुश बा। अपने घर से चोरी-चोरी मदद कर देवेले ।ओकर मरद तनी अक्खड़ बा एही खातिर ।”
(अपनी दुखद कहानी बता गामा चुप हो गयी ।एक छोटे बच्चे की भांति  शोभना  सब सुन रही थी । उसकी तंद्रा टूटी। रात गम्हरा गई थी। वह उठी और गामा के लिए अपनी कुछ साड़ियां और बच्चों के लिए अच्छे-अच्छे कपड़े ले आयी । गामा को दे दी। साथ में मिठाई नमकीन बिस्कुट इत्यादि खाने की और भी सामग्री दे दी।गामा सहर्ष ले ली।
गामा-“दीदी !का बनी ? जल्दी बतावल जाय।बात करत-करत अन्हरिया हो गइल।बचवन जोहत होइहै ।”
शोभना-“आप जाइये, हम बना लेंगे ।बच्चे परेशान होंगे ।”
वह चली गयी।उसकी दुखद कहानी सुनकर शोभना का मन बोझिल हो गया था ।वह अनमने मन से रसोई मे गयी। रूद्र आये तो सब बतायी।दूसरे दिन शोभना नाश्ता बना कालेज चली गयी।एक ही पाली में परीक्षा थी ।घर जल्दी आ गयी वह।गामा मिली।
गामा-“नमस्ते दीदी!आज बहिनी बतावत रहनी कि मम्मी जल्दी अइहै ।यही लिए हम अगोरत रहली ।”
शोभना-“हां, आज सुबह ही परीक्षा थी इसलिए ।”
गामा-“दीदी! हम तनी आज देरी से आइब।हमका हस्पताले जायेके बा।”
शोभना -“क्यों?”
गामा-” सिटी करावै के बा न…”
शोभना-“सिटी ??
गामा-“ऊ एक बार हम गिर गयल रहली त कपारे में घाव लग गयल रहल ।ओही क दवाई करत बाडी हम ।”
शोभना-“ओह,अच्छा, सिटिस्कैन कराना है?”
गामा-“हां, हां  उहवै “
शोभना-“ठीक है ।कल आइयेगा और हमको बता दीजियेगा कि रिपोर्ट में क्या निकला ??”
गामा चली गयीं ।दूसरे दिन शाम को गामा से शोभना की बात हुई ।पूछने पर मालूम हुआ कि उसके सिर में ट्यूमर की शिकायत है ।अभी शुरूआत है ठीक हो सकता है ऑपरेशन से पर खतरा ज्यादा है ।जान भी जा सकती है ।सुनकर शोभना को धक्का लगा ।
गामा-“(रोते हुए) हमहूं के कुछ हो जाई त बचवन क का होई??
शोभना-” कुछ नहीं होगा आपको।आप पहले दवा कीजिये ।इतना अस्वस्थ है और काम कर रहीं हैं  ।आपको तो आराम की जरूरत है ।”
गामा-“काम ना करब त पेट कइसे भरी,दवाई कइसे होई?हमका पी जी आई भेजे हऊवैं डगडर बाबू।पर दीदी हमके काम से निकालल ना जाई।हम ठीक होईके आइब त कुल काम करब।”
शोभना-” हम आपको काम से निकाल नहीं रहे हैं। बस आप को समझा रहे हैं कि आप पहले दवा कराएं ।आप अपना मोबाइल नंबर हमें दीजिए। हम आपका हाल-चाल मालूम करते रहेंगे । गामा का नंबर ले ₹5000 देकर उसे  भेज देती हैं। दूसरे दिन शोभना के  कालेज जाने से पहले गामा आ जाती है और पैर छूने लगती है ।शोभना पीछे हटकर उसे उठाने  लगी ।उसने बताया कि आज वह लखनऊ जा रही है। वह इसलिए आपका आशीर्वाद लेने आयी  थी। बच्चों को दूर के एक रिश्तेदार के यहां पहुंचा दी है। उसके कुछ जान पहचान वाले साथ जा रहे हैं। शोभना का बस चलता तो अभी चली जाती उसके साथ पर इस समय संभव नहीं था। गामा चली गई अपने पीछे शोभना  को गमगीन कर के। कालेज में भी और घर आने पर भी उसने गामा का समाचार जाना ।लखनऊ पहुचने पर उसे  भर्ती कर लिए थे डाक्टर।ब्लड चढ़ाया जा रहा था। चार रोज बाद ऑपरेशन था ।सोमवार से गामा के लिए वह  प्रार्थना करने लगी। 3 दिन तो लगातार संपर्क बना रहा पर चौथे दिन बार-बार रिंग बजती रही पर किसी ने फोन नहीं उठाया। शोभना प्रत्येक दिन फोन मिलाती रही पर उसकी कोई खबर नहीं मिल पाती। उसका दिल बैठा जा रहा था। परीक्षा भी समाप्त हो गई। गर्मी की छुट्टियां शुरू हो गई। आज भी गामा की खबर के लिए तड़प रही है शोभना । जानना चाहती है, मिलना चाहती है उससे या यूं कहें कि भर अंकवार  जार- जार रोना चाहती है वह।
शोभना का  इंतजार आज भी जारी है. ……..

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