यहां सो रहा है वह व्यक्ति जिसका नाम पानी पर लिखा था…
Here lies he, whoose name was writ in waters…
(अपनी समाधि के पत्थर पर जॉन किट्स द्वारा खुद का लिखा मृत्यु आलेख)
हादसा:
खुल जा सिम सिम          
         राजधानी से तकरीबन दो सौ किलोमीटर दूर के एक कस्बाई गांव में एकदम औचक घटे दर्दनाक हादसे की खबर ने पंख फड़फड़ाते हुए दौड़ते हांफते राजधानी के टीवी न्यूज चैनलों के लकदक ए सी दफ्तरों में दस्तक दी तो चैनल सुप्रीमों के कान खरगोश के कान की तरह खड़े हो गए और आंखों की पुतलियां अजीब सी खुशी से दीप्त हो उठीं।
             ‘अभी अभी’ चैनल का शानदार आफिस ! एमडी दमानी साहब का करीने से सजा बड़ा सा कक्ष ! बायीं दीवार पर टीवी के छः मॉनिटर ! छिपकलियों से चिपके ! 
             दमानी साहब एक बड़े स्पॉन्सर से भावी कॉन्ट्रैक्ट को लेकर गंभीर चर्चा में मशगूल हैं कि इण्टरकॉम किंकिया उठता है। किंचित विरक्ति के भाव से ही दमानी साहब रिसीवर उठाते हैं, पर उधर से संबाद कान में टपकते ही कुर्सी पर उछल ही तो पड़ते हैं -‘ क्या..?’
             उछलने के क्रम में देहयष्टि पर चढ़ी चर्बी की कई कई थेगलियों की दरारों में थिरकन फूटती है जो कुछ देर तक तो वहीं घुमेरे घालती रहती है, फिर अधोमुख होकर ‘फुस्स’ की सिटी बजाती कक्ष के आकाश में विलीन हो जाती है। इस पूरी कवायद के दौरान ‘क्या..’ हर्ष और आश्चर्य के मिश्रित बघार से चटपटा होकर रबर की तरह लंबा खिंच जाता है।
             ‘हां सर..’ इण्टरकॉम पर मैनेजिंग एडिटर तिवाड़ी जी हैं -‘हादसे के प्राइमरी वीडियो फुटेज आ भी गए हैं और ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टी के साथ उन्हें बार बार आवृत्ति करते हुए दिखाना भी शुरू कर दिया है। जरा मॉनिटर की ओर नजर इनायत करें न..’, फिर एक खिलखिलाहट !
             दमानी साहब की नजरें त्वरित गति से मॉनिटरों की ओर उठ जाती हैं। चमचमाते स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टी और हर्फ उभरते हैं -‘ तीस फीट गहरे बोरवेल में गिरा पांच साल का मासूम बच्चा! सरकारी विभागों और नौकरशाह की लापरवाही की एक और क्रूर मिशाल !’
            ‘देखा सर..?’ तिवारीजी चहकते हैं।
           ‘अरे ..! कुछ साल पहले प्रिंस नाम के छोकरे के साथ घटे हादसे जैसा ही है क्या..?’
             ‘यस सर, बिल्कुल उस जैसा ही ! तीन घंटे बीत चुके हादसे को हुए। मीडिया वालों ने ढोल पीटते हुए हादसे को इस तरह फ़ोकस में ला दिया है कि बच्चे को गड्ढे से निकालने के लिए रेस्क्यू ऑपेरशन शुरू करने के अलावा और कोई चारा नही है सरकार के पास। बल्कि आपरेशन शुरू भी हो गया होगा अबतक। बच्चा ससुरा हरिजनों का जो है।’
                ‘यानी तिवारीजी, प्रिंस वाले हादसे की तर्ज पर ही नया गड्ढा खोदने की कवायद ! यानी कि सेना और पुलिस के जवानों की रेलपेल, रेस्क्यू उपकरणों की आमद, छोटे-बड़े नेताओं व अधिकारियों की आवाजाही ! यानी कि पूरे दो दिनों का निरंतर चलने वाला सनसनीपूर्ण अभियान ! अरे साहब, स्थानीय रिपोर्टरो के सहयोग से वहां के नवीनतम विजुअल्स प्रसारित करते रहें। आगे की स्ट्रेटेजी बस कुछ ही मिनटों में तैयार कर लेते हैं हम, ओ के ?’
               लाइन कट जाती है। आंखों के आगे अप्रत्याशित  धनलाभ के चित्र चिलकने लगते हैं। आनन-फानन चैनल के तीन महत्वपूर्ण अधिकारियों की मीटिंग होती है उनके कक्ष में।मार्केटिंग और ब्रांडिंग मैनेजर मिथिलेशजी, गेस्ट कोऑर्डिनेटर सलमान अंसारी एवम चैनल हेड सुनील गुप्त।
              ‘सुना आप लोगों ने ?’ दमानी साहब की आवाज खुशी से छलक रही है -‘रेस्क्यू ऑपरेशन में निश्चित रूप से पैरलल गड्ढा खोदने का निर्णय लिया जाएगा। दो दिनों के पहले खत्म नहीं होने वाला यह अभियान। पूरे दो दिन ! इमोशन और सेंटीमेंट वाले हमारे महान देश के महान लोग सांस रोक कर इसका लाइव प्रसारण देखने मे जुट जायेंगें, हंह !’ उपले जैसे होंठों के बीच मुस्कुराते दमानी साहब मिथिलेशजी की ओर मुड़ जाते हैं और एक पहेली की गूगली उनकी ओर उछाल देते हैं -‘इसके क्या निहितार्थ हुए, मिथिलेशजी जरा बताइए तो..’
               ‘ऑफ कोर्स सर..टीआरपी तथा रेवेन्यू, दोनों ही फ्रंट पर हाई जम्प.. !’ 
                ‘जस्ट अमेजिंग !’ दमानी साहब उत्तेजना में मेज पर हथेली पटकते हैं -‘ अब दो काम तुरंत ! पहला..घटना स्थल के लिए ओ वी वैन और कैमरा टीम रवाना करें। टीम में अपने तेज तर्रार रिपोर्टर्स दें। पूरा कवरेज होना चाहिए। हर ओने कोने के जीवंत दृश्य ! भीड़ में शामिल लोगों के चेहरों के उतार चढ़ाव, खीझ, आक्रोश व गुस्सा..! सब कुछ कैमरे की जद में हो, ओ. के.? यहां स्टूडियो में भी ऐंकोरिंग  ऐसी कलात्मकता से करवाएं कि पब्लिक सिर्फ और सिर्फ ‘अभी अभी’ चैनल से ही चिपक कर रह जाए।’
               ‘बिल्कुल सर, सब कुछ वैसा ही हो रहा है। ओ वी वैन और कैमरा टीम रवाना हो चुकी है।’ सुनील गुप्त रिपोर्ट देते हैं -‘टीम के संग स्वप्निल और प्रियंकर को भेजा गया है। कुछ ही मिनटों में प्रसारण शुरू हो जाएगा। यहाँ न्यूज़ रूम में ऐंकोरिंग का जिम्मा शशांक और हेमंत संभालेंगे। दोनों ही लहजे में आरोह अवरोह का छौंक देकर एक सम्मोहन सा ही खड़ा कर देने में माहिर हैं।’
                ‘गेस्ट कोआर्डिनेशन को लेकर निश्चिंत रहें सर। मुझे अपनी जिम्मेदारी का खूब एहसास है। पैनल डिबेट के लिए चार चार लोगों के नाम भी तय कर लिए हैं।’ अंसारी भाई दमानी साहब को आश्वस्त करते हैं।
                ‘वेरी गुड फ्रेंड्स।’ फिर मि. दमानी मिथिलेशजी की ओर मुड़ जाते हैं -‘ नाऊ हरी अप मिथिलेशजी, इसके बाद आपका रोल बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लाइव प्रसारण की मार्केटिंग और ब्रांडिंग ! टॉप के बीस एमएनसी पेट्रोन्स और क्लाइंट्स के नाम सॉर्ट लिस्ट करे और उन्हें तुरंत आफिस में आने का न्यौता भेजें। राइट नाउ..!’
                 सारे अधिकारी अपने अपने काम में लग जाते हैं। नवीनतम उपकरणों के पूरे ताम झाम से लैस ‘अभी अभी’ की टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी है। वहां से लाइव विजुअल्स आने शुरू भी हो गए हैं। घटनास्थल पर स्थानीय प्रशासन के वरिष्ठ अफसरों  और सेना व पुलिस के जवानों की भीड़ है। घटनास्थल की दूर तक घेराबंदी कर दी गयी है। बड़े बड़े दैत्याकार ड्रिलर, डोजर , क्रेन एवमं अन्यान्य रेस्क्यू मशीनें लगातार पहुंच रहीं हैं। डॉक्टरों और सहायकों की चिंतातुर चहलकदमी तथा कारों, जीपों व एम्बुलेंसों की डरावनी सायरनों से पूरा परिदृश्य सहमा हुआ है। पूरी कवायद का सिर्फ एक ही मकसद है –  किसी भी सूरत में बच्चे को जीवित बचा लेना। कैमरे को क्रेन  के सहारे बोरवेल के भीतर दूर तक लटकाया जाता है। सिर्फ और सिर्फ सांय सांय करता भयावह अंधेरा ! अंधी और पतली सुरंग के भीतर किस जगह अटका हुआ है बच्चा, कुछ भी सुराग नहीं मिल पाता। रेस्क्यू टीम पुराने बोरवेल के समानांतर पास में ही नया गड्ढा खोदने की कवायद में जुट गई है। दूसरा कोई विकल्प नहीं। नए गड्ढे में उतर कर सुरंग काटते हुए पुराने बोरवेल से बच्चे को निकाला जाएगा। बैरिकेड के बाहर स्थानीय लोगों का रेला खड़ा है।
                 टिक-टिक टिक-टिक ! तीस मिनट का समय चुटकी बजाते निकल जाता है। ‘अभी-अभी भवन’ के बाहर देश के बड़े कॉर्पोरेट घरानों के विज्ञापन अधिकारियों की कारें आने लगती हैं। लकदक सूट-टाई में सजे, हाथों में चमगादड़ की तरह ब्रीफकेस झुलाए एक एक करके वे दमानी साहब के कक्ष की ओर बढ़ रहे हैं।
                 ‘लुक एट द मॉनीटर्स फ्रेंड्स.!’ औपचारिक अभिवादन के बाद दमानी साहब अधिकारियों का ध्यान दीवाल पर चिपके मॉनीटर्स की ओर खींचते हैं -‘यहाँ से थोड़ी दूर के एक हरिजन कस्बे में तीस फीट गहरे बोरवेल में एक बच्चा गिर गया है। उसको बचाने का काम युद्ध स्तर पर शुरू हो चुका है। कुछ साल पहले हुए प्रिंस वाले हादसे की याद तो होगी आप लोगों को। बस, उसी की तर्ज पर नया गड्ढा खोदा जाएगा।’
                   मॉनिटर पर घटनास्थल अपने पूरे दृष्यबन्दों के साथ उपस्थित है। मशीनें, अधिकारीगण, सेना के जवान, डॉक्टर्स, टेंट, एम्बुलेंस, जन सैलाब.. सब कुछ जीवंत ! दमानी साहब का चेहरा विजयोल्लास से खिला हुआ है -‘एक एक लम्हे के लाइव प्रसारण की ब्यवस्था की गई है। हर दस मिनट के प्रसारण के बाद पूरे पंद्रह मिनट का लंबा ब्रेक.. !’
               ‘वंडरफुल मि.दमानी !’  सारे अधिकारीगणों के होंठों पर मीठी मुस्कान चूजे की मानिंद चीं चीं करने लगती है। सांसें रोक कर दमानी साहब के मुखारबिंद पर नजरें गड़ाए हुए हैं वे।
              ‘बस, इस बार .. रेट कुछ अलग होंगें।’
             ‘अलग..?’ रेट अलग होने की बात पर ‘सेनेटरी पैड’ वाले मि. बाटलीवाला एकबारगी किंकिया उठते हैं -‘ पहेली नक्को दमानी साहेब। जो भी बोलने का, साफ बोलने का।’
              ‘ आपके रेट तो पहले ही ज्यादा हैं..’ एक और हल्का सा विरोध ! 
             ‘उफ मि. बाटलीवाला एन्ड मि. अग्रवाल.. आप लोग भी न खाली पीली..,’ दमानी साहब खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं -‘ सेंटीमेंट और इमोशन वाला अपुन का महान देश ! पांच साल के बच्चे का बोरवेल में गिर पड़ने का माने समझते हैं ? बोले तो ऑपेरशन का लाइव टेलीकास्ट शुरू होते ही पूरा देश, खास करके मिडिल क्लास और लोवर मिडिल क्लास का आपका कंज्यूमर्स ग्रुप सारा काम-धंधा छोड़ कर ‘अभी अभी’ चैनल से चिपक जाएगा। पल पल का कवरेज देखने को ! अपना प्रोडक्ट को इन लोगों के घर मे ठेलने का इससे अच्छा मौका और क्या हो सकता, आयँ ? एक तरफ आपलोग का अल्टीमेट कंज्यूमर! दूसरा तरफ आपका रंग-विरंगा प्रोडक्ट ! दोनों को जोड़ने वाला हमारा चैनल ! ऐसे में रेट अलग होना मांगता कि नईं ?’
              ‘ठीक है बब्बा, ठीक है ! अब रेट भी जल्दी से खोल दो न साईं !’ उत्तेजना संभाल नहीं रही उन लोगों से। कुछ पलों का सस्पेंसनुमा मौन ! दमानी साहब अधिकारियों के चेहरों का विहंगम दृष्टि से मुआयना करते हैं। फिर खिली खिली आवाज कक्ष में गूंज जाती है -‘ दस लाख प्रति दस सेकेंड..!’
              आगत अधिकारियों की आंखें विस्मय से फैल जाती हैं। यानी कि सामान्य दिनों के रेट की तुलना में एक दम डबल ! यह तो बहुत ज्यादा है। इस बार मोर्चा मिथिलेशजी संभालते हैं। अरे साहब..जब आमिर खान ‘सत्यमेव जयते’ जैसे लिजलिजे प्रोग्राम के लिए ये रेट वसूल सकता है तो .. ऐसे सेंसिटिव हादसे और रेस्क्यू ऑपेरशन की तो बात ही और है। पूरा देश सांस रोके देखेगा इसे। इसके अलावा हमारे चैनल की टीआरपी पर भी तो गौर फरमाएं। लाइव कवरेज और पैनल डिबेट के लिए हमें भी तो काफी मशक्कत करनी होगी। मिथिलेशजी आगतों को रेट के प्रति आश्वस्त करने में पूरा कौशल लगा देते हैं। स्नेक्स-कॉफ़ी का दौर चलता है और चुस्कियों और चटखारों के टुकड़े रुई के फाहों की मानिंद कक्ष के आकाश में उड़ने लगते हैं। पर रेट में कोई फेर बदल नहीं होता। ज्यादा सोच-विचार का समय भी तो नहीं। देखते देखते टाइम स्लॉट की छीना-झपटी शुरू हो जाती है। पूरा स्लॉट मिनटों में बुक हो जाता है। दमानी साहब की धड़कने उत्तेजना में बढ़ जाती हैं। ओह, इस छोटे से हादसे ने तो एक झटके में  करोड़ों का रेवेन्यू डाल दिया झोली में ! यानी खुल जा सिम सिम !
बहस दर बहस:          
       हादसे को पांच छः घंटे बीत गए हैं। घड़ी की सुईयां अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रहीं हैं। सेना और पुलिस के जवान बड़ी बड़ी दैत्याकार मशीनों को लेकर नया समानांतर गड्ढा खोदने में जुट गए हैं। डॉक्टरों की देख रेख में मूल बोरवेल के भीतर ऑक्सिजन एवमं तरल खाद्य की नलियां डाली जा रहीं हैं। कई कई हाइ रेंज के कैमरे भी नीचे लटकाए गए हैं, पर बच्चे का कोई भी सुराग अभी तक नहीं मिल पाया है।
            पूरे अभियान के लाइव विजुअल्स धाराप्रवाह ‘अभी अभी’ चैनल पर प्रसारित हो रहे हैं। स्टूडियो में इस समय पैनल डिबेट चल रहा है। एंकरिंग शशांक सम्भाले हुए हैं। हादसे को केंद्र करके अतिथियों से तीखे प्रश्न पूछे जा रहे हैं। तिलमिला देने वाली टिप्पणियों से माहौल गरमाया हुआ है।
            ‘सरकारी स्तरों पर लापरवाहियों तथा गैरजिम्मेदाराना हरकतों की बाढ़ आई हुई है इन दिनों। विभाग के लोग जरूरत पड़ने पर गड्ढे खोद तो देते हैं, फिर दायित्व के प्रति उदासीन होते हुए उन्हें बंद करना भूल जाते हैं। इस वक्त परिचर्चा में शामिल हैं मि. रमाकांत बनर्जी जो यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज के एचओडी हैं, मिसेज सुधा, आरटीआई कि जुझारू एक्टिविस्ट, तथा डॉ आशुतोष , शहर के जानेमाने आई सर्जन और सामाजिक कार्यकर्ता ! सबसे पहले मि. बनर्जी, आप इस मुद्दे पर क्या कहना चाहेंगे ?’ 
            ‘गड्ढों को न ढकने की लापरवाही मेरी नजर में एटेम्पट टु मर्डर से कम नही है.! ‘इस तरह की नृशंस उदासीनता की कोई माफी नहीं हो सकती। उन्हें कड़ा से कड़ा दंड मिलना ही चाहिए।’
           ‘डॉ आशुतोष, हम आपकी राय जानना चाहेंगे.।’
           ‘बनर्जी साहब से में पूरी तरह सहमत हूँ। पर यक्ष प्रश्न तो ये है कि उन्हें दंडित करेगा कौन ? ऐसे मौके पर सरकार मौन साध लेती है। पिछले दिनों बच्चियों पर रेप की जघन्य घटनाओं की बाढ़ सी आ गयी। जनता के बीच हाहाकार मच गया, पर प्रशासन मौन साधे रहा। किसी की कर्तव्यविमुखता पर मौन साधे रहना एक प्रकार से उसका समर्थन करना ही तो है। उसके बाद जब जन आक्रोश धैर्य खोकर भड़कने लगता है तो हमारे नेता और मंत्री नाकामियों को जस्टिफाई करने के लिए बेतुके और हास्यास्पद बयान देने लगते हैं।’
            ‘सुधाजी..’ शशांक सुधाजी की ओर मुखातिब होते हैं। सुधाजी की आवाज में तल्खी संश्लिष्ट हो जाती है -‘जी हां, बिल्कुल ठीक ! हास्यास्पद बयानों के बाद सरकारी स्तर पर छोटी सी नौटंकी होती है जिसमें एकाध छोटे अधिकारियों का तबादला करते हुए जनता को न्यायिक जांच का झुनझुना थमा दिया जाता है। उसके बाद सारे कर्तव्यों की इतिश्री ! बेफिक्री की नींद ! यही हमारी सरकार और ब्यवस्था का चरित्र हो गया है..।’ 
           ‘यहां मैं आप सबों को थोड़ी देर रोकना चाहूंगा। हमारे साथ वरिष्ठ संवाददाता मुग्धा जुड़ गयीं हैं जो संयोग से इस वक्त पीडब्लूडी मंत्री जायसवाल जी के साथ हैं। जी मुग्धा…’
           ‘जी शशांक, इस वक्त मैं मंत्री महोदय के साथ हूँ। सर, ऐसी जानलेवा लापरवाहियां अतीत में कई बार घट चुकी हैं। खुले व अनढके गड्ढों में गिर कर मासूमों की जान चली जाती है। प्रिंस वाला हादसा अभी भी लोगों के जेहन में ताजा है। विभाग की कार्यसंस्कृति में किसी भी तरह का बदलाव नजर नही आता..’
           ‘अरे भाई, ‘ पके टमाटर सा रक्ताभ और गोभी के फूल सरीखा खिला खिला चेहरा ! होंठों पर स्मित हास ! शिकनविहीन निश्चिंत भंगिमा ! बिंदास खनखनाती आवाज -‘ एक शेर याद आ रहा है इस मौके पर – और भी गम हैं जमाने मे मोहब्वत के सिवा..! इतने बड़े देश मे इस तरह की छोटी मोटी घटनाएं तो होती रहती हैं। हम इन छिटपुट चीजों को देखें कि विकास के काम मे ध्यान लगाएं, आप ही बताइए ? जनहित में जो बेशुमार योजनाएं चलाईं जा रहीं हैं, आप मीडियावाले उनके बारे में लोगों को जागरूक नहीं करते। बस छोटी छोटी बातों का बतंगड़ बनाने में लग जाते हैं, हंह !’ 
             ‘लेकिन सर, खुले अनढके बोरवेल में गिर जाने से एक परिवार का कुलदीपक बुझ जाने के करीब है। उस परिवार में रोना धोना मचा है, यह छोटी बात लग रही आपको ?’
             ‘मैंने ऐसा कब कहा..’ मंत्रीजी अचकचाकर पैंतरा बदल लेते हैं -‘आप मेरे व्यक्तव्य को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही हैं। सरकार के बस में जो भी विकल्प हैं, सब कर ही रही है। संबंधित अधिकारियों का तुरंत प्रभाव से तबादला कर दिया गया है। हादसे की जांच के लिए विभागीय  कमिटी बैठा दी गयी है। पीड़ित परिवार को पूरे पाँच लाख के मुवावजा का एलान भी कर दिया गया है। रेसक्यू कार्य युद्धस्तर पर चालू है। अब क्या फांसी पर चढ़ जाएं ?’ 
              मुग्धा से सम्पर्क टूट जाता है। शशांक पुनः स्टूडियो में बैठे अतिथियों से मुखातिब हो जाते हैं -‘ मंत्रीजी का बयान सुना आपने। सुधाजी, पहले आपकी प्रतिक्रिया..’
             ‘किस कदर सम्बेदनहीन बयान दिया है मंत्रीजी ने। मंत्रीजी के शेर के जबाब में एक शेर में भी कहना चाहूंगी- किसी की जान गई, किसी की अदा ठहरी.. ! इनके विभाग की गफलत से एक माँ की गोद उजड़ रही है और ये बात मंत्रीजी को मामूली लग रही है !’
             ‘अगर ऐसा ही हादसा खुद न खस्ता इनके परिवार के किसी बच्चे के साथ हुआ होता तो..?’ डॉ आशुतोष तेजी से हस्तक्षेप कर बैठते हैं -‘तो भी क्या ऐसा बयान देते ?’
              ‘विडंबना तो ये है कि घटना की जांच के बाद भविष्य में उस रिपोर्ट का कभी संज्ञान लिया ही नहीं जाता। पता नही रिपोर्ट किस धुंधलके में बिला जाती है।’
              ‘दरअसल ऐसी नाकामियां हर स्तर पर मौजूद हैं..’ मि. बनर्जी फनफनाते हैं -‘ नेताओं, मंत्रियों, नौकरशाहों और यहाँ तक कि हम बुद्धिजीवियों के स्तर पर भी ! अपनी नाकामियों को ढकने की ब्यवस्थित परिपाटी सी बन गयी है। एक अत्यंत खतरनाक प्रबृत्ति !’ 
              राजधानी से  वरिष्ठ संवाददाता अरविंद जुड़ जाते हैं स्टूडियो से।
             ‘हमारे विशेष संबाददाता अरविंद इस समय सचिवालय में हैं। जी अरविंद..’
            ‘जी शशांक, में इस वक्त गृह मंत्री के पास हूँ।’ मॉनिटर पर मंत्री महोदय को घेरे विभिन्न चैनलों के संबाददाताओ के विजुअल्स थिरकने लगते हैं।
             ‘सर, स्थानीय लोगों का कहना है कि खबर देने के बाद भी प्रशासनिक एवमं पुलिस स्तर पर कार्रवाही काफी देर से शुरू हुई..। उनका रवैया टालमटोल वाला रहा।’
            ‘अरे भाई..,’ चेहरे पर तनिक भी विचलन नहीं, लहजे में किंचित भी उत्तेजना नहीं !  मंत्री महोदय निर्विकार भाव से चेहरे पर बेहया मुस्कान सजा कर विलंबित लय में उवाचते हैं -‘प्रशासन या पुलिस कोई अलादीन का चिराग तो है नही कि बटन दबाया और घटनास्थसल पर हाजिर।’ मंत्री महोदय की चुटकी पर रिपोर्टरों की फौज हें हें कर उठती है -‘ हर चीज की संवैधानिक प्रक्रिया होती है। उन्हें पूरा करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है हमें।’
           ‘ भले ही इन प्रक्रिया की अष्टावक्री जाल में उलझ कर किसी की जान ही क्यों न चली जाय ?’ पत्रकारों की भीड़ में से एक ढीठ प्रश्न उछलता है तो मंत्रीजी टेढ़ी भृकुटि के साथ उस ओर गर्दन मोड़ते हैं -‘ अब इसमें हम क्या कर सकते हैं। कानून तो सबके लिए बराबर होता है।’
             संबाददाता से संपर्क विच्छिन्न हो जाता है। सुधाजी तमक उठती हैं -‘ क्या वाकई कानून सबके लिए बराबर होता है ? सदी का सबसे बड़ा जोक ..!’
             एक सम्मिलित ठहाका गूंज उठता है स्टूडियो में।
मस्त मस्त पार्टी :       
        मिथिलेशजी हड़बड़ाते कर से उतर कर फ्लैट की ओर बढ़ जाते हैं। चेहरा विजयोल्लास से दमक रहा है। इस औचक हादसे की मार्केटिंग के कार्य को बड़ी कुशलता से सलटा दिया उन्होंने और बॉस उनके कार्य से खूब प्रसन्न हैं।
             बड़े से ड्राइंग रूम का शानदार सज्जित हॉल ! सामने नक्काशीदार वॉल पैनल पर पचहत्तर सी.एम. वाला विशाल ‘हिप्पोपोटामॉसनुमा’ टीवी सेट रखा है। मॉनिटर पर ‘अभी अभी’ चैनल भरतनाट्यमी धमाल मचाये हुए है। घटनास्थल के एक एक दृश्य जीवंत थिरक रहे हैं। यत्र-तत्र बेतरतीब से तने टेंट ! अजीबोगरीब दैत्याकार मशीनें ! जवानों के टिड्डी दाल ! हाथों में कैमरा झुलाए गिद्ध दृष्टि से टीआरपी के टुकड़े तलाशते चैनलों के रिपोर्टरों की फौज ! पूरे परिदृश्य को अबूझ बृत्ताकार लक्ष्मण रेखा में बांधे तमाशबीनों का हाहाकार करता पारावार !
             स्टूडियो में इस वक्त एनकोरिंग का जिम्मा प्रियंकरजी के कंधों पर है।
            ‘कुछ श्युडो किस्म के बुद्धिजीवी हम मीडिया वालों पर आरोप लगाते हैं कि हमें सामाजिक सरोकार से कोई मतलब नहीं होता..वगैरह वगैरह।’ नाटकीय अंदाज में लहजे में आरोह-अवरोह का छौंक देते हुए प्रियंकर मुस्कुराते हैं -‘ऐसी बात मिथ्या है। ‘अभी अभी’ चैनल की पहल से ही यह दर्दनाक हादसा राष्टीय स्तर पर फोकस में आ सका। हम वहां चल रहे ऑपेरशन के हर पल को आप तक पहुंचाने के लिए कटिबद्ध हैं। लीजिए.. हमारे साथ कामेश्वर जुड़ गए हैं जो उस मनहूस बोरवेल के बिल्कुल समीप खड़े हैं। जी कामेश्वर, थोड़ी देर पहले आपने कहा था कि बोरवेल की अतल गहराई में गिरे बच्चे की अंगुलियां कैमरे की जद में आईं हैं। कैमरे को और नीचे जाने दें न। और और नीचे..! हमारे दर्शक बच्चे के दूसरे अंगों को भी देखने को एक्जाइटेड हैं।’
               ‘जी प्रियंकर, आपने ठीक कहा, थोड़ी देर पहले बच्चे की अंगुलियां कैमरे की जद में आईं थीं, हालांकि कहना मुश्किल है कि अंगुलियां पैर की थीं या हाथ की। हम फिर से उस दृश्य को कैमरे में पकड़ने की कोशिश कर रहे हैं..।’
               ‘जी कामेश्वर, हमें उस पल का इंतजार रहेगा। आप कोशिश जारी रखें। तब तक हम ले रहे हैं एक छोटा सा ब्रेक। जल्द ही लौटेंगे.. बच्चे की अंगुलियों के रोमांचक विजुअल्स के साथ… ।’
               मॉनिटर पर विज्ञापनों की झड़ी लग जाती है। हॉल में खासी भीड़ जुटी हुई है। मिथिलेशजी के तीन बच्चे ! तीनों ही कॉलेज स्टूडेंट ! उनके दोस्त ! मिसेज शैल की पड़ोसने और सहेलियां ! पचहत्तर सेंटीमीटर वाले बड़े से मॉनिटर पर देखने का मजा ही कुछ और है।
              ‘वाव..एक दम किट्टी पार्टी का सा सीन !’ मिथिलेशजी की गर्वोन्नत आंखें खुशी से दमक रही हैं। सामने सेंटर टेबल पर एलाइवा मल्टीग्रेन बेक्ड, बोर्न बॉन केफेसिनो, स्नीकर्स, डार्क फेंटेसी चोको फिल्स, कुरकुरे आदि के पैकेटों के ढेर लगे हुए हैं। मिसेज शैल हाथों में बड़ी सी ट्रे लिए हॉल में प्रवेश करती हैं। ट्रे में कट ग्लास की कटोरियाँ ! कटोरियों में गाजर का हलवा ! हलवे की मादक खुशबू हॉल के आकाश में फैल जाती है।
              ‘वंडरफुल..! कमाल ही कर दिया तुमने शैल ! सारे दिन मॉनिटर पर धूल-धक्कड़, मशीनों की चिल्लपों, जवानों की भाग दौड़, डॉक्टरों-नर्सों की अफरा-तफरी देखते देखते उबकाई आने लगी थी। लग रहा था, वहाँ की धूल मॉनिटर में से रिस कर नथुनों में घुसी जा रही है। ऐसे में गाजर का हलवा ! वाह, मोगाम्बो खुश हुआ..!’
             एक झन्नाटेदार कहकहा फूट जाता है। धुंआधार विज्ञापनों का दस मिनट का लंबा दौर ! दीपिका, करीना, सोनाक्षी, विपाशा आदि अनाम सुंदरियों के अनाबृत्त बदन के उद्दीपक आरोह-अवरोह के साथ एकाकार होते न जाने किन किन सौंदर्य प्रसाधनों के चुंधियाते विजुअल्स, जिनका समापन होता है ‘सेट वेट’ और ‘वी जॉन मस्ती’ के सनसनाते ‘खुले’ स्प्रे की बौछार से। कक्ष में फैली एकरसता कपूर की तरह उड़ जाती है और वहाँ बैठे सारे लोग तरोताजा हो उठते हैं। तभी बेटे का मोबाईल बज उठता है -‘अरे यार, कहाँ है तू ? इस सेमेस्टर की अत्यंत महत्वपूर्ण क्लास है आज। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर का लेक्चर ! हरी अप, कम ऑन !’ 
           ‘सॉरी.. टीवी पर इतने थ्रिलिंग टेलीकास्ट को छोड़ कर आने का मन नहीं हो रहा यार !’ फोन काट कर बेटा स्नीकर्स का पैकेट उठा लेता है -‘पापा.. अपने रिपोर्टर्स से कहिए न.. बोरवेल में गिरे बच्चे की अंगुलियां जल्द से जल्द दिखाये।ओह..कितना हॉरिबुल सीन होगा !’
           ‘बस बेटे, थोड़ी देर में ही बोरवेल के भीतर के विजुअल्स आने शुरू ही जायेंगे। तब तक तुम हलवा खाओ न..।’ 
ऑपेरशन ब्लैकहोल:
       ‘अभी अभी’ के स्टूडियो का न्यूज रूम ! बुलंद आवाज में नाटकीयता का छौंक डालते हुए इस समय हेमंत उलझे हुए हैं एनकरिंग से। पैनल डिबेट के साथ बॉक्स में घटनास्थल के लाइव दृश्य भी। अपनी वाकपटुता से दर्शकों को रोमांच से भर देने में हेमंत का कोई सानी नहीं।
          पुराने गड्ढे के समानांतर नया गड्ढा खोदा जा चुका है। अब जल्द ही रेस्क्यू टीम के इंजीनीयर नए गड्ढे में उतरेंगे और नीचे नीचे क्रॉस सुरंग काटते हुए पुराने बोरवेल में प्रवेश करके बच्चे को बचाने का प्रयास करेंगें।
          मॉनिटर पर घटनास्थल का सीधा प्रसारण जारी है। वही माटी के टीले..उड़ती धूल..मशीनों की गड़गड़ाहटें..एम्बुलेंसों की सायरनें ! पूरे परिदृश्य पर भयावह सन्नाटे का कफननुमा चंदोवा ! कैमरा मुस्तैदी से जूम करता बारीक से बारीक ब्यौरे प्रेषित करने में लगे हैं।तभी घटनास्थल से अरविंद स्टूडियो से जुड़ जाते हैं।
         ‘जी अरविंद..,’ हेमंत उत्साहित होते हुए उनसे पूछते हैं -‘ आप बच्चे के पिता से हमारे दर्शकों को कब मिलवा रहे हैं ? दर्शक उन्हें देखने को बेहद उत्सुक हैं..!’
         ‘जी हेमंत, हम अभी उन्हीं के घर के मुख्य द्वार पर खड़े हैं। बच्चे के पिता स्थानीय बी. आर. डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर हैं – डॉ चेतराम जाटव.!’
           कैमरा घर के आसपास के दृश्यों पर रेंग रहा है। पुरानी शैली का सिर्फ निचले तल का मकान ! मकान के बाहर पुलिस के सिपाहियों की सुरक्षा गारद ! कैमरा मुख्य दरवाजे से अंदर की ओर प्रवेश करता है। दरवाजे से सटा दसेक फीट लंबा गलियारा ! गलियारा पार करते ही चौक जैसा खुला दालान ! दालान के तीन ओर कमरे ! ऊंची जगत वाला कुआँ ! कुएं के पास कमर तक ऊंची बेदी पर तुलसी का विरवा ! खूब हरा भरा ! कुछ आगे खूंटे से बंधी गाय ! अपने नन्हें ‘भायले’ ( मित्र ) के बिछोह में उदास और शांत ! बल्ब की पीली मरियली रोशनी में सारा परिदृश्य पीलियाग्रस्त सा पीला पीला नजर आ रहा है।
            मिथिलेशजी के ड्राइंग रूम में बैठे सारे लोग सांस रोके प्रोफेसर के कक्ष में प्रवेश की बाट जोह रहे हैं। एक एक पल उत्तेजना में भारी हुआ जा रहा है। च..च..! इतने भयानक हादसे के बाद कैसा महसूस कर रहे होंगे वे ? रोमांच और सुरसुरी के अतिरेक में होंठ स्नीकर्स और कुरकुरों को तेजी से चुभलाने लगते हैं। ये संबाददाता भी न..! रूम में प्रवेश क्यों नहीं कर रहा ? कब तक दालान में ही भटकता रहेगा ? 
           और ज्जा..! तभी मॉनिटर पर हेमंत की खनखनाती घोषणा उभरती है -‘ अब वक्त हो गया है एक छोटे से ब्रेक का। हम यूं गए और लौट कर यूं आये। हमारे साथ बने रहें..!’ 
            मानो किसी नायाब और मजेदार दृश्य से वंचित कर दिया गया हो, ड्राइंगरूम का आकाश  सिसकारियों की एक मुश्त चिन्दियों से भर जाता है। उत्तेजना के चरम बिंदु पर लाकर इस तरह ब्रेक लेना जरूरी है ? लानत है चैनल वालों पर ! लोग एलाइवा स्नीकर्स, चोको फिल्स, कुरकुरे वगैरह पर टूट पड़ते हैं। स्क्रीन पर विज्ञापनों की लंबी श्रृंखला थिरकने लगती है। उत्पादों से भी ज्यादा नाम-अनाम सुंदरियों के अनाबृत्त देहों के उत्तेजक पठारों व कंदराओं की चुंधियाती नुमाईश ! 
           घटनास्थल से स्टूडियो के तार फिर से जुड़ जाते हैं।
         ‘जी हेमंत, हम डॉ जाटव के कक्ष के भीतर खड़े हैं..,’ कैमरा जूम करता हुआ कक्ष के भीतर के दृश्यों पर रेंगने लगता है। पुरानी दीवारों पर चटख हरे रंग की कलई ! देवी देवताओं के कैलेंडर ! कोने में मेज और कुर्सियां ! मेज पर किताबों व पत्रिकाओं का अंबार !बाएं कोने में पुराना पलंग ! पास में निवाड़ की झिलंगी खाट भी ! खाट पर बिस्तर तकिए !
           पलंग पर बैठे हैं प्रोफेसर साहब ! दाएं बाएं दो मित्र भी। खाट पर भी कुछ लोग विराजमान हैं। औरतें पास की कोठरी में ! 
          कमरे के इस कोने से उस कोने तक के पूरे ‘रन वे’ पर सन्नाटे के खोल में कैद मार्मिक चींखें कबूतर के नुचे पंखों की मानिंद छितरायीं हुईं हैं और इन मनहूस चींखों को बिना कान वाला मिनख भी सिर्फ आंखों के माध्यम से सुन सकता है।
         कैमरा शनैः शनैः अपने डैने समेटता पलंग पर बैठे प्रोफेसर और उनके साथियों पर फोकस हो जाता है।
         ‘सर..आपका बेटा खुले बोरवेल की तीस फीट गहराई में जा गिरा। युद्धस्तर पर बचाव कार्य जारी है। हमारे दर्शकों को बताएंगे, इस वक्त आप कैसा महसूस कर रहे हैं..?’ अपनी समझ से प्रश्न की अत्यंत पहेलीनुमा गूगली फेंकते हैं अरविंद। कैमरा प्रोफेसर और उनके मित्रों के चेहरों की एक एक रेखा, एक एक भंगिमा को सूक्ष्म तरंगों में रूपांतरित करता हवा में संप्रेषित करने में रत है।
         कुछ पलों का असहज मौन ! फिर मानो गहरे कुएं से थरथराती आवाज गूंजी हो, प्रोफेसर फुसफुसाते हैं -‘ बड़ा अच्छा महसूस कर रहे हैं भाई। खूब ‘चोखो’ लाग रहा स..।’ 
         ‘खूब प्रोफेसर साहब..,’ अरविंद खिसियानी हंसी हंस देता है -‘ ऐसे मातमी माहौल में भी मजाक..!’
         ‘मजाक..?’ मास्टर चंदगीराम जो स्थानीय हाई स्कूल के हेड हैं, तीखे लहजे में तिलमिला उठते हैं -‘मजाक तो आप मीडिया वाले कर रहे हो हमारे साथ। हमारे कलेजे का टुकड़ा गहरे बोरवेल में गिर कर जीवन और मौत से जूझ रहा है और आप दर्शकों को खुश करने के लिए हमसे पूछ रहे हो – कैसा महसूस कर रहे हैं, हंह !’ 
         ‘ऐसी बात नही सर..: चेहरे पर घबड़ाहट भरी  बैचेन हंसी -‘ हम मीडिया वाले भी सामाजिक सरोकारों से प्रतिबद्ध हैं। हमारे चैनल के प्रयास का ही नतीजा है कि यह हादसा राष्ट्रीय फलक पर फोकस में आ सका।’
        ‘ बेशक ऐसा आपके चैनल ने किया होगा..’ खाट पर बैठे युवा सरपंच चींख ही तो पड़ते हैं -‘पर इसके पीछे नीयत क्या है ? सरोकार..या कारोबार..! हादसे को शानदार प्रोडक्ट में तब्दील करके ऊंची बोली पर बेचना ! कैसा सरोकार है ये कि ऐसे हृदयविदारक माहौल में भी आप मीडिया वाले हाथों में कैमरा लटकाए हादसे के मलवे में से टीआरपी के फुटेज ढूंढने में बावले हुए जा रहे हैं !’ 
         फिर से कुछ पलों का तिलमिला देने वाला असहज मौन ! तेज तर्रार अरविंद की बोलती बंद हो जाती है। वह समझ नही पाता कि अगला सवाल क्या पूछे।
        ‘सरकारी नृशंसता की भी हद हो गई ..’ एक अन्य मित्र का आक्रोश भी उबल पड़ता है -‘ जो हमारी आंख का तारा है, उसका मोल रुपये-पैसों में आंकना ! नाम भी कैसा दिया – मुवावजा ! सरकार हमें पांच लाख दे रही है न ! हम सरकार को दस लाख देने को तैयार हैं, बस लौटा दे हमारे लाडले को..!’
        कक्ष में श्मशानी सन्नाटे का चंदोबा तन जाता है और चंदोबे पर टपकती रहती है छत से लटके पंखे की घिर्र घिर्र की किंकियाती आवाज .. टप टप.!
        ‘ब्रिटिश टीवी के सबसे वाहियात प्रोग्राम ‘बिग बॉस’ की एक प्रतिभागी थी – जेड गुडी..,’  रामकृपाल जो इंजीनियरिंग का छात्र है फुफकार उठता है -‘ उनकी कैंसर से असमय मौत हो गयी। आपको मालूम है , मरने से पहले उसने अपनी मौत को टीवी पर दिखाने का अधिकार करोड़ो पाउंड्स में बेचे थे ? अगर हमें पैसा ही चाहिए होता तो हम भी इस हादसे को टीवी पर दिखाने के बदले करोड़ों की मांग कर सकते थे। मुवावजे की बात करते हैं, हंह !’ 
         ‘मुझे लगता है, हम मुद्दे से भटक रहे हैं..’ अरविंद के जेहन में बॉस की फटकार सलीब सी टंग जाती है – सावधान, मामला गलत ट्रैक पर जा रहा है ! 
          ‘बिल्कुल नहीं, मुद्दे पर ही हैं हम ।’
          ‘मित्रों ने ठीक ही कहा..,’ अचानक प्रोफेसर खड़े हो जाते हैं -‘पूंजीवाद-बाज़ारवाद के दैत्य ने मेरे बेटे के साथ घटे इस हादसे को एक उत्पाद में तब्दील कर दिया है। इसे कॉमोडिटी बना दिया। कॉमोडिटी ही नही बनाया, तथाकथित सरोकार की आड़ में हादसे का उत्सवीकरण भी कर दिया। सनसनी, गुदगुदी और रोमांच पैदा करता एक शानदार उत्सव !’ प्रोफेसर के चिथड़े चिथड़े शब्द रुई के फाहों की मानिंद कक्ष में उड़ रहे हैं -‘ नूडल्स और कुरकुरे चबाते लोग आपके चैनल की मेहरबानी से यहां के विजुअल्स देख देख कर एक्साइटेड होती पब्लिक ! ए विंडफॉल सेलिब्रेशन !’
          धीरे धीरे कक्ष के बाहर की ओर बढ़ने लगते हैं प्रोफेसर। फिर मकान की दहलीज लांघ कर टीलों, टेंटों और मशीनों के बीच से गुजरते हुए नए खुदे गड्ढे के पास आ जाते हैं। पीछे पीछे साथियों, मित्रों और अपने अपने कैमरा टीम के साथ रिपोर्टरों की फौज भी !
          अतल गहराई वाले सुरंगनुमा गड्ढे की ओर देखते हुए प्रोफेसर फफक फफक कर रो ही तो पड़ते हैं। बड़ी देर से थमा आसुंओं का सैलाब किसी भी तटबंद की लक्ष्मण रेखा को मानने से इनकार कर देता है। सरपंच और चंदगीराम लरज कर उनकी पीठ सहलाने लगते हैं।
          ‘दरअसल, देश के कोने कोने में छितराये इन खुले अनढके बोरवेल, कुओं और गड्ढों को आप देख रहे हैं न , ये साधारण बोरवेल या गड्ढे नहीं हैं। बैश्विकरण के मानसपुत्र पूंजीवाद द्वारा ब्रह्मांड के ब्लैकहोल्स की तर्ज पर निर्मित वैसे ही पावरफुल ब्लैकहोल्स हैं। इनका गुरुत्वाकर्षण भी उन ब्रह्मांडीय ब्लैकहोल्स जैसा ही शक्तिशाली है और देश की सारी संपदा – जल जंगल जमीन..प्लैटिनम, कोयला, लोहा, बॉक्साइट..तेल और गैस जैसे सारे दुर्लभ खनिज, खेत खलिहान उद्योग .. सब कुछ बूंद बूंद इनके अतल गर्भ में समाते चले जायेंगे। सब कुछ शेष हो जाएगा ! सब कुछ ! समझ रहे हैं न आप लोग ?’ 
           प्रोफेसर खिलखिलाकर हंस पड़ते हैं। फिर हंसते ही चले जाते हैं। विक्षिप्तों जैसी बेकाबू हंसी ! फ्लड लाइटों की चुंधियाती रोशनी में पूरा परिवेश ऐसा दिख रहा है मानो किसी पुराने उबड़-खाबड़ श्मशान में डरी सहमी सी कुछ प्रेतात्माएं कब्रों से बाहर आकर गुफ्तगू में लीन हों।
         ‘सब कुछ ब्लैकहोल्स में समा जाएगा । बचे रहेंगे सिर्फ पूंजीवाद और बाजार। हा हा हा..!’
         तभी प्रोफेसर जाटव मित्रों को आंखों ही आंखों में अबूझ से संकेत देते हैं। पलक झपकते सारे लोग कैमरामैनों पर पिल पड़ते हैं और विद्युत गति से कैमरों की स्विच ऑफ कर देते हैं।
         ‘हा हा हा.. ब्लैकहोल्स . !’ 
         स्विच बंद होते ही सारे न्यूज़ चैनल्स के स्टूडियो में मॉनिटरों पर स्याह कफन की अवनिका पड़ जाती है, मानो ब्रह्मांड के ब्लैकहोल्स के गुरुत्वाकर्षण की जद में समा गया हो सारा कुछ ! 
        उसके बाद..इसके पहले कि प्रोफेसर के मित्रगण कुछ समझ पाते , जाटव साहब भरतनाट्यमी मुद्रा में नाचते-झूमते अट्टाहास करते नए गड्ढे की ओर बढ़ते हैं और उसके भीतर की अतल गहराई में छलांग लगा देते हैं।

महावीर राजी
C/O प्रिंस,  केडिया मार्किट, हेड पोस्ट आफिस के सामने,
आसनसोल 713 301 प.बंगाल
मोब – 09832194614

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