दूर कहीं राजस्थान के छोटे से गाँव में एक महिला पहुंची जो वहाँ के बच्चों के लिए एक स्कूल खोलना चाहती है, गाँव ऐसा कि वहाँ मीलों दूर तक पानी के स्त्रोत का अता पता नहीं है। कहीं एक छोटा कुएँ नुमा एक गहरा गड्ढा है जिसमे पानी नाम मात्र का बचा हुआ मामूल होता है। जो कि ना तो शुद्ध है ना ही पूरे गाँव के लिए पर्याप्त है। पर मानना पड़ेगा इन मार्केटिंग वालों को, इन्होने पानी बेचने के लिए यह जगह भी खोज डाली पर यह क्या पानी की कीमत इतनी ज्यादा कि इंसान या तो पानी पीकर ही जिन्दा रह ले या अन्न खाकर ही जी ले, भई खाना पकाने में भी तो पानी लगता है, तो जहाँ ज़िंदा रहने का  द्वन्द हो वहाँ स्कूल के विषय में तो लोग शायद सपने में भी नहीं सोच सकते थे। शहर से मीलों दूर रेगिस्तान में बसा एक छोटा सा गाँवबसरा” (एक काल्पनिक नाम) जहाँ लोग जीविका के लिए एक या दो दिन के लिए किसी तरह शहर जाते हैं और वहाँ काम कर के कमाकर लाते हैं तब कहीं जाकर उनके घरों में चूल्हा जलता है……………

अपने नन्हे हाथों में एक नन्हा बकरी का बच्चा लिए चुनमुन ने अपनी बड़ी बड़ी अशरफी जैसी आँखों को और बड़ा करते हुए पूछाअम्मा मैं कब सकूल जाउंगी, जैसे वो शहर के बच्चे जाते हैंअम्मा को तो पहले ही चुनमुन के मन की बात पता थी। उसने चुनमुन की तरफ मुस्कुराते हुए देखा और कहाजब तू बड़ी हो जावेगी ना तब‘ “तब…!” चुनमुन ने अनमाने भाव से कहा” ‘हाँ तो और क्या, नहीं एक बात बताबता अगर तू सकूल चली जावेगी तो तेरे यह कालू को कौन देखेगा, भला, इसके साथ कौन खेलगा, कौन इसे खिलायेगा पिलायेगा, घुमाने लें जायेगा‘…. चुनमुन चुपचाप अम्मा की बातें सुन रही है और कालू के सर पर हाथ फेर रही है. ‘अम्मा मैं जब जाऊँगी ना तो इसे भी अपने साथ लें जाउंगी यह भी मेरे साथ ही बैठ जावेगा वहाँ‘, चुनमुन की बात सुनकर अम्मा की हँसी रुकी और उसने कहाअरी लाडोवहां थोड़ी ना ले जाने देवेंगे इस जनावर कोकाहे..! चुनमुन ने तपाक से पूछा‘ ‘अरे वो बच्चों के जाने की जगह है, जनावर के नहीं
चुनमुन कुछ सोचती हुई सी बाहर चली गयी और कालू के साथ खेलने लगी। सारा दिन यूँ ही निकल गया, रात हुई तो अम्मा चुनमुन को सुलाकर उसके सर पर हाथ फेरती हुई बहुत देर तक सोचती रही कि काश वो अपनी बच्ची का ये सपना पूरा कर पाती। सोचते सोचते अम्मा की आँखों में जल उतर आया और वह मुँह पर आंचल रखते हुए वहाँ से हट गयी कि कहीं चुनमुन की आँख ना खुल जाए और मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी कि कुछ ऐसा चमत्कार कर दो कि चुनमुन के मन कि यह इच्छा पूरी हो जाए।
अगली सुबह गाँव में बड़ी चहल पहल थी। चुनमुन की अम्मा और अन्य गाँव वालों को पानी लाने मीलों दूर जाना पड़ता था। चुनमुन इतना कहाँ चल पाएगी अभी नन्ही बच्ची ही तो है, ऐसा सोचकर अम्मा अक्सर चुनमुन को घर में अंदर बंद कर पानी का घड़ा लेकर अन्य महिलाओं के साथ पानी लेने जाया करती थी। आज भी जाते हुए उसने पड़ोसन से पूछाकायरी फूलमती” ‘आज बड़ी हलचल सी लागे है, कौनो नेता जी आये है का गांव में, वोट माँगने की खातिर?’ ‘जाने जिज्जी हमें ना पता, “जे कह रहे थे कोई तो मास्टरनी आयी हैंसायद गांव देखन की खातिर.. सुना है सकूल बनाना चावे है बच्चों के लानेअच्छा…!
‘सकूल’ की बात सुनते ही अम्मा की आँखों में चमक गयीयूँ ही बोलते बतियाते तालाब भी गया। सभी लोग पानी भरने लगे और कुछ गाडरिये अपने मवेशीयों को पानी पिलाने लगे। आज के ज़माने में यह सोचकर ही अजीब लगता है कि मवेशी और इंसान एक ही जगह का पानी पीते हैं। खैर तालाब बहुत छोटा सा है और पूरी तरह बारिश पर निर्भर करता है यदि बारिश होती है तो पूरा भर जाता है, नहीं तो, बहुत थोड़ा पानी ही बचा रहता है। इसलिए सभी को केवल अपनी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए थोड़े ही पानी का प्रयोग करना पड़ता है।
घर वापस आते समय अम्मा की चाल जरा पहले से तेज़ है। लेकिन पानी का भार अधिक होने के कारण अम्मा उतनी तेजी से चल नहीं पा रही है, जितना तेज चलना वो चाहती है, क्यूंकि वो चुनमुन को यह बात बताना चाहती है कि कोई मास्टरनी गाँव में आयी है। लेकिन घर पहुँचते ही उसका मन बदल जाता है। अम्मा मन ही मन सोचती है,नहीं नहीं मैं अभी से चुनमुन को कुछ नहीं बताऊँगी, नहीं तो नाहक़ ही वो सपने बुन लेगी और जो सकूल ना खुला तो महारी लाडो का दिल टूट जावेगा ऐसा सोचकर अम्मा चुप ही रही और चुनमुन को बाहर खेलने जाने को कहा। चुनमुन अपने कालू को गोद में उठा के खेलने चली गयी। अम्मा का बहुत मन हुआ कि जाकर एक बार खुद मास्टरनी से मिले पर हिम्मत ना हो पा रही थी।
अम्मा को डर था, कहीं उसकी किसी बात का मास्टरनी को बुरा ना लग जावे। आज अम्मा का मन घर के किसी काम में ना लग रहा था। इसी उहाँपोह में उलझी अम्मा ने दिल कड़क कर मास्टरनी जी से मिलने जाने का मन बना लिया और वो निकल पड़ी। वहाँ जाके अम्मा क्या देखती है कि मास्टरनी जी तो रेगिस्तान की गर्मी से बहुत परेशान है और उनके सामने एक कौने में बोरी भर के पानी की बोतले पड़ी है। और मास्टरनी जी बस वही पानी पीती है। फिलहाल गर्मी के मारे चिड़चिडा रही हैंयह लाओवो लाओपर उनकी बातें ज्यादा किसी को समझ नहीं आती हैं।
ऐसे में अम्मा और घबरा जाती है, बात करने में हिचकिचा जाती है। अभी अम्मा उनके पास जाकर खड़ी ही हुई थी कि गर्मी से परेशान मास्टरनी ने अम्मा की तरफ देखते हुए अंग्रेजी में कहा “uff its too hot, how do you all live here…?” अम्मा के समझ में तो कुछ ना आया, पर इत्ता जरूर समझ गयी थी अम्मा की इससे बात करनी है तो पहले इसे गर्मी से राहत देने पड़ेगी। अम्मा कुछ सोच के घर वापस लौट गयी और वहाँ जाकर उसने सबसे बात की, कि मास्टरनी के लिए क्यों ना एक कमरा बना दिया जावे, जिसकी रेत से भरी बोरियों की दीवारे हों ताकि वो ठंडा रह सके और वहाँ वो मास्टरनी जी के रहने की व्यवस्था भी की जा सके। अभी बात केवल यहीं तक सीमित थी तो सब राजी भी हो गए और अगले ही दिन एक ऐसे कमरे को बना दिया गया और गर्मी से बेहाल हो रही मास्टरनी जी को किसी तरह, समझा बुझाकर उस कमरे में ले जाया गया, तो मास्टरनी जी को ऐसा स्वर्ग का आनंद प्राप्त हुआ कि कुछ देर के लिए वो दुनिया भूल गयी।
थोड़ी देर बाद जब अम्मा को लगा कि अब शायद मास्टरनी जी बात आराम से कर लेंगी तो अम्मा ने सबसे पहले पूछाएक बात बाताओ मैडम जी आप यह बोतल में क्या पीती रहो होमास्टरनी ने कहापानी और क्याबोतल का पानी, जे तो बड़ा मेंहगा होता होगा? ‘नहीं…?’ ‘हाँ अम्मा होता तो है, पर का करें जब तक यहाँ है पानी तो पीना ही पड़ेगा ना‘ “है कि नहीं..?” ‘हाँहाँ काहे नहींपानी के बिना तो जीना ही मुश्किल है‘ ‘और नहाने के लिए‘…?
मास्टरनी की शक्ल पर हवाइयाँ उड़ गयी अभी तो एक ही दिन हुआ था मास्टरनी को गाँव में आये तो नहाने के लिए भी उसने पीने के पानी का उपयोग ही किया था। मगर यह उसके लिए भी महँगा सौदा था, क्यूंकि पीने का यह बोतल बंद पानी लाने भी तो गाँव से मीलों दूर शहर जाना पड़ता था, वह भी अपने आप में एक समस्या ही थी। सुन के अम्मा के तो होश ही उड़ गएअम्मा बोलीअरी दइया…. जे तो गजब कर दिया आपनेआप तालाब पे जाके क्यों नहीं नहा लेती…?” ‘तालाब पर सबके सामने कैसे ? सुनकर अम्मा की हँसी छूट गयी….’अरे तालाब कोई यहाँ थोड़ी है, उसके लिए भी बहुत दूर जाना पड़े है….वहाँ सब साथ जावे हैं साथ ही आवे हैं, औरतन और आदमियन के जाने आने का अलग अलग टेम होवे है।” ’अच्छा…!’ “हाँ तो और के! कल चलना आप हमरे साथ हम लिवा चलेंगे आपको अपने साथ ठीक है….? 
ठीक है।’ 
अगले दिन सुबह सुबह जब अम्मा मास्टरनी को ले कर तालाब पर पहुंची तो तालाब का पानी देख मास्टरनी का जरा भी मन ना हुआ नहाने का।इतना गन्दा पानी“….! “गन्दा“…? ‘अरे मैडम जी पानी है यही क्या कम है‘ ‘हमरे लिए तो अमृत है जेहम लोग तो इसी से सब काम करते हैं सब मतलब? सब मतलब का…? ‘सब खाना पीना, नहाना धोना, और के….! खाने पीना के लिए यह पानी….सोचकर ही मास्टरनी जी का जी घबरा रहा था, कि अचानक उसने एक ऊँट और एक दो बकरियों को उस तालाब में पानी पीते देखा तो उसे उबकाई आने लगी…. 
का हुआ मैडम जी?’ अम्मा ने घबरा के पूछा 
नहीं कुछ नहीं वो, जानवर भी इसी तालाब का पानी पी रहे हैं ना तो इसलिए…”
“लो इत्ती सी बातइसमें का नया है….बो बेचारे कहाँ जावेंगे? उनके लाने कोई अलग से इतजाम थोड़ी ना किया है नेता जी ने‘….
जो भी हो, मैं यहाँ नहीं नहा सकती 
सोच लो मैडम जी, जैसी आपकी मर्जी थोड़ी देर सोचने के बादमैडम जी को बात समझ में आयी कि इसके आलावा और कोई चारा भी तो नहीं है, नहाते नहाते मास्टरनी जी यही सब सोच रही थी। तब उन्हें यह ख्याल आया कि शहर में रहकर वह कितना पानी यूँ ही व्यर्थ बहा देती हैं मंजन करने में, घंटो नहाने में, अपनी कार को धोने में आदिअब उन्हें पानी का सही महत्व समझ में आया और उनके मन में यह विचार आया कि मीलों चलकर खुद अपने लिए पानी भर के लाने वाले को ही बून्द बून्द पानी की कीमत समझ आती है। अब ऐसी जगह पर स्कूल कैसे खुल सकेगा? खुल भी गया तो कितने बच्चे सकेंगे? आने जाने का भी कोई साधन नहीं है माता पिता के पास इतना धन भी नहीं है कि वह शहर में जा के बस जाएँ फिर इन बच्चों के भविष्य का क्या होगा?
यही सब सोचते सोचते मास्टरनी जी अम्मा के साथ गाँव लौट आयी तो उन्होंने चुनमुन को देखा, चुनमुन की मासूमियत ने उनका दिल जीत लिया। उन्होंने चुनमुन को अपने पास बुलाकर बात करनी चाही, पर चुनमुन अपने बकरी के उस बच्चे कालू को अपने गोद में लिए अम्मा के पीछे छिप गयी। मास्टरनी जी समझ गयी बच्ची शर्मा रही है फिर भी उन्होंने चुनमुन को अपने पास बुलाया, चुनमुन ने अपनी अम्मा की ओर देखा, अम्मा ने मुस्कुरा के जाने के लिए कह दिया।
चुनमुन धीरे से मास्टरनी जी के पास आयी और बोली,तुम कौन हो..? क्या तुम मास्टरनी हो
हाँ…!’ 
‘पर तुम को कैसे पता ?’
बस मुझे पता है गांव में सब यही बात करते है‘ 
‘अच्छा…?’ 
‘हाँ पर मेरे गाँव में तो सकूल ना है‘. 
हाँ मैं जानती हूँ 
क्या तुम यहाँ सकूल खोलोगी?’ 
पता नहींक्यों? तुम स्कूल जाना चाहती हो‘? 
हाँ, मैंने शहर में देखा है सबको सकूल जाते हुए, मैं भी जाऊँगी एक दिनअम्मा कहती है बड़े होके जाऊँगी।’ 
‘अच्छा’ 
क्या सकूल में कालू को नहीं ले जा सकते…?’ 
‘नहीं बेटा नहीं ले जा सकते, वहाँ जानवर ले जाना मना होता है।’ 
लेकिन यह जनावर थोड़ी है, यह तो मेरा दोस्त है‘…. सभी ने मुस्कुरा के बात टाल दी। मगर चुनमुन के सपनों ने मास्टरनी को रात भर सोने ना दिया और यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि यहाँ स्कूल खोलना जरुरी है या नहीं…. चुनमुन जैसे और भी कितने बच्चे होंगे उन सब के भविष्य का क्या होगा? फिर दूजे ही पल मास्टरनी जी को पानी का ख्याल आया कि इस गाँव में स्कूल से ज्यादा जरुरी अभी पानी है, क्यूंकिजल ही जीवन हैऔर फिरजान है तो जहान हैना, यदि जान ही नहीं होगी तो जहान का क्या करेंगे। 
रात भर चुनमुन का मासूम चेहरा और उसकी भोली भाली बातें उनके कानों में शोर मचाती रही और वह इसी उधेड़ बुन में खोयी रही कि स्कूल ज्यादा जरुरी है या पानी ? यही सब सोचते सोचते कब रात से सुबह हो गयी उन्हें पता ही नहीं चला। अगले दिन सुबह उठते ही मास्टरनी जी शहर जाने के लिए निकल जाती है और सारा दिन दौड़ धूप कर यह पता लगाने कि कोशिश करती है कि उनका गाँव बसरा किस ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है और उस ग्राम पंचायत के माध्यम से उस गाँव में चल रही पानी की समस्या को कैसे हल कर सकती है। यूँ भी तो उन्हें अभी इस गाँव में रहते कुछ ही दिन हुए हैं लेकिन चुनमुन और उसकी अम्मा से एक लगाव सा हो गया हैं उनका और अब उस गाँव को अपना कहने में उन्हें झिझक महसूस नहीं होती।

खैर गाँव में पानी की समस्या के समाधान के लिए उन्होंने ना केवल ग्राम पंचयात से मदद मांगी बल्कि निजी रूप से भी शहर जाकर NGO के माध्यम से भी फंड्स एकत्रित किये। ताकि किसी प्राइवेट कंपनी द्वारा वहाँ पानी के स्त्रोतों को बढाया जा सके, ताकि जब तक सरकारी तौर पर बड़े पैमाने पर गाँव वालों को मदद नहीं मिल जाती तब तक उनके लिए जीवन थोड़ा आसान हो जाय और चुनमुन और उसके दोस्त कालू जैसे फूल खिलने से पहले ही ना मुरझा जाएं।

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