Friday, October 11, 2024
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सुमन शर्मा की दो कविताएँ

1 – तुम्हें चलना है
कोई चले न चले साथ,तुम्हें चलना है।
मिले पथ में घनेरी रात तुम्हें निकलना है।
होंगे चमकते तारे,मिलेंगे कहकशां के नज़ारे,
नवल प्रभात,बन जीवन उल्लास तुम्हें मिलना है।
देंगे साथ सब थोड़ी दूर,यही दुनिया ए दस्तूर,
बिन हुए मायूस,मक़दूर से तुम्हें सँभलना है।
विपरीत होंगी दशाएँ,चलेंगी तेज जब हवाएँ,
नन्हा दीपक बन,आँधियों में तुम्हें जलना है।
चहुँओर उठते कोलाहल से रह बेख़बर,
दिल के खामोश तूफ़ानों में तुम्हें पलना है।
2 – डॉक्टर
दाँव पर लगा अपनी जान,
कर रहे सेवा,बन भगवान,
उन डॉक्टरों का करें सम्मान।
जब अपने भी बना रहे दूरियाँ
गिनाते हैं अपनी मजबूरियाँ,
ऐसी घड़ियों में साथ निभाते,
जीवन बन,हैं खड़े हो जाते,
ऋण उनका करें स्वीकार,
नत मस्तक मानें आभार,
उन मानुषों पर करें अभिमान,
उन रक्षकों का करें सम्मान।
अदने से जीवाणु से,
जब हम सब गए हैं हार,
कर रहे वह हर चुनौती स्वीकार,
बांधकर सर पर कफ़न,
खोजते हर इलाज कर जतन,
दिन रात का अथक प्रयास
रंग लाये,हम करें नमन,
फिर हरा भरा हो जाये चमन,
उनकी दी चेतावनियों का करें अनुगमन,
हरदम करें हम उनका अभिनंदन।
नमन नमन शत शत नमन।
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