” लीजिए इसे पकड़िए पिताजी । बाहर जाने को कब से मचल रहा है ।
” आजा बदमाश , अपनी माँ को काम क्यों नहीं करने दे रहा ? ” बच्चा खुशी से दादा की ओर लपका , वो उनसे बहुत हिला हुआ था , और दोनों हीं एक दूसरे के प्यार के दीवाने दिखे ।

” बहू ! तेरा व्रत है न , तुझे मंदिर जाना होता है ? “
“ये छोड़े तब न जाऊँगी पिताजी । “
” ला मुझे दे मुन्ने को , इसका पानी और बाॅल भी दे , खेलकर तो बहल जाएगा ।”
” पिताजी आप कार में बैठिए , इसे लेकर ही मंदिर चलिए , वहाँ बाहर परिसर में छायादार पेड़ और बेंचें हैं , पेड़ों की ठंडी छाँव में खुले में खेलकर ये खुश होगा ।”
“मैं भी अपने सखा के साथ खुश रहूँगा बहू ।” पिताजी खुश होते हुए बोले ।
” पिताजी मेरे बाद आप दर्शन कर आइएगा , भक्तों की काफ़ी भीड़ लगी है आज । “
“तब तक आप मुन्ने को लेकर बाहर रुक जाइये ।”
” बहू ,भीतर जाकर मैं क्या करूँगा ? फिर कभी ।
जैसे हीं बहू पूजा की थाली लेकर आगे बढ़ी ,ससुर जी नन्हे मासूम से बोले – ” भीतर जाकर किसके दर्शन करेगी तेरी माँ ? गोपाल – हरि तो मेरे साथ यहीं है …। ” भीतर उमस और भीड़ की धक्का – मुक्की के मारे उसका दम घुट रहा था । इसलिये तो वो बाहर … ।”
मुन्ने के साथ पिताजी छायादार पेड़ के नीचे बेंच पर बैठते हुए बोले , ” कहाँ ढूँढ रहे हो नादानों मेरे हरि -गोपाल को । वो तो मेरे पास खड़ा है ।”
बच्चा दादा की गोद में चढ़ा और प्यार से उसके गलबहियाँ डालकर चिपक गया ।

जन्म तिथि- 31. 8 .1952
जन्म स्थान- उत्तर प्रदेश
शिक्षा- एम.ए. बी. एड.
गोदान के संदर्भ में सारगर्भित आलेख ।