न चाहते हुए भी विगत के टूटे फूटे टुकड़े चटके आइने की तरह उसकी सूरत को बिगाड़ने लगते । कितने सालों तक वह शीशे के टूटे टुकड़ों को जतन से जोड़ती रही मगर हर बार अपनी टेढ़ी मेढ़ी सूरत देखकर वह पस्‍त पड़ जाती। हकीकत की विकृत तस्‍वीरें पूरी ताकत से उसके वजूद को उधेड़ने में लगीं रहीं। पहले जिन बातों को याद करते हुए उसके होंठ मुस्‍कराने लगते थे, आज वही मीठी बातें बुरी तरह चुभने लगीं।
‘सुनो, जब हम सब समेट रहे होते हैं, दुनिया कितनी बेरौनक, खाली, खोखली, नीरस और बेमतलब सी लगने लगती। हमारे वश में कुछ और है क्‍या ?’ हथौड़े जैसा सवाल पूरी तिक्‍तता से प्रहार करता है उसके दिलोदिमाग पर और ऊंटपटांग सोच सोचकर जी हलकान होता रहता। सचमुच, जहां नदी जैसा भराव नजर आएगा, हम उसी तरफ खिचे चले जाएंगे पर जैसे ही ठहराव होगा यानी गड्ढे, खाइयां या चट्टानों से भरे बीहड़ रास्‍ते नजर आएंगे, हम वहां से कन्‍नी काटकर शॉर्टकल रास्‍ता अपना लेंगे, यही है जीवन । समय कभी जीने का सलीका सिखाता तो कभी निर्मोही होकर हम जिंदगी से भागने लगते । जीवन ऐसे ही धचकोलों, अनचाहे मोड़ों या अचानक हुए हादसों से बडा होता है।‘ 
वह पलटकर कहना चाहती कि कही अनकही वेदनाओं व यातनाओं का बोझ उठाते उठाते बीतता जा रहा उसके जीवन का सुनहरा समय। चुकता जा रहा उत्‍साह, बुझने लगा तेजस्‍वी मन। तेजी से चलते कदमों की राह में इतने स्‍पीड ब्रेकर आते रहते कि वह बार बार गिरती पड़ती, उठकर फिर से चलती रही। सबको अपने लिए प्रेम चाहिए, पर पलटकर कोई देना नही जानते, न ही देने की कला सीखने के लिए अकुलाहट बची है। ऊंटपटांग बातें सोचती स्‍वरा ने पूरी ताकत से अपनी वेदना को परे धकेलना चाहा लेकिन तकलीफें किसी दुश्‍मन की तरह पलटकर वार करने पर उतारू थीं। 
नही, उसे नही चाहिए अब अमन का साथ, इतनी कठोरता से कैसे कैसे कुबोल बोलते हुए उसकी आत्‍मा नही कांपी। ओफ, वह जितनी बार इस रिश्‍ते से बाहर आने की कोशिश करती है, उतनी ही बार विगत का लंबा साहचर्य उसे गड्ढे में फेंक देता है जिसमें पड़ी लिथड़ने की पीड़ा में डूबती उतराती रहती। आगे के भविष्‍य को लेकर वह सकते में आ जातीं। अब क्‍या होगा, सोचकर माथे पर चिंता की रेखाएं उभरने लगीं। 
‘ ऐ मेरी स्‍वीट स्‍वरा, कित्‍ती छोटी सी हो तुम, बिल्‍कुल बच्‍ची की तरह मासूम, मेरी छोटी, सिर्फ छोटी कहकर बुलाऊंगा तुम्‍हें .  . . ऐसे कितने मीठे संबोधनों से पुकारता था वह उसे। कितनी तरह से प्‍यार करके उसके गुस्‍से को हंसी में बदल देता था। आज वही अमन कितनी बेरहमी से चिल्‍लाते हुए कह देता है- ‘ तो तुम क्‍या चाहती हो कि मैं अपने दोस्‍तों के साथ इंजाय न करूं। कैसी हो तुम, तुमसे मेरा सुख तक नही देखा जा रहा स्‍वरा . . .
कितना गलत समझता है ये स्‍वरा को। ये वही स्‍वरा है जिसने अमन के करियर की खातिर क्‍या क्‍या नही किया और आज वही अमन उसे अकेला छोड़कर अपनी कलीग्‍स लड़कियों लड़कों के साथ टूर पर काश्‍मीर निकल गया। जाते समय एक बार भी यह सोचना तक गवारा नही हुआ उसे कि पिछले सात महीने से स्‍वरा उसके टर्म पेपर्स खत्‍म होने के इंतजार में वक्‍त काट रही थी यानी एक तरह से वनवास काटते हुए बीत रहे थे उसके दिन रात। किस कदर उसे धता बताकर वह चलता बना अपने दोस्‍तों के साथ टूर पर। तो क्‍या यह मान लिया जाए कि उसके जीवन के केंद्र में स्‍वरा कभी थी ही नही ? तो क्‍या वह हमेशा से अपने तरीके से अपनी जिंदगी जीने के लिए मनमाफिक आजादी चाहता रहा ? शायद हां, शायद कुछ और । संपूर्ण सच क्‍या है, हो सकता है, यह बात जानने की स्‍वरा ने खूब कोशिशें कीं मगर हर बार यह रिश्‍ता उसे थका डालता। हर बार अपनी तरफ से बैस्‍ट देने की कोशिशों के बावजूद उसके हिस्‍से में कभी हंसी खुशी के दो पल तक नही आए। तो ये कैसी जिंदगी जीने के लिए वह अभिशप्‍त है वह ? आखिर क्‍यों ढो रही है वह इस आधे अधूरे रिश्‍ते को ? तो क्‍या वह किसी ऐसी खंडित प्रतिमा पर सालों से फूल चढ़ाती रही, जहां उसकी अभीप्‍सा कभी सुनी ही नही जाएगी ? 
अमन के साथ पिछले तीन सालों से जी रही अपने रिश्‍ते को वह किन शब्‍दों में डिफाइन करे ? क्‍या है वह ? उसका दोस्‍त ? ब्‍वाय फ्रेंड ? मंगेतर ? क्‍या लगती है वह उसकी ? आखिर ऐसा क्‍या कर डाले कि यह रिश्‍ता कभी टूटने न पाए। तो क्‍या रिश्‍ते संभालने की सारी जिम्‍मेदारी सिर्फ उसी की ? उस दिन कितनी कठोरता से पूछ रहा था- ‘ मेरे से ब्रेकअप के बाद  हुई थी तुम्‍हारी नमन से दोस्‍ती, है न ? कितने साल चली ? और क्‍यूंकर टूटी ? साफ साफ बताओ न ?’ जैसे पुराने सूखते घाव को नाखूनों से खुरचा जा रहा हो। 
‘ क्‍या मतलब ? सालों पुरानी दोस्‍ती का राग फिर से अलापने लगे। जबकि मैं तो उस चैप्‍टर को कब का क्‍लोज कर चुकी। अमन, तुम्‍हें मैं उस रिश्‍ते से जुड़ी एक एक बात बता चुकी हूं, बावजूद इसके, फिर उन्‍हीं बातों को अभी तक ढो रहे हो तुम ? कब तक सफाई देती रहूं और आखिर क्‍यों ? ऐसे इल्‍जाम लगाने की क्‍या तुक है ? मैंने तो कभी तुमसे तुम्‍हारी किसी दोस्‍त के बारे में डिटेल्‍स आज तक नही मांगे, बोलो ? आई कांट टॉलरेट . . ‘ न चाहते हुए भी आक्रोश से भरी स्‍वरा की आवाज ऊंची होती गयी। 
असल बात है कि अमन के हिस्‍से का पूरा सच तो वह जानना नही चाहती, जब कि वह आए दिन किसी न किसी बात पर उससे सफाई मांगता रहता। हर रिश्‍ता एक के बूते कभी नही चलता, चल ही नही सकता । दूसरे सिरे को तो वह ठीक से जानती तक नही, सालों तक जानने समझने की तमाम कोशिशों के बावजूद। किसी को जानना इतना मुश्किल क्‍यों होता जा रहा इन दिनों ? एक दिन किसी बात पर कहने लगा- ‘ स्‍वरा, यू नो, अरेंज मैरिजेज आजकल काफी रिस्‍की होती जा रही है। किसी भी अनजान लड़की के साथ समूची जिंदगी बिताने के बारे में कैसे सोचा जा सकता है. . 
‘ तो क्‍या सिर्फ इसीलिए तुमने मुझसे शादी का मन बनाया ?’ 
‘ और नही तो क्‍या ?’ बस इसलिए शादी करेगा क्‍यों कि अरेंज मैरिज करना जोखिम भरा काम है, सुनकर स्‍वरा बौखला गई। उसके मुंह से निकले निर्मम शब्‍द घूंसा बनकर चोट पहुंचाने लगे। कितना बीभत्‍स सच है,सुनकर उसका दिमाग चकरा गया। कितनी बार इसी तरह जलील करता रहेगा ये ? इसे मेरे करियर, जॉब, शानदार परिवार या मेरी पर्सनेल्‍टी से कुछ भी लेना देना नही, सोचती रही । तभी से वह इसी बात को कई कोणों से मंथन कर बेचैनी से घिरी है, उमस भरे बादलों की तरह, पसीने से तरबतर ।  
पिछली बार उसकी दोस्‍त नमिषा के साथ भी तो ऐसे ही हुआ था, जब अपने विभाग में काम कर रहे पांच साल पुराने दोस्‍त से शादी करके कितना बड़ा धोखा खाया था उसने । अपना सब कुछ दांव पर लगाकर नमिषा ने जिस नकुल से शादी की, वह रातों रात इतना कैसे बदल सकता है कि उससे शादी करने के बावजूद किसी और के साथ रहने लगा था। उस दिन किसी ने दफ्तर में संकेतों में नमिषा को कुछ सच बयान किया जिसे सुनकर सुबह उठते ही वह सीधे उदयपुर में तैनात अपने पति से मिलने अचानक जा पहुंची।  मकान मालकिन से साधिकार पूछा- ‘ कहां गए हैं मेरे हसबैंड ?’ तो वे गहरी बेधती नजरों से उसे नापते तौलते हुए आंखें गड़ा गड़ाकर देखने लगी- ‘ वो तो अपनी बीवी संग ऊपर वाले फ्लोर पर है, पर तू कौन है ? ऐं. .  ‘ सवालिया नजरें उसकी तरफ चिपक गईं । 
‘क्‍या ? क्‍या कहा ? ‘ सुनते ही पांव तले की जमीन हिलने लगी थी नमिषा की। ओफ, कितने सालों तनाव में रही वह। घर से लेकर बाहर तक के दर्जनों लोगों को सफाई देते देते थक गयी थी, अंदर से टूट गयी थी। पूरे पांच साल लग गए इस रिश्‍ते से बाहर आने में। लाखों रूपए उससे लेकर वह इस औरत पर खर्च करता रहा । अभी तक नमिषा इस हादसे से पूरी तरह बाहर न‍ही निकल पाई।
 तभी से स्‍वरा के मन में रिश्‍तों को लेकर इतने सवाल उठने लगते। इतने जटिल, नाजुक या रेशम जैसे नरम होते हैं रिश्‍ते जो हाथ में लेते ही उलझ जाएं। पता नही इतने गुत्‍थमगुत्‍था क्‍यों होते हैं जज्‍बात कि वे पूरी तरह पकड में नही आते और पकड़ने की कोशिश में और ज्‍यादा उलझ जाते। अमन से टकराते टकराते तन मन लहुलुहान होने लगते। यहां इस मोड़़ पर रिश्‍ते से बाहर आने तक की यात्रा बड़ी दर्दनाक होती है। अबूझ पहेली बनकर दर्द देने लगते हैं संबंध। फिर समझौते की राह पर चलने की कोशिश करें तो यहां वहां एक के बाद एक गट्ठमगट्टा गांठें पड़ती जातीं हैं जिन्‍हें खोलते सुलझाते ही पूरा जीवन निकल जाए, जैसे मासी का निकल गया। मौसाजी कभी मासी को प्‍यार और इज्‍जत से नही बरत पाए। ए क्‍लास भरतनाट्यम कलाकार मासी का वजूद मौसा की नजरों में केवल नचनिया तक सीमित रह गया जिसे सिखाकर वे कुछ थोड़ा बहुत कमा पाती थी। बात बात पर- ये क्‍या जानें, इन्‍हें कुछ आता जाता ही नही, कहते हुए अपमानित करते रहते। 
सोचते हुए छत पर चली गयी स्‍वरा जहां जोरदार हवाएं सनसनाती, फरफराती पूरे वेग से उसके वजूद को ऐसे हिलाने पर आमादा हो गई जैसे भूकंप आ गया हो। नीचे से ऊपर तक थरथराहट से कंपने लगे पैर। उसकी इतनी बेकद्री, इतना मानमर्दन, सरेआम इतना अपमान, आखिर कब तक बर्दाश्‍त करती रहे वह ? और क्‍यों भला ? ऐसा क्‍या कुसूर है उसका कि हर वक्‍त सवालों के कठघरे में उसे ही खड़ा किया जाता। अब ऐसे लड़के के साथ अब और नही चल सकती, कतई नही। यही सोचकर कलेजा चिरने लगता कि वह तमाम लड़कियों लड़कों के साथ बाहर घूमने निकल गया और वह उसकी वाग्‍दत्‍ता ऐसे बिस्‍तर पर पडी पड़ी बिसूरने के लिए अभिशप्‍त, बेवजह जिंदगी से निर्वासित सीता की तरह । स्‍वरा की ऐसी हालत देखकर उसकी मां ने पूछा- हाउ ही डेयर्स टु इनसल्‍ट यू इन सच ए वे ?’ गुस्‍से में उसकी मां अक्‍सर अंग्रेजी बोलने लगतीं। सुनते ही वह फफक फफककर रोने लगी जैसे कई महीनों से जतन से बांधा सब्र का बांध भरभराकर टूट पड़ा हो- ‘ मैंने पूरे दो दिन से खाना नही खाया ममा। पिछने कई महीनों से वो ऐसा ही व्‍यवहार कर रहा है। आखिर कब तक सहती रहूं मैं उसकी बदतमीजियां ? बेशक वो कॉलेज में साथ पढ़ता था । उसकी लापरवाहियों की वजह से हमारा ब्रेकअप भी हो गया था क्‍योंकि वो एक ही बात बार बार कहता था- दूसरी जाति के लिए हमारे पेरेंट्स तैयार नही होंगे, सालों तक यही सुनते सुनते मेरे कान पक गए थे सो हमने किनारा कर लिया। अचानक पिछले साल पहले वो एअरपोर्ट पर टकरा गया और ये पीछे छूटी रामकहानी फिर से शुरू हो गयी ममा। मगर वो तो अक्‍सर पीछे छूटी दुनिया की सफाई मांगता रहता मुझसे, जबकि पिछला सब कुछ कब का खत्‍म कर चुकी मैं। ‘ रूआंसी आवाज उसके गले से बमुश्किल बोल निकले। 
अधूरी छूटी कहानी का पूरा सिरा मां को पकड़ाने से उसने खुद को सायास रोक लिया कि फिर उसके बाद से शुरू सिलसिला आज तक बदस्‍तूर किस तरह चलता रहा कि वह धीरे धीरे फिर से अमने के रंग में रंगती गयी। उसकी मीठी झूठी बातों को आंखें मूंदकर सच मानती रही। तभी अंदर से आवाज आर्ई- नही, ये पूरा सच नही है। पूरा सच तो यह है कि तब तक वह दो ब्रेक अप झेल चुकी थी। उन लड़कों के साथ भी उसके रिश्‍ते किसी भयावह मोड़ पर आकर खत्‍म होते गए कि एक उससे झूठ बोलता रहा कि वह जल्‍दी ही उसके मां बाप से मिलवाएगा, जबकि अपने ही विभाग की सहपाठिन से वह नजदीकी रिश्‍ते में लिवइन में था । इसी तरह दूसरा ब्रेक अप भी उसकी जिंदगी में सबक सिखा गया, जब उसने ऐन मौके पर उसकी बेइज्‍जती कर डाली- ‘ हां, पीता हूं रोज, पानी की तरह और इसी तरह आगे भी हर रोज दारू पिऊंगा ही, तुम होती कौन हो मुझे रोकने वाली ?’ दारू से हलक तर करते हुए उसने आदमकद आइने पर इतनी जोर से घूंसा मारा कि उसकी हथेली खूनमखून देखकर वह डर व आतंक से बौखला गई। 
 अपमान का घूंट पीकर चुपचाप उसने उसके नंबर को ब्‍लॉक कर दिया और एक दूसरे से कुछ कहे सुने बिना ही ये संबंध अपने आप खत्‍म हो गया। चूंकि अमन से कॉलेज के जमाने से सालों पुरानी दोस्‍ती थी। दो दो बार ब्रेकअप झेलने के बाद फिर अचानक से अमन से दुबारा टकराना और यूं फिर से सोया मन जिंदा हो उठा गोया मुरझाए पत्‍तों पर पानी पड़ते ही वे जिंदगी पा गए हों । ये महज इत्‍तफाक था कि तब तक अमन भी अकेला था, सो उनकी दोस्‍ती की कोंपलें फिर से हरी भरी हो उठीं। बेशक इस बीच अमन की तमाम लड़कियों से दोस्तियां हुईं मगर पता नही क्‍यों वे जीवनपर्यंत निभने वाली रिश्‍ते  में नही बदल पाईं। अमन के साथ गुजारे विगत के मीठे पल रंगीन पन्‍नी की तरह हवा में फड़फड़ाकर आंखों के सामने नमूदार होने लगते, जब वे कॉलेज में टीनेजर्स वाले दौर में 21/22 साल की उम्र को भरपूर जीने का लुत्‍फ उठा रहे थे।
 रिश्‍तों के रेशमी गुच्‍छे स्‍वरा की पकड़ में आकर आसानी से सुलझते नही। कभी लगता है, क्‍या ये वही अमन है जो कालेज में साथ साथ जाने से लेकर, लाइब्रेरी में किताबें जारी कराने से लेकर दर्जनों छोटे बड़े काम दौड़ दौड़कर करवाते कभी नही थकता। आज अमन के बदलते रवैए को देखकर स्‍वरा सोच में पड़ गई-  न, यह वो पुराना वाला सीधा सच्‍चा अमन तो कतई नही बल्कि ये तो आज का अवसरवादी, चालाक और शातिर दिमाग का ऐसा शखस दिखता है, जिसके लिए जिंदगी का मतलब सिर्फ मौज मस्‍ती, जैसे कोई खेल का मैदान हो जहां खड़े होकर सिर्फ रन बनाकर हर हाल में जीतकर लौटना है। अपने साथ की लड़कियों को इम्‍प्रेस करना, उनके साथ मौज मस्‍ती करना ही जैसे उसके जीवन का एकमात्र मकसद बन गया हो। कुछ लड़़कियों के साथ तस्‍वीरें भी वह सोशल मीडिया पर साझा करता रहता। ब्रेकअप के बाद पसरे खालीपन को अमन ने कैसे भरा, नही जानती वह, मगर दुबारा पनपे उनके आपसी संबंध उतने सहज नही हो पा रहे, सोचती रही वह।  
ब्रेकअप के बाद फिर नए सिरे से जुड़े रिश्‍ते में कई ऐसे लम्‍हे आए जब उसे अमन कुछ अजनबी सा लगता। कभी वह उससे अपने करियर से जुड़ी बातें साझा करती तो वह अनमनेपन से सुनता रहता लेकिन जब वह कभी अपनी कलीग्‍स के बारे में बताता तो वह पूरे मन से सुनती। अरसे बाद दोनों कार में कहीं जा रहे थे, तो उसे सिगरेट की टोंटियां नजर आईं- ‘इतना पीने लगे हो ?’ उसने सवालिया नजरों से प्‍यार से अमन की तरफ देखा तो वह छूटते ही बोल पड़ा- ‘ नही, नही, मैने नही पी है बल्कि ये तो मेरी  दोस्‍त की सिगरेटों के टुकड़े हैं। वही इतना पीती रहती है।‘ 
‘ ओ, आई सी। कहां घूमने गए थे उसके साथ ?’ उसने सहज भाव से पूछ लिया। 
‘ ऐ स्‍वरा, तुम टिपिकल हिंदुस्‍तानी लड़कियों के अंदाज में इतनी जासूसी मत करो। मैंने तो कभी नही पूछा तुमसे कि तुम अपने कलीग के साथ कहां कहां घूमती रहीं या नमन से तुम्‍हारी दोस्‍ती कब टूटी ? या तुम उसके साथ रिश्‍ते में कितनी दूर निकल गई थी ?’ उसकी आवाज में पसरे तंज को महसूसते हुए मन कडुवा हो गया और बीच में ही मुंह से निकल गया- ‘ तुमसे इस रिश्‍ते की एक एक बात सच सच बताई है मैंने, फिर भी वही सब पुरानी बातें फिर से पूछने का क्‍या मतलब ?’ 
दोनों थोड़ी देर के लिए शांत हो गए जैसे उनके पास कहने सुनने के लिए कुछ और बचा ही न हो। पिछले महीने हुई मुलाकात में अमन के ठंडे रवैए के बारे में देर तक सोचती रही स्‍वरा। उन दोनों के कॉमन दोस्‍त भी कई सारे थे जो उनके बीच की घटनाओं को यहां वहां नमक मिर्च लगाकर एक दूसरे को बताते रहते थे। पता नही किस बात की गांठ में बांधकर बैठ गया अमन जिसके चलते उनके बीच पहले जैसी प्‍यार की लहरें उतनी वेग से नही उमड़ रहीं। सुनने में आता कि  लड़कियां उसकी जिंदगी में आती जाती रहीं जिनसे घंटों फोन पर बतियाता रहता जिसके चलते उसका फोन अक्‍सर विजी रहता।स्‍वरा सोचने लगती, जब कभी अमन का फोन आता तो वह बस दो तीन मिनट में अपनी बात खत्‍म कर – बाद में करता हूं, कहकर रख देता। 
अमन की स्‍मृति में किशोरीवय स्‍वरा की मासूम छवियां नही उभरतीं, जब कि स्‍वरा अभी तक उस किशोर लड़के को अपनी यादों में सहेज संवार कर रखे हए हैं। वह कैसे भी अपने उस ब्रेकअप को नही भूल पाता बल्कि एक दिन बोला- ‘ पता है, तुमसे ब्रेकअप के बाद इतना डिस्‍टर्ब, इतना डिप्रेस्‍ड था कि मैंने साइक्रेटिक से ट्रीटमेंट लिया था। तो स्‍वरा ने फिर से पुरानी बातें दोहरा दी- तुम्‍हारे टालामटोली वाले रवैए पर रिश्‍ता तोड़ना पड़ा था। एक ही जवाब को कई बार सुनते सुनते दिमाग भन्‍ना गया था। याद करो, क्‍या कहा था तुमने– ‘ ‘अपने घर पर अदर कास्‍ट में शादी की बात कहने की हिम्‍मत नही जुटा पा रहा। शायद मेरे पेरेंट्स दूसरी कास्‍ट में शादी के लिए तैयार कभी न हों। ‘ ऐसी बातें सुनकर दोनों ने लंबी खामोशी पहन ली मगर विगत के पन्‍ने आंखों के सामने फड़फड़ाने लगे। उसे लगने लगा, न, इससे रिश्‍ते में अब कोई भविष्‍य नजर नही आता। शादी की बात पर वह उसे टालता जा रहा है, सोचकर एक बार इतना तेज गुस्‍सा आया कि उसने एक झटके में उस रिश्‍ते से बाहर आने का निर्णय ले लिया। कुछ महीने बाद स्‍वरा की नमन से दोस्‍ती हो गई । 
वह अक्‍सर विगत के पन्‍ने पलटते हुए खुद को कई कोणों से जस्‍टीफाई करने लगती। अनसुलझे सवाल थे कि एक दूसरे में लिपटे चिपटे सांपों की तरह फुफकारते डराने लगते। कभी डसने को तैयार तो कभी महज फुफकारकर रूह को कंपा देते या जब स्‍वरा उन्‍हें सहलाने की कोशिश करती तो वे उसी को लहुलुहान करने पर आमादा हो जाते। न जाने क्‍यों वह हर बार इस रिश्‍ते से लहुलुहान होती रही। न जाने क्‍यूंकर वह हर बार अमन से समझौता कर लेती लेकिन दुर्भाग्‍य ऐसा कि हर बार छली जाती। बावजूद इसके, अमन के प्रति बढ़ती उसकी चाहत घटने नही पाती। उसके प्रति उसका लगाव कैसे भी मरने नही पाता। कुछ अजीब सा सम्‍मोहन था। न जाने ये कैसा जिससे वह पूरी तरह बाहर नही निकल पाती, समंदर में तैरती म‍छलियों की तरह उसी खारे पानी में डूबती उतराती, तो कभी कभार ऊपर से फेंके अमन के दानों को लपककर मुंह में डालकर खुश हो लेती। सोचते हुए वह खुद से अनगितन सवाल करती और जवाब न मिलने पर आंखें भर आतीं। 
इसी बीच अनायास एक ऐसा भी खूबसूरत लम्‍हा आया था, जब स्‍वरा की अन्‍यत्र शादी तय होने की बात सुनकर अचानक अमन ने सबके सामने उसे अपनी मंगेतर बनाने का फैसला करके सगाई कर डाली- ‘ तो आज, अभी से तुम मेरी वाग्‍दत्‍ता हुई- कहते हुए अंगूठिंयों की अदला बदला कर ली गई ।   
‘महज वाग्‍दत्‍ता ही तो हो तुम उसकी, नथिंग..  सोचते हुए स्‍वरा को एहसास हुआ कि आज के इस स्‍वार्थ भरे दौर में क्‍या कोई कीमत बची रही है शब्‍दों की ? दिए गए शब्‍दों का है कोई मतलब ? कोई रेलेवेंस ? सचमुच, ऐसे शब्‍दों का वजन ही घटता जा रहा है। खुद को आइने में देखती तो कभी अपना आत्‍मविश्‍वास घड़ी कें पेंडुलम की तरह हिलता डुलता नजर आता तो कभी अमन के प्रति संचित भरोसा बीच नदी में हिलती नाव की तरह डगमगाने लगता। कभी जब वह काम में डूब जाती तो कुछ भी याद नही रहता लेकिन जब अपने कमरे में लौटती तो भावनात्‍मक असुरक्षा का भूत उसे दबोच लेता। सुदीर्घ अकेलापन अजगर की तरह उसके समूचे वजूद को लपेट लेता । आखिर उसके अकेलेपन का साथी, उसके सुख दुख का सच्‍चा साझीदार क्‍यों नही बन पाता अमन ? 
वह देर तक सोचविचार के दलदल में डूबती रही। बेचैनी इतनी जबरदस्‍त कि कहीं से भी राहत की हवाएं चलती नजर नही आईं । ऐन मौके पर अपनी सीनियर की बातें याद आने लगीं- स्‍वरा, शादी वादी करके कुछ नही मिलने वाला। वही लड़का जो शादी के पहले मेरे आगे पीछे घूमता था, आज कई बार फोन करने पर भी नही उठाता। कितने अजीबोगरीब होते हैं ये रिश्‍ते भी। हासिल हो जाएं तो सहेजे न जाएं और अगर न मि‍लें तो उनके पीछे अपनी जान हलकान करते रहते। सब कुछ खामखयाली ही है। वे पुराने एहसास हवा हवाई बादलों की तरह हवा में उड़ते नजर आने लगते।‘ 
वाकई बदलते अमन के रवैए देखकर अब कुछ भी तो अच्‍छा नही लगता । मन इतना उद्ग्नि कि चैन से इंतजार तक नही किया जाता। रह रहकर विगत और वर्तमान की घटनाएं अलग अलग चेहरे पर चढ़ी परतों की तरह उघड़ने लगतीं। आज के इस समय में वह अब किसी और पर आसानी से भरोसा नही कर सकती। बहुत अजीब मगर विचित्र होते हैं ऐसे रिश्‍ते जिनके आगे पीछे के सूत्रों का पता लगाना बहुत जटिल या गूढ पहेली बन जाए। सबके सब एक जैसे, अपनी दुनिया में व्‍यस्‍त यानी आत्‍मरति से ग्रस्‍त। पिछले कुछ महीने से ऐसी तस्‍वीरें साफ होतीं गई जिनमें उसने अमन से खुद को अलग थलग खड़ा पाया। उसके जीवन के सारे झंझट झमेले उसे खुद अपने कंधे पर ढोना है, ऐसे में अमन या कोई और चेहरा उसे एक जैसा नजर आता। 
‘ओवरथिंकिंग मेक्स यू डिप्रेस्‍ड, जस्‍ट स्‍टॉप इट… अपने कॉलेज के दोस्‍त अविरल से उसने सारे मुद्दों पर घंटों बात की तो समझ आया कि उसे अपने जीवन के रास्‍ते खुद ही तय करने होंगे। जोर देकर बोला-‘ लिसन, जब जब जो जो होता चले, उसे अपने तरीके से उसी तरह से हैंडिल करना ही पड़ता है। जीने की चाहत अक्‍सर कम होने लगे या जिंदगी की रफ्तार थमने लगे तो फिर से खुद को लेकर पॉ‍जीटिव तरीके से सोचो।इमोशनल डिपेंडेंसी ठीक बात नही।‘
’ न उम्‍मीदें, न सपने, न कुछ कर गुजरने का मन करता है। नया सपना देखने से डर लगने लगा है।‘  
बोलने के बाद सोचने लगी- जैसे हमारे कंधे पर किसी और की इच्‍छाएं या सपने लादे न जाने हम कब से चल रहे हैं और कब तक चलते रहेंगे। हमारा शरीर यह बोझ उठाते उठाते थक गया है, दम फूलने लगी है, ऐसी हताशा घर कर गई है जैसे विशाल समंदर में अकेले नाव खेने को अभिशप्‍त नाविक हूं मैं जो सालों से नाव खेते खेते थक हार जाए मगर जीने के लिए नाव चलाना अनिवार्य हो गया हो। विशाल समंदर को निरूपाया भाव से देखने के सिवा और कोई रास्‍ता नही सूझता। निरभ्र नीला आसमान, अछोर समंदर की लहरें दर लहरें और किनारे की उम्‍मीद में एकलौता नाविक जो किसी भी समय अपनी जीवनयात्रा को समाप्‍त करने के लिए बौखला जाए।‘ 
‘ लिसन, सोचो मत ज्‍यादा। ऐन मौके पर चमत्‍कार भी घटते है स्‍वरा। ऐसी हताश बातें मत करो।‘ उसने फिर से समझाया। 
 ‘ हम सब तुम्‍हारे साथ है, खुद को कभी अकेला मत समझो।‘  कहते हुए उसने उसके हथेली पर अपने हाथ का दवाब बनाया। चुपचाप सिर उठाकर उसकी तरफ देखकर सोचने लगी- हां, ऐन मौके पर चमत्‍कार हो सकते है मगर आशा भरी आंखों में अब रेतीलापन चुभने लगा है। अंकुरित कोंपलों की जगह बीहड़ उजाड़ सूनापन ही नजर आ रहा है।  वह खुद से पूछने लगी- क्‍यूंकर हम जीवन का अधिकांश हिस्‍सा दूसरों के नाम करते चले जाते है और फिर एक दिन ऐसा भी आ धमकता है, जब हमारा मन अचानक से सब समेटने लगता है। जिनके साहचर्य में हम सांसें लेते हुए हुलसते रहते थे, किसी रोज अचानक से फरमान सुना दिया जाए कि न, अब यहां कुछ नही मिलेगा, जाओ, तो विवश भाव से हमारे कदम लौटने लगते। आज भीतर से सब कुछ धीरे धीरे खाली होता देख रही है वह। तेज भागते समय में हम तो बस रीतते जीवन के सूखे पड़े चेहरों की बेरौनक हरकतें ही पहचान पाते हैं। सचमुच, नही चाहिए हमें ऐसी भावनात्‍मक पराधीनता। कतई नही। 
हवाएं आज भी वही है, सूरज आज भी अपनी तीखी पीली किरणों से हमें छूकर तपाने लगता। धरती की हरीतिमा भी जस की तस है। ये आसपास की भव्‍य इमारतें अपनी जगर मगर करती रोशनियों समेटे चुपचाप सालों से खड़ी हैं।  ऊंघती, जागती, चलते फिरते पदचापों की आहटें सुनती सड़कों पर आवाजाही से जीने को गति मिलती है मगर वह क्‍यों अटकी है अपने अतीत में अब तक ? समय जैसे उसके मन के तापमान का आंकलन करते हुए अट्टहास करने लगा-  लो, समेट लो अपने मायाजाल को। इस छद्म दुनिया को निरावृत कर डालो। समझ लो दुनियादारी की नई पुरानी झूठी इबारतों को जिन्‍हें गढ़ते, पढ़ते हुए न जाने कितने लोग छले जाते हैं। क्रमश: वह खुद को समे‍टती सिकोड़ती आगे कदम बढ़ाती रही । 
‘ हैलो. . हैलो, स्‍वरा, तुमसे मिलने आ रहा हूं, आज और इसी वक्‍त। तुम घर पर तो हो न ? ऐ स्‍वरा, मैं आ रहा हूं। हैलो, हैलो, तुम बोलती क्‍यों नही। मैं वहां आकर यूं चुटकियों में तुम्‍हारी सारी नाराजगी दूर कर दूंगा। ऐ, इतनी चुप क्‍यों हो, कुछ बोलती क्‍यों नही ? मेरी जान निकली जा रही है। हैलो, हैलो, स्‍वरा, जस्‍ट रिमेम्‍बर, यू आर माई फिएंसी, मेरी छोटू सी स्‍वरा, मेरी वाग्‍दत्‍ता।‘  
फोन पर अमन के मुंह से निकले शब्‍द इतने रेतीले कंकरीले थे जो आसपास चलती आंधी में तेजी से मिलकर धूल कंकड़ बनकर उसकी आंखों में चुभने लगे। कोरे शब्‍द थे कि हवा में उड़ते कागजों की तरह बेवजह गोल गोल उड़ रहे थे। आधे अधूरे शब्‍द थे कि खंडित प्रतिमा की तरह पूजने लायक नही थे। चमकीले सोने जैसे दिखते शब्‍द धीरे धीरे परखने पर अंदर से पीतल के निकले कि उन पर स्‍वरा का भरेासा ही उठ गया। नकली शब्‍दों के वादे इरादे इतनी बार एक जैसे तरीके से दुहराए गए कि उनका वजूद भीतर से खोखले पेड़ की तरह ढह चुका था। पहले जिन शब्‍दों से वह खुद को बार बार तसल्‍ली देती समझाती रही, आज वही शब्‍द सुनकर अनायास हंसी सी आ गई। न, झूठ के चमकीले रैपर में लिपटे इन शब्‍दों में अब कोई जान ही नही बची। नए पुराने शब्‍दों को रचते गढ़ते या नए सिरे से पढ़ते हुए इतना लंबा समय बीत गया पर वह इनका सार्थक मतलब नही निकाल सकी। पुराने शब्‍द तो पहले ही धूप खाए सूखे पत्‍ते की तरह निष्‍प्राण हो चुके थे। वक्‍त की मार से निचुड़े अंधेरे कोने में धूल फांकता फिजूल शब्‍द है वाग्‍दत्‍ता। इसकी भला अब क्‍या अहमियत ? ऐसे बेजान शब्‍द में से कोई अर्थ नही निकल सकता। पुराने एहसास तो आज हड़प्‍पाकालीन भाषा की तरह अबूझ होकर अपने आप गुम होते गए, कितना कुछ आउट ऑफ डेट यानी आउट ऑफ माइंड। 
इसी बीच अनायास फिर से फोन बजने लगा- अमन का नंबर देखकर मन में आया, कह दें- अब कुछ कहने सुनने की जरूरत नही, परंतु न जाने क्‍या सोचकर खामोशी ओढ़ ली। अचानक बीच में ही खत्‍म किए चैप्‍टर के बाद थोड़ा समय अंतराल भी तो जरूरी है न, ताकि अगली यात्रा के लिए वह खुद को बखूबी पूरे मजबूती से तैयार कर सके । अमन की आवाज को अनसुना करती स्‍वरा के तेज कदम किसी और दिशा की तरफ मुड़ने लगे- कुछ नया करने का इरादा लिए वह बदली भरे आसमान के नीचे खड़ी होकर तेजी से भागते समय में आते जाते चेहरों को देखती पढ़ती, गुनती और खुद को समझती, समझाती रही। बदलते दौर में लोगों में तेजी से आए बदलाव को सहज ढंग से स्‍वीकार कर पाना बहुत आसान तो नही होता न, मगर इतना मुश्‍किल भी नही, सोचते हुए उसके होंठ अनायास मुस्‍कराने लगे।
रजनी गुप्त हिंदी की वरिष्ठ लेखिका हैं. वाणी प्रकाशन, भारतीय ज्ञानपीठ, किताबघर, सामयिक आदि प्रतिष्ठित प्रकाशनों से आधा दर्जन से अधिक उपन्यास प्रकाशित. पांच कहानी-संग्रह भी प्रकाशित हैं. इसके अलावा आलोचनात्मक, आलेख संग्रह, डायरी आदि विधाओं में भी पुस्तकें प्रकाशित. आपकी रचनाओं पर दर्जनों विश्‍वविद्यालय में शोध कार्य सम्‍पन्‍न एवं देश भर के अन्‍य विश्‍वविद्यालयों में शोध कार्य जारी. अनेक सम्मानों से सम्मानित. संपर्क - 09452295943 एवं gupt.rajni@gmail.com

1 टिप्पणी

  1. ” बदलते दौर ” की कड़वी सच्चाई है यह कहानी !
    जीवन के सच का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण !

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