Friday, May 17, 2024
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डॉ. रूबी भूषण की दो ग़ज़लें

(1)
हुनर यही तो मेरी ज़िंदगी के काम आए
ग़ज़ल की बात करूं और तुम्हारा नाम आए
कनीज़ बन के स्वागत करूँ मैं शाम ओ सहर
किवाड़ दिल के खुले ,सामने ग़ुलाम आए
हर एक दिन की शुरुआत हो तेरे दम से
तेरे ही दम से मेरी ज़िंदगी की शाम आए
कोई तो हो जो लगे ख़ास की तरह मुझ को
जो मिलने आए अभी तक वह सिर्फ़ आम आए
नज़र मिले तो नज़र से मैं काम ले लूंगी
हूँ मुंतज़िर के नज़र से कोई पयाम आए
मनाऊंगी मैं उसी लम्हा ईद की खुशियां
तुम्हारी शोक निगाहों से जब सलाम आए
उन्हीं के हाथों मेरा कत्ल हो गया रूबी
तो दफ़न करने की ख़ातिर वह ही तमाम आए
(2)
साथ उसका रहा दिल्लगी की तरह
ज़िंदगी कब रही ज़िंदगी की तरह
कोशिश तो रही हर दफ़ा ही मगर
वह उलझती गई शायरी की तरह
जिसको अपना समझ के बुलाया कभी
वह मिला तो मिला हर किसी की तरह
मैं वह बाती बनी नाम उसका लिए
उम्र भर मैं जली आरती की तरह
हम अंधेरे में कब तक भटकते रहे
पास आओ कभी रोशनी की तरह
डॉ रूबी भूषण
102, शिवराज अपार्टमेंट,
ईस्ट बोरिंग कैनल रोड,
पंचमुखी हनुमान मंदिर के समीप,
पटना-800001
मोबाइल – +91-9931918723
Email –  ruby4u30@gmail.com
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