Sunday, May 12, 2024
होमग़ज़ल एवं गीततीन ग़ज़लें - डॉ पुष्पलता मुजफ्फ़रनगर 

तीन ग़ज़लें – डॉ पुष्पलता मुजफ्फ़रनगर 

1.
ख़्वाब, ताबीर नहीं मिलती है
चाँद,तस्वीर नहीं मिलती है
इश्क,चेहरों से हुआ  है ग़ायब
कोई तहरीर नहीं मिलती है
रूह,राँझे की भटकती होगी
आजकल हीर नहीं मिलती है
ज़िन्दगी ज्यों पड़ी हो गुर्बत में
अब वो जागीर नहीं मिलती है
2.
आँखॆं ग़ायब हैं या नज़र ग़ायब
उसकी बातों से है असर ग़ायब
दिल ये पानी से भर गया शायद
और हैं प्यास से अधर ग़ायब
यूँ तो सूरज भी उगेगा लेकिन
अपनी रातों से है सहर ग़ायब
उसको मरने भी न देगी उलझन
और  जीने की है ख़बर ग़ायब
3.
डूबने को है समंदर मौज या साहिल नहीं
इश्क  का दम भर रहा था दोस्त भी क़ाबिल नहीं
डूबती हैं कश्तियाँ नादानियों का हश्र है
रोज  ज़िम्मेदार इसका तो कोई साहिल नहीं
इस तड़पती और भटकती रूह का अब क्या करूँ
तुम ने ही मारा है ख़ुद को  मैं  तेरी  क़ातिल नहीं
क्या करें उम्मीद वो कुछ तो करेगा फैसला
बेसबब की है जिरह सब,  वो कोई आदिल नहीं
रात को दिन कह रहा है और दिन को रात जो
और कहता है कि सच है, वह कोई बातिल नहीं

 

 

 

 

 

 

डॉ पुष्पलता, मुजफ्फ़रनगर,
ई-मेलः pushp.mzn@gmail.com
RELATED ARTICLES

1 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest

Latest