Sunday, May 19, 2024
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सुनीता पाठक की दो लघुकथाएँ

बॉडी फ्रीज़र
“पापा मम्मी, मुझे सब कुछ आपने दिया… इतनी अच्छी एजुकेशन, भरपूर प्यार दुलार और विदेश जाने का अवसर भी… अब जिंदगी में सिर्फ एक ही कमी खलती है कि मुझे आपसे दूर रहना पड़ रहा है.. लेकिन मैं भी क्या करूं..??? मेरे टैलेंट और एक्सपीरियंस के हिसाब से अब भारत में मेरे लिए कोई अपॉर्चुनिटी और पैकेज भी तो नहीं है..” भारत से वापस जाने का समय नजदीक आते ही बेटे ने भावुक होते हुए कहा।
“मैंने ऑक्सीजन सिलेंडर, न्यूमेंलाइजर ब्लड प्रेशर और डायबिटीज चेकअप के एडवांस इंस्ट्रूमेंट भी लाकर रख दिए है। संजीवनी हॉस्पिटल में दादा जी, दादी जी और आप दोनों के मंथली चेकअप का साल भर का एडवांस भी जमा कर दिया है… वहां से हर महीने एक हेल्थ वर्कर आकर आपका चेकअप ही करेगा और आपके एक फोन पर रूटीन टेस्ट के लिए भी आ जाएगा… वहां के एक्सपर्ट्स के भी नंबर ले लिए है मैंने… मैं आपकी सेहत के लिए उनके कांटेक्ट में रहूंगा…. प्लीज आप लोग भी अपनी सेहत में कोई लापरवाही मत बरतना। अमेरिका में तो  सभी बहुत हेल्थ कॉन्शियस हैं।” बेटे ने अपनी कुछ जिम्मेदारियां पूरी करने का प्रयास किया था।
“हां, तुम ठीक कह रहे हो बेटा…” मां ने सभी की ओर से आश्वस्त कर दिया था।
“पापा, मैं अमेरिका जाने का टिकट बुक कर रहा हूं… कोई और जरूरी बात,जरूरी चीज हो, मुझे जो आपके लिए मुझे लेकर आनी हो या बुक करनी हो तो आप मुझे बता दें ।”बेटे ने अपना टिकिट बुक करने के लिए लैपटॉप खोलते हुए कहा।
“बेटा तुम ही इस घर की रौनक रहे.. तुम्हारे जाने के बाद अमेरिका वासी बेटे का इंतजार ही सबसे जरूरी चीज बन जाता है …हम कितने भी हेल्थ कॉन्शियस रहें पर मृत्यु अटल सत्य है। हम यह जानते हैं कि हम चारों में से किसी के भी अंतिम सांस लेने पर तुम्हारी इच्छा अंतिम दर्शन करने के लिए जल्दी से जल्दी भारत आने की रहेगी… इस दूरी को तय करके यहां आने में लगने वाले समय के बाद तुम्हारे मन में हमारी विकृत छवि ना बने इसके लिए मृत देह को तुम्हारे आने तक सुरक्षित रखने के लिए अब बस एक ही चीज जरूरी लगती है …..बेटा तुम एक बॉडी फ्रीज़र बुक कर दो..” पापा की रुंधे गले से बतलाई गई इस जरूरत के बाद एक मौन पसर गया था कमरे में ….बेटे की भी उंगलियां अपना टिकट बुक करते हुए कांप कर रुक गई थीं।

डिमेंशिया

“क्या बताएं अंकल जी आपने तो पापा जी को कितना स्वस्थ और उत्साह से भरपूर देखा है…. सुबह से शाम तक व्यवस्थित दिनचर्या रही है इनकी… हमेशा दूसरों की समस्या सुलझाने के लिए तत्पर रहते थे पापा जी|…और अब…. पापा जी डिमेंशिया और अल्जाइमर से पीड़ित हो गए हैं….| जिंदगी भर समाज सेवा की ….और अब खुद एक ’‘बोझ’’ बनकर रह गए हैं|… वर्तमान की बातें और घटनाएं एक पल में भूल जाते हैं और उन लोगों को बार-बार याद करते हैं जो अब इस दुनिया में ही नहीं है|… कुछ भी उटपटांग विचार इनके मन में आते रहते हैं और फालतू की ज़िद लेकर बैठ जाते हैं|
 मुझे तो लगता है अंकल कि मैं कहीं पागल ना हो जाऊं….. ना इन्हें अकेला छोड़ सकते हैं और ना ही… इनके साथ रह पाते हैं| इनकी देखभाल करते हुए तो लगता है कि इस तरह तो हम समाज से ही कट जाएंगे|”- आशीष ने आक्रोश और झल्लाहट के साथ स्थिति बयां कर दी थी|
 मैं 5 साल बाद अपने मित्र विनायक से मिलने आज इंदौर आया था| विनायक से मुलाकात हुई……. लेकिन उस उत्साह से नहीं…. जिस गर्मजोशी की मैं उम्मीद लेकर आया था|…. जब तक बीना भाभी  विनायक के साथ थी….मेरे आने पर बतियाते हुए सब्जी काटने बैठ जाती थी…” खाना यहीं खा कर जाना है”… साधिकार मनुहार लेकर| और अब…… बोझिल से माहौल में -” अब चलता हूं विनायक” -…मेरे यह कहकर इजाजत लेते समय  विनायक असहज हो गए थे| आशीष ने अंदर की ओर आवाज दी-” अरे जरा चाय भेजना…..|”  विनायक  साधिकार चाय का आग्रह भी ना कर सके| कुछ और पल विनायक के साथ गुजारने के लालच में ,मैं बिना प्रेम की मिठास से आ रही चाय का इंतजार करने लगा था| चाय केवल दो कप ही भेजी गई…. एक कप आशीष ने स्वयं उठाते हुए कहा-” अंकल चाय लीजिए|”
“ विनायक तुम तो बहुत चाय पीते थे… अब क्या चाय पीना छोड़ दी है ?” मैंने माहौल को हल्का करने के लिहाज से कहा|
“ अगर मेरे लिए भी चाय आती तो मैं भी पी लेता|”… विनायक ने बेबाकी से कहा|
“  दरअसल बात यह है अंकल… कि पापा का अधिक चाय पीने से यूरिन से कंट्रोल हट जाता है…. इसलिए बस सुबह एक बार ही चाय देते हैं|” आशीष ने जरा झेपते हुए कहा|
  मिलनसार और खुशमिजाज विनायक गुमसुम से हो गए हैं…… जितना पूछा जाए उतना ही जवाब देते हैं और अपनी ओर से कोई भी सवाल नहीं…..| कमरे की नीरवता तोड़ने के लिए बस आशीष ही यहां वहां की बातें कर रहा था……” आप आए तो पापा को अच्छा लगा अंकल…. वरना यूं ही गुमसुम से बैठे रहते हैं पापा जी|”
“ मैं अब जबतब आता रहूंगा बेटा…” इतना भरोसा देना लाजमी था|
“ अच्छा अब मैं चलता हूं…. विनायक कभी बनाओ प्रोग्राम भोपाल का……. बैठकर इत्मीनान से गुजरे दिनों को याद करेंगे तब”- औपचारिक विदा लेते हुए मैंने विनायक से कहा|… यह जानते हुए भी ….. तात्कालिक परिस्थितियों में यह कतई संभव नहीं है|
“ जा रहे हो बिहारी…. खाना खा कर जाते…. अभी टिफिन सेंटर से मेरा टिफिन आता ही होगा…|” अभी साथ गुजारे पलो में बस  टिफिन पर ही साधिकार जोर दिया था विनायक ने| बीना भाभी के गुजर जाने से कितने अकेले हो गए हैं विनायक….| विनायक तो चाय बनाने के लिए भी बैठक से अंदर की ओर आवाज न  दे पाए थे|
“ वह अंकल ऐसा है ना कि….. पापा इस याददाश्त की कमजोरी की वजह से बार-बार भूल जाते हैं कि उन्होंने खाना खा लिया है या नहीं…. और अपनी बहू पर दोषारोपण करते हैं कि उसने मुझे सुबह से खाने को नहीं पूछा….| टिफिन से खाना खाने के बाद … टिफिन को हम शाम तक खुला ही छोड़ देते हैं बार-बार यह याद दिलाने के लिए….. कि आपने खाना खा लिया है…. डिमेंशिया ने तो सब कुछ बदल रख दिया है|” ठंडी सांस लेते हुए टिफिन लगाने की मजबूरी बता दी आशीष  ने|
“ अरे साथ में भोजन फिर कभी विनायक ….आज तो बस मुझे इजाजत दो|” कहकर भारी कदमों से सीढ़ियां उतर गया था मैं…| सोच रहा था कि यहां डिमेंशिया का पेशेंट कौन है…..? विनायक….. जिसे व्रद्धावस्था की दहलीज पर मस्तिष्क की कोशिकाओं के सिकुड़ने से डिमेंशिया ने घेरा है….  या…. आशीष…. जो बचपन से आज तक पिता से मिले प्यार और छत्रछाया को भूलकर भावनाओं के संकुचित होने से सम्वेदनाओं के डिमेंशिया से पीड़ित है|
सुनीता पाठक
सुनीता पाठक
संपर्क - sunitapathak24@gmail.com
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