प्रश्न यह भी उठता है कि अमरीका चाहता है कि उसके नागरिकों को बंदूक रखने की इजाज़त होनी चाहिये मगर गर्भपात की नहीं। कहीं उसे डर तो नहीं कि गर्भपात के कारण उन बंदूक की गोलियों से मरने वाले लोगों की कमी हो जाएगी। हमें तो लगता है कि अमरीका के इस नये कानून के कारण अमरीका से एक नये किस्म का टूरिज़्म शुरू होने जा रहा है – कनाडा, ब्रिटेन, युरोप और भारत जैसे देशों में अब एक नया टूरिज़्म शुरू होने की संभावना दिखाई दे रही है – गर्भपात टूरिज़्म।
अमरीका में लगातार बंदूक कल्चर पर सवाल उठाए जा रहे थे। स्कूलों में बच्चों पर गोलियां चलाई जा रही थीं। अमरीकी राष्ट्रपति से लेकर तमाम राज्यों की सरकारों में इतनी हिम्मत नहीं थी कि बंदूक रखने पर पाबन्दी लगाई जा सके।
चार्ल्टन हेस्टन सरीखे फ़िल्म कलाकार जो कि मूसा औ बेनहर जैसे किरदार पर्दे पर निभाते रहे, वे भी राइफ़ल और बंदूक के समर्थन में खड़े दिखाई देते रहे। हाल ही में एक स्कूली बच्चों पर हुई गोलीबारी के बावजूद अमरीकी सरकार या न्याय व्यवस्था ने इस विषय पर कोई सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया।
मगर अमरीका की सुप्रीम कोर्ट ने अचानक एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए अपने ही पचास वर्ष पुराने फ़ैसले को पलट दिया है और अब अमरीका में गर्भपात को संवैधानिक संरक्षण नहीं प्राप्त होगा।
नौ जजों की एक बेंच – जिस में कि तीन महिलाएं भी शामिल हैं – पांच चार के बहुमत से यह निर्णय सुना दिया कि अब अमरीका में गर्भपात कानूनी नहीं है। कोई भी राज्य जब भी चाहे इसे ग़ैर-कानूनी घोषित कर सकता है।
मुख्य न्यायाधीष जॉन रॉबर्ट्स के साथ ब्रेट कैवनॉग, ऐलेना कागन, नील गोर्सुच, एमी कोनी बैरेट, सैमुअल एलिटो, क्लेरेंस थॉमस, , स्टीफन ब्रेयर और सोनिया सोटोमायर इस बेंच का हिस्सा थे। यानी कि इस बेंच में तीन महिलाएं भी शामिल थीं। जबकि ऐलेना कागन और सोनिया सोटोमायर की सोच गर्भपात नियम के पक्ष में रही है। एमी कोनी बैरेट हमेशी गर्भपात कानून के विरुद्ध रही हैं।
पचास वर्ष पहले के ‘रो – बनाम – वेड’ केस में अपने ही दिये गये निर्णय को अमरीकी सुप्रीम कोर्ट ने उलट दिया और यह तालिबानी फ़रमान सुना दिया कि औरत को अपने गर्भ गिरवाने की इजाज़त नहीं हैं। हो सकता है कि ‘पुरवाई’ के पाठक जानना चाहें कि यह ‘रो – बनाम – वेड’ का मामला था क्या। तो उन्हें बताना चाहूंगा कि पचास वर्ष पहले रो बनाम वेड का ऐतिहासिक फैसला नॉर्मा मैककॉर्वी नाम की एक महिला की याचिका पर आया था।
अदालती कार्यवाही में उनको ही ‘जेन रो’ नाम दिया गया है। दरअसल, मैककॉर्वी 1969 में अपना अबॉर्शन कराना चाहती थीं। उनके पहले से ही दो बच्चे थे। वह टेक्सास में रहती थीं जहां गर्भपात गैरकानूनी है, उसकी इजाज़त तभी दी जा सकती है जब गर्भ धारण करने से मां की जान को खतरा हो। मैककॉर्वी ने फेडरल कोर्ट में याचिका दाखिल कर दावा किया कि टेक्सास का गर्भपात कानूनी असंवैधानिक है। इस मुकदमे में बचाव पक्ष के तौर पर तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी हेनरी वेड का नाम था। हालांकि नॉर्मा मैककॉर्वी ने उस समय सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने से पहले ही एक बेटी को जन्म दे दिया था।
ज़ाहिर है कि ‘पुरवाई’ के पाठक जानना चाहेंगे कि अलग-अलग देशों में गर्भपात को लेकर क्या कानून हैं। तो यह जान लेना ठीक होगा कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, इराक, लीबिया, लेबनान और श्रीलंका में गर्भवती महिला की जीवन पर ख़तरा होने पर ही गर्भपात करवाया जा सकता है। बांग्लादेश और बाहरीन में वैसे तो गर्भपात पर पूरी तरह से पाबंदी है मगर महिला की जान को ख़तरा होने पर यहां भी गर्भपात की अनुमति है। मेडागास्कर और मालटा में गर्भपात पर पूरी तरह से पाबंदी है।
चीन और कनाडा में गर्भपात की खुली अनुमति है। जबकि फ़्रांस में 14 सप्ताह तक कभी भी गर्भपात की अनुमति है मगर जान का ख़तरा होने पर कभी भी करवाया जा सकता है। आयरलैंड में गर्भपात को लेकर बहुत प्रदर्शन हुए। अंततः 2018 में यह कानून बनाया गया कि गर्भ धारण करने के 12 सप्ताह के भीतर गर्भपात करवाया जा सकता है।
भारत में गर्भपात, कानूनी रूप से वैध है, और इसके लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 जिम्मेदार है। हालांकि, कानूनी तौर पर, गर्भधारण के केवल 20 सप्ताह तक ही गर्भपात कराया जा सकता है। ‘मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट’ की धारा 3 (2) के तहत, गर्भधारण के 20 सप्ताह तक (या 12 सप्ताह तक, जैसा भी मामला हो) गर्भ को कुछ विशेष परिस्थितियों में समाप्त किया जा सकता है।
यदि गर्भावस्था की निरंतरता, गर्भवती महिला के जीवन पर खतरा डालेगी या उसके शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य पर इसके गंभीर प्रभाव होंगे… यदि गर्भावस्था, बलात्कार का परिणाम है… यदि यह संभावना है कि बच्चा (यदि जन्म लेता है) तो वह गंभीर शारीरिक या मानसिक दोष के साथ पैदा होगा… या यदि गर्भ-निरोधक विफल रहा है और गर्भधारण हो गया है।
भारत में गर्भपात करवाने की यदि कोई ठोस वजह नहीं है तो भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के तहत गर्भपात करवाने वाली महिला और करने वाले सर्जन अपराध के घेरे में आ जाएंगे और उन्हें तीन साल तक की कैद की सज़ा हो सकती है। यदि गर्भवती महिला की मर्ज़ी के विरुद्ध गर्भपात करवाया जाए तो करवाने वालों को दस साल तक की सज़ा हो सकती है।
भारत में यह कदम इसलिये भी आवश्यक है कि कई बार ससुराल वाले बेटी की भ्रूण-हत्या करवाने के लिये अपनी बहू पर दबाव बनाते हैं।
अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइदन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से क्षुब्ध हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दुखद बताया है। उन्होंने कहा कि यह फैसला देश को 150 साल पीछे ले जाएगा। उन्होंने संकल्प लिया है कि वो महिला अधिकारों की रक्षा के हर संभव प्रयास करेंगे।
वहीं अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के गर्भपात के लिए संवैधानिक संरक्षण को समाप्त करने की तीखी आलोचना की है। ओबामा ने ट्वीट किया है कि यह फैसला लाखों नागरिकों की स्वतंत्रता पर हमला है।
अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने कहा कि अमेरिका की जनता से संवैधानिक अधिकार छीन लिया गया है। उन्होंने आगे कहा कि अमेरिका में लाखों महिलाएं स्वास्थ्य देखभाल और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के बिना आज रात बिस्तर पर जाएंगी। यह एक हेल्थ केयर संकट है… कमला हैरिस ने अमेरिकियों से गर्भपात के अधिकारों के रक्षा में एक साथ खड़े होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ये फैसला देश को पीछे की ओर ले जा रहा है। रो बनाम वेड के फैसले को पलटने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने घोषणा की कि अमेरिका में स्वास्थ्य सेवाएं संकट की स्थिति में हैं।
प्रश्न यह भी उठता है कि अमरीका चाहता है कि उसके नागरिकों को बंदूक रखने की इजाज़त होनी चाहिये मगर गर्भपात की नहीं। कहीं उसे डर तो नहीं कि गर्भपात के कारण उन बंदूक की गोलियों से मरने वाले लोगों की कमी हो जाएगी। हमें तो लगता है कि अमरीका के इस नये कानून के कारण अमरीका से एक नये किस्म का टूरिज़्म शुरू होने जा रहा है – कनाडा, ब्रिटेन, युरोप और भारत जैसे देशों में अब एक नया टूरिज़्म शुरू होने की संभावना दिखाई दे रही है – गर्भपात टूरिज़्म।
Congratulations for your attention- drawing Editorial about what is being discussed everywhere.
That Kamala Harris herself is objecting against this anti-abortion law as passed by the US Court and saying that abortion is very much a constitutional right of women is a welcome stand in favour of abortion.
Regards
Deepak Sharma
Deepak ji Republicans have always been in favour of the ban while the Democrats hold a different opinion. It is important for all of us to stand for rights of women in every country.
सुन्दर सत्य, कही व्यंगात्म वा कही वैधानिक वर्णन से। समयानुसार विभिन्न देशों में प्रारम्भ से अब तक अलग अलग रूप से कानून बनाए। आज भी बनते रहेंगे, वाद विवाद होते रहेंगे।
महिलाओं को लेकर इन्सान कभी भी उदार नहीं हो सकता, इस कानून ने यह सिद्ध कर दिया। बहुत दुःख हुआ कि भीतर कहीं विकसित से विकसित देश तालिबानी सोच रखते हैं। गर्भ स्त्री धारण करे इच्छा से या जबरदस्ती से, गर्भकाल के कष्ट झेले बच्चे के जन्म के बाद सारी जिम्मेदारी निभाये वही, पर गर्भ रखना है या नहीं यह उसका निर्णय नहीं… कठपुतली बना रखा है आज तक!!! संपादकीय से विश्व के सभी देशों के गर्भपात कानूनों की जानकारी हुई, अमेरिका का नया नामकरण बहुत पसन्द आया। एक और रोचक, ज्ञानवर्धक संपादकीय के लिए आभार एवं बधाई।
शैली जी आपको अमरीका का नया नाम पसन्द आया… अच्छा लगा। अमरीका पूरी दुनिया को सीख देता है मगर अपने मामले में फिसड्डी… प्रयास रहता है कि संपादकीय के माध्यम से पुरवाई के पाठकों को हर बार कुछ नया सोचने को मिले।
सयुंक्त राज्य अमेरिका में पारित नए नियम पर आपका ये सम्पादकीय कम शब्दों में कई बिंदुओं को समेट लेता है। प्रश्न वाकई ग़ौरतलब हैं कि आख़िर अमेरिकी सरकार को साधारणतः जनविरोधी (विशेष तौर से महिला विरोधी) कानून पर निर्णय लेने की जरूरत आन पढ़ी। आपने संपादकीय के अंत में जिस गर्भपात टूरिज्म की आशंका जताई है, वह बेवजह नहीं हैं। आज संसार के विभिन्न देशों के बीच की दूरियां कुछ घण्टों में सिमट कर रह गई है, ऐसे में इच्छुक लोग अपने कदम उन देशों की ओर अवश्य ही बढ़ाएंगे, जहां इस कार्य की वैधानिक अनुमति है।
फिलहाल हार्दिक बधाई तेजेन्द्र सर, आपके इस विषय पर स्पष्ट विचार बांटने के लिए।
विरेन्द्र भाई आप निरंतर पुरवाई के संपादकीय पढ़ते हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं। यह घटना सच में निंदनीय है। महिलाओं के अधिकारों पर अंकुश लगाया जा रहा है।
सभी तथ्य , उन पर चिंतन और तर्क महत्वहीन हो जाते है। मूल समस्या है अमेरिका में शक्तिशाली लॉबी। दो पावरफुल लॉबी हैं : गन लॉबी और दूसरी चर्च। गन लॉबी गन को जाने नही देगी और चर्च अबॉर्शन के विरोध में पूरी ताकत लगा रही है। अब प्रश्न यह है कि इन दो बिल्लियों के गले में घंटी बांधेगा कौन ?
जिस संदर्भ में अमेरिका में ये प्रतिबंध लगाया गया है उस पर बहस मुबाहिसा भी ठीक है कुछ लोग समर्थन में और कुछ लोग विरोध में होंगे लेकिन भारतीय संस्कृति के संदर्भ में गर्भपात को उचित तो नही ठहराया जा सकता भारतीय होने के नाते हम इसे अच्छा नहीं मानते भले ही भारत में भी कुछ प्रतिबंधों के साथ ये खुलेआम होता है।
” काम क्रोध मद लोभ नाथ नरक के पंथ ” की अवधारणा को मानने वाले भारत में तो काम पर भी सांस्कृतिक प्रतिबंध तब तक लगाया गया है जबकि वंश को आगे बढ़ाने के लिए ये आवश्यक न हो। मने अन्यथा या तथाकथित आनंद प्राप्ति के लिए रतिक्रिया या संभोग को भारतीय संस्कृति में अच्छा नहीं मानते। वीर्यह्रास को रोकने के लिए ब्रह्मचर्य संकल्प व्रत की अवधारणा की चर्चा वर्णाश्रम में की गई है।यहां गर्भपात को तो पाप ही मानते है।हमारी ऋषि परंपरा में आनंद प्राप्ति के लिए यौगिक पद्धति से स्तंभन क्रिया द्वारा पिनियल ग्लैंड को सक्रिय करके सतत आनंद प्राप्ति को सर्वोत्कृष्ट कहा गया है ,,, आधुनिक जीव विज्ञान में ये स्पष्ट निष्कर्ष निकले हैं कि संभोग से कई गुना अधिक आनंद पिनियल ग्लैंड की सक्रियता से होने वाले हार्मोन स्राव से मिलता है ,,, अब जबकि भारतीय संस्कृति संभोग पर इतनी सतर्क संवेदनशील और जागरूक है वो गर्भपात की इजाजत कैसे और क्योंकर दे सकती है।
मुझे लगता है गर्भपात और गर्भधान यह एक महिला का नितांत निजी निर्णय होना चाहिए उसका मूलभूत अधिकार होना चाहिए इसका निर्णय इसकी सुविधा इसका अधिकार केवल एक स्त्री पर छोड़ दीजिए कि मुझे कब और कैसे गर्भ धारण करना है गर्भ रखना है या नहीं रखना और वह गर्भपात करना चाहती है तो इसके पीछे यह व्यर्थ के तर्क वितर्क का प्रयोग ना किया जाए उसको पूरा अधिकार है जितना गर्भधान का उतना ही गर्भपात का यही आधुनिक समाज की परिभाषा और मांग होनी चाहिए हम स्त्रियां भी मनुष्य हैं जीव हैं हमें भी जीवन का पूरा अधिकार और सुविधा मिलने चाहिए
एक स्त्री के निर्णय का सम्मान नहीं होना चाहिए क्या?नितांत व्यक्तिगत मसला ! इस प्रकार कुछ भी थोप दो स्त्री पर? क्या बदलाव आया है? ऐसे नहीं तो वैसे, यानि टार्गेट तो स्त्री ही न?कुछ नहीं होने वाला…..
नवीन नामकरण के लिए बधाई।आकर्षित करता व्यंग्यात्मक नामकरण ! साधुवाद !
नितांत असंवैधानिक निर्णय… किंतु जिस प्रकार प्रत्येक स्थिति के दो पहलू होते है, इस संदर्भ में भी दो पक्ष हैं, अधिकार व जीवन सम्बंधी। हमारे अधिकार किसी भी जीवन को समाप्त करने का अनैतिक कृत्य करने का हक़ नहीं देते।
यह निर्णय एक महिला को उसके अनचाहे गर्भ ,जो विषम परिस्थितियों से उसको धारण करना पड़ा हो ,चाहे वह एक बलात्कार पीड़िता हो या मानसिक असंतुलित औरत के साथ किया गया व्यभिचार होजिससे वह चाह कर भी निजात नहीं पा सकती, यह निर्णय उन हालात के लिए सही मायने रखता है जहां आज की युवा पीढ़ी ओपन सेक्स के तहत गर्भ को धारण करने लगी है क्योंकि इसे वह अपना कारगर हथियार मान चुकी है, कि किसी भी स्थिति में गर्भपात करा ही लिया जाएगा।यदि अमेरिका अपने इस सत्य को मान चुका है,कि उनके देश में युवा पीढ़ी में पनपता हुआ ओपन सेक्स गर्भपात के अनुपात को बढ़ावा दे रहा है ,तो यह नियम लागू करना बिल्कुल जायज होगा ,लेकिन इसी के साथ साथ उनको सत्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि जो अनचाहा गर्भ एक महिला को धारण करना पड़ता है उससे उनको रिलैक्सेशन( तनाव मुक्त)देना चाहिए।
अन्यथा भविष्य में महिलाओं से संबंधित कोई भी असंगत निर्णय लिया जा सकता है। गर्भपात कराना किसी भी महिला के लिए रुचिकर नहीं होगा और यह एक जघन्य अपराध भी है,किंतु गर्भपात के संवैधानिक अधिकार किसी भी महिला को आवश्यकतानुसार उसकी स्थिति-परिस्थिति में इस निर्णय को करने के लिए अनुमति देते हैं, किंतु अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इस के अधिकार का पूर्णत:हनन, भयावह त्रासदी व भविष्य के प्रति चिंतन का विषय है। अतः अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट को दोनों पक्ष की परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेना उचित होता।
अत्यावश्यक चिंतनशील मुद्दे पर संपादकीय के लिए साधुवाद।
डॉ.ऋतु माथुर
Congratulations for your attention- drawing Editorial about what is being discussed everywhere.
That Kamala Harris herself is objecting against this anti-abortion law as passed by the US Court and saying that abortion is very much a constitutional right of women is a welcome stand in favour of abortion.
Regards
Deepak Sharma
Deepak ji Republicans have always been in favour of the ban while the Democrats hold a different opinion. It is important for all of us to stand for rights of women in every country.
सुन्दर सत्य, कही व्यंगात्म वा कही वैधानिक वर्णन से। समयानुसार विभिन्न देशों में प्रारम्भ से अब तक अलग अलग रूप से कानून बनाए। आज भी बनते रहेंगे, वाद विवाद होते रहेंगे।
भाई अमरीका दुनिया भर को सीख देता है। मगर स्वयं अपना ही कहा नहीं मानता।
बहुत सुंदर विश्लेषण
महिलाओं को लेकर इन्सान कभी भी उदार नहीं हो सकता, इस कानून ने यह सिद्ध कर दिया। बहुत दुःख हुआ कि भीतर कहीं विकसित से विकसित देश तालिबानी सोच रखते हैं। गर्भ स्त्री धारण करे इच्छा से या जबरदस्ती से, गर्भकाल के कष्ट झेले बच्चे के जन्म के बाद सारी जिम्मेदारी निभाये वही, पर गर्भ रखना है या नहीं यह उसका निर्णय नहीं… कठपुतली बना रखा है आज तक!!! संपादकीय से विश्व के सभी देशों के गर्भपात कानूनों की जानकारी हुई, अमेरिका का नया नामकरण बहुत पसन्द आया। एक और रोचक, ज्ञानवर्धक संपादकीय के लिए आभार एवं बधाई।
शैली जी आपको अमरीका का नया नाम पसन्द आया… अच्छा लगा। अमरीका पूरी दुनिया को सीख देता है मगर अपने मामले में फिसड्डी… प्रयास रहता है कि संपादकीय के माध्यम से पुरवाई के पाठकों को हर बार कुछ नया सोचने को मिले।
सयुंक्त राज्य अमेरिका में पारित नए नियम पर आपका ये सम्पादकीय कम शब्दों में कई बिंदुओं को समेट लेता है। प्रश्न वाकई ग़ौरतलब हैं कि आख़िर अमेरिकी सरकार को साधारणतः जनविरोधी (विशेष तौर से महिला विरोधी) कानून पर निर्णय लेने की जरूरत आन पढ़ी। आपने संपादकीय के अंत में जिस गर्भपात टूरिज्म की आशंका जताई है, वह बेवजह नहीं हैं। आज संसार के विभिन्न देशों के बीच की दूरियां कुछ घण्टों में सिमट कर रह गई है, ऐसे में इच्छुक लोग अपने कदम उन देशों की ओर अवश्य ही बढ़ाएंगे, जहां इस कार्य की वैधानिक अनुमति है।
फिलहाल हार्दिक बधाई तेजेन्द्र सर, आपके इस विषय पर स्पष्ट विचार बांटने के लिए।
विरेन्द्र भाई आप निरंतर पुरवाई के संपादकीय पढ़ते हैं और अपनी प्रतिक्रिया भी देते हैं। यह घटना सच में निंदनीय है। महिलाओं के अधिकारों पर अंकुश लगाया जा रहा है।
सभी तथ्य , उन पर चिंतन और तर्क महत्वहीन हो जाते है। मूल समस्या है अमेरिका में शक्तिशाली लॉबी। दो पावरफुल लॉबी हैं : गन लॉबी और दूसरी चर्च। गन लॉबी गन को जाने नही देगी और चर्च अबॉर्शन के विरोध में पूरी ताकत लगा रही है। अब प्रश्न यह है कि इन दो बिल्लियों के गले में घंटी बांधेगा कौन ?
सही कहा है हरिहर भाई।
कटु सत्य आदरणीय
धन्यवाद भावना
जिस संदर्भ में अमेरिका में ये प्रतिबंध लगाया गया है उस पर बहस मुबाहिसा भी ठीक है कुछ लोग समर्थन में और कुछ लोग विरोध में होंगे लेकिन भारतीय संस्कृति के संदर्भ में गर्भपात को उचित तो नही ठहराया जा सकता भारतीय होने के नाते हम इसे अच्छा नहीं मानते भले ही भारत में भी कुछ प्रतिबंधों के साथ ये खुलेआम होता है।
” काम क्रोध मद लोभ नाथ नरक के पंथ ” की अवधारणा को मानने वाले भारत में तो काम पर भी सांस्कृतिक प्रतिबंध तब तक लगाया गया है जबकि वंश को आगे बढ़ाने के लिए ये आवश्यक न हो। मने अन्यथा या तथाकथित आनंद प्राप्ति के लिए रतिक्रिया या संभोग को भारतीय संस्कृति में अच्छा नहीं मानते। वीर्यह्रास को रोकने के लिए ब्रह्मचर्य संकल्प व्रत की अवधारणा की चर्चा वर्णाश्रम में की गई है।यहां गर्भपात को तो पाप ही मानते है।हमारी ऋषि परंपरा में आनंद प्राप्ति के लिए यौगिक पद्धति से स्तंभन क्रिया द्वारा पिनियल ग्लैंड को सक्रिय करके सतत आनंद प्राप्ति को सर्वोत्कृष्ट कहा गया है ,,, आधुनिक जीव विज्ञान में ये स्पष्ट निष्कर्ष निकले हैं कि संभोग से कई गुना अधिक आनंद पिनियल ग्लैंड की सक्रियता से होने वाले हार्मोन स्राव से मिलता है ,,, अब जबकि भारतीय संस्कृति संभोग पर इतनी सतर्क संवेदनशील और जागरूक है वो गर्भपात की इजाजत कैसे और क्योंकर दे सकती है।
हरीश भाई आपने मुद्दे को एक अलग नज़र से देखा है… धन्यवाद
is is इस गंभीर मुद्दे पर आपके सम्पादकीय का आभार – महत्वपूर्ण सारगर्भित जानकारी. बेबाक कलम.
धन्यवाद विजया जी।
कड़वा सच और उसकी बेबाक बयानी
टिप्पणी के लिये धन्यवाद सुमन जी
मुझे लगता है गर्भपात और गर्भधान यह एक महिला का नितांत निजी निर्णय होना चाहिए उसका मूलभूत अधिकार होना चाहिए इसका निर्णय इसकी सुविधा इसका अधिकार केवल एक स्त्री पर छोड़ दीजिए कि मुझे कब और कैसे गर्भ धारण करना है गर्भ रखना है या नहीं रखना और वह गर्भपात करना चाहती है तो इसके पीछे यह व्यर्थ के तर्क वितर्क का प्रयोग ना किया जाए उसको पूरा अधिकार है जितना गर्भधान का उतना ही गर्भपात का यही आधुनिक समाज की परिभाषा और मांग होनी चाहिए हम स्त्रियां भी मनुष्य हैं जीव हैं हमें भी जीवन का पूरा अधिकार और सुविधा मिलने चाहिए
आपकी टिप्पणी भावुक कर देने वाली है। इस सटीक टिप्पणी के लिये आपको बहुत धन्यवाद दीपा जी…
एक स्त्री के निर्णय का सम्मान नहीं होना चाहिए क्या?नितांत व्यक्तिगत मसला ! इस प्रकार कुछ भी थोप दो स्त्री पर? क्या बदलाव आया है? ऐसे नहीं तो वैसे, यानि टार्गेट तो स्त्री ही न?कुछ नहीं होने वाला…..
नवीन नामकरण के लिए बधाई।आकर्षित करता व्यंग्यात्मक नामकरण ! साधुवाद !
सुन्दर संपादकीय
नितांत असंवैधानिक निर्णय… किंतु जिस प्रकार प्रत्येक स्थिति के दो पहलू होते है, इस संदर्भ में भी दो पक्ष हैं, अधिकार व जीवन सम्बंधी। हमारे अधिकार किसी भी जीवन को समाप्त करने का अनैतिक कृत्य करने का हक़ नहीं देते।
यह निर्णय एक महिला को उसके अनचाहे गर्भ ,जो विषम परिस्थितियों से उसको धारण करना पड़ा हो ,चाहे वह एक बलात्कार पीड़िता हो या मानसिक असंतुलित औरत के साथ किया गया व्यभिचार होजिससे वह चाह कर भी निजात नहीं पा सकती, यह निर्णय उन हालात के लिए सही मायने रखता है जहां आज की युवा पीढ़ी ओपन सेक्स के तहत गर्भ को धारण करने लगी है क्योंकि इसे वह अपना कारगर हथियार मान चुकी है, कि किसी भी स्थिति में गर्भपात करा ही लिया जाएगा।यदि अमेरिका अपने इस सत्य को मान चुका है,कि उनके देश में युवा पीढ़ी में पनपता हुआ ओपन सेक्स गर्भपात के अनुपात को बढ़ावा दे रहा है ,तो यह नियम लागू करना बिल्कुल जायज होगा ,लेकिन इसी के साथ साथ उनको सत्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए कि जो अनचाहा गर्भ एक महिला को धारण करना पड़ता है उससे उनको रिलैक्सेशन( तनाव मुक्त)देना चाहिए।
अन्यथा भविष्य में महिलाओं से संबंधित कोई भी असंगत निर्णय लिया जा सकता है। गर्भपात कराना किसी भी महिला के लिए रुचिकर नहीं होगा और यह एक जघन्य अपराध भी है,किंतु गर्भपात के संवैधानिक अधिकार किसी भी महिला को आवश्यकतानुसार उसकी स्थिति-परिस्थिति में इस निर्णय को करने के लिए अनुमति देते हैं, किंतु अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से इस के अधिकार का पूर्णत:हनन, भयावह त्रासदी व भविष्य के प्रति चिंतन का विषय है। अतः अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट को दोनों पक्ष की परिस्थितियों के आधार पर निर्णय लेना उचित होता।
अत्यावश्यक चिंतनशील मुद्दे पर संपादकीय के लिए साधुवाद।
डॉ.ऋतु माथुर
गर्भपात के विषय को स्त्री के अधिकार से जोड़ कर देखा जाना चाहिए। सम्पादकीय में विषय से सम्बन्धित सभी पहलुओं पर सुष्ठुरूपेण विचार किया गया है।