जो इस पल साथ है, वही अपना है बाक़ी कुछ नहीं है। यही सबसे बड़ा सच है। हर सांस के साथ वक्त बीतता है, रिश्ते भी। कुछ नए जुड़ते हैं, कुछ छूट जाते हैं। जो छूट रहा है, उसे बांधने की बैचैनी छोड़ दें। जिसने जाने का मन बना लिया, समझिए कि आप तक उसके जाने के निर्णय की सूचना देर में पहुंची। जाने वाला पहले ही जा चुका था। ऐसे बीत गए पलों के, रिश्तों के मोह से ख़ुदको जितना जल्दी बाहर निकाल लेंगे, उतनी जल्दी ही आगे का सफर शुरू करना संभव होगा।
प्रकृति ने हम सबको किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भेजा है। इसके बावजूद यह याद रखना ज़रूरी है कि हम सबके पास समय सीमित है। किसी को भी इस बेशकीमती उपहार को बर्बाद करने का हक़ नहीं है। जिस उद्देश्य के लिए प्रकृति ने आपका चुनाव किया है, उस उद्देश्य पर काम करें। अपनी स्वयं की खोज करें। इस दिशा की ओर काम शुरू करें।
मृत देह का बोझ उठाने से शरीर, और ख़त्म हो चुके रिश्तों का वजन, मन-विचारों की बढ़त को रोकता है। ऐसे पलों की याद से खुदको जल्दी से जल्दी बाहर निकालें जिनमें जीवन शेष नहीं रहा है। मौत से जीवन की यानी अपनी मुक्ति की राह चुनें। आगे बढ़ने का लक्ष्य चुनें। यही ज़िंदा होने की निशानी है।
तो बस, तय हो गया कि अपनी तरक्की के लिए कमर कस लेनी है। अपनी जिम्मेदारी खुद उठानी है। बिना देर किए, जाने वाले को विदा करें पूरे सम्मान के साथ। किसी के होने से जो जगह/स्थान भरा हुआ था, उसके जाने को स्वीकार कर लें। स्वीकारोक्ति के बाद कि पहले से भरी जगह खाली हो चुकी है, इसके बाद ही नए लोग, नए विचार, और नए रिश्ते पनपेंगे। खुले मन से आने वाले का स्वागत करें। ऐसा करने के बाद स्वच्छ मन-विचार से अपना और अपने आसपास का भला कर सकेंगे। अपनी और समाज की तरक्की का ज़रिया बनेंगे। वैसे… यही चाहते हैं ना आप भी कि कुछ ऐसा किया जाए जो आपकी अलग पहचान बने। तो बस, तय हो गया कि बेवजह की चिंता के बोझ से मुक्त हो, आगे बढ़ने की दिशा में काम करना है यानी जीवन को उसके असली स्वरूप में अपनाना है। जीवन यात्रा में साथ छोड़कर जाने वालों को विदा और आने वालों का स्वागत करते जाना है।
गीता का सार याद रखिए कि “हम अकेले आए थे, अकेले ही जाएंगे। ना कुछ लेकर आए थे और ना ही कुछ लेकर जाएंगे। जो लिया, यहीं से लिया। तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया…।” जिसने इस सार को समझ लिया, वह सुखी रहेगा।