‘हलाल’ उस भोजन या खाद्य पदार्थ को कहते हैं जिन्हें इस्लामिक मानकों में खाने लायक़ माना जाता है जबकि यहूदी धर्म के लोग जिन चीज़ों को खा सकते हैं उन्हें ‘कोशर’ कहा जाता है। ‘हलाल’ और ‘कोशर’ में क्या समानताएं हैं या फिर क्या फ़र्क़ हैं पहले उसे समझने का प्रयास करते हैं। हलाल और कोशर में दो समानताएं सीधे रूप में देखी जा सकती हैं। दोनों ही धर्मों में सुअर का मीट खाने पर पाबन्दी है और यह ध्यान रखा जाता है कि जिस जानवर को खाया जाना है उसका पूरा लहू उसके शरीर से निकल जाए।
यूरोपीयन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने एक अहम फ़ैसला देते हुए कहा है, “ई.ई.सी. के सदस्य देश हलाल और कोशर पद्धति से जानवरों को काटने पर बैन लगा सकते हैं। इन पद्धतियों से जानवरों को कष्ट पहुंचता है। हाँ इसमें धार्मिक गुटों के अधिकारों का भी ख़्याल रखना होगा।”
दरअसल ‘हलाल’ उस भोजन या खाद्य पदार्थ को कहते हैं जिन्हें इस्लामिक मानकों में खाने लायक़ माना जाता है जबकि यहूदी धर्म के लोग जिन चीज़ों को खा सकते हैं उन्हें ‘कोशर’ कहा जाता है। ‘हलाल’ और ‘कोशर’ में क्या समानताएं हैं या फिर क्या फ़र्क़ हैं पहले उसे समझने का प्रयास करते हैं।
हलाल और कोशर में दो समानताएं सीधे रूप में देखी जा सकती हैं। दोनों ही धर्मों में सुअर का मीट खाने पर पाबन्दी है और यह ध्यान रखा जाता है कि जिस जानवर को खाया जाना है उसका पूरा लहू उसके शरीर से निकल जाए।
दबीहा या ज़िबह ही वो विधि है जो इस्लामी क़ानून के अनुसार सभी मांस स्रोतों के लिए वध की निर्धारित है।मछली और अन्य समुद्री जीवों को इससे बाहर रखा गया है। जानवरों को मारने की इस विधि में तेज़, गहरा चीरा बनाने के लिए एक तेज़ धारदार चाकू का उपयोग किया जाता है जो गले के सामने, कैरोटिड धमनी, श्वासनली और गले की नसों को काट देता है।]एक जानवर का सिर (जिसे हलाल विधियों का उपयोग करके वध किया जाता है), को चीला के साथ जोड़ दिया जाता है । दिशा के अलावा, अनुमति प्राप्त जानवरों को “अल्लाह के नाम पर” इस्लामिक आयत के उच्चारण पर वध करना चाहिए।
कोशर यानि कि यहूदी विधि-सम्मत के अनुसार भोजन मेंसुअर का माँस, झींगा, झींगा मछली और कई अन्य खाद्य पदार्थ वर्जित हैं। माँस के लिए पशु का वध निर्धारित, मानवीय ढंग से किया जाना चाहिए और पशु को रोग-मुक्त होना चाहिए। जो भी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हैं उनका पर्यवेक्षण करके यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके घटक कोशर (यहूदी विधि-सम्मत) हों। माँस, मछली और दूध का सेवन एक साथ करना भी वर्जित है।
बेल्जियम की संसद ने एक बिल पारित किया था जिसके तहत 1 सितम्बर 2019 से बेल्जियम में हलाल एवं कोशर पद्धति से जानवरों का वध करने पर रोक लगा दी थी। ज़ाहिर है कि इस पर दोनों धर्मों के अनुयायियों की कड़ी प्रतिक्रिया देखने को मिली। कुछ कसाइयों ने तो कहा कि उनका धन्धा ही बन्द हो जाएगा।
मगर बेल्जियम की सरकार का कहना है कि हम इस्लामिक या यहूदी पद्धति से पशु-वध करने की प्रक्रिया पर रोक नहीं लगा रहे। हमारे कानून के अनुसार ज़िबह करने से पहले जानवर को बेहोश करना ज़रूरी है ताकि उसे दर्द का अहसास न हो। अधिकांश यूरोप में बिना बेहोश किये पशुओं का वध करने पर पहले से ही रोक लगी हुई है। अब बेल्जियम ने भी इस विषय में अपना क़ानून बना लिया है।
ठीक इसी तरह एक पशु-कल्याण ग्रुप जी.ए.आई.ए. का भी कहना है कि पशु काटने की धार्मिक पद्धति पर रोक नहीं लगाई जा रही। बस एक शर्त लगाई जा रही है कि ज़िबह करने से पहले पशु को बेहोश कर दिया जाए। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि इस कानून का रिफ़्यूजी एवं प्रवासी समस्या से भी कुछ लेना देना है।
यूरोपीयन कोर्ट ऑफ़ जस्टिस ने अपने निर्णय में कहा है कि इस क़ानून से किसी भी धर्म के अनुयायियों के हक़ों पर किसी प्रकार का कोई असर नहीं पड़ रहा। सभी धर्म अपनी अपनी पद्धति से जानवरों को काटते रहें मगर काटने से पहले बेहोश करना आवश्यक होगा।
यूरोपीयन यहूदी काँग्रेस के अध्यक्ष मोशे कैन्टर ने टिप्पणी करते हुए कहा, “इस जजमेण्ट का युरोप में यहूदियों के जीवन पर गहरा असर पड़ने वाला है। इस निर्णय से लोगों को अपने धर्म, परम्परा और विश्वास पर चलने में बहुत कठिनाई होगी।”
याद रहे कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट में भी ऐसी ही एक याचिका अखण्ड भारत मोर्चे ने दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मांस के लिए जानवरों को हलाल करने पर पाबंदी लगाए जाने की मांग वाली इस याचिका पर सुनवाई से इन्कार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका-कर्ता अखंड भारत मोर्चा के वकील से कहा है कि यह याचिका शरारतपूर्ण लगती है। कोर्ट इस पर सुनवाई नहीं करता कि कौन शाकाहारी हो, कौन मांसाहारी… न ही हम तय करेंगे कि कौन हलाल मीट खाएगा, कौन झटका।
याचिका को ख़ारिज करते हुए जस्टिस संजय कृष्ण कौल ने साफ़ टिप्पणी करते हुए कहा, “कोर्ट इस पर सुनवाई कतई नहीं करता कि कौन शाकाहारी हो, कौन मांसाहारी… जिसे हलाल मीट खाना है वो खाए, जिसे झटका मीट खाना है वह झटका मीट खाए।”
मेरे विचार से हलाल विधि को प्रतिबंधित करना ही सही है क्योंकि ये केवल धार्मिक विधि की आड़ में पशु-पक्षी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना है।संपादक महोदय अगर कोशर विधि को विस्तार से लिखते तो मेरे लिए यह एक नई जानकारी होती
मेरे विचार से हलाल विधि को प्रतिबंधित करना ही सही है क्योंकि ये केवल धार्मिक विधि की आड़ में पशु-पक्षी को शारीरिक रूप से प्रताड़ित करना है।संपादक महोदय अगर कोशर विधि को विस्तार से लिखते तो मेरे लिए यह एक नई जानकारी होती
शाकाहारी के लिए चौकने वाले तथ्य है जो सम्पादकीय में लिखे हैं । विस्तार से बताने के लिए धन्यवाद ।
प्रभा