कैसे ये हालात बने हैं कैसे ये हालात…! चारों तरफ़ है, इसका रोना अब तो हमें बता ऐ मालिक क्यों ऐसे हालात बने हैं ये ऐसे हालात!
है मानव ने ये काम किया या है फिर शैतानी माया किसी न किसी ने पैदा किया है सुन्न हो गया हूं, लाचार सुन सुनकर ख़बरों को जैसे मैं हूं होने लगा बीमार अब लिखूँ तो क्या लिखूँ मैं दुख भरी है दास्तान ये इसको लिखूं कैसे लिखूं ?
इस पर लिखने को, मन न माने किसे सुनाऊं दिल न जाने रूह कांप जाती है, दहल जाता है दिल ज़िक़्र कहीं भी जब आता है
छीन लिए हैं इसने, सब अपने बेग़ाने विद्वान, वैज्ञानिक, डॉक्टर सयाने मां-बाप किसी के, बच्चे किसी के इक परिवार के, सारे के सारे
रुक नहीं रहा है, इसका कहर खाली कर दिये हैं इसने गाँव के गाँव और शहर के शहर मौत का तांडव, रुका नहीं है चिताओं का जलना, थमा नहीं है कितनी ही लाशें, ज़मींदोज़ हो गई कितनी ही ज़िंदगियाँ ख़ामोश हो गई
लाशों के अंबार लग गए अंतिम संस्कार हुआ नहीं है डर सा लग रहा है, ऐ परवरदिगार पूरा विश्व ही, है इसका शिकार
जो बच गए हैं, खोना नहीं चाहता हाल पूछ कर, रोना नहीं चाहता ऑक्सीजन का भी, पड़ गया अकाल यह सब है, चोर बाज़ारी का कमाल
लोग मर रहे हैं चोर धंधा कर रहे हैं क्या प्रभु जी भी, हमसे नाराज़ हो गए हैं ? या वो भी, इस बला के शिकार हो गए हैं ?
तभी तो पैर रहा है पसार निर्दोष लोगों को, ये रहा है मार ऐ दुनिया वालों, सुनो तो ज़रा अफ़वाहों से दूर रहो तुम अफ़वाहों से दूर रहो
इसमें ही है, कल्याण सबका इसमें ही है, भला हम सबका घर में रहो, और बाहर ना निकलो ऑनलाइन पे शॉपिंग करो तुम मुंह पर अपने मास्क लगाओ दो मीटर का रखो फ़ासला ख़ुद भी बचो, औरों को बचाओ
बाहर से जब भी, वापिस घर आना कपड़े बदलना और हाथों को धोना लापरवाही से, मुंह तुम मोड़ो इस ज़ालिम चेन को तोड़ो इस ज़ालिम चेन को तोड़ो