’’अरे बिटिया, तनिक बाहर आओ। ’’ अपनी दो बकरियों को चरा कर घर वापस लौटा है झकरी। इस समय दोपहर के बारह बज रहे हैं। बाहर धूप बहुत तीखी है। घर के दालान में बकरियों को बाँध कर अपनी आठ वर्षीय बेटी सोनम को आवाज लगायी। 
    ’’ रहे हैं बापू। दू सेकेण्ड ठहरो। ’’ कहती हुई सोनम बाहर गयी।
   ’’ दूनो बकरियों को पानी पिला दो। अउर हमको भी एक लोटा पानी पीवे खतिर ले आओ। ’’ झकरी ने कहा।
     ’’ रूकोरूकोबापूथोड़ा रूको। एक साँस में दूईदुई काम बता रहे हौ। पहिलै बकरियन का पानी पिला दें, उसके बाद तुमको दें। ठीक है? ’’ सोनम अपनी दो अँगुलियाँ निकालकर झकरी की ओर देखते हुए कहा। 
    ’’ हाँ….हाँनानी समझ गये। दुई काम एक साथ बता दिये। ’’ कहते हुए झकरी ने ओसारे में खड़ी चारपाई बिछाकर बैठ गया। वह बिटिया सोनम की बात सुनकर मन ही मुस्करा पड़ा। जैसा कि वह अकसर उसकी बात सुनकर मुस्करा पड़ता है। सोचने लगा कितना बोलती है यह लड़की? सोनम का बोलना अच्छा भी तो लगता है उसे। 
    ’’ बाबू, आज बकरियों ने खूब घास चरी है। पेट भर गया है। ’’ बकरियों के सामने बाल्टी में पानी रख उनके फूले पेट पर हौले से हाथ फेरते हुए खिलखिलाकर हँसते हुए सोनम ने कहा।  
    ’’ हाँ बिटिया, फागुन महीना है। अभी तो थोड़ी बहुत घास मिल जा रही है। बकरियाँ खूब मन लगा कर चर ले रही हैं। चईत, बइसाख ( चैत्र, वैशाख ) में घास कम मिलती है, के बराबर। जब नही मिलेगी, तब बकरियों के लिए चोकर, चूनी खरीदना पड़ेगा। ’’ झकरी ने कहा। 
   ’’ हूँ। ’’ झकरी की बात परहूँबोलती हुई सोनम दौड़ती हुई कोठरी में गयी और झट से एक लोटा पानी लाकर झकरी को पकड़ा दिया। 
    गटगटगट….कर झकरी एक साँस में आधा लोटा पानी पी गया। शेष बचे हुए पानी से मुँह धोकर अपने कंधे पर टँगे अँगोछे से पोंछ लिया। 
  ’’ बाबू, कुछ खाने के लिए लायें? ’’ सोनम ने झकरी से पूछा।
  ’’ तनिक रूक जाओ। जियरा थक गया है।…..तुम्हारी माई अभी नही आयी क्या? ’’ झकरी ने सोनम से पूछा।
    ’’ अभी नही आयी बाबू। रही होगी। हम सबके लिए रोटीतरकारी बनाकर रख गयी है। हमको कह गयी है कि तुम जाओ तो रोटी तरकारी परस कर दे दें। तो कहो तो परस कर ले आयें? ’’…..सोनम कहती जा रही थी। 
   ’’ बाप रे! ये लड़की कितना बोलती है। अभी कहा तो कि थोड़ा रूक जाओ। किन्तु ये है कि भोजन के पीछे पड़ी है।…..झकरी मन ही मन बुदबुदाया। 
   ’’ ठीक है। ले आओ।  ’’ झकरी ने कहा। 
    खुश होकर उछलती हुई सोनम कोठरी में गयी और कुछ ही क्षणों में थाली में रोटी और आलूमटर की मसाले वाली तरकारी लेकर गयी। 
   ’’ लो बाबू। ’’ कहते हुए सोनम ने थाली चारपाई पर रख दी। 
   ’’ बाबू तुम खा लेना। कुछ और चाहिए तो मांग लेना। हम अन्दर पढ़ने जा रहे हैं। ’’ कह कर सोनम उछलतीकूदती अन्दर चली गयी। 
    झकरी अभी भोजन कर ही रहा था कि उसकी पत्नी तारा काम पर से वापस गयी। 
   ’’ घाम बहुत तेज होने लगी है। ’’ झकरी को देख तारा ने कहा। 
   ’’ हाँ, फागुन बीतते घाम होने ही लगता है। चइत भी तो लग रहा था। ’’ झकरी ने कहा।
    बातें करतेकरते झकरी की पत्नी वहीं जमीन पर पैर पसार कर बैठ गयी। कदाचित् वह थक गयी थी।
     ’’ गर्मी में भूँईया बैठने पर अच्छा लागत है। ज़मीन ठंडी रहती है। ’’ तारा ने ज़मीन पर बैठते हुए कहा।
    तारा यहीं पासपड़ोस की तीन कोठियों में झाड़ूबर्तन का काम करती है। काम खत्म करने के पश्चात् प्रतिदिन लगभग इसी समय घर आती है। झकरी भी मजूरी करने जाता है। आज उसकी तबीयत कुछ ठीक नही थी इस कारण काम पर नही गया। 
   ’’ कितना बज गया? सरन ( झकरी का छोटा बेटा ) अभी तक स्कूल से नही आया? ’’ तारा ने सोनम से पूछा। सोनम अपने पिता का मोबाइल फोन उठा कर समय देखने लगी। 
     ’’ बाबू तुम्हारा फोन कितना पुराना हो गया है। बारबार बन्द हो जाता है। चार्जिंग पर लगाने पर थोड़ी देर चलता है फिर बन्द हो जाता है। बाबू तुम पता नही कइसे इस फोनवा से काम चलावत हो? ’’ कह कर सोनम मोबाइल का बटन दबा का समय देखने लगी।  
   ’’ अभी एक बजा है अम्मा। सरन का स्कूल दू बजे छूटता है। अभी घंटा भर है आने में उसको। ’’ सोनम ने कहा।
   ’’ हाँ बिटिया। हम समझ गये। घाम तेज होने लगी है, इसलिए पूछ रहे थे। ’’ झकरी ने कहा।
   ’’ बाबू तुम नवा मोबाइल कब लोगेकहीं हर्जगर्ज पड़ गया तो तुम्हारा मोबाइल ही नही चलेगा। ’’ सोनम ने कहा।
   ’’ हाँ बिटिया। ले लेंगे। पईसा तो आवै हाथ में। ’’ झकरी ने कहा। सोनम अपने बाबू का मुँह देखने लगी।
 ’’ बाबू कितने पैसे में आता है मोबाइल? ’’ सोनम ने पूछा।
   ’’ क्या बहुत पैसे लगते हैं? ’’ बाबू को खमोश देख सोनम ने पुनः पूछा।
    ’’ अरे बिटिया, तुम बहुत पूछती हो। पैसे नही रूपए लगते हैं। एक हजार रूपया लगेगा नया फोन लेने के लिए बिटिया। ’’ झकरी ने कहा।
    ’’ अरे बाप रे! ये तो बहुत रूपया है बाबू। इतना अधिक लगता है? हम जब बड़े हो जाएंगे तो रूपया कमाएंगे। तब तुम्हें नया फोन दिला देंगे बाबू। ’’ मोबाइल का दाम सुनकर सोनम चिन्तित हो गयी और अपने बाबू से बोली। 
     सहसा सोनम के मन में विचार आया कि वो पैसे कमाएगी कैसे? इसके लिए तो उसे पढ़ना पड़ेगा। वह तो स्कूल जाती नही। सोनम से दो वर्ष छोटा उसका भाई सरन स्कूल जाता है। सोनम की पढ़ने का इच्छा तो है किन्तु माई उसे स्कूल नही भेजती। खाली समय में सोनम सरन की पुरानी किताबें उलटतीपलटती है भले ही कुछ समझ में नही आता किन्तु किताबों के पन्ने पलटना उसे अच्छा लगता है। 
   ’’ माई, तुम हमें स्कूल क्यों नही भेजती? जब कि सरन स्कूल जाता है। ’’ बिटिया के प्रश्न से माई हड़बड़ा गयी। 
   ’’ तुम बिटिया हो। तुम घर का काम सीखो। तुम्हें यही करना है और आगे घर गृहस्थी में यही काम आएगा। पढ़ाई काम नही आएगा। ’’ माई ने कहा।
      ’’ माई घर का काम तो हम करते हैं। जो काम तुम अराती ( बताती ) हो वो सब हम करते हैं। ’’ तारा ने सोनम की बात का कोई उत्तर नही दिया। 
  ’’ माई, तुम सरन को स्कूल भेजती हो, हमें क्यों नही? माई हम भी स्कूल जाएंगे।…..माई हम कल से ही पढ़ने जाएंगे। कल ही तुम मेरा नाम लिखवाने मास्टर जी के पास मुझे लेकर चलना। चलोगी माई? ’’ सोनम ने माई से हठ करते हुए पूछा।
   तारा सोनम की बात का कोई उत्तर दे रही थी। वह दुविधा में थी। उसे कोई उत्तर सूझ नही रहा था। दालान में बैठा झकरी सोनम की बात सुन रहा था। 
   ’’ हाँ…..हाँबिटया। कल तुम नाम लिखवावै जाओ स्कूल। तुम्हार मन है पढ़ै का तो तुम पढ़ौ। हम चलब तुम्हार नाव ( नाम ) लिखवावै स्कूल। ’’ सोनम की बात का उसकी माई द्वारा कोई उत्तर देते देख, झकरी ने कहा।
  ’’ कहाँ तुम भी बच्चों के साथ मिलकर कर सब बात करत हौ। बिटिया स्कूल जाएगी, पढ़ेगी तो उसका व्याह कैसे होगा? हमार गाँव है…..शहर तो है नही। शहर में मजूरी करने जाते हो तो शहर की हवा लग गयी है अउर तुम्हार दिमाग खराब हो गया है। तनिक नही सोच रहे हो कि यदि बिटिया पढ़लिख लेगी तो उससे व्याह कौन करेगा? ’’ तारा ने कहा। 
     ’’ काहे नाही सोचत हौ कि पढ़लिख लेगी तो अउर होशियार हो जाएगी हमार बिटिया। ’’ झकरी ने तारा से कहा। 
   झकरी जानता है कि तारा इस गाँव से भी पिछड़े एक गाँव की रहने वाली है। इस गाँव में तो आठवीं तक एक सरकारी विद्यालय है। उसके आगे पढ़ने लिए एकाध प्राइवेट विद्यालय भी हैं। तारा के गाँव में आज तक एक भी सरकारी विद्यालय नही है। प्राइवेट तो दूर की बात है। पढ़ने की इच्छा होने पर बच्चे दो कोस दूर दूसरे गाँव में जाते हैं। 
     ’’ ठीक है। जइसा बापबेटी की मर्जी हो करो। ’’ तारा ने कहा।
     अगले दिन मजूरी पर जाने से पूर्व झकरी विद्यालय जाकर सोनम का नाम लिखवा आया। विद्यालय सरकारी था। एक भी पैसा नही लगा। मास्टर जी ने बताया कि दोपहर का भोजन भी स्कूल में मिलेगा। घर से भोजन लेकर आने की आवश्यकता नही है। ऊपर से मास्टर जी ने यह भी कह रहे थे कि किताबें, बस्ता, स्कूल के लिए दो जोड़ी कपड़े, स्वेटर, मोजे, जूते भी सरकार देगी।  
      झकरी बहुत खुश था। बेटे को तो ये सब कुछ मिलता ही था। अब बिटिया सोनम को भी ये सब कुछ मिलेगा। बिटिया थोड़ा पढ़ना चाहती है, पढ़ लेगी। सोनम की खुशी की तो कोई सीमा ही थी। 
   समय व्यतीत होता जा रहा था। सोनम खूब मन लगाकर पढ़ रही थी। सोनम ने पाँचवीं की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। अभी वह आगे और पढ़ना चाहती थी। बिलकुल इसी स्कूल के समीप छठीं से आठवीं तक के सरकारी स्कूल में उसे पढ़ना था। 
    माईबाबू को बता कर वह अपने स्कूल से पाँचवीं की टी0 सी0 ले जाकर जूनियर हाई स्कूल के मैडम को देकर गयी। मैडम ने सोनम का नाम छठी कक्षा में लिख दिया। 
     ’’ सोनम के बाबू, बिटिया सोनम व्याह के लायक हो गयी है। अब उसके व्याह के लिए कुछ सोचोगे? कउनो लड़का…..वरघर देखोगे? ’’ एक दिन सोनम के स्कूल जाते ही तारा ने झकरी से कहा। 
   ’’ हम सोच रहे हैं कि सोनम आठवीं पास कर ले तो घरवर देखना शुरू करैं। ’’ तारा को समझाते हुए झकरी ने कहा।
  ’’ तुम कइसे बाप हो? तनिक भी नाही सोच रहे हौ कि तब तक लड़की बड़ी हो जाएगी। कउन लड़के का बाप बड़ी उमर की लड़की से आपन लड़का बियाहना चाहेगा? तुमको दुनियादारी का कुछ नही पता…. ’’ झकरी की बात पर सोनम की माई ने उसे अच्छाभला लेक्चर सुना दिया। 
    ’’ अच्छा! अब हम काम पर जा रहे हैं। साँझ के घरै आइब तब बात होई। ’’ झकरी ने कहा। 
    साईकिल के हैंडिल में खाने के डिब्बे की झोली लटका कर झकरी शहर की ओर बढ़ गया। 
   ’’ बापबेटी दूनो हमार बात नाही मान रहे हैं। एक दिन जब वर हेरतहेरत परेशान होइहैं तब हमरी बात मनिहैं।’’ झकरी के जाने के बाद तारा काम करती रही और मन ही बड़बड़ाती जा रही थी। 
      दिन में दो बजे अपने भाई के साथ सोनम स्कूल से गयी। दोनों ने भोजन किया। भोजन के पश्चात् सोनम स्कूल का होमवर्क करने बैठ गयी। होम वर्क कर स्कूल में आज का पढ़ाये गये पाठ को दोहरा कर कुछ देर के लिए लेट गयी। लेटते ही जाने कब आँख गयी। एक घंटे बाद उठी तो देखा कि भाई नही है। माई भी दलान में चैकी पर लेटी है। 
  ’’ माई सरन कहाँ है? घर में नही दिख रहा। बाबू भी काम से रहे होंगे। ’’ सोनम ने भाई की चिन्ता करते हुए पूछा। 
   ’’ सरन? सरन तो भोजन कर के दोपहर ही खेलने चला गया था। अभी तक नही आया क्या? ’’ नही आया है। स्कूूल का होमवर्क भी नही किया ही पाठ दोहराया। 
  माई उठी और सरन…..सरन आवाज लगाती हुई गाँव की गलियों की ओर निकल गयी। तब तक झकरी भी काम से वापस गया था। साँझ हो रही थी। माई सरन को ढूँढने गयी थी। 
      भोजन में विलम्ब हो जाएगा यह सोचकर सोनम ने चूल्हा जला कर चावल चढ़ा दिया। जब तक चावल बनेगा तब तक वह तरकारी काट लेगी। यह सोचकर ओसारे में बैठ कर लौकी काटने लगी।
  ’’ कहाँ है तुमरी माई? ’’ सोनम को भोजन बनाते देखा तो झकरी ने उससे पूछा।
  ’’ सरन को लेने ’’ कह कर सोनम तरकारी काटने में लग गयी। सोनम फटाफट काम कर रही थी। 
    ’’ रहा। दोपहर को स्कूल से आया है….भोजन किया है और खेलने निकल गया। पकड़िया के तरै लड़कों के साथ खेल रहा था। इसका रोज का यही काम है। पढ़ने में बिलकुल नही मन लगता। ’’ तारा सरन को अपने साथ लेकर आयी और उसकी शिकायत करते हुए झकरी से कहा। 
     तारा की बात सुनकर झकरी कुछ नही बोला। वह जानता है कि सरन का मन पढ़ाई में नही लगता। वह करे तो क्या करै? पढ़ने के लिए कई बार उसे मारा भी, किन्तु मार का भी उस पर कुछ प्रभाव पड़ता नही दिखता।
    तारा ने सरन को दो थप्पड़ मारा और हाथमुँह धोकर, कुछ खा कर पढ़ने के लिए कहा। 
     ’’ माई, भात बना दिये, तरकारी काट दिये हैं। हम भी थोड़ी देर पढ़ने बैठ जाएँ? ’’ तारा ने माई से पूछा।
  ’’ तरकारी काट दी तो छौंक भी दो। छँउकेगा कउन? हमका लड़का दौड़ा कर थका दिया है। ’’ माई ने कहा। माई की बात सुनकर सोनम का चेहरा बुझ गया।
    ’’ सरन के माई जा के तू तरकारी छँउक द। हाली ( शीघ्र ) हो जाई। सोनम कब ले छँउकिहैं। निम्मन ( अच्छा ) बनईबो ना करिहैं। ’’ झकरी ने कहा। झकरी चाहता था कि सोनम पढ़ना चाहती है तो थोड़ी देर पढ़ ले। बच्चे हैं भोजन करते ही सोने लगते हैं।
   ’’ निम्मन नाही बनईहैं सीखिहैं कईसे? ’’….कहती हुई तारा तरकारी छौंकने रसोई में चली गयी। 
     ’’ जा बिटिया तू थोड़ी देर पढ़ ल। उसके बाद माई के साथ भोजन परोसवावै रसोई में चल जईह। ’’ झकरी ने कहा।
  ’’ ठीक बा बाबू। ’’ कह कर सोनम बस्ता लेकर ओसारे में पढ़ने बैठ गयी। 
     थोड़ी देर पढ़ने पश्चात् उसके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे। संतुष्टि का भाव लिए वह रसोई में माई का हाथ बँटाने चली गयी। 
   इसी प्रकार दिन व्यतीत होते रहे। गाँव के विद्यालय से आठवीं तक की पढ़ाई पूरी कर ली। सरन बहुत खुश था कि अब इस गाँव में कोई सरकारी विद्यालय नही है तो उसे पढ़ना नही पड़ेगा। वह जानता था कि फीस देकर उसके निर्धन माईबाबू प्राईवेट स्कूल में पढ़ने भेजेंगे ही नही।
     आठवीं कक्षा में अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण सोनम भी हो गयी थी। 
   ’’ बाबू हम आगे अउर पढेंगे। ’’ सोनम ने माईबाबू से कहा।
  ’’ अब क्या रह गया है पढ़ने के लिए? जितनी पढ़ाई हो सकती थी पढ़ तो गयी। अब आगे क्या बचा है पढ़ने के लिए? सरन भी तो गाँव की सरकारी पढ़ाई कर चुका। अब अगले बरस से बाबू के साथ मजूरी करने शहर जाएगा। ’’ सोनम की बात सुनते ही माई ने उत्तर दिया।
    ’’ माई, हम कमलापुर ( पड़ोस का गाँव ) जा कर आगे की पढ़ाई करेंगे। कमलापुर में एक बड़ा सरकारी स्कूल है। वहाँ बी0 0 तक की पढ़ाई होती है। उसमें फीस नही लगती है। ’’ सोनम ने माई से कहा।
    ’’ हाँहाँवहाँ तो जाओगी पढ़ने। तुम का जानो कमलापुर दूअढ़ाई कि0मी0 दूर है हिया से। ’’ माई ने सोनम की बात का विरोध करते हुए कहा।
  ’’ माई, तू चिन्ता करौ। जाये खातिर हम सोच लिए हैं। बाबू की जो पुरानी साईकिल है उसको हम ठीक कराकर उसी से स्कूल जाएंगे। ’’ स्कूल जाने का उपाय बताते हुए सोनम ने कहा।
   ’’ लो अब इसकी बातें सुन लो। टूटही साईकिल ठीक करा कर स्कूल जाएगी। लेकिन पढ़ने जाएगी जरूर। अब तुमही समझाव इका। घर के दूचार कामधाम सीख लें। अउर तुम इनका बियाह की तइयारी कर। ’’ तारा ने अपना स्पष्ट आदेश सुनाते हुए कहा।  
     ’’ नाही बाबू, हम अबही बियाह नाही करब। तब तक बी00 पास ना कर लेब तब तक बियाह नाही करब। ’’ सोनम ने हठ करते हुए कहा।  
    अन्ततः सोनम की इच्छा को सही मानते हुए झकरी ने पास के गाँव कमलापुर के सरकारी इण्टर काॅलेज में उसका नामांकन करा दिया। सोनम अपने बाबू की पुरानी साईकिल ठीक कराकर उसी से स्कूल जाने लगी। 
   ’’ माई, स्कूल में बहुत बढ़िया पढ़ाई होती है। तुम सरन को भी हमारे साथ पढ़ने भेजो। वो भी आगे और पढ़ लेगा तो उसके लिए अच्छा रहेगा। ’’ सोनम ने माई से कहा।
   ’’ तुम आपन सीख रहै दो। सरन उतनी दूर जाएगा कइसे तो बताव। थोड़े दिन बाद मजूरी कर के पइसा कमाये लगिहैं। उहै ठीक रही। ’’ माई सरन को स्कूल भेजना नही चाहती थी। 
    ’’ माई, सरन को हम सईकिल के पीछे बैठा कर स्कूल ले जाएंगे। तुम भेजने के लिए तैयार भी तो होओ। ’’ सोनम ने कहा।
   ’’ ठीक तो कह रही है बिटिया। इसी गाँव से कई बच्चे साईकिल से, तो कई पैदल उस स्कूल में जाते हैं। सोनम के साथ सरन भी पढ़ने चला जाएगा। कुछ पढ़ लेगा तो अच्छा ही रहेगा। ’’ झकरी ने तारा को समझाते हुए कहा।   
    अभी बात चल ही रही थी कि बाहर से खेल कर सरन गया। 
    ’’ लो। ये भी गवा। पढ़ने जाएगा कि नही ये बात इससे ही पूछ लो। ’’ सरन को देखते ही तारा ने कहा।
    ’’ सोनम सईकिल से स्कूल जाती है। उसके जैसे हमको भी पढ़ना है। स्कूल भी जाना है। माई, हम भी स्कूल जाएंगे। हमरो नाव स्कूल में लिखवा दो। ’’ सरन ने माई की बात का उत्साह और शीघ्रता के साथ उत्तर दिया। 
   ’’ इस लड़की को देखकर ये भी पढ़ने जाएगा अब! अभी तो कह रहा था कि कुछ दिनों पश्चात् बाबू के साथ काम करने जाएगा। हम तो बहुत खुश थे कि ये काम सीख जाएगा। दू पइसा कमा कर घर में लाएगा। ये तो अपनी बहिन को देख कर पढ़ने जाने के लिए तैयार है। ’’ तारा ने अपनी नाराज़गी प्रकट करते हुए कहा। 
        सोनम के साथ उसकी साइकिल के पीछे बैठ कर सरन भी स्कूल जाने लगा। तारा और वो एक ही कक्षा नौवीं में थे। दोनों ने नौवीं कक्षा उत्तीर्ण कर ली थी। अब दोनों की दसवीं कक्षा में बोर्ड की परीक्षा थी। इसमें पास होने के लिए सभी विद्यार्थी परिश्रम कर रहे थे। 
     सोनम खूब मन लगा कर पढ़ रही थी। सरन को पढ़ने के लिए कहती रहती। वह कभी सोनम की बात सुनता कभी नही। परीक्षा हुई परीक्षा परिणाम भी समय पर निकला। 
    परीक्षा में सोनम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हुई। वहीं सरन अनुत्तीर्ण हो गया। 
    ’’ कोई बात नही भाई। फिर से थोड़ी मेहनत कर के पढ़ लो। अगले बरस पास हो जाओगे। फिर से फार्म भर देना। ’’ सोनम ने भाई को समझाते हुए कहा।  
  ’’ नही, अब हम नही पढ़ेंगे। ’’ सरन ने दृढ़ता से कहा।
    ’’ नही पढ़ोगे तो क्या करोगे? बाबू के साथ मजूरी करने जाओगे? पढ़लिख लोगे तो कोई ढंग का काम कर लोगे। ’’ सोनम ने लाख समझाने का प्रयत्न किया। किन्तु सरन स्कूल जाने के लिए तैयार नही हुआ। उसने पढ़ाई छोड़ दी। 
   वह मजदूरी करने के लिए भी तैयार नही था। तारा परेशान थी कि वह इस बात से चिन्तित थी कि सरन मजदूरी करने जाने के लिए भी तैयार नही था। 
   ’’ तुम मजूरी करने नही जाओंगे। पढ़ने भी नही जाओगे तो करोगे क्या? कुछ सोचा है? ’’ एक दिन तारा ने सरन से पूछा।
  ’’ माई हम साफसाफ बता दे रहे हैं, हम मजूरी करने बिलकुल नही जाएंगे। स्कूल के लड़के देखेंगे तो हमारे ऊपर हँसेंगे। हमको चिढ़ाएंगे। ’’ सरन ने कहा।
    थकहार कर तारा ने जहाँ काम करने जाती थी, वहाँ के मेम साब से कह कर सरन को एक बनिये की दुकान पर काम करने के लिए लगवा दिया।
     सब कुछ ठीक चलने लगा। सरन के काम पर लग जाने से  तारा खुश थी। सोनम का मन पढ़ने में लगता। अच्छे अंको में उत्तीर्ण हाते हुए सोनम ने स्नातक उत्तीर्ण कर लिया। 
      सोनम का स्नातक उत्तीर्ण कर लेना इतना सरल तो था। गाँव की औरतें तारा से कहतीं कि लड़की के व्याह की उमर निकल रही है। कोईकोई तो ताना भी मारती। तारा घर में आकर सोनम और उसके पिता से ये बात बता कर व्याह करने की बात करती। 
     सोनम माई की बात पर कोई प्रतिक्रिया देती। वह जानती थी कि ये प्रत्येक मातापिता की चिन्ता और सपना होता है। वह सब कुछ अनसुना कर अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रही थी। 
    स्नातक उत्तीर्ण होने के साथ। उसने कई नौकरियों के फार्म भरने प्रारम्भ कर दिये। किसी अच्छी नौकरी को पाने के लिए पढ़ाई पर अधिक समय देने लगी। दो वर्ष के पश्चात् सरन को दुकान वाले ने काम पर आने से मना कर दिया। माई बता रही थी कि दुकान वाले ने किसी बात पर सरन को डाँटा होगा और सरन ने जवाब दे दिया। दुकान वाले ने उसे काम से निकाल दिया।
   अब सरन के लिए माई दूसरा काम देख रही है। सरन दिन भर घर में रहता है। 
   ’’ सोनम हमने तुम्हारी बात नही मानी। पढ़ाई छोड़कर हमने अच्छा नही किया। कुछ और पढ़ लेते तो कहीं कहीं अच्छी नौकरी मिल जाती। ’’ एक दिन सरन ने सोनम से कहा।  
    सोनम उसकी बात का कोई उत्तर दे सकी। समय किसी के लिए रूकता नही है। वह काफी आगे निकल चुका था। सरन ने मजदूरी का कोई काम भी नही सीखा था। पढ़ाई कर पाया। वह ऐसे ही छोटेमोटे काम कर के ही दो पैसे कमा सकता था। 
     एक दिन सोनम की मेहनत रंग लायी। उसने बैंक में क्लर्क की नौकरी की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली। अब किसी दिन उसे साक्षात्कार लिए बुलाया जाएगा। ये बात उसने अपने माईबाबू को बता दिया। बेटी की सफलता से झकरी तो खुश था ही। माई भी बहुत खुश थी।
    ’’ बिटिया, हम तुमका पढ़ने से रोक कर बहुत बड़ी ग़लती कर रहे थे। गलती को मन में रखियो बिटिया। अब तो गाँव से बहुत बिटिया पढ़ने जाने लगी हैं। सुना है सरकार अपन गाँव में भी बड़ा स्कूल खोलेगी। गाँव के सब बिटियाबेटवा बिना फीस दिये उसमें पढ़ेंगे। हमको क्षिमा ( क्षमा ) कर दो बिटिया। ’’ माई के चेहरे पर पश्चाताप् और प्रसन्नता के भाव थे। 
    सोनम के साक्षात्कार का दिन गया। उसके माईबाबू खुश तो थे। किन्तु कुछ डरे हुए भी थे कि उनकी बेटी कहीं असफल हो जाये। 
     ’’ बाबू चलो समय हो गया। शहर पहुँचने में भी समय लगेगा। समय से कुछ पहले पहुँच जाना ठीक रहता है। ’’ सोनम ने तैयार होकर अपने बाबू से कहा।
   ’’ हम तो तुमसे पहिले से तैयार हुए बैठे हैं बिटिया। चलो चलते हैं। ’’ सोनम के बाबू ने कहा।
     ’’ बिटिया सुना है शहर में दहीचीनी खाकर नौकरी पाने के लिए निकलते हैं। आज जिनगी में पहिली बार हमरे घर से हमार बिटिया हमका खुशी दे रही है। तुम जीत कर आओ। ’’ तारा ने दही चीनी की कटोरी सोनम के आगे बढ़ाते हुए कहा।
   ’’ हाँ माई, तुम्हारा आर्शीवाद लेकर जा रहे हैं तो जीत कर आएंगे। ’’ कहते हुए सोनम ने माई के पैर छुए और अपने बाबू के साथ चल पड़ी नौकरी का साक्षात्कार देने शहर की ओर। 
   ’’ बिटिया हम बहुत बड़ी ग़लती किये, सरन को स्कूल भेज कर। ’’ सोनम को समीप के शहर के बैंक में नौकरी करते हुए दो माह हो गये थे। दूसरे माह का वेतन पाने के बाद आने वाले पहले अवकाश में सोनम घर आयी थी। 
     सोनम की सफलता उसकी शिक्षा से प्राप्त हुई थी। तारा अब शिक्षा का महत्व समझ चुकी थी। बहुत कह सुनकर तारा ने किसी दूसरी दुकान पर सरन का काम पर रखवा दिया था। सरन का विवाह तीन बरस पहले ही तारा ने कर दिया था। उसकी एक बच्ची भी हो गयी थी। 
     झकरी की उम्र हो गयी थी। वह अब काम पर कम ही जा पाता। सोनम ने भी कहा था कि माईबाबूजी अब आराम किया करें। हर माह वह घर के खर्चे के लिए पैसे देगी। किन्तु तारा और झकरी अपना काम थोड़ा बहुत करते रहते जिससे और दो पैसे घर में आते रहें। 
     तारा और झकरी की यही इच्छा थी कि सरन की बेटी भी अपनी बुआ सोनम की भाँति खूब पढे़लिखे। 
    ’’ माईबाबू आप अब घर पर रहो। घर का काम देखो और आराम करो। मेरे विवाह के लिए पैसे की और घरवर की चिन्ता करो। अपने विवाह के लिए पैसे की व्यवस्था मैं कर लूँगी। समय आने पर विवाह भी कर लूँगी। ’’ दो दिनों के अवकाश में सोनम घर आयी थी। वापस जाने से पहले अपने माईबाबू से ये बात कहती गयी। 
     सोनम रिक्शे से स्टेशन की ओर जा रही थी। सुबह की टेªª से नौकरी करने शहर जाने के लिए। झकरी और तारा बहुत सारी प्यारी बातें करने वाली अपनी बित्ते भर की उस छोकरी को गर्व से गन्तव्य की ओर बढ़ते हुए देख रहे थे।

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