“लॉन हरा-भरा दिखता तो बहुत सुन्दर है किन्तु क्या करें जब घास की कटाई- छंटाई न हो तो जंगल सा दिखने लगता है | कई बार तो बारिश के मौसम में साँप भी इसमें अपना निवास बना लिया करते हैं |” कनु  अपने घर के बाहर खुले में लगे पौधे ठीक करते हुए अपने मन की भड़ास निकाल रही थी |
“लॉन की घास तो ठीक है लेकिन तुमने यह अपने चेहरे पर उगी घास का क्या किया हुआ है ? कितने दिन हुए सलून गए हुए ?” उसके पति सन्नी ने अखबार एक तरफ कर कनु के चेहरे पर उग आये बाल एवं होठों पर उगी मूछों पर ध्यान दिलाते हुए उसके चेहरे पर अपनी नजरें टिका ली थीं | “तुम भी न जब काम में लगती हो तो स्वयं का ख्याल तो भूल ही जाती हो | माना कि इन दिनों तुम बहुत व्यस्त हो किन्तु स्वयं का ख्याल भी तो रखा करो |”
“अरे ! क्या बताऊँ ? करवा चौथ आने वाला है  न,  तब सलून जाऊँगी | सोचा एक साथ ही फेशियल और चेहरे की वैक्स भी करवा लूँगी | वरना अभी करवाऊँगी तो तब तक फिर आधी सी ग्रोथ तो हो ही जायेगी |”   
अभी दोनों का वार्तालाप चल ही रहा था कि सन्नी की नजदीकी रिश्तेदार मंजू दीदी उन के घर के मुख्य दरवाजे पर नजर आयी | “कैसे हो  सन्नी ? दोनों मियाँ-बीबी क्या गुटर-गूं कर रहे हो ?”
जानी-पहचानी आवाज सुन कर सन्नी ने पुनः अखबार अपने चेहरे के आगे से हटाया “अरे ! मंजू दीदी आप ? आज सुबह-सुबह कैसे दर्शन दे दिए आपने ?”
“सुबह सैर को निकली थी तो सोचा आज तुम लोगों से मिलती चलूँ ? बहुत दिन हुए कनु से मिले भी ?”
कैसी हो कनु ? 
कनु ने अपना चेहरा नीचे किये ही जवाब दिया “ठीक हूँ मंजू दीदी”
मन ही मन वह सोच रही थी कि दुपट्टा भी नहीं जिस से अपना सर ढक कर चेहरे को भी थोड़ा ढांप ले  | ये मंजू दीदी भी न जाने क्यों सवेरे-सवेरे चली आयीं ?   
लेकिन मंजू कहाँ थमने वाली थी, वह द्रुत गति लोकल सी लॉन की तरफ अन्दर बढ़ती आ  गयी और जैसे ही कनु के पास पहुँची, “अरे ! कनु तुम्हारे चेहरे पर यह क्या ? यह बाल कैसे नजर आ रहे हैं ? या कुछ और है ?”
कनु ने बगैर कोई उत्तर दिए वहाँ से खिसक जाना ही मुनासिब समझा |
लेकिन कनु की सास शालिनी घर के ड्राइंग रूम के दरवाजे पर लगे जाली के दरवाजे से देख रही थी उस ने झट से बात संभाल ली | “आओ मंजू  कैसे आना हुआ ? बहुत ही दिन हुए तुम्हें देखे | कोई ख़ास बात है क्या ?”
कुछ ख़ास बात तो नहीं चाची, लेकिन आजकल दिन में समय ही नहीं मिल पाता, फिर आपकी याद भी तो सता रही थी | सो सुबह-सुबह ही आपसे और कनु  से  मिलने चली आयी |  कनु योग की कक्षाएं शुरू कर  रही है न, मैं ने सोचा मैं भी योग सीखना शुरू कर दूँ | इसलिए उसी से बात करना चाहती थी | इतना कह मंजू पुनः कनु के कमरे की और बढ़ गयी |
कनु मंजू को देखते ही नहाने जाने की तैयारी करने लगी | 
“कनु यह तुम्हारे चेहरे पर बाल कैसे ?” मंजू ने पुनः आश्चर्य से पूछा |
“कुछ नहीं मंजू दीदी, सलून जाऊँगी सब ठीक हो जाएगा |”
कनु तौलिया लेकर बाथरूम में नहाने चली गयी थी |
कनु की सास  शालिनी ने मंजू को  अपने पास बुलाया और धीरे से फुसफुसाई  “क्या बताऊँ मंजू, इस कनु को  हारमोंस की समस्या है | इसका मासिक धर्म भी नियत तिथि के अनुसार नहीं होता | बहुत आगे-पीछे होता रहता है | सबसे बड़ी बात अपने सभी रिश्तेदार यही रहते हैं किन्तु अब तक किसी ने नहीं पूछा कि ब्याह को दो वर्ष हुए कनु की गोद हरी क्यों नहीं हुई | लेकिन मेरी किट्टी की सहेलियों और पड़ौसियों ने तो मेरी नाक में दम ही कर दिया है | हर कोई सलाह-मशवरा दिए बगैर नही रहता कि ज्यादा समय गर्भ-निरोधक लेना उचित नहीं | पहला बच्चा तो जल्दी ही हो जाना चाहिए | अब उन्हें कौन समझाए  कि कनु की हारमोन की समस्या के चलते उसे गर्भ ठहरता ही नहीं और उसके चेहरे पर दाढी-मूछें भी आती  हैं | डॉक्टर से इसका इलाज भी करवा रही हूँ कि कैसे भी एक बच्चा हो जाए | इसने योग भी किया ताकि हारमोंस संतुलित हो जाएँ |  हर माह बीस हजार का खर्च इसी पर होता है | पर क्या करें कोई फ़ायदा नहीं हुआ अब तक |”
चाची की बात सुन कर मंजू सकते में आ गयी थी “ तो आपने कनु के माता-पिता को शिकायत क्यों नहीं की ? विवाह पूर्व उन्होंने यह सब क्यों न बताया हमें ?” 
क्या शिकायत करूँ मंजू, अब अपना बेटा भी तो साधारण सा ही है न, ऐसे में भला कौन इतनी पढी-लिखी लड़की हमें देता ? बेटा स्वयं तो ज्यादा पढ़ा नहीं और लड़की उसे आजकल के जमाने की चाहिए | दरअसल वह अपनी सहपाठी रिचा से तुलना किया करता था कि लड़की हो तो ऐसी | वैसी लड़की तो हमें मिलने वाली थी नहीं |
“जब हम लोग ब्याह पूर्व कनु को देखने गए तो आप भी तो साथ में ही थीं | आपने भी तो यही सुझाव दिया था कि लड़की अच्छी पढी-लिखी है, देखने में भी ठीक-ठाक है | हमारे परिवार के लिए यह रिश्ता उचित रहेगा | सो यह रिश्ता किया, फिर बेचारी कनु का क्या दोष इसमें या तो इसे छोड़ ही देते | लेकिन कनु का व्यवहार बहुत अच्छा है, पूरे परिवार को बाँध कर रखा है इसने | हम सभी  को बहुत मान- सम्मान देती है वह |  घर का काम भी बहुत करीने से करती है |  सिर्फ इस शारीरिक दोष के कारण उसे बेईज्ज़त करके घर से निकाल दें या उसके माता-पिता को उलाहना दें इसके लिए मेरा मन नहीं मानता |”  
आप बहुत महान हैं चाची , यदि आपके स्थान पर कोई और होता तो इसके माता-पिता को न जाने कितने उलाहने देता और इसे भी चैन से न रहने देता | 
“दरअसल बेटे ने तो ब्याह के उपरान्त कुछ ही दिनों में कह दिया था कि उसे कनु पसंद नहीं |”
“ऐसा क्यों ?”
मंजू यह विवाह पूर्व पढाई-लिखाई में ही पड़ी रही | इसे पढ़ने  का बहुत शौक था न, इसलिए अन्य लड़कियों की तरह लटके-झटके इसे नहीं आये | न ही लड़कों को रिझाना आया | सीधी-सादी सी है कनु किन्तु इसका दिल हीरा है हीरा | इसीलिए मुझे यह बहुत अच्छी लगती है | 
आप डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाती कनु को ? 
डॉक्टर को दिखाया तो उन्होंने बताया कि या तो यह आनुवांशिक कारणों से होता है या फिर हारमोंस के असंतुलन के कारण | सबसे बड़ा कारण तो पोलीसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम है |  दो वर्ष से कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह समस्या से निदान मिल जाए किन्तु अब तक कुछ फ़ायदा भी न हुआ | 
अब समस्या यह कि बेटे की कमाई तो बहुत नहीं और इस अकेली के इलाज पर खर्च बीस हजार रुपया महीना आ जाता है | फिर खाली बैठे सारे दिन करे भी तो क्या ? इसलिए इसने योग शिक्षक का कोर्स कर लिया  | अब कक्षाएं शुरू कर रही है तो अपने पैरों पर खड़ी हो जायेगी | 
तो अब बेटा सन्नी क्या कहता है ? कैसा व्यवहार रखता है इसके साथ ? 
“सन्नी क्या ? कुछ नहीं कहता | व्यवहार तो ठीक ही रखता है, हाँ जब से इसने योग सीखा है इसने अपने शरीर  को सुडौल कर लिया है तो उसे यह अच्छी भी लगने लगी | सलून जा कर चेहरे का वैक्स करवा लेती है तो बाल दिखाई नहीं देते | जब कहीं अचानक से बाहर जाना हो तो भी रेजर से शेव कर लेती है | लेकिन आज तो आप सुबह-सुबह बगैर बताये ही आ गयीं तो इसका राज खुल गया | शायद इसलिए अब तक बाथरूम में है, आज कुछ ज्यादा ही देर तक नहा रही है |”  
“मंजू दीदी आप कहें तो मैं आपको आपके घर छोड़ दूँ, उसी तरफ जा रहा हूँ मैं |”
सन्नी मुझे बुद्धू समझा है क्या ? मैं सब समझती हूँ तुम चाहते हो कि मैं यहाँ से जल्दी रुखसत हो जाऊँ | इसीलिए तुम मुझे छोड़ने की बात कर रहे हो | खैर यह तुम्हारा कनु के लिए प्रेम है तो मैं क्यों दाल-भात में मूसलचंद बनूँ भला ? 
मंजू सन्नी के साथ स्कूटर  पर बैठ कर अपने घर को रवाना हो गयी थी | रास्ते में मन ही मन सोचती रही कि कितनी समस्याएं होती हैं महिलाओं की ज़िंदगी में | एक तो कनु को चेहरे पर से बाल हटाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है, दूसरे उसके होठों के ऊपर मूछें देख कर लोग मजाक बनाते होंगे सो अलग | कहाँ हमारे यहाँ स्वीकार की जातीं हैं यह शारीरिक विषमताएं | सिर्फ शारीरिक ही क्यों मानसिक तनाव से भी तो गुजरती होगी बेचारी कनु | तभी तो मुझे देखते ही उसने चेहरा नीचे कर लिया और फिर जब मैं ने उसे बालों के लिए पूछा तो नहाने का बहाना कर बाथरूम में बंद हो गयी | उफ्फ्फ ! कैसे संभाला  करती होगी स्वयं के मन व मष्तिष्क को ? 
मंजू को कनु के लिए बहुत दुःख भी हुआ सो उससे रहा न गया | उसने अपनी गायानोकोलोजिस्ट से अपोइंटमेंट लिया और कनु को अपने साथ में ले गयी | डॉक्टर ने उसका पूरा चेक अप किया, उसके टेस्ट के रिपोर्ट भी देखे  | “देखिये मैं ने इनका पूरा चेक अप कर लिया है और इनकी पहले की फ़ाइल भी देख ली है | दरअसल हारमोंस के असंतुलन से इनकी ओवरी बहुत कमजोर हो चुकी है | जिसके कारण 
ओवरी से अंडे नहीं निकलते | इस वजह से वहाँ गाँठ जैसे बन जाती है | इस सिस्ट (गाँठ) में एक तरह 
का पदार्थ होता है जो एंड्रोजन हारमोन का निर्माण करता है | इसी से पी सी ओ एस बनने  लगता है और महिलाओं के चेहरे पर बाल उगने लगते हैं | यह बाल पुरुषों की दाढी-मूछों की ही तरह कड़क होते हैं | 
“इस समस्या का कोई समाधान है क्या डॉक्टर”  इस बार प्रश्न कनु ने किया था |
तुम्हारी फ़ाइल देख चुकी हूँ और तुम्हारे इलाज की काफी कोशिश भी की गयी है लेकिन मुझे लगता है कि तुम्हारे केस में यह संभव नहीं | 
कनु की आँखों में निराशा की नमी तैर गयी थी | मंजू भी थके कदमों से डॉक्टर के केबिन से बाहर की ओर बढ़ गयी थी |
“तुमने ब्याह पूर्व इन बालों को हटाने के लिए इलाज नहीं लिया था ?”
जी, माँ ले जाती थी एक डॉक्टर के पास, लेकिन छोटे कसबे से हूँ न, वहाँ कहाँ इतनी नयी तकनीकें और डॉक्टर ? सो कुछ हारमोंस की दवाइयाँ दी थीं मुझे | लेकिन उनको लेने से मुझे उल्टी, सर दर्द  और चक्कर जैसा महसूस होता था | सो उन दवाओं को रोकना पड़ा | पार्लर वाली दीदी हर माह वैक्स कर दिया करती | वैसे तो मैं कहीं ख़ास आया-जाया नहीं करती थी फिर भी कभी जात-बिरादरी के शादी-ब्याह में जाना होता तो पहले से तैयारी कर लेती | 
ह्म्म्म , खैर कोई बात नहीं तुम फ़िक्र न करो | मैं तो स्वयं की मन की शांति के लिए तुम्हें डॉक्टर के पास ले आयी | मेरी डॉक्टर पर मुझे बहुत भरोसा है सो सोचा इन्हें भी दिखा लिया जाए | 
मंजू कनु को उसके घर छोड़ कर बाहर से ही अपने घर को रवाना हो गयी थी | 
अरे मंजू आज क्या बाहर से ही ?…..चाची का स्वर मंजू के कानों में पड़ा तो उसने हाथ हिलाते हुए कार के स्टीयरिंग व्हील को घुमा लिया था |
अभी कुछ ही दिन बीते थे कि मंजू ने महिलाओं की एक पत्रिका में लेज़र ट्रीटमेंट के बारे में पढ़ा | अनचाहे बालों से सदा के लिए छुटकारा पाने के लिए लेज़र ट्रीटमेंट की जानकारी दी गयी थी | उसमें कुछ संस्थानों के नाम भी दिए गए थे जहाँ यह ट्रीटमेंट किया जाता है |
मंजू कहाँ शांत बैठने वाली थी उसने विभिन्न संस्थानों से इस ट्रीटमेंट की जानकारी लेना शुरू कर दिया | करीब एक हफ्ते वह कहीं न कहीं फोन जरूर करती और जानकारी जुटाती |   
एक खुश खबरी लाई हूँ चाची मंजू की आवाज कानों में पड़ी तो शालिनी की आँखें खिल गयीं “तुम तो खुशियाँ ही लाती हो सदैव मेरे लिए | आज क्या ले आयी मंजू ?”
“चाची कनु के चेहरे के बाल सदा के लिए हट जायेंगे लेज़र ट्रीटमेंट से, फिर न वैक्स की झंझट न ही शर्मिन्दगी  |”  
“वह तो अच्छा है पर खर्चा कितना लगता है मंजू, कमाई का  साधन भी तो कुछ ख़ास नहीं न, तुम तो समझ सकती हो |”  
“चाची वह फ़िक्र तुम न करो …..सब हो जाएगा | कनु कहाँ है उसे लेकर जाती हूँ और हम लेज़र ट्रीटमेंट की बात करके आते हैं |”
वे दोनों एक अच्छे त्वचा रोग विशेषज्ञ के पास पहुँच गयी थीं | डॉक्टर के केबिन में जाते ही डॉक्टर ने कनु के चेहरे का मुआयना किया | उसकी पहले की सब रिपोर्ट पढीं | और जब वे लेज़र ट्रीटमेंट की जानकारी देने लगे तो साथ ही उस से होने वाले  दुष्प्रभाव  भी बताने लगे | कनु को यह सब फ़ालतू का झमेला लग रहा था |  मन ही मन वह सोचने लगी थी “क्या फ़ायदा इतना खर्च करके, ऊपर से लेज़र ट्रीटमेंट के समय इतना ध्यान रखना पड़ेगा सो अलग | कभी सनस्क्रीन लगाओ, स्वयं को धूप से बचाओ, कभी त्वचा पर चकत्तों का डर |”   
खैर , पूरी जानकारी लेकर दोनों घर को लौट आयी थीं | लेकिन मंजू ने फैसला कनु पर ही छोड़ दिया था | कनु ने भी मंजू का आभार जताते हुए मधुर मुस्कान बिखेर कर कुछ समय उस से माँग लिया था | 
जब सन्नी को इस ट्रीटमेंट के बारे में जानकरी मिली “देखो कनु वैसे तो मुझे तुम्हारे चेहरे के बालों से कोई फर्क नहीं पड़ता | हाँ , शुरुआत में जब यह मुझे मालूम हुआ तो बहुत ही अजीब लगा , स्वयं को ठगा सा पाया कि क्यों तुमने विवाह पूर्व मुझे नहीं बताया | लेकिन जब तुम्हारे सुन्दर व्यवहार से परिचित हुआ तो धीरे-धीरे मुझे सब सामान्य लगने लगा | वैसे भी तो महिलाओं के शरीर हाथ, पैर , बगलों पर जो बाल होते हैं वे सलून में जा कर वैक्स करवा कर हटवाती हैं | हाँ, यह अलग बात है पुरुषों की तरह दाढी -मूछें होना आम बात नहीं इसलिए इन्हें किसी महिला के चेहरे पर देख कर लोग मजाक बनाते हैं | उसे हीन दृष्टि से देखते हैं या कहीं-कहीं जैसा कि तुमने बताया था कि तुम्हारी सहपाठिनें तुम से किनारा करने लगी थीं, वैसा भी होता है  | यह सब समाज की अपनी क्षुद्र मानसिकता के कारण होता है | हमारा समाज इन  विसंगतियों को नहीं स्वीकारता  | खैर,  दुनिया को बदलना मेरे वश  में नहीं | लेकिन तुम जैसी भी हो मुझे पसंद हो | इसके लिए तुम्हें हीन भावना से ग्रस्त होने की आवश्यकता नहीं | मैं तो यह देखता हूँ कि तुम किस प्रकार मेरे परिवार को बांधे हुए हो, किस प्रकार तुमने माँ का दिल जीत रखा है, किस प्रकार तुमने योग सीख कर स्वयं के शरीर को सुडौल बना लिया है और अब स्वयं की योग कक्षाएं भी आरम्भ करने वाली हो |”
सन्नी नीचे मुंह किये लगातार बोलता जा रहा था और अपने लिए सन्नी के ह्रदय में छिपे इस अगाध प्रेम को देख कर कनु की आँखों से निश्छल प्रेम छलक पड़ा था | वह सन्नी के सीने में अपने मुंह को छिपा कर उस से लिपट गयी थी | 
दोनों  कुछ देर इसी तरह बैठे रहे कि तभी शालिनी की आवाज उन्हें सुनाई दी “ कनु तुम्हारी योग कक्षाएं शुरू करने के लिए जो हॉल बुक किया है चलो उसके इंटीरियर डिजाइनर से मिल आते हैं , आज के लिए मिलना तय हुआ था न |”
“जी आती हूँ” 
एक माह बड़ी भाग-दौड़ में बीता, कक्षाएँ आरम्भ करने से पहले उसकी मार्केटिंग, प्रचार-प्रसार, हॉल का इंटीरियर, कनु के लिए योग इंस्ट्रक्टर की स्पेशल ड्रेस यह सब खरीददारी करने दोनों सास-बहु रोज निकल जातीं |
अंततः योग कक्षा शुरू करने का आज पहला दिन आ ही गया था | “दस बजे से महिलाओं का पहला बैच होगा कनु और तुम सलून भी जाकर नहीं आयीं, इतनी भी  क्या व्यस्तता ? चलो तुम्हें पास ही के सलून में लेकर चलता हूँ |” सन्नी के प्रेम पगे शब्द कनु के कान में पड़े तो वह कमरे से बाहर आयी |
अपने योग के आउटफिट में कनु का सुडौल, कसा हुआ शरीर अत्यंत आकर्षक दिखाई पड़ रहा था | अपने सर के बालों को मोटे रबर बैंड से उसने ऊँचा बाँध लिया था | 
“अच्छी लग रही हो” शालिनी ने उसका मनोबल ऊँचा उठाया तो वह मुस्कुरा दी |   
सन्नी स्कूटर निकाल कर उसे पुकार  रहा था तभी कनु ने मुस्कुराते हुए अपना फैसला उसे सुनाया “मैं ऐसे ही योग कक्षाएं आरम्भ करूँगी | मुझे अब झूठे दिखावे के लिए सलून जाने की आवश्यकता नहीं | जो लोग योग सीखने आयेंगे उन्हें कहाँ फर्क पड़ता है कि मेरा चेहरा कैसा है ?”
“कनु यह क्या कह रही हो ?” मंजू आश्चर्यचकित थी |
जी मंजू दीदी, इसीलिए तो मैं ने योग सेंटर का नाम “मर्दानी” रखा है  |
क्या झांसी की रानी युद्ध में मर्दों की तरह  नहीं लड़ी थी ? उसे भी तो मर्दानी कहा जाता था | तो यदि इश्वर ने मुझे मर्दों की तरह दाढी-मूंछ दिए तो इसमें मेरा क्या दोष ? 
जब से युवावस्था में आयी, मेरे चेहरे के बालों को देख कर लोग पूछते “चेहरे पर यह काली घास क्यों उगा रखी है ? शायद उन्हें दूसरों को नीचा दिखाने में मजा आता होगा ?”
लेकिन यदि यह काली घास न उगी होती तो मैं भी आम स्त्रियों की ही तरह बच्चा पैदा कर गृहस्थी में व्यस्त होती | इस काली घास की वजह से ही तो आज मैं यह योग सेंटर खोलने के लिए प्रेरित हुई | मैं तो शुक्रगुजार हूँ आप सब की जिन्होंने मुझे इसमें सहयोग किया | 
“अब मुझे इस काली घास से कोई तकलीफ नहीं”   मंजू अपनी बढी हुई मूंछों एवं दाढी के साथ “मर्दानी योग सेंटर” के लिए पूरे आत्मविश्वास के साथ बढ़ गयी थी |


कविताएँ, आलेख, कहानी, दोहे, बाल कविताएँ एवं कहानियाँ देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित | 'जो रंग दे वो रंगरेज' कहानी-संग्रह प्रकाशित | चार साझा कहानी-संग्रहों में भी कहानियाँ शामिल | गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा एवं विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान, दिल्ली द्वारा “काका कालेलकर सम्मान वर्ष २०१६ सहित अनेक सम्मान प्राप्त । सम्प्रति - डाइरेक्टर सुपर गॅन ट्रेडर अकॅडमी प्राइवेट लिमिटेड | संपर्क - sgtarochika@gmail.com

1 टिप्पणी

  1. आपकी कहानी पढ़ी रोचिका जी! यह तो एकदम ही नया विषय रहा कथानक की दृष्टि से। बाकी ऐसा होता है यह हमें पता है।
    हमारे साथ एक मैडम थीं उनके साथ भी यह प्रॉब्लम थी।लेकिन हम लोगों ने भी सकारात्मक ही लिया उसे।
    कुछ चीजें ऐसी रहती हैं जो अपने वश में नहीं रहतीं। इसके लिए किसी को कुछ कहना नहीं चाहिये।कहानी सकारात्मक संदेश देती हैं ।हालांकि शीर्षक से समझ में नहीं आया था दिन-दिन बढ़ती काली घास से क्या आशय है! पढ़ते ही समझ में आ गया।
    जिस तरह सुंदर रूप और रंग के साथ जन्म लेना अपने वश में नहीं होता इसी तरह स्वास्थ्य संबन्धी दिक्कतें भी चलती हैं।
    इस कहानी से यह संदेश जाता है कि अगर आपका व्यवहार अच्छा है तो आप सारी दुनिया को जीत सकते हैं और अगर परिवार के लोगों में सह्रदयता , समझदारी व प्रेम है तो परिवार कभी टूट नहीं सकता। उसकी खुशियाँ खत्म नहीं हो सकतीं।
    कुल मिलाकर कहानी बहुत अच्छी लगी।
    हमारी सकारात्मक सोच हमारी बड़ी से बड़ी दिक्कत को भी दूर करने में सहायक होती है, और हमारे निश्चय को दृढ़ करती है ताकि हम विरोध से सामना करने के लिए सक्षम हो सकें।
    एक अच्छी कहानी के लिए आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ ।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.