कविताएँ, आलेख, कहानी, दोहे, बाल कविताएँ एवं कहानियाँ देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित | 'जो रंग दे वो रंगरेज' कहानी-संग्रह प्रकाशित | चार साझा कहानी-संग्रहों में भी कहानियाँ शामिल | गांधी हिन्दुस्तानी साहित्य सभा एवं विष्णु प्रभाकर प्रतिष्ठान, दिल्ली द्वारा “काका कालेलकर सम्मान वर्ष २०१६ सहित अनेक सम्मान प्राप्त । सम्प्रति - डाइरेक्टर सुपर गॅन ट्रेडर अकॅडमी प्राइवेट लिमिटेड | संपर्क - sgtarochika@gmail.com
आपकी कहानी पढ़ी रोचिका जी! यह तो एकदम ही नया विषय रहा कथानक की दृष्टि से। बाकी ऐसा होता है यह हमें पता है।
हमारे साथ एक मैडम थीं उनके साथ भी यह प्रॉब्लम थी।लेकिन हम लोगों ने भी सकारात्मक ही लिया उसे।
कुछ चीजें ऐसी रहती हैं जो अपने वश में नहीं रहतीं। इसके लिए किसी को कुछ कहना नहीं चाहिये।कहानी सकारात्मक संदेश देती हैं ।हालांकि शीर्षक से समझ में नहीं आया था दिन-दिन बढ़ती काली घास से क्या आशय है! पढ़ते ही समझ में आ गया।
जिस तरह सुंदर रूप और रंग के साथ जन्म लेना अपने वश में नहीं होता इसी तरह स्वास्थ्य संबन्धी दिक्कतें भी चलती हैं।
इस कहानी से यह संदेश जाता है कि अगर आपका व्यवहार अच्छा है तो आप सारी दुनिया को जीत सकते हैं और अगर परिवार के लोगों में सह्रदयता , समझदारी व प्रेम है तो परिवार कभी टूट नहीं सकता। उसकी खुशियाँ खत्म नहीं हो सकतीं।
कुल मिलाकर कहानी बहुत अच्छी लगी।
हमारी सकारात्मक सोच हमारी बड़ी से बड़ी दिक्कत को भी दूर करने में सहायक होती है, और हमारे निश्चय को दृढ़ करती है ताकि हम विरोध से सामना करने के लिए सक्षम हो सकें।
एक अच्छी कहानी के लिए आपको बहुत-बहुत बधाइयाँ ।