1-श्वेत चेहरे वाला आदमी- एक
श्वेत चेहरे वाला वह आदमी लापता है
जिसने मुझे अपने चेहरे पर इंनकलाब लिखने
दिया था।
मैं दीवारों पर तलाश रही हूँ
जेल के रिकार्ड में खंगाल रही हूँ
मरघटों में सूंघ रही हूँ
कब्रों को खोद रही हूँ
उसे मौत बाँध ले
मुमकिन नहीं,
उसकी वह सफेदी, वह इंनकलाब, वह गंध
अब भी आजाद है मेरी बंद किताबों के पन्नों में ,
इस किताब को खोलकर पढ़ेगी वह श्वेत चेहरे वाली बच्ची,
तब, जब उसे श्वेत पढ़ना आ जाएगा।
2. श्वेत चेहरे वाला आदमी – दो
कल श्वेत चेहरे वाला वह आदमी मुझे मिला था,
उस गिरे खंभे के पास
जहाँ एक कार ने कुचल दी थी एक मोटरसाइकिल को।
मरे पत्रकार के बच्चे बहुत रोएं थें,
अब तक सड़क गीली है
और पेड़ उदास।
मैं वहीं खड़ी थी कल,
यही कोई दस मिनट तक।
सड़क धड़क रही थी,
एक पीली चिड़ियाँ कंधे पर आकर बैठ गयी थी।
तुम्हारी पीली टी शर्ट मिल नहीं रही,
कल से ढूँढ रही हूँ अल्मारी में।
आज विषु है, पीले फूल खिले हैं
अमलतास की टहनियों पर।
अम्मा के दिए ‘दुआओं के टके ‘तकिए के नीचे रख तुम्हें बुन रही हूँ ।
पीला मेरे लिए प्रतीक्षा का रंग है।
तुम जानते हो मुझे हरा पसंद है।
आओगे न!
मैं इश़्क में हूँ।
3. क्वारेनटाइन में हूँ
मैं लिख रही हूँ तुम्हारे ही लिए
कमरा एसी है
सागवान की लकड़ी की अल्मारी में किताबें है
लैपटॉप है
और तुम्हारा ध्यान!
न्यूज़ में बता रहे हैं
तुम्हें स्टेशन पर से मार डंडे भगा देते हैं?
तुम कहाँ जाते हो तब?
स्टेशन की दूसरी तरफ़, नाले के पास
रात भर मच्छर काटेंगे!
भोर से कुछ नहीं खाया पुलिस के डंडे के सिवा?
पाँच सौ रुपये थे कोई सोते में जेब से निकाल ले गया
इतनी गंदगी और मच्छर में तुम सो कैसे गये?
भैंस हो?
बस आयी थी, बैठ जाते
छत का पाँच सौ, भीतर बैठने का एक हज़ार माँग रहे थें?
खड़े रह गये!
दूसरा दिन है
आज खाना बँटा था
तब तुम चीख़ चीख़ कर क्यों रोने लगे थे?
पत्रकार पूछ रहे थें
तुम ‘घर घर‘ कर रो रहे थे।
चालीस किलोमीटर चले, पैंतीस और चलना है
माथे पर बिटिया बैठी है, बुख़ार है
बस एक सौ दो?
मैं लिखने में लगी हूँ तुम्हारे वास्ते
ज़रा एसी आॅन कर लूँ
मेरे पास दस हज़ार किताबें हैं,
करोना से संबंधित
मैं देश-विदेश में प्रकाशित सब लेख पढ़ चुकी हूँ
मैं तुम्हारी तस्वीर लगाकर तथ्यपरक, बेहतर और प्रभावशाली
भाषा में लेख लिखूँगी
कविताएँ भी
कई कहानियाँ
रुको
मैंने आज चिकन बिरियानी बनाई है
रायता रह गया है
बना कर, खा कर आती हूँ
फिर लिखूँगी
तुम्हारी भूख, तुम्हारी पीड़ा, तुम्हारे तंग हाथ
और हाँ घास खाते बच्चों की कहानी
मेरे शब्दकोश बड़े समृद्ध हैं
मैं बहुत पढ़ी लिखी हूँ
मैंने कई किताबें पढ़ी हैं
मैं तुम्हारे लिए लिखूँगी
काश! कि तुममें से कोई लिखता एक कविता
और ढा देता एसी में पेट भर खा कर लिखी गयी
मेरी कविताओं के बुर्ज ख़लीफ़ा को
जो दुबई माल के बग़ल में ढीठ खड़ी है।
मैंने कहा था न मैं बहुत निर्मम हूँ
उससे भी वीभत्स है मेरा ज्ञान!