भारतेन्दु विमल –
ग़ज़लें
1.
आज हम उन को नई पहचान देंगे,
संगेमरमर में ज़रा सी जान देंगे.
एक अर्सा हो गया ख़ामोश है तू,
ऐ समुंदर हम तुझे तूफ़ान देंगे.
हर नदी के इम्तिहां के वास्ते हम,
सर पटकने के लिए चट्टान देंगे.
क़ैद में दम तोड़ती अंगड़ाइयों को,
हम रिहाई का नया फ़रमान देंगे.
जिस नज़र की बिजलियां ख़ामोश होंगी,
उस नज़र को हम नये अरमान देंगे.
2.
आसमां से टूट कर कोई सितारा आ गया,
आप के पहलू में आख़िर दिल हमारा आ गया.
चांदनी को देख कर जोशे-समुन्दर की तरह,
आप को देखा तो फिर जीना दुबारा आ गया.
खुदकुशी के वास्ते हिम्मत जुटाई थी मगर,
ज़हर के प्याले में भी चेहरा तुम्हारा आ गया.
संगेमरमर से तराशे बुत सभी ख़ामोश थे,
आप आये तो इन्हें करना इशारा आ गया.
ऐ समुंदर तू बड़ा ख़ामोश है मेरी तरह,
क्या तुझे तूफ़ान से करना किनारा आ गया.
3.
प्यार में इज्ज़त ज़रा सी तो मिला कर देखिये,
सर्दियों में धूप की चादर बिछा कर देखिये.
आपके कन्धे पे कोई सर अगर रख दे तो फिर,
उंगलियां बालों में हलके से फिरा कर देखिये.
जब किसी का आशियां जलता नज़र आने लगे,
आंसुओं का ही सही दरिया बहा कर दिखिये.
आसमां छूटा तो शबनम को नई कलियां मिली,
टूटिये, जुड़िये नये रिश्ते बना कर देखिये.
जिनकी तनहाई को यादों का सहारा भी नहीं,
उनकी आंखों से कोई तारा बचा कर देखिये.
झुक गया सूरज ज़मीं को ज़िन्दगी देने के बाद,
कीजिये अहसान फिर नजरें झुका कर देखिये.
4.
आसमां जैसा तो मेरा क़द नहीं है,
पर मेरी दीवानगी की हद नहीं है.
दो सितारों में समुन्दर क़ैद है पर,
मौजे-तूफ़ां के लिए सरहद नहीं है.
ज़ख़्म खा कर मुस्कराना आ गया है,
दर्द का अहसास अब शायद नहीं है.
बन गई मीनार मेरी ज़िन्दगी की,
बस यही अफ़सोस है गुम्बद नहीं है.
मंजिलों की खोज में निकले हैं धारे,
साहिलों को काटना मक़सद नहीं
5.
आज मेरी ज़िन्दगी का है ये कैसा इम्तिहां,
मेरी मंज़िल पूछती है, तेरी मंजिल है कहाँ.
इन सितारों की हिफ़ाज़त अब न कर पायेंगे हम,
आप ले कर चल दिये हैं दूर इनका आसमां.
रात भर जागा सुबह से हो रही है गुफ़्तगू,
अब परिन्दे भी समझने लग गए मेरी ज़बां.
मरमरीं सी बांह शाख़े-गुल से कमतर तो नहीं,
फ़र्क इतना है वहां कलियां नहीं होती जवां .
गर सितारे तोड़ कर लाने की होती शर्त तो,
मान भी लेते मगर वो मांगते हैं कहकशाँ..
परिचयः
गुरुकुल एटा और महा विद्यालय ज्वालापुर, हरिद्वार से स्नातक.
डी ए वी कॉलेज, कानपुर से MA संस्कृत.
हैलिफैक्स यूनिवर्सिटी, यू एस ए से मानद Ph D
मुम्बई में अध्यापन
५ वर्ष पूर्वी अफ्रीका में सांस्कृतिक- सामाजिक कार्य
१९७६ से लन्न्दन में निवास.
२५ वर्ष तक लन्दन में बी बी सी हिन्दी के साथ सम्बद्ध.
लन्दन में ब्रिटिश सरकार के विभागों में प्रशासकीय कार्य.
प्रकाशित कृतियां:
कविता संकलन ” अभिव्यक्ति” और
वाणी प्रकाशन – दिल्ली से प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास – “सोनमछली” .