दीपक नगायच ‘रोशन’ की दो ग़ज़लें
आइए, बैठिए, तब्सिरा कीजिए
एक दिन ऐसा कुछ मोजिज़ा कीजिए
अच्छी होती नहीं इतनी ख़ामोशियां
जैसी भी है निभानी पड़ेगी हमें
जिस तरह मैंने हद तोड़ दी इश्क़ की
सर उठाने लगे जब अंधेरा कहीं
तेरी यादों से वाबस्ता रहेंगे
मेरी ग़ज़लों में है किरदार मेरा
मुकम्मल हों न हों पर होंगे बेहतर
ख़यालो-ख़्वाब में तुझको रखूँगा
तुम्हारे बोसे के जितने निशां हैं
कभी ऊला कभी सानी में ढल कर
दीपक नगायच रोशन
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